अमेरिका, चीन और यूरोपीय संघ के बाद भारत चौथा सबसे बड़ा ऊर्जा खपत वाला देश है। इस ऊर्जा खपत की पूर्ति का महत्वपूर्ण हिस्सा तेल बड़े पैमाने पर आयात पर निर्भर है। विश्व स्तर पर ऊर्जा खपत में भारत की हिस्सेदारी 2050 तक दोगुनी होने की संभावना बताई जा रही है। ऊर्जा की बढ़ती मांग और आयात पर उच्च निर्भरता महत्वपूर्ण ऊर्जा सुरक्षा चुनौतियां खड़ी करती है। इससे जहाँ एक ओर बड़े पैमाने पर विदेशी मुद्रा बाहर जाती हैं वहीँ दूसरी ओर जीवाश्म ईंधन के अत्यधिक उपयोग से उच्च कार्बन उत्सर्जन और उससे उत्पन्न स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं प्रमुख रूप से सामने आती है। इसी चिंता को ध्यान में रखते हुए आज इस क्षेत्र में सरकार द्वारा हमारे परंपरागत जैव ईंधन के उपयोग करने के लिए लोगों को जागरूक करते हुए लघु उद्योग लगाने के लिए ऋण देकर प्रोत्साहित किया जा रहा है।
जैव ईंधन को ऊर्जा का सबसे अच्छा महत्वपूर्ण स्रोत माना जाता है। इसका हमारे देश के कुल ईंधन उपयोग में एक-तिहाई योगदान है। कृषि प्रधान देश होने से हमारे देश में इसकी खपत पूर्ति कृषि अवशेष, लकड़ी, कोयला और सूखे गोबर के माध्यम से किये जाने की अपार संभावनाएं हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तो आज भी व्यापक पैमाने में जैव ईंधन का उपयोग खाना बनाने और उष्णता प्राप्त करने में किया जाता है। इसी ऊर्जा खपत को बढ़ावा देने के लिए वनों से मिलने वाली लकड़ी के स्थान पर आज ग्रामीण क्षेत्रों में सर्वाधिक गोबर से बने उत्पाद देखने को मिल रहे हैं। आज स्थिति यह है कि लकड़ी के कमी के कारण शहरों में कोयले और लकड़ी के स्थान पर गोबर से बनी लकड़ी, जिसे गोकाष्ठ कहा जाता है, सर्वाधिक उपयोग की जा रही है। क्योँकि इससे हमारे पर्यावरण को नुक्सान नहीं होता है, इसलिए इसका उपयोग आज शहरों में सर्वाधिक हो रहा है। पिछले कई वर्ष से शहरों में इसका उपयोग धार्मिक कर्मकांडों जैसे- यज्ञ, हवन, पूजा आदि में किया जाने लगा है। इसके साथ ही आज इसकी शहरों के विश्राम घाटों में सर्वाधिक खपत हमेशा बनी रहती है। यह लकड़ी के कमी को तो पूरा करता ही है साथ ही इसका मूल्य भी कम होने से इसकी खपत अधिक है। यह पर्यावरण को शुद्ध रखने में सहायक है इसलिए आज इसकी ईंट, प्राकृतिक प्लास्टर और पेंट भी निर्मित किया जाने लगा है। जीवाश्म ईंधन की तुलना में जैव उर्जा एक स्वच्छ ईंधन है। एक प्रकार से जैव ईंधन, कार्बन डाई-ऑक्साइड का अवशोषण कर हमारे परिवेश को भी स्वच्छ रखता है। आज जैव ऊर्जा का बेहतर ढंग से उपयोग देखने को मिलता है जिससे कई तरह की कठिनायें आसान हुई हैं। विकसित डिज़ाईन के धुँआ रहित ऊर्जा चूल्हा आ गए हैं, जो क्षमता को दोगुणा करते हैं। बायो मास को कम्प्रेस करते हुए ब्रिकेट के रूप में बनाया जा रहा है, जिससे कम स्थान में वह अधिक प्रभावी ढ़ग से कार्य करने में सक्षम हैं। जैव वस्तुओं को एनारोबिक डायजेशन के माध्यम से बायोगैस में रूपांतरित कर ईंधन पूर्ति के साथ खेतों को घुलनशील खाद भी उपलब्ध करना संभव हो रहा है।
वर्तमान में संपूर्ण विश्व ऊर्जा क्षेत्र में परिवर्तन की गति को तेज़ करने के माध्यमों की तलाश में जुटा है। ऐसे में भारत निम्न-कार्बन आधारित समावेशी विकास के लिये नवीन मॉडल विकसित करने की ओर अग्रसर है। जहाँ इस दिशा में गन्ने का रस, शुगर वाली वस्तुओं जैसे- चुकंदर, स्वीट सोरगम, स्टार्च वाली वस्तुएँ जैसे– कॉर्न, कसावा, मनुष्य के उपभोग के लिये अनुपयुक्त बेकार अनाज जैसे गेहूँ , टूटा चावल, सड़े हुए आलू के इस्तेमाल की अनुमति देकर इथेनॉल उत्पादन के लिये कच्चे माल के दायरे को विस्तृत करने का प्रयास किया गया है। जिसके लिए राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति के अनुमोदन से पेट्रोल के साथ सम्मिश्रण के लिये इथेनॉल के उत्पादन हेतु अधिशेष खाद्यान्न के उपयोग की अनुमति प्रदान की गयी है।