आज का दैनिक लेखन का टैग है- सरकार और न्यायपालिका। सभी जानते हैं कि प्रजातंत में जनता द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि सरकार बनाकर चलाते हैं। सरकार व्यवस्थापिका या विधायिका और कार्यपालिका द्वारा क़ानून निर्माण के साथ ही अन्य देशहित में किये जाने वाले काम-काज सुचारु रूप से संचालित अथवा क्रियान्वित हो रहे हैं नहीं या कहीं वे अपनी मनमानी तो नहीं कर रहे हैं या फिर जनहित में समस्त कार्य किये जा रहे हैं, ये सभी बातें देखने के लिए न्यायपालिका की व्यवस्था की गई है, जिसे विधायिका और कार्यपालिका से सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। कुल मिलाकर न्यायपालिका सरकार के कामकाज को नियंत्रित करने का एक सशक्त माध्यम है।
अब ये तो हुई सरकार और न्यायपालिका की बात। आज इस पर अधिक लिखने का मन नहीं है, क्योंकि आज कुछ और ही लिखने का मन है। इसके साथ ही ये भी एक बात है कि आज सभी जानते हैं सरकार और हमारी न्याय व्यवस्था के बारे में।
आज का दिन हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं इसलिए बताती चलूँ कि वर्ष अगस्त २००९ में हमने अपने ब्लॉग में सबसे पहले पोस्ट की थी- 'सबको नाच नचाता पैसा' और आज चूँकि हमारी विवाह की 27वीं वर्षगांठ है और इस मौके पर मेरे बेटे ने उसे एक गाने के रूप में प्रस्तुत कर हमें उपहार स्वरुप भेंट किया है। जिसे उसने और उसके दोस्त ने रिकॉर्ड किया है, जिसे शाम को हम अपने यूट्यूब चैनल में डालेंगे। कृपया आप भी एक बार जरूर उसके द्वारा बनाये इस गाने को सुनिए और बच्चोँ को प्रोत्साहित करने हेतु गाने को Like और Subscribe करना न भूले।
तो आप भी गाने को गुनगुनाकर देखिए -.
ये तेरा पैसा-मेरा पैसा
सारा खेल कराता पैसा
खूब हँसाता, खूब रूलाता
सबको नाच नचाता पैसा
नाते रिश्ते सबसे पीछे
सबसे आगे रहता पैसा
खूब हँसाता, खूब रूलाता
पानी से बह जाता पैसा
ये तेरा पैसा-मेरा पैसा
सारा खेल कराए पैसा
सारे जग को नचाये पैसा
ये तेरा पैसा-मेरा पैसा
सारा खेल चलाता पैसा
सारे काम कराये पैसा
सारे काम बिगाड़े पैसा
कमरतोड़ मेहनत करवाता
यहां से वहां पे खूब घुमाता
सबको दौड़ कराये ये पैसा
ये तेरा ...................
अपने इससे दूर हो जाते
दूजे इसके पास है जाते
दूरपास का ये खेल सारा
नहीं है कोई इसके जैसा
ये तेरा ...............
काम-धाम सब छोड़ के अपना
भाया क्रिकेट मैच सुहाना
पड़ते देखा चौका-छक्का
लगा फिर बैठे उस पे सट्टा
पर जैसे पासा पलटा
चौका-छक्का पड़ गया उल्टा
बैठे-ठाले सोच रहे फिर
ये किसने खेल खेला ऐसा
ये तेरा ......................
बना के काम घर लौटे
खुश होकर चादर ओढ़े
पर बिगाड़ा काम किसी ने
देकर ये पै सा
पकड़ के सर फिर सोचते रह गए
किसने काम बिगाड़ा ऐसा
ये तेरा ........................
जब घुटन आपस में क्या तेरा-मेरा
पैसा जुबां पे सांझ-सबेरा
चलती लेन देन है खटपट
भाड़ में जाता सबकुछ सरपट
नाता जग से न रहा अब पहले जैसा
ये तेरा ............................
जब जाता बंदा छोड़ के दुनिया
तब कैसा ये पैसा
तब क्या तेरा पैसा क्या मेरा पैसा-पैसा
ऐसा कैसा है ये पैसा
लालच की इस होड़ में देखो
अंधा हो गया इंसां कैसा
एक जगह यह टिक नहीं पाता
कोई नहीं है इसके जैसा
ये तेरा ................