लम्बी कहानी...भँवर
भाग-२
अब तक आप लोगों ने पढ़ा की रेणुका पार्क से बचपन के ख्याल में खोई हुई बाहर निकलती है तभी उसे एक फोन आता है...जो शालिनी को पूछ रहा..रेणुका अपने घर पर मनीप्लान्ट कों देखकर अपने अतीत में खो जाती है.. ....अब आगे
.......माधुरी," रेणु हम इंसान में और पेड़ पौधों में बड़ी विषमताएं हैं। हमारे जीवन की अलग ही जटिलतायें हैं जिसे पेड़ पौधों से नही जोड़ा जा सकता है"
अच्छा छोड़ इन सब बातों को बोल चाय पीयेगी...रेणुका ने पूछा
'माधुरी ने कहा, चाय लौट के अभी हमे निकलना है'
कहाँ?,रेणुका ने आश्चर्य से पूछा"
"हे भगवान ! तू कितनी भुलक्कड़ है तुझे बोला था न की मार्केट चलना है, भूल गयी क्या"
माधुरी ने हैरानी से पूछा।
"हाँ, कहा तो था पर तुम फोन करने वाली थी"
रेणुका ने जवाब दिया।
"महारानी, फोन किसपर करूँ आपका "मोबाइल कबसे बन्द आ रहा है" माधुरी नाराज होते हुये बोली
"अरे हाँ,मैं तो भूल ही गयी किसी का रॉन्ग नम्बर आ रहा था बार-बार इसलिये बन्द कर दिया था"
रेणुका ने सर पर हाथ मारते हुये कहा।
"कौन था मेरी जान जो तुमको फोन कर रहा था बताओ-बताओ" माधुरी ने छेड़ते हुये पूछा।
"मुझे क्या पता कौन था? किसी शालिनी को खोज रहा था" रेणुका ने मुस्कुरा कर जवाब दिया...
"अच्छा अब देर न हो रहीं तुझे"..रेणुका अपने कपड़ों को संयत करते हुये बोली...
"हाँ-हाँ जल्दी चलो" माधुरी बाहर निकलते हुये बोली।। ...दोनो बाहर आ गयीं माधुरी ने स्कूटी स्टार्ट की और रेणुका को पीछे बिठाकर चल पड़ी.....
रेणुका ने हैंडबैग से मोबाइल निकाला और उसे स्विच-ऑन किया।
.."मधु, हमे जाना कहाँ है" रेणुका ने पूछा।
"कहीं नही जानेमन, बस वकील के पास चलते हैं उनसे कुछ डॉक्युमेंट कलेक्ट करने हैं उसके बाद देखते हैं क्या करना है" माधुरी ने जवाब दिया।....
दोनो कुछ इधर उधर की बातें करती जा ही रहीं थी की रेणुका का मोबाइल बजा....
...अब कौन है? कहते हुये रेणुका ने मोबाइल निकाला।.....नम्बर देखकर असंयत हो गयी।
....."कौन है? रेणु" माधुरी ने पूछा..
"कोई नही, वही रॉन्ग नम्बर जो बताया था"
रेणु ने सकपका कर जवाब दिया...
माधुरी ने गाड़ी रोक दी...
"ला मुझे दे, मैं बताती हूँ, मंजनू के औलाद को"
कहते हुये माधुरी ने फोन ले लिया...
ऐ मिस्टर, जब एक बार बता दिया गया की ये रॉन्ग नम्बर है तो समझ में नही आता। लड़की की आवाज सुनी नही की चालू हो गये बार-बार फोन करना, अगली बार अगर फोन आया तो सीधा पुलिस कम्प्लेन करूँगी"
"मैम, मेरी बात तो सुनिये" उधर से आवाज आयी...
मैं क्यों सुनु? जब हम तुम्हे जानते नही, कहते हुये माधुरी ने फोन काट दिया.....
"अरे सुन तो लेती क्या कह रहा है बेचारा, तुम कभी-कभी रूड हो जाती हो"..रेणुका ने कहा।
...."महारानी,अगर तुम्हे इतनी ही हमदर्दी है तो बात करलो..हो सके तो अपना पता ठिकाना देकर घर भी बुला लो"..माधुरी चिढ़ते हुये बोली।
..."इतना चिढ़ती क्यों है मैंने तो बस ऐसे ही कहा था"...रेणुका ने अधीर होकर जवाब दिया......
काशी का एक पुराना घाट अपने पुराने स्थापत्य कला का प्रदर्शन करता हुआ... अति प्राचीन शिवाला जिससे लग कर पक्की सीढियां पतित पावनी गंगा में उतर रही थी..
समय के साथ कुछ अवशेष मृतप्राय हो गयीं थी तो कुछ अभी तक जीवित रहकर अपने समय की समृद्ध धार्मिकता का परिचय दे रहीं थी...घण्टे और घड़ियाल की आवाज लगातार आ रही थी उन्ही सीढ़ियों पर एक तरफ पण्डे अपने यजमान से कुछ दक्षिणा के चाह में लगे पड़े थे तो कुछ नये यजमान की तलाश में आते-जाते पर्यटकों पर दृष्टि गड़ाये बैठे थे, एक व्यक्ति भोले शंकर का स्वांग रचाकर आते-जाये विदेशी पर्यटकों से फोटो खिंचवाने में व्यस्त था....
इन सब से अनजान एक पुरुष लगभग चालिस से बयालीस साल की आयु का घाट की एक सीढ़ी पर बैठा छोटे-छोटे पत्थर बहती धार में फेक रहा था, और उसके समीप एक मोबाइल फोन बिखरा पड़ा था जिसकी बैटरी, कवर, और अन्य पुर्जे अलग-अलग दिशा में बिखरे हुये थे....
तभी एक महिला, जिसकी आयु लगभग अड़तीस से चालिस वर्ष होगी आकर उस पुरुष के समीप बैठ जाती है....
पुरुष एक ठंढी निगाह उसपर डालता है और पुनः जलधार में पत्थर मारने लगता है...
अविनाश ! मेरे जाने का समय हो गया और तुम यहां घाट पर बैठे हो" उस स्त्री ने कहा।
"हाँ तो जाओ न,किसने रोक रखा है...सब चलीं जाओ पहले शालिनी और अब तुम" अविनाश ने रोष प्रकट करते हुये कहा।.....
....कैसी बातें करते हो अविनाश मेरे पति दरवाजे पर खड़े हैं, वो चाहते तो मुझे यहां भी न आने देते, क्योंकि ये उनका अधिकार है, फिरभी उन्होंने मुझे मना नही किया। जबकि वो जानते हैं की मैं कहाँ जा रही हूँ।....
वैसे तुम इस लायक भी नही हो की तुम्हारे लिये मैं अपने पति के हृदय में किसी भी प्रकार की दुर्भावना पैदा करूँ, फिरभी मेरे हृदय के किसी कोने में कहीं कुछ थोड़े से तुम बचे हो इसलिये आ गयी"
महिला का हृदय क्रोध से लाल हो गया, किन्तु जब क्रोध पर प्रेम हावी हुआ तो वही क्रोध आंखों से धार बनकर बहने लगी....
कुछ देर "सांस को संयत कर स्त्री पुनः बोलने लगी....अविनाश एक दिन मैं तुम्हारे पास अपने प्यार की भीख मांगने आयी थी....तब तुमने मुझे ठुकरा दिया था, मैं समझ सकती हूँ की तुम शालिनी से कितना प्रेम करते हो किन्तु सोचो जरा, अगर उसे तुमसे जरा सा भी प्रेम होता तो वह तुम्हे बिना कुछ कहे यूँ रातोरात कही चली न जाती"....
"कविता, क्यों ताना दे रही हो? क्या पता उसकी कुछ मजबूरी रही हो"....अविनाश ने कहा
...."पर बता तो सकती थी या तुम पर विश्वाश न था"...कविता ने गुस्से में कहा।
..."छोड़ो वो सब बातें, आओ कुछ देर बैठो मेरे साथ" ...अविनाश ने विनय करते हुये कहा"....
...".नही, अविनाश मुझे जाना होगा"
...."क्या अब तुमपर मेरा इतना सा भी हक़ नही रहा?"....अविनाश भारी मन से बोला
...."नही,सच कहूँ तो विल्कुल नही, मैं नही चाहती की मेरी वजह से मेरे पति के मन में किसी तरह के विकार आये...मैं यहां उनकी ही आज्ञा से आयी हूँ अगर वो मना कर देते तो न आती....यहां तक अगर वो मायके आने को भी मना कर देंगे तो मैं न आउंगी".....कविता ने जवाब दिया....
तभी उसकी नजर विखरे हुये मोबाइल पर पड़ी...."अरे! ये क्या किया फोन क्यों तोड़ दिया".....कविता ने आश्चर्य से पूछा।
"कुछ नही,तुम जाओ" अविनाश ने झुंझलाते हुये कहा....
"बोलो तो"
"कुछ नही, आज वर्षों बाद शालिनी का नम्बर लगा तो उसने पहचानने से इनकार कर दिया"
...."क्या,?इतनी देर से बकवास कर रहे हो बता भी नही रहे"....क्या बोली?....कविता ने आश्चर्य से पूछा....
"कह रही, मैं शालिनी नही रेणुका बोल रही हूँ"
अविनाश अधीर होते हुये बोला।.....
..."हो भी सकता है इतने साल हो गये, क्या पता नम्बर बदल गया हो?"...कविता ने जवाब दिया।......
"एक बात बताओ कविता, जो आवाज मेरे कानों में हर पल हर क्षण गूँजती रहती है।, क्या मैं वो आवाज न पहचानूंगा"......
"अच्छा एक काम करो मुझे वो नम्बर दो मैं घर पहुंचकर बात करके देखती हूँ,क्या पता मुझसे बात बन जाये"....कविता ने कहा।....
"अभी तो इसका जिंदा होना मुश्किल है मैं इसे बनवाकर तुम्हे मेसेज करता हूँ"...अविनाश ने जवाब दिया..
.....क्रमसः....जारी है