वर्तमान युग में हमारे देश में अधिकांश लोगों के लिए भ्रष्टाचार सर्वश्रेष्ठ साधन बना हुआ है। भ्रष्ट आचरण का अर्थ ऐसे आचरण और गतिविधि से है, जो आदर्शों, मूल्यों, परम्पराओं, संवैधानिक मान्यताओं और नियम व कानूनों के अनुरूप न होकर दूषित और निंदनीय आचार व्यवहार होता है। यह एक ऐसी समस्या है जो सामाजिक स्वास्थ्य के बेहद हानिकारक है। आज कुछ अपवादों को छोड़कर भ्रष्टाचार बेशर्म के पौधों की तरह प्रत्येक नर-नारी, गृहस्थी, राजनीति, समाज के हर क्षेत्र में हमें आसानी से उगा हुआ मिल जाएगा। भ्रष्टाचार की बेशर्मी इस कदर है कि इसे अधिकांश लोग रिश्वत नहीं शिष्टाचार या सेवा शुल्क मानते हैं। भ्रष्टाचार के बारे में एक दोहा बड़ा प्रचलित है कि-
"गाँधी जी जो कह गए वही कहते हैं आप
रिश्वत लेना पाप है, रिश्वत देना पाप"
अब देखिये इसमें भ्रष्टाचार में लिप्त व्यक्ति मानते हैं कि वे इस दोहे में केवल दो अल्प विराम लगाकर उसका अक्षरश: पालन करते हैं-
"गाँधी जी जो कह गए वही कहते हैं आप
रिश्वत ले,ना पाप है, रिश्वत दे,ना पाप"
आज का भ्रष्टाचार में डूबा व्यक्ति 'निराला' के शब्दों में कहता है-
मेरा प्राणों में आओ!
शत-शत शिथिल भावनाओं के
उर के तार सजा जाओ। "
आज हमारे आपस-पास से लेकर देश के कोने-कोने से प्रतिदिन भ्रष्टाचार हमारे सामने कई रूपों में देखने को मिलता है। यह दफ्तर में अफसर या मंत्री 'हरियाली ' देकर सबसे पहले अंदर घुस जाता है। स्कूल में ट्यूशन से अंकों में सेंध लगा लेता है। सरकारी अधिकारी/कर्मचारी को उपहार और बड़े-बड़े टेंडर मिलने के लिए मुर्गा-सुर्गा का प्रबंध इसी भ्रष्टाचार के रूप हैं। भ्रष्टाचार करने वाले लोग भले ही अलग-अलग तन के हों लेकिन वे मन,वचन और कर्म से एक ही होते हैं। उनके सुख-दुःख एक होते हैं। एक को भी अगर काँटा चुभता है तो उसे निकालने के लिए ऊपर से नीचे तक 'मशीनरी' जुट जाती है। आज तो स्थिति और भी विषम है, जहाँ घोटाले और काण्ड का एक-दूसरे को पकड़ा-पकड़ी का राजनीतिक खेल कौशल चलता रहता है। भ्रष्टाचार के बारे में स्व. श्री अटलबिहारी वाजपेयी ने कहा था कि, 'देश में जब कोई संक्रामक रोग फैलता है तो अच्छे-खासे स्वस्थ व्यक्ति को अपनी चपेट में ले लेता है। भ्रष्टाचार भी एक संक्रामक रोग है। यह सभी दलों को लग चुका है। मेरा दल भी इसका अपवाद नहीं। व्यवस्थागत दोषों से कोई भी दाल अछूता नहीं है।"
स्पष्ट है कि व्यवस्थागत बदलाव के बिना भ्रष्टाचार का निदान संभव नहीं है। इस पर अंकुश लगाने के लिए कुछ प्रभावी कदम उठाने जरुरी होंगे। जैसे- सभी तरह के चुनाव एक साथ कराये जाने चाहिए और मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों का चुनावी खर्चा सरकार को वहन करना चाहिए। इसके साथ ही शक्तियों का विकेन्द्रीयकरण किया जाना चाहिए जिससे चीजे पंचायती होंगें। शासन-प्रशासन में बैठे नेता हो या अफसर सबकी जबाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिए, ताकि वे किसी भी तरह का भ्रष्टाचार होने पर अपना पल्ला झाड़कर किनारे न बैठ सके।