shabd-logo

भाग 6

7 फरवरी 2022

15 बार देखा गया 15

अमरकान्त को लखनऊ जेल में आए आज तीसरा दिन है। यहां उसे चक्की का काम दिया गया है। जेल के अधिकारियों को मालूम है, वह धनी का पुत्र है, इसलिए उसे कठिन परिश्रम देकर भी उसके साथ कुछ रिआयत की जाती है।
एक छप्पर के नीचे चक्कियों की कतारें लगी हुई हैं। दो-दो कैदी हरेक चक्की के पास खड़े आटा पीस रहे हैं। शाम को आटे की तौल होगी। आटा कम निकला, तो दंड मिलेगा।
अमर ने अपने संगी से कहा-जरा ठहर जाओ भाई, दम ले लूं, मेरे हाथ नहीं चलते। क्या नाम है तुम्हारा- मैंने तो शायद तुम्हें कहीं देखा है।
संगी गठीला, काला, लाल आंखों वाला, कठोर आकृति का मनुष्य था, जो परिश्रम से थकना न जानता था। मुस्कराकर बोला-मैं वही काले खां हूं, एक बार तुम्हारे पास सोने के कड़े बेचने गया था। याद करो लेकिन तुम यहां कैसे आ फंसे, मुझे यह ताज्जुब हो रहा है। परसों से ही पूछना चाहता था पर सोचता था, कहीं धोखा न हो रहा हो।
अमर ने अपनी कथा संक्षेप में कह सुनाई और पूछा-तुम कैसे आए-
काले खां हंसकर बोला-मेरी क्या पूछते हो लाला, यहां तो छ: महीने बाहर रहते हैं, तो छ: साल भीतर। अब तो यही आरजू है कि अल्लाह यहीं से बुला ले। मेरे लिए बाहर रहना मुसीबत है। सबको अच्छा-अच्छा पहनते, अच्छा-अच्छा खाते देखता हूं, तो हसद होता है, पर मिले कहां से- कोई हुनर आता नहीं, इलम है नहीं। चोरी न करूं, डाका न माईं, तो खाऊं क्या- यहां किसी से हसद नहीं होता, न किसी को अच्छा पहनते देखता हूं, न अच्छा खाते। सब अपने ही जैसे हैं, फिर डाह और जलन क्यों हो- इसीलिए अल्लाहताला से दुआ करता हूं कि यहीं से बुला ले। छूटने की आरजू नहीं है। तुम्हारे हाथ दुख गए हों तो रहने दो। मैं अकेला ही पीस डालूंगा। तुम्हें इन लोगों ने यह काम दिया ही क्यों- तुम्हारे भाई-बंद तो हम लोगों से अलग, आराम से रखे जाते हैं। तुम्हें यहां क्यों डाल दिया- हट जाओ।
अमर ने चक्की की मुठिया जोर से पकड़कर कहा-नहीं-नहीं, मैं थका नहीं हूं। दो-चार दिन में आदत पड़ जाएगी, तो तुम्हारे बराबर काम करूंगा।
काले खां ने उसे पीछे हटाते हुए कहा-मगर यह तो अच्छा नहीं लगता कि तुम मेरे साथ चक्की पीसो। तुमने जुर्म नहीं किया है। रिआया के पीछे सरकार से लड़े हो, तुम्हें मैं न पीसने दूंगा। मालूम होता है तुम्हारे लिए ही अल्लाह ने मुझे यहां भेजा है। वह तो बड़ा कारसाज आदमी है। उसकी कुदरत कुछ समझ में नहीं आती। आप ही आदमी से बुराई करवाता है आप ही उसे सजा देता है, और आप ही उसे मुआफ कर देता है।
अमर ने आपत्ति की-बुराई खुदा नहीं कराता, हम खुद करते हैं।
काले खां ने ऐसी निगाहों से उसकी ओर देखा, जो कह रही थी, तुम इस रहस्य को अभी नहीं समझ सकते-ना-ना, मैं यह नहीं मानूंगा। तुमने तो पढ़ा होगा, उसके हुक्म के बगैर एक पत्ता भी नहीं हिल सकता, बुराई कौन करेगा- सब कुछ वही करवाता है, और फिर माफ भी कर देता है। यह मैं मुंह से कह रहा हूं। जिस दिन मेरे ईमान में यह बात जम जाएगी, उसी दिन बुराई बंद हो जाएगी। तुम्हीं ने उस दिन मुझे वह नसीहत सिखाई थी। मैं तुम्हें अपना पीर समझता हूं। दो सौ की चीज तुमने तीस रुपये में न ली। उसी दिन मुझे मालूम हुआ,0 बदी क्या चीज है। अब सोचता हूं, अल्लाह को क्या मुंह दिखाऊंगा- जिंदगी में इतने गुनाह किए हैं कि जब उनकी याद आती है, तो रोंए खड़े हो जाते हैं। अब तो उसी की रहीमी का भरोसा है। क्यों भैया, तुम्हारे मजहब में क्या लिखा है- अल्लाह गुनहगारों को मुआफ कर देता है-
काले खां की कठोर मुद्रा इस गहरी, सजीव, सरल भक्ति से प्रदीप्त हो उठी, आंखों में कोमल छटा उदय हो गई। और वाणी इतनी मर्मस्पर्शी, इतनी आर्द्र थी कि अमर का हृदय पुलकित हो उठा-सुनता तो हूं खां साहब, कि वह बड़ा दयालु है।
काले खां दूने वेग से चक्की घुमाता हुआ बोला-बड़ा दयालु है, भैया मां के पेट में बच्चे को भोजन पहुंचाता है। यह दुनिया ही उसकी रहीमी का आईना है। जिधर आंखें उठाओ, उसकी रहीमी के जलवे। इतने खूनी-डाकू यहां पड़े हुए हैं, उनके लिए भी आराम का सामान कर दिया। मौका देता है, बार-बार मौका देता है कि अब भी संभल जावें। उसका गूस्सा कौन सहेगा, भैया- जिस दिन उसे गुस्सा आवेगा, यह दुनिया जहन्नुम को चली जाएगी। हमारे-तुम्हारे ऊपर वह क्यों गुस्सा करेगा- हम चींटी को पैरों तले पड़ते देखकर किनारे से निकल जाते हैं। उसे कुचलते रहम आता है। जिस अल्लाह ने हमको बनाया, जो हमको पालता है, वह हमारे ऊपर कभी गुस्सा कर सकता है- कभी नहीं।
अमर को अपने अंदर आस्था की एक लहर-सी उठती हुई जान पड़ी। इतने अटल विश्वास और सरल श्रध्दा के साथ इस विषय पर उसने किसी को बातें करते न सुना था। बात वही थी, जो वह नित्य छोटे-बड़े के मुंह से सुना करता था, पर निष्ठा ने उन शब्दों में जान सी डाल दी थी।
जरा देर बाद वह फिर बोला-भैया, तुमसे चक्की चलवाना तो ऐसे ही है, जैसे कोई तलवार से चिड़िए को हलाल करे। तुम्हें अस्पताल में रखना चाहिए था, बीमारी में दवा से उतना फायदा नहीं होता, जितना मीठी बात से हो जाता है। मेरे सामने यहां कई कैदी बीमार हुए पर एक भी अच्छा न हुआ। बात क्या है- दवा कैदी के सिर पर पटक दी जाती है, वह चाहे पिए चाहे फेंक दे।
अमर को इस काली-कलूटी काया में स्वर्ण-जैसा हृदय चमकता दीख पड़ा। मुस्कराकर बोला-लेकिन दोनों काम साथ-साथ कैसे करूंगा-
'मैं अकेला चक्की चला लूंगा और पूरा आटा तुलवा दूंगा।'
'तब तो सारा सवाब तुम्हीं को मिलेगा।'
काले खां ने साधु-भाव से कहा-भैया, कोई काम सवाब समझकर नहीं करना चाहिए। दिल को ऐसा बना लो कि सवाब में उसे वही मजा आवे, जो गाने या खेलने में आता है। कोई काम इसलिए करना कि उससे नजात मिलेगी, रोजगार है फिर मैं तुम्हें क्या समझाऊं तुम खुद इन बातों को मुझसे ज्यादा समझते हो। मैं तो मरीज की तीमारदारी करने के लायक ही नहीं हूं। मुझे बड़ी जल्दी गुस्सा आ जाता है। कितना चाहता हूं कि गुस्सा न आए पर जहां किसी ने दो-एक बार मेरी बातें न मानीं और मैं बिगड़ा।
वही डाकू, जिसे अमर ने एक दिन अधमता के पैरों के नीचे लोटते देखा था, आज देवत्व के पद पर पहुंच गया था। उसकी आत्मा से मानो एक प्रकाश-सा निकलकर अमर के अंत:करण को अवलोकित करने लगा।
उसने कहा-लेकिन यह तो बुरा मालूम होता है कि मेहनत का काम तुम करो और मैं...।
काले खां ने बात काटी-भैया, इन बातों में क्या रखा है- तुम्हारा काम इस चक्की से कहीं कठिन होगा। तुम्हें किसी के बात करने तक की मुहलत न मिलेगी। मैं रात को मीठी नींद सोऊंगा। तुम्हें रातें जाफकर काटनी पड़ेंगी। जान-जोखिम भी तो है। इस चक्की में क्या रखा है- यह काम तो गधा भी कर सकता है, लेकिन जो काम तुम करोगे, वह विरले कर सकते हैं।
सूर्यास्त हो रहा था। काले खां ने अपने पूरे गेहूं पीस डाले थे और दूसरे कैदियों के पास जा-जाकर देख रहा था, किसका कितना काम बाकी है। कई कैदियों के गेहूं अभी समाप्त नहीं हुए थे। जेल कर्मचारी आटा तौलने आ रहा होगा। इन बेचारों पर आफत आ जाएगी, मार पड़ने लगेगी। काले खां ने एक-एक चक्की के पास जाकर कैदियों की मदद करनी शुरू की। उसकी फुर्ती और मेहनत पर लोगों को विस्मय होता था। आधा घंटे में उसने फिसड्डियों की कमी पूरी कर दी। अमर अपनी चक्की के पास खड़ा सेवा के पुतले को श्रध्दा-भरी आंखों से देख रहा था, मानो दिव्य दर्शन कर रहा हो।
काले खां इधर से फुरसत पाकर नमाज पढ़ने लगा। वहीं बरामदे में उसने वजू किया, अपना कंबल जमीन पर बिछा दिया और नमाज शुरू की। उसी वक्त जेलर साहब चार वार्डरों के साथ आटा तुलवाने आ पहुंचे। कैदियों ने अपना-अपना आटा बोरियों में भरा और तराजू के पास आकर खड़ा हो गए। आटा तुलने लगा।
जेलर ने अमर से पूछा-तुम्हारा साथी कहां गया-
अमर ने बताया, नमाज पढ़ रहा है।
'उसे बुलाओ। पहले आटा तुलवा ले, फिर नमाज पढ़े। बड़ा नमाजी की दुम बना है। कहां गया है नमाज पढ़ने?'
अमर ने शेड के पीछे की तरफ इशारा करके कहा-उन्हें नमाज पढ़ने दें आप आटा तौल लें।
जेलर यह कब देख सकता था कि कोई कैदी उस वक्त नमाज पढ़ने जाय, जब जेल के साक्षात् प्रभु पधारे हों शेड के पीछे जाकर बोले-अबे ओ नमाजी के बच्चे, आटा क्यों नहीं तुलवाता- बचा, गेंहू चबा गए हो, तो नमाज का बहाना करने लगे। चल चटपट, वरना मारे हंटरों के चमड़ी उधोड़ दूंगा।
काले खां दूसरी ही दुनिया में था।
जेलर ने समीप जाकर अपनी छड़ी उसकी पीठ में चुभाते हुए कहा-बहरा हो गया है क्या बे- शामतें तो नहीं आई हैं-
काले खां नमाज में मग्न था। पीछे फिरकर भी न देखा।
जेलर ने झल्लाकर लात जमाई। कालें खां सिजदे के लिए झुका हुआ था। लात खाकर औंधो मुंह गिर पड़ा पर तुरंत संभलकर फिर सिजदे में झुक गया। जेलर को अब जिद पड़ गई कि उसकी नमाज बंद कर दे। संभव है काले खां को भी जिद पड़ गई हो कि नमाज पूरी किए बगैर न उठूंगा। वह तो सिजदे में था। जेलर ने उसे बूटदार ठोकरें जमानी शुरू कीं एक वार्डन ने लपककर दो गारद सिपाही बुला लिए। दूसरा जेलर साहब की कुमक पर दौड़ा। काले खां पर एक तरफ से ठोकरें पड़ रही थीं, दूसरी तरफ से लकड़ियां पर वह सिजदे से सिर न उठाता था। हां, प्रत्येक आघात पर उसके मुंह से 'अल्लाहो अकबर ।' की दिल हिला देने वाली सदा निकल जाती थी। उधर आघातकारियों की उत्तेेजना भी बढ़ती जाती थी। जेल का कैदी जेल के खुदा को सिजदा न करके अपने खुदा को सिजदा करे, इससे बड़ा जेलर साहब का क्या अपमान हो सकता था यहां तक कि काले खां के सिर से रूधिर बहने लगा। अमरकान्त उसकी रक्षा करने के लिए चला था कि एक वार्डन ने उसे मजबूती से पकड़ लिया। उधर बराबर आघात हो रहे थे और काले खां बराबर 'अल्लाहो अकबर' की सदा लगाए जाता था। आखिर वह आवाज क्षीण होते-होते एक बार बिलकुल बंद हो गई और कालें खां रक्त बहने से शिथिल हो गया। मगर चाहे किसी के कानों में आवाज न जाती हो, उसके होंठ अब भी खुल रहे थे और अब भी 'अल्लाहो अकबर' की अव्यक्त ध्वोनि निकल रही थी।
जेलर ने खिसियाकर कहा-पड़ा रहने दो बदमाश को यहीं कल से इसे खड़ी बेड़ी दूंगा और तनहाई भी। अगर तब भी न सीधा हुआ, तो उलटी होगी। इसका नमाजीपन निकाल न दूं तो नाम नहीं।
एक मिनट में वार्डन, जेलर, सिपाही सब चले गए। कैदियों के भोजन का समय आया, सब-के-सब भोजन पर जा बैठे। मगर काले खां अभी वहीं औंधा पड़ा था। सिर और नाक तथा कानों से खून बह रहा था। अमरकान्त बैठा उसके घावों को पानी से धोरहा था और खून बंद करने का प्रयास कर रहा था। आत्मशक्ति के इस कल्पनातीत उदाहरण ने उसकी भौतिक बुद्धि को जैसे आक्रांत कर दिया। ऐसी परिस्थिति में क्या वह इस भांति निश्चल और संयमित बैठा रहता- शायद पहले ही आघात में उसने या तो प्रतिकार किया होता या नमाज छोड़कर अलग हो जाता। विज्ञान और नीति और देशानुराग की वेदी पर बलिदानों की कमी नहीं। पर यह निश्चल धैर्य ईश्वर-निष्ठा ही का प्रसाद है।
कैदी भोजन करके लौटे। काले खां अब भी वहीं पड़ा हुआ था। सभी ने उसे उठाकर बैरक में पहुंचाया और डॉक्टर को सूचना दी पर उन्होंने रात को कष्ट उठाने की जरूरत न समझी। वहां और कोई दवा भी न थी। गर्म पानी तक न मयस्सर हो सका।
उस बैरक के कैदियों ने रात बैठकर काटी। कई आदमी आमादा थे कि सुबह होते ही जेलर साहब की मरम्मत की जाय। यही न होगा, साल-साल भर की मियाद और बढ़ जाएगी। क्या परवाह अमरकान्त शांत प्रकृति का आदमी था, पर इस समय वह भी उन्हीं लोगों में मिला हुआ था। रात-भर उसके अंदर पशु और मनुष्य में द्वंद्व होता रहा। वह जानता था, आग आग से नहीं, पानी से शांत होती है। इंसान कितना ही हैवान हो जाय उसमें कुछ न कुछ आदमीयत रहती ही है। वह आदमीयत अगर जाग सकती है, तो ग्लानि से, या पश्चा ताप से। अमर अकेला होता, तो वह अब भी विचलित न होता लेकिन सामूहिक आवेश ने उसे भी अस्थिर कर दिया। समूह के साथ हम कितने ही ऐसे अच्छे-बुरे काम कर जाते हैं, जो हम अकेले न कर सकते। और काले खां की दशा जितनी ही खराब होती जाती थी, उतनी ही प्रतिशोध की ज्वाला भी प्रचंड होती जाती थी।
एक डाके के कैदी ने कहा-खून पी जाऊंगा, खून उसने समझा क्या है यही न होगा, फांसी हो जाएगी-
अमरकान्त बोला-उस वक्त क्या समझे थे कि मारे ही डालता है ।
चुपके-चुपके षडयंत्र रचा गया, आघातकारियों का चुनाव हुआ, उनका कार्य विधान निश्चय किया गया। सफाई की दलीलें सोच निकाली गईं।
सहसा एक ठिगने कैदी ने कहा-तुम लोग समझते हो, सवेरे तक उसे खबर न हो जाएगी-
अमर ने पूछा-खबर कैसे होगी- यहां ऐसा कौन है, जो उसे खबर दे दे-
ठिगने कैदी ने दाएं-बाएं आंखें घुमाकर कहा-खबर देने वाले न जाने कहां से निकल आते हैं, भैया- किसी के माथे पर तो कुछ लिखा नहीं, कौन जाने हमीं में से कोई जाकर इत्तिला कर दे- रोज ही तो लोगों को मुखबिर बनते देखते हो। वही लोग जो अगुआ होते हैं, अवसर पड़ने पर सरकारी गवाह बन जाते हैं। अगर कुछ करना है, तो अभी कर डालो। दिन को वारदात करोगे, सब-के-सब पकड़ लिए जाओगे। पांच-पांच साल की सजा ठुकजाएगी।
अमर ने संदेह के स्वर में पूछा-लेकिन इस वक्त तो वह अपने क्वार्टर में सो रहा होगा-
ठिगने कैदी ने राह बताई-यह हमारा काम है भैया, तुम क्या जानो-
सबों ने मुंह मोड़कर कनफुसकियों में बातें शुरू कीं। फिर पांचों आदमी खड़े हो गए।
ठिगने कैदी ने कहा-हममें से जो ठ्ठटे, उसे गऊ हत्या ।
यह कहकर उसने बड़े जोर से हाय-हाय करना शुरू किया। और भी कई आदमी चीखने चिल्लाने लगे। एक क्षण में वार्डन ने द्वार पर आकर पूछा-तुम लोग क्यों शोर कर रह ेहो- क्या बात है-
ठिगने कैदी ने कहा-बात क्या है, काले खां की हालत खराब है। जाकर जेलर साहब को बुला लाओ। चटपट।
वार्डन बोला-वाह बे चुपचाप पड़ा रह बड़ा नवाब का बेटा बना है ।
'हम कहते हैं जाकर उन्हें भेज दो नहीं, ठीक नहीं होगा।'
काले खां ने आंखें खोलीं और क्षीण स्वर में बोला-क्यों चिल्लाते हो यारो, मैं अभी मरा नहीं हूं। जान पड़ता है, पीठ की हड्डी में चोट है।
ठिगने कैदी ने कहा-उसी का बदला चुकाने की तैयारी है पठान ।
काले खां तिरस्कार के स्वर में बोला-किससे बदला चुकाओगे भाई, अल्लाह से- अल्लाह की यही मरजी है, तो उसमें दूसरा कौन दखल दे सकता है- अल्लाह की मर्जी के बिना कहीं एक पत्ती भी हिल सकती है- जरा मुझे पानी पिला दो। और देखो, जब मैं मर जाऊं, तो यहां जितने भाई हैं, सब मेरे लिए खुदा से दुआ करना। और दुनिया में मेरा कौन है- शायद तुम लोगों की दुआ से मेरी निजात हो जाय।
अमर ने उसे गोद में संभालकर पानी पिलाना चाहा मगर घूंट कंठ के नीचे न उतरा। वह जोर से कराहकर फिर लेट गया।
ठिगने कैदी ने दांत पीसकर कहा-ऐसे बदमास की गरदन तो उलटी छुरी से काटनी चाहिए ।
काले खां दीनभाव से रूक-रूककर बोला-क्यों मेरी नजात का द्वार बंद करते हो, भाई दुनिया तो बिगड़ गई क्या आकबत भी बिफाडना चाहते हो- अल्लाह से दुआ करो, सब पर रहम करे। जिंदगी में क्या कम गुनाह किए हैं कि मरने के पीछे पांव में बेड़ियां पड़ी रहें या अल्लाह, रहम कर।
इन शब्दों में मरने वाले की निर्मल आत्मा मानो व्याप्त हो गई थी। बातें वही थीं, तो रोज सुना करते थे, पर इस समय इनमें कुछ ऐसे द्रावक, कुछ ऐसी हिला देने वाली सि' िथी कि सभी जैसे उसमें नहा उठे। इस चुटकी भर राख ने जैसे उनके तापमय विकारों को शांत कर दिया।
प्रात:काल जब काले खां ने अपनी जीवन-लीला समाप्त कर दी तो ऐसा कोई कैदी न था, जिसकी आंखों से आंसू न निकल रहे हों पर औरों का रोना दु:ख का था, अमर का रोना सुख का था। औरों को किसी आत्मीय के खो देने का सदमा था, अमर को उसके और समीप हो जाने का अनुभव हो रहा था। अपने जीवन में उसने यही एक नवरत्न पाया था, जिसके सम्मुख वह श्रध्दा से सिर झुका सकता था और जिससे वियोग हो जाने पर उसे एक वरदान पा जाने का भान होता था।
इस प्रकाश-स्तंभ ने आज उसके जीवन को एक दूसरी ही धारा में डाल दिया जहां संशय की जगह विश्वास, और शंका की जगह सत्य मूर्तिमान हो गया था। 

53
रचनाएँ
कर्मभूमि
0.0
प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। कर्मभूमि का कथासार ‘कर्मभूमि’ यथार्थ और आदर्श के अद्भुत समन्वय की एक ऐसी कृति है जो मानव मन के विविध रूपों को कुशलता से चित्रित करती है। महात्मा गांधी के नेतृत्व में लड़े गए स्वाधीनता आंदोलन की झांकी प्रस्तुत करने वाली यह कृति मनुष्य के देववत्व की विजय का उद्घोष है। ‘कर्मभूमि ‘ में यह संदेश दिया गया है। प्रेमचन्द का कर्मभूमि उपन्यास एक राजनीतिक उपन्यास है जिसमें विभिन्न राजनीतिक समस्याओं को कुछ परिवारों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। ये परिवार यद्यपि अपनी पारिवारिक समस्याओं से जूझ रहे हैं तथापि तत्कालीन राजनीतिक आन्दोलन में भाग ले रहे हैं। उपन्यास का कथानक काशी और उसके आस-पास के गाँवों से संबंधित है। कर्मभूमि उपन्यास की विषय निर्धनों के मकान की समस्या, अछूतोद्धार की समस्या, अछूतों के मन्दिर में प्रवेश की समस्या, भारतीय नारियों की मर्यादा और सतीत्व की रक्षा की समस्या, ब्रिटिश साम्राज्य के दमन चक्र से उत्पन्न समस्याएँ, भारतीय समाज में व्याप्त धार्मिक पाखण्ड की समस्या पुनर्जागरण और नवीन चेतना के समाज में संचरण की समस्या, राष्ट्र के लिए .है।
1

कर्मभूमि अध्याय 1

7 फरवरी 2022
11
4
1

भाग 1 हमारे स्कूलों और कॉलेजों में जिस तत्परता से फीस वसूल की जाती है, शायद मालगुजारी भी उतनी सख्ती से नहीं वसूल की जाती। महीने में एक दिन नियत कर दिया जाता है। उस दिन फीस का दाखिला होना अनिवार्य है।

2

भाग 2

7 फरवरी 2022
9
3
0

अमरकान्त के पिता लाला समरकान्त बड़े उद्योगी पुरुष थे। उनके पिता केवल एक झोंपडी छोड़कर मरे थे मगर समरकान्त ने अपने बाहुबल से लाखों की संपत्ति जमा कर ली थी। पहले उनकी एक छोटी-सी हल्दी की आढ़त थी। हल्दी

3

भाग 3

7 फरवरी 2022
6
3
0

स्कूल से लौटकर अमरकान्त नियमानुसार अपनी छोटी कोठरी में जाकर चरखे पर बैठ गया। उस विशाल भवन में, जहां बारात ठहर सकती थी, उसने अपने लिए यही छोटी-सी कोठरी पसंद की थी। इधर कई महीने से उसने दो घंटे रोज सूत

4

भाग 4

7 फरवरी 2022
5
2
0

अमरकान्त मैटि'कुलेशन की परीक्षा में प्रांत में सर्वप्रथम आया पर अवस्था अधिक होने के कारण छात्रवृत्ति न पा सका। इससे उसे निराशा की जगह एक तरह का संतोष हुआ क्योंकि वह अपने मनोविकारों को कोई टिकौना न देन

5

भाग 5

7 फरवरी 2022
3
2
0

अमरकान्त ने अपने जीवन में माता के स्नेह का सुख न जाना था। जब उसकी माता का अवसान हुआ, तब वह बहुत छोटा था। उस दूर अतीत की कुछ धुंधली-सी और इसीलिए अत्यंत मनोहर और सुखद स्मृतियां शेष थीं। उसका वेदनामय बाल

6

भाग 6

7 फरवरी 2022
3
2
0

डॉ. शान्तिकुमार एक महीने तक अस्पताल में रहकर अच्छे हो गए। तीनों सैनिकों पर क्या बीती, नहीं कहा जा सकता पर अच्छे होते ही पहला काम जो डॉक्टर साहब ने किया, वह तांगे पर बैठकर छावनी में जाना और उन सैनिकों

7

भाग 7

7 फरवरी 2022
3
2
0

अमरकान्त ने आम जलसों में बोलना तो दूर रहा, शरीक होना भी छोड़ दिया पर उसकी आत्मा इस बंधन से छटपटाती रहती थी और वह कभी-कभी सामयिक पत्र-पत्रिकाओं में अपने मनोविकारों को प्रकट करके संतोष लाभ करता था। अब व

8

भाग 8

7 फरवरी 2022
3
2
0

अमरकान्त नौ बजते-बजते लौटा तो लाला समरकान्त ने पूछा-तुम दूकान बंद करके कहां चले गए थे- इसी तरह दूकान पर बैठा जाता है- अमर ने सफाई दी-बुढ़िया पठानिन रुपये लेने आई थी। बहुत अंधोरा हो गया था। मैंने समझा

9

भाग 9

7 फरवरी 2022
2
2
0

जीवन में कुछ सार है, अमरकान्त को इसका अनुभव हो रहा है। वह एक शब्द भी मुंह से ऐसा नहीं निकालना चाहता, जिससे सुखदा को दुख हो क्योंकि वह गर्भवती है। उसकी इच्छा के विरूद्वद्व' वह छोटी-से-छोटी बात भी नहीं

10

भाग 10

7 फरवरी 2022
2
2
0

तीन महीने तक सारे शहर में हलचल रही। रोज आदमी सब काम-धंधों छोड़कर कचहरी जाते। भिखारिन को एक नजर देख लेने की अभिलाषा सभी को खींच ले जाती। महिलाओं की भी खासी संख्या हो जाती थी। भिखारिन ज्योंही लारी से उत

11

भाग 11

7 फरवरी 2022
2
2
0

सारे शहर में कल के लिए दोनों तरह की तैयारियां होने लगीं-हाय-हाय की भी और वाह-वाह की भी। काली झंडियां भी बनीं और फलों की डालियां भी जमा की गईं, पर आशावादी कम थे, निराशावादी ज्यादा। गोरों का खून हुआ है।

12

भाग 12

7 फरवरी 2022
2
2
0

सलीम ने सोचा अमरकान्त रुपये लिए आता होगा पर आठ बजे, नौ का अमल हुआ और अमर का कहीं पता नहीं। आया क्यों नहीं- कहीं बीमार तो नहीं पड़ गया। ठीक है, रुपये का इंतजाम कर रहा होगा। बाप तो टका न देंगे। सास से ज

13

भाग 13

7 फरवरी 2022
2
2
0

मुन्नी के बरी होने का समाचार आनन-फानन सारे शहर में फैल गया। इस फैसले की आशा बहुत कम आदमियों को थी। कोई कहता था-जज साहब की स्त्री ने पति से लड़कर फैसला लिखाया। रूठकर मैके चली जा रही थीं। स्त्री जब किसी

14

भाग 15

7 फरवरी 2022
2
1
0

अमरकान्त के जीवन में एक नई स्फूनर्ति का संचार होने लगा। अब तक घरवालों ने उसके हरेक काम की अवहेलना ही की थी। सभी उसकी लगाम खींचते रहते थे। घोड़े में न वह दम रहा, न वह उत्साह लेकिन अब एक प्राणी बढ़ावा द

15

भाग 16

7 फरवरी 2022
1
1
0

इधर कुछ दिनों से अमरकान्त म्युनिसिपल बोर्ड का मेंबर हो गया था। लाला समरकान्त का नगर में इतना प्रभाव था और जनता अमरकान्त को इतना चाहती थी कि उसे धोला भी नहीं खर्च करना पड़ा और वह चुन लिया गया। उसके मुक

16

भाग 17

7 फरवरी 2022
1
1
0

अमरकान्त खादी बेच रहा है। तीन बजे होंगे, लू चल रही है, बगूले उठ रहे हैं। दूकानदार दूकानों पर सो रहे हैं, रईस महलों में सो रहे हैं मजूर पेड़ों के नीचे सो रहे हैं और अमर खादी का गट्ठा लादे, पसीने में तर

17

भाग 18

7 फरवरी 2022
2
1
0

अमरकान्त गली के बाहर निकलकर सड़क पर आया। कहां जाए- पठानिन इसी वक्त दादा के पास जाएगी। जरूर जाएगी। कितनी भंयकर स्थिति होगी कैसा कुहराम मचेगा- कोई धर्म के नाम को रोएगा, कोई मर्यादा के नाम को रोएगा। दगा,

18

कर्मभूमि अध्याय 2

7 फरवरी 2022
1
1
0

भाग 1 उत्तर की पर्वत-श्रेणियों के बीच एक छोटा-सा रमणीक गांव है। सामने गंगा किसी बालिका की भांति हंसती, उछलती, नाचती, गाती, दौड़ती चली जाती है। पीछे ऊंचा पहाड़ किसी वृध्द योगी की भांति जटा बढ़ाए शांत,

19

भाग 2

7 फरवरी 2022
1
1
0

अमरकान्त सवेरे उठा, मुंह-हाथ धोकर गंगा-स्नान किया और चौधरी से मिलने चला। चौधरी का नाम गूदड़ था। इस गांव में कोई-जमींदार न रहता था। गूदड़ का द्वार ही चौपाल का काम देता था। अमर ने देखा, नीम के पेड़ के न

20

भाग 3

7 फरवरी 2022
1
1
0

दो महीने बीत गए। पूस की ठंडी रात काली कमली ओढ़े पड़ी हुई थी। ऊंचा पर्वत किसी विशाल महत्तवाकांक्षी की भांति, तारिकाओं का मुकुट पहने खड़ा था। झोंपड़ियां जैसे उसकी वह छोटी-छोटी अभिलाषाएं थीं, जिन्हें वह

21

भाग 4

7 फरवरी 2022
1
1
0

तीन महीने तक अमर ने किसी को खत न लिखा। कहीं बैठने की मुहलत ही न मिली। सकीना का हाल जानने के लिए हृदय तड़प-तड़पकर रह जाता था। नैना की भी याद आ जाती थी। बेचारी रो-रोकर मरी जाती होगी। बच्चे का हंसता हुआ

22

भाग 5

7 फरवरी 2022
1
1
0

गांव में एक आदमी सगाई लाया है। उस उत्सव में नाच, गाना, भोज हो रहा है। उसके द्वार पर नगड़ियां बज रही है गांव भर के स्त्री, पुरुष, बालक जमा हैं और नाच शुरू हो गया है। अमरकान्त की पाठशाला आज बंद है। लोग

23

भाग 6

7 फरवरी 2022
1
1
0

सलोनी काकी ने अपने घर की जगह पाठशाले के लिए दे दी है। लड़के बहुत आने लगे हैं। उस छोटी-सी कोठरी में जगह नहीं है। सलोनी से किसी ने जगह मांगी नहीं, कोई दबाव भी नहीं डाला गया। बस, एक दिन अमर और चौधरी बैठे

24

भाग 7

7 फरवरी 2022
1
1
0

कई महीने गुजर गए। गांव में फिर मुरदा मांस न आया। आश्चर्य की बात तो यह थी कि दूसरे गांव के चमारों ने भी मुरदा मांस खाना छोड़ दिया। शुभ उद्योग कुछ संक्रामक होता है। अमर की शाला अब नई इमारत में आ गई थी।

25

कर्मभूमि अध्याय 3

7 फरवरी 2022
1
1
0

भाग 1 लाला समरकान्त की जिंदगी के सारे मंसूबे धूल में मिल गए। उन्होंने कल्पना की थी कि जीवन-संध्यि में अपना सर्वस्व बेटे को सौंपकर और बेटी का विवाह करके किसी एकांत में बैठकर भगवत्-भजन में विश्राम लेंग

26

भाग 2

7 फरवरी 2022
1
1
0

अमरकान्त का पत्र लिए हुए नैना अंदर आई, तो सुखदा ने पूछा-किसका पत्र है- नैना ने खत पाते ही पढ़ डाला था। बोली-भैया का। सुखदा ने पूछा-अच्छा उनका खत है- कहां हैं- 'हरिद्वार के पास किसी गांव में हैं।'

27

भाग 3

7 फरवरी 2022
1
1
0

एक महीने से ठाकुरद्वारे में कथा हो रही है। पृं मधुसुदनजी इस कला में प्रवीण हैं। उनकी कथा में श्रव्य और दृश्य, दोनों ही काव्यों का आनंद आता है। जितनी आसानी से वह जनता को हंसा सकते हैं, उतनी ही आसानी से

28

भाग 4

7 फरवरी 2022
1
1
0

उस दिन फिर कथा न हुई। कुछ लोगों ने ब्रह्मचारी ही पर आक्षेप करना शुरू किया। बैठे तो थे बेचारे एक कोने में, उन्हें उठाने की जरूरत ही क्या थी- और उठाया भी, तो नम्रता से उठाते। मार-पीट से क्या फायदा- दूस

29

भाग 5

7 फरवरी 2022
1
1
0

नैना बार-बार द्वार पर आती है और समरकान्त को बैठे देखकर लौट जाती है। आठ बज गए और लालाजी अभी तक गंगा-स्नान करने नहीं गए। नैना रात-भर करवटें बदलती रही। उस भीषण घटना के बाद क्या वह सो सकती थी- उसने शातिंक

30

भाग 6

7 फरवरी 2022
1
1
0

दूसरे दिन मंदिर में कितना समारोह हुआ, शहर में कितनी हलचल मची, कितने उत्सव मनाए गए, इसकी चर्चा करने की जरूरत नहीं। सारे दिन मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहा। ब्रह्मचारी आज फिर विराजमान हो गए थे और जित

31

भाग 7

7 फरवरी 2022
1
1
0

उसी रात को शान्तिकुमार ने अमर के नाम खत लिखा। वह उन आदमियों में थे जिन्हें और सभी कामों के लिए समय मिलता है, खत लिखने के लिए नहीं मिलता। जितनी अधिक घनिष्ठता, उतनी ही बेफिक्री। उनकी मैत्री खतों से कहीं

32

भाग 9

7 फरवरी 2022
1
1
0

सुखदा सड़क पर मोटर से उतरकर सकीना का घर खोजने लगी पर इधर से उधर तक दो-तीन चक्कर लगा आई, कहीं वह घर न मिला। जहां वह मकान होना चाहिए था, वहां अब एक नया कमरा था, जिस पर कलई पुती हुई थी। वह कच्ची दीवार और

33

भाग 10

7 फरवरी 2022
1
1
0

सुखदा सेठ धनीराम के घर पहुंची, तो नौ बज रहे थे। बड़ा विशाल, आसमान से बातें करने वाला भवन था, जिसके द्वार पर एक तेज बिजली की बत्ती जल रही थी और दो दरबान खड़े थे। सुखदा को देखते ही भीतर-बाहर हलचल मच गई।

34

भाग 11

7 फरवरी 2022
1
1
0

सावन में नैना मैके आई। ससुराल चार कदम पर थी, पर छ: महीने से पहले आने का अवसर न मिला। मनीराम का बस होता तो अब भी न आने देता लेकिन सारा घर नैना की तरफ था। सावन में सभी बहुएं मैके जाती हैं। नैना पर इतना

35

भाग 12

7 फरवरी 2022
1
1
0

अब भी मूसलाधार वर्षा हो रही थी। संध्यां से पहले संध्या हो गई थी। और सुखदा ठाकुरद्वारे में बैठी हुई ऐसी हड़ताल का प्रबंध कर रही थी, जो म्युनिसिपल बोर्ड और उसके कर्ण-धारों का सिर हमेशा के लिए नीचा कर दे

36

कर्मभूमि अध्याय 4

7 फरवरी 2022
1
1
0

भाग 1 अमरकान्त को ज्योंही मालूम हुआ कि सलीम यहां का अफसर होकर आया है, वह उससे मिलने चला। समझा, खूब गप-शप होगी। यह खयाल तो आया, कहीं उसमें अफसरी की बू न आ गई हो लेकिन पुराने दोस्त से मिलने की उत्कंठा

37

भाग 2

7 फरवरी 2022
1
1
0

अमरकान्त के जीवन में एक नया उत्साह चमक उठा है। ऐसा जान पड़ता है कि अपनी यात्रा में वह अब एक घोड़े पर सवार हो गया है। पहले पुराने घोड़े को ऐड़ और चाबुक लगाने की जरूरत पड़ती थी। यह नया घोड़ा कनौतियां खड

38

भाग 3

7 फरवरी 2022
1
1
0

इस इलाके के जमींदार एक महन्तजी थे। कारकून और मुख्तार उन्हीं के चेले-चापड़ थे। इसलिए लगान बराबर वसूल होता जाता था। ठाकुरद्वारे में कोई-न-कोई उत्सव होता ही रहता था। कभी ठाकुरजी का जन्म है, कभी ब्याह है,

39

भाग 4

7 फरवरी 2022
1
1
0

अमर घर लौटा, तो बहुत हताश था। अगर जनता को शांत करने का उपाय न किया गया, अवश्य उपद्रव हो जाएगा। उसने महन्तजी से मिलने का निश्चय किया। इस समय उसका चित्त इतना उदास था कि एक बार जी में आया, यहां से सब छोड

40

भाग 5

7 फरवरी 2022
1
1
0

अमर गूदड़ चौधरी के साथ महन्त आशाराम गिरि के पास पहुंचा। संध्यात का समय था। महन्तजी एक सोने की कुर्सी पर बैठे हुए थे, जिस पर मखमली गद्दा था। उनके इर्द-गिर्द भक्तों की भीड़ लगी हुई थी, जिसमें महिलाओं की

41

भाग 6

7 फरवरी 2022
1
1
0

सलीम यहां से कोई सात-आठ मील पर डाकबंगले में पड़ा हुआ था। हलके के थानेदार ने रात ही को उसे इस सभा की खबर दी और अमरकान्त का भाषण भी पढ़ सुनाया। उसे इन सभाओं की रिपोर्ट करते रहने की ताकीद दी गई थी । सली

42

भाग 7

7 फरवरी 2022
1
1
0

आज कई दिन के बाद तीसरे पहर सूर्यदेव ने पृथ्वी की पुकार सुनी और जैसे समाधि से निकलकर उसे आशीर्वाद दे रहे थे। पृथ्वी मानो अंचल फैलाए उनका आशीर्वाद बटोर रही थी। इसी वक्त स्वामी आत्मानन्द और अमरकान्त दोन

43

भाग 8

7 फरवरी 2022
1
1
0

साथ के पढ़े, साथ के खेले, दो अभिन्न मित्र, जिनमें धौल-धप्पा, हंसी-मजाक सब कुछ होता रहता था, परिस्थितियों के चक्कर में पड़कर दो अलग रास्तों पर जा रहे थे। लक्ष्य दोनों का एक था, उद्देश्य एक दोनों ही देश

44

कर्मभूमि अध्याय 5

7 फरवरी 2022
1
1
0

भाग 1 यह हमारा लखनऊ का सेंटल जेल शहर से बाहर खुली हुई जगह में है। सुखदा उसी जेल के जनाने वार्ड में एक वृक्ष के नीचे खड़ी बादलों की घुड़दौड़ देख रही है। बरसात बीत गई है। आकाश में बड़ी धूम से घेर-घार ह

45

भाग 2

7 फरवरी 2022
1
1
0

सुखदा अपने कमरे में पहुंची, तो देखा-एक युवती कैदियों के कपड़े पहने उसके कमरे की सफाई कर रही है। एक चौकीदारिन बीच-बीच में उसे डांटती जाती है। चौकीदारिन ने कैदिन की पीठ पर लात मारकर कहा-रांड, तुझे झाड़

46

भाग 3

7 फरवरी 2022
1
1
0

पुलिस ने उस पहाड़ी इलाके का घेरा डाल रखा था। सिपाही और सवार चौबीसों घंटे घूमते रहते थे। पांच आदमियों से ज्यादा एक जगह जमा न हो सकते थे। शाम को आठ बजे के बाद कोई घर से निकल न सकता था। पुलिस को इत्तिला

47

भाग 4

7 फरवरी 2022
1
1
0

प्रात:काल समरकान्त और सलीम डाकबंगले से गांव की ओर चले। पहाड़ियों से नीली भाप उठ रही थी और प्रकाश का हृदय जैसे किसी अव्यक्त वेदना से भारी हो रहा था। चारों ओर सन्नाटा था। पृथ्वी किसी रोगी की भांति कोहरे

48

भाग 5

7 फरवरी 2022
1
1
0

अमरकान्त को जेल में रोज-रोज का समाचार किसी-न-किसी तरह मिल जाता था। जिस दिन मार-पीट और अग्निकांड की खबर मिली, उसके क्रोध का वारापार न रहा और जैसे आग बुझकर राख हो जाती है, थोड़ी देर के बाद क्रोध की जगह

49

भाग 6

7 फरवरी 2022
1
1
0

अमरकान्त को लखनऊ जेल में आए आज तीसरा दिन है। यहां उसे चक्की का काम दिया गया है। जेल के अधिकारियों को मालूम है, वह धनी का पुत्र है, इसलिए उसे कठिन परिश्रम देकर भी उसके साथ कुछ रिआयत की जाती है। एक छप्

50

भाग 7

7 फरवरी 2022
1
1
0

लाला समरकान्त के चले जाने के बाद सलीम ने हर एक गांव का दौरा करके असामियों की आर्थिक दशा की जांच करनी शुरू की। अब उसे मालूम हुआ कि उनकी दशा उससे कहीं हीन है, जितनी वह समझे बैठा था। पैदावर का मूल्य लागत

51

भाग 8

7 फरवरी 2022
1
1
0

काले खां के आत्म-समर्पण ने अमरकान्त के जीवन को जैसे कोई आधार प्रदान कर दिया। अब तक उसके जीवन का कोई लक्ष्य न था, कोई आदर्श न था, कोई व्रत न था। इस मृत्यु ने उनकी आत्मा में प्रकाश-सा डाल दिया। काले खां

52

भाग 9

7 फरवरी 2022
1
1
0

पठानिन की गिरफ्तारी ने शहर में ऐसी हलचल मचा दी, जैसी किसी को आशा न थी। जीर्ण वृध्दावस्था में इस कठोर तपस्या ने मृतकों में भी जीवन डाल दिया, भीई और स्वार्थ-सेवियों को भी कर्मक्षेत्र में ला खड़ा किया। ल

53

भाग 10

7 फरवरी 2022
2
1
1

इधर सकीना जनाने जेल में पहुंची, उधर सुखदा, पठानिन और रेणुका की रिहाई का परवाना भी आ गया। उसके साथ ही नैना की हत्या का संवाद भी पहुंचा। सुखदा सिर झुकाए मूर्तिवत् बैठी रह गई, मानो अचेत हो गई हो। कितनी म

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए