हमारे देश में 11 सितंबर 2008 को केन्द्र सरकार द्वारा देश के महान स्वतंत्रता सेनानी, विद्वान और प्रख्यात शिक्षाविद् अबुल कलाम आजाद की जयंती को 'राष्ट्रीय शिक्षा दिवस' के रूप में मनाये जाने की घोषणा की गई। इस घोषणा के बाद तब से निरंतर हर वर्ष 11 नवंबर को उनकी जयंती को 'राष्ट्रीय शिक्षा दिवस' के रूप में मनाया जाता है। वे स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री रहे हैं, जिन्होंने राष्ट्र निर्माण और देश के विकास में एक सुदृढ़ शिक्षा पद्धति का शुभारंभ किया। आज राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के दिन उनके वैज्ञानिक शिक्षा प्रोत्साहन, कई विश्वविद्यालयों की स्थापना, उच्च शिक्षा और खोज प्रोत्साहन, स्वाधीनता संग्राम और सामाजिक समरसता के क्षेत्र में किये गए विशेष योगदान को याद किया जाता है।
भारत रत्न मौलाना अबुल कलाम आजाद का जन्म 11 नवंबर, 1888 को मक्का में हुआ था, जो अब सऊदी अरब में है। उनका असली नाम सैय्यद गुलाम मुहियुद्दीन अहमद बिन खैरुद्दीन अल हुसैनी था, जो बाद में मौलाना अबुल कलाम आजाद के नाम से प्रसिद्ध हुए। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता का समर्थन किया और सांप्रदायिकता पर आधारित देश के विभाजन का विरोध किया। उनकी मृत्यु- 22 फ़रवरी, 1958 को हुई, जिन्हें वर्ष 1992 में मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
मौलाना आज़ाद अपने समय के धर्म के एक महान् विद्वान् होने के साथ ही एक विद्वान, पत्रकार, लेखक, कवि, दार्शनिक थे। वे महात्मा गांधी की तरह ही भारत की भिन्न-भिन्न जातियों के बीच, विशेष तौर पर हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच एकता के लिए कार्य करने वाले कुछ महान् लोगों में से एक थे। उन्होंने जीवनभर ब्रिटिश सरकार और हमारे राष्ट्र की एकता के विरोधियों का सामना किया। उन्होंने काहिरा के 'अल अज़हर विश्वविद्यालय' से धर्म विज्ञान की शिक्षा प्राप्त की, जो उनके गम्भीर और गहन ज्ञान का आधार बनी। उनके द्वारा कोलकाता से 'लिसान-उल-सिद' नामक पत्रिका का प्रारम्भ किया गया। वे उर्दू के दो महान् आलोचक 'मौलाना शिबली नाओमनी' और 'अल्ताफ हुसैन हाली' से बड़े प्रभावित थे। आज़ाद को बचपन से ही किताबें पढ़ने का बड़ा शौक था, वे बड़े-बड़े विद्वान् शिक्षकों से अरबी, फ़ारसी, उर्दू और धार्मिक विषयों के साथ-साथ गणित, यूनानी चिकित्सा पद्धति, सुलेखन और दूसरे विषयों की शिक्षा ग्रहण करते थे। उनकी खेलकूद से अधिक रूचि पढ़ने में रहती थी। इसी सन्दर्भ में एक स्थान में उन्होंने लिखा कि "लोग बचपन खेल-कूद में बिताते हैं, लेकिन मैं बारह-तेरह साल की उम्र में ही किताब लेकर लोगों की नज़रों से बचने के लिए एक कोने में अपने आपको छिपाने की कोशिश करता हूँ। वे बहुत-सी बातों में अपनी उम्र से बहुत आगे रहे। उन्होंने १२ वर्ष के उम्र में पुस्तकालय, वाचनालय और डिबेटिग सोसाइटी चलाई, १५ वर्ष में अपने से दुगुनी उम्र के विद्यार्थियों को पढ़ाया। इस उम्र में उन्होंने बहुत-सी पत्रिकाओं का संपादन किया और स्वयं एक उच्च स्तर की पत्रिका निकाली। वे अपनी प्रतिभा के बलबूते वर्ष 1923 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे युवा प्रमुख बने।
अबुल कलाम आजाद ने स्वतंत्र भारत के शिक्षा मंत्री बनने के बाद नि:शुल्क शिक्षा, भारतीय शिक्षा पद्धति, उच्च शिक्षा संस्थानों की स्थापना करने में अहम भूमिका निभाई। भारत में शिक्षा क्षेत्र में क्रांतिकारी 'भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान' अर्थात् 'आई.आई.टी. और 'विश्वविद्यालय अनुदान आयोग' की स्थापना का श्रेय उन्हें ही जाता है। वे संपूर्ण भारत में 10+2+3 की समान शिक्षा संरचना के पक्षधर रहे। उन्होंने शिक्षा और संस्कृति को विकसित करने के लिए उत्कृष्ट संस्थानों की स्थापना की, जिसमें संगीत नाटक अकादमी, साहित्य अकादमी और ललित कला अकादमी की स्थापना किया जाना भी है। उन्होंने 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा, कन्याओं की शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, कृषि शिक्षा और तकनीकी शिक्षा जैसे सुधारों के लिए निरंतर कार्य किया। उन्होंने ही सर्वप्रथम भारतीय विश्वविद्यालयों में मानकों के अनुरक्षण के लिए संसद के एक अधिनियम द्वारा 'विश्वविद्यालय अनुदान आयोग' (यूजीसी) की स्थापना की। तकनीकी शिक्षा के मामले में 1951 में अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद, खड़गपुर की स्थापना की गई, जिसके बाद आज श्रृंखलाबध्द रूप में मुम्बई, चेन्नई, कानपुर और दिल्ली में आई.आई.टी. की स्थापना की गई।