नई दिल्ली : काशी की सुबह हो या संगीत की महफ़िल. जब भी इन दोनों की बात चलती है तो यूपी के बनारस का नाम अपने आप जुंबा पर आ ही जाता है. दरअसल दुनिया के मशहूर शहनाई वादक उस्ताद विस्मिलाह खान और देश के महान सरोज वादक ज्योतिन भट्टाचार्य जैसी हस्तियां यहीं जन्मीं. जिसके चलते यूपी के इस जिले का नाम विश्व के मानचित्र पर बड़े सरीखे से लिया जाता है. बावजूद इसके पीएम के संसदीय क्षेत्र के इन रत्नों की मौत पर चाहे राज्य की सरकार हो या केंद्र की किसी ने कुछ भी नहीं दिया.
91 की उम्र में चिर निद्रा में जाने वाले ज्योतिन दा से जो थोड़ा सा भी परिचित है उसे पता है कि आधी सदी से भी ज्यादा समय तक देश के नंबर एक सरोद वादक के रूप में वह पुजवाते रहे हैं पर यह कैसी विडम्बना है कि यह शीर्षस्थ कलाकार कभी चूंकि 'राग दरबारी' नहीं बजा पाया तो सरकारों की नजर में हमेशा उपेक्षित रहा. क्यों ? इसका जवाब यही कि 'अंधा बांटे रेवड़ी' की तर्ज पर देश में पद्म पुरस्कारों का वितरण होता चला आया है, चाहे किसी भी राजनीति क दल की सरकार रही हो. सिस्टम जो बना है, उसको पारदर्शी बनाया गया होता तो उपशास्त्रीय वादक या गायक को क्रमश: भारत रत्न और पद्म विभूषण से न नवाजा गया होता और आधुनिक भारतीय शास्त्रीय संगीत में सर्वकालिक महानतम उस्ताद अलाउद्दीन खां साहब ( बाबा को भी पद्म विभूषण ही मिला पर चेले रविशंकर को भारत रत्न ) का यह सबसे प्रिय शिष्य, जिसने बाबा की कर्मस्थली मैहर में नौ वर्षों तक साधना की थी, रीती झोली के साथ दुनिया से रुखसत नहीं हुआ होता. बीते साल इंडिया टीवी से संबद्ध वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा ने कोशिश की थी उनके लिए. तब मैंने हेमंत से कहा था कि जिनके गुरू भाइयों को भारत रत्न और सर्वोच्च पद्म पुरस्कार मिला हो उन्हें नब्बे की उम्र में कहीं पद्मश्री अलंकरण देने की भूल न करे सरकार, अन्यथा यह पंडित ज्योतिन भट्टाचार्य का सम्मान नहीं बल्कि अपमान होगा. अच्छा ही हुआ कि उनके नाम पर एनडीए सरकार नें विचार करने की जहमत नहीं उठायी.
बचपन में सर वाल्टर स्काट की एक कविता पढ़ी थी उसकी अंतिम पंक्ति पंडितजी पर मौजू बैठती है....unhounered, unwept, unsung. सभी को दिया पर बिना कुछ पाने की तमन्ना लिए जो जाता है, क्या उसका यही हश्र होता है ? यह सवाल कबसे मन में कौंधता रहा है, नहीं जानता.
पंडित जी के यशस्वी एकलौते पुत्र और मां अन्नपूर्णा के एकमात्र गंडाबंध शिष्य पंडित अमित भट्टाचार्य देश में संप्रति नंबर एक ही नहीं वरन सरोद को और भी ऊंचाइयां प्रदान करने में तपस्यालीन हैं.
संगीत की ऋषि परम्परा की धरोहरों का भी आज चित्रों के माध्यम से दर्शन लाभ का सुयोग हाथ लगा. न केवल बाबा, उनकी पुत्री-स्व. रविशंकर की परितयक्ता अन्नपूर्णाजी और बाबा के गुरू रामपुर ( उत्तर प्रदेश ) रियासत के मुख्य संगीतकार और सरोद नवाज उस्ताद वजीर खां के भी दुर्लभ चित्र मेरे तथा फेसबुक के मित्रों के लिए किसी पूंजी से कम नहीं. ये सभी प्रात:स्मरणीय हस्तियां रही हैं, यह बताने की जरूरत नही