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बस...अब और नही

20 अगस्त 2023

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वह परिवार अभी हाल - फ़िलहाल ही इस नए मोहल्लें में शिफ्ट हुआ था।
छः लोगों के इस परिवार में पति - पत्नी और दो बेटियों के अलावा, बुज़ुर्ग माता - पिता ही थे।

अभी मोहल्लें के किसी भी परिवार से इस नए परिवार का कोई विशेष मेल - जोल नही हो पाया था। वो परिवार जैसे सबसे कटा - कटा सा और अलग - थलग सा रहता था और यही वजह थी कि पूरे मोहल्ले में इस वक्त यह परिवार चर्चा का विषय बना हुआ था।

रात - बिरात लगभग हर रोज़ ही, घर की औरतों को कहीं जाते, या कहीं बाहर से घर लौटते कई बार पड़ोसियों ने देखा था लेकिन वो इतने चुपचाप और खामोश रहते थे कि किसी की हिम्मत नही हुई थी कि उन्हें रास्ते में रोक कर इस बारे में पूछ ले।

हां, उड़ती - उड़ती बस इतनी सी ही खबर सामने आई थी कि पिछले महीने उनके साथ कोई हादसा पेश आया था और यही वजह थी कि उन्होंने अपना पिछला घर और मोहल्ला, दोनों ही छोड़ दिया था और यहां चले आए थे।

एक सुबह उस मोहल्लें की गलियां एंबुलेंस के सायरन के आवाज़ से गूंज उठी और लोग अपने - अपने घरों के झरोखों और दरवाजों से झांकने लगे । एंबुलेंस के साथ ही पीछे - पीछे पुलिस की गाड़ी भी उस नए शिफ्ट हुए परिवार के घर के सामने आकर रूकी थी। अब तो लोग आपस में कानाफूसी करते जिज्ञासावश उसी ओर बढ़ चले कि आखिर माजरा क्या है?

उस घर के बाहर अच्छी - खासी भीड़ जमा हो गई थी। आख़िरकार सबको आज की "ताज़ा ख़बर" जो जाननी थी। अंदर से रोने - चिल्लाने की हृदयविदारक आवाज़ें आ रही थी।

अचानक ही एंबुलेंस का पिछला दरवाज़ा खुला और अस्पताल के दो कर्मचारी बाहर आए और आनन - फानन में एक स्ट्रेचर को बाहर निकाला गया। जिसमें एक शव था। फ़िर उन्होंने शव को घर के अंदर पहुंचाया और खाली स्ट्रेचर को वापिस एंबुलेंस में डाल कर खुद भी बैठ गए।
पीछे ही पीछे गाड़ी से एक पुरुष जो इस परिवार का मुखिया था, उतरा और शव के साथ ही घर के अंदर की ओर तेज़ी से बढ़ गया। अंदर से आती रोने - चीखने की आवाज़ें और तेज़ हो गई।

थोड़ी देर बाद ही सिसकती हुई पत्नी और बेटी को कुछ समझाते - बुझाते पुरुष बाहर आया और पुलिस की गाड़ी में बैठ गया।

पुलिस की गाड़ी एंबुलेंस के पीछे - पीछे ही मोहल्ले से निकल गई ।

पीछे हैरान - परेशान बुज़ुर्ग दंपति और अपनी मां को संभालती उनकी करीब बारह वर्ष की बेटी ही रह गई थी।

ख़बर फै़लते देर नही लगी कि इस परिवार की एक और बच्ची थी, जो रेप विक्टिम थी और पिछले एक महीने से अस्पताल में भर्ती थी। ज़िन्दगी और मौत के बीच की लड़ाई लड़ती उस लड़की ने, आख़िरकार मौत से हार मान ली थी और ज़िंदगी का दामन छोड़ दिया था।

मोहल्लें के लोग पीड़ित परिवार के घर के बाहर जमा होने लगे थे। देखते ही देखते भीड़ बढ़ने लगी थी और लोग अलग - अलग ग्रुप में खड़े "क्या हुआ होगा, कैसे हुआ होगा" वाली अटकलों में मशगूल "आज की ताज़ा ख़बर के सीधा प्रसारण " का लुफ़्त उठाने में लग गए।

"क्या कहा... रेप...? आ..आ..!" एक महिला मुंह को साड़ी के पल्लू से दबाए फुसफुसाई।

"श..श...श..चुप...। ऐसी बातें ज़ोर से नही बोलते.."हमारे उन्होंने" तो कई बार आधी रात को "इनकी औरतों" को कहीं बाहर जाते या घर आते देखा था...अब राम ही जाने कि आधी रात को घर से बाहर औरतों को क्या काम होता होगा....? राम ही बचाए...।" दूसरी महिला ने पहली वाली को कोहनी मारते हुए कहा।

"क्या कह रही हो बहन....? लेकिन परिवार तो शरीफों का लगता था....ऐसे कैसे कांड किए बैठे है सब....?" पीछे कहीं कान लगाकर खड़ी कोई दूसरी महिला अचरज से बोली।

एक सुबह उस मोहल्लें की गलियां एंबुलेंस के सायरन के आवाज़ से गूंज उठी और लोग अपने - अपने घरों के झरोखों और दरवाजों से झांकने लगे । एंबुलेंस के साथ ही पीछे - पीछे पुलिस की गाड़ी भी उस नए शिफ्ट हुए परिवार के घर के सामने आकर रूकी थी। अब तो लोग आपस में कानाफूसी करते जिज्ञासावश उसी ओर बढ़ चले कि आखिर माजरा क्या है?

उस घर के बाहर अच्छी - खासी भीड़ जमा हो गई थी। आख़िरकार सबको आज की "ताज़ा ख़बर" जो जाननी थी। अंदर से रोने - चिल्लाने की हृदयविदारक आवाज़ें आ रही थी।

अचानक ही एंबुलेंस का पिछला दरवाज़ा खुला और अस्पताल के दो कर्मचारी बाहर आए और आनन - फानन में एक स्ट्रेचर को बाहर निकाला गया। जिसमें एक शव था। फ़िर उन्होंने शव को घर के अंदर पहुंचाया और खाली स्ट्रेचर को वापिस एंबुलेंस में डाल कर खुद भी बैठ गए।
पीछे ही पीछे गाड़ी से एक पुरुष जो इस परिवार का मुखिया था, उतरा और शव के साथ ही घर के अंदर की ओर तेज़ी से बढ़ गया। अंदर से आती रोने - चीखने की आवाज़ें और तेज़ हो गई।

थोड़ी देर बाद ही सिसकती हुई पत्नी और बेटी को कुछ समझाते - बुझाते पुरुष बाहर आया और पुलिस की गाड़ी में बैठ गया।

पुलिस की गाड़ी एंबुलेंस के पीछे - पीछे ही मोहल्ले से निकल गई ।

पीछे हैरान - परेशान बुज़ुर्ग दंपति और अपनी मां को संभालती उनकी करीब बारह वर्ष की बेटी ही रह गई थी।

ख़बर फै़लते देर नही लगी कि इस परिवार की एक और बच्ची थी, जो रेप विक्टिम थी और पिछले एक महीने से अस्पताल में भर्ती थी। ज़िन्दगी और मौत के बीच की लड़ाई लड़ती उस लड़की ने, आख़िरकार मौत से हार मान ली थी और ज़िंदगी का दामन छोड़ दिया था।

मोहल्लें के लोग पीड़ित परिवार के घर के बाहर जमा होने लगे थे। देखते ही देखते भीड़ बढ़ने लगी थी और लोग अलग - अलग ग्रुप में खड़े "क्या हुआ होगा, कैसे हुआ होगा" वाली अटकलों में मशगूल "आज की ताज़ा ख़बर के सीधा प्रसारण " का लुफ़्त उठाने में लग गए।

"क्या कहा... रेप...? आ..आ..!" एक महिला मुंह को साड़ी के पल्लू से दबाए फुसफुसाई।

"श..श...श..चुप...। ऐसी बातें ज़ोर से नही बोलते.."हमारे उन्होंने" तो कई बार आधी रात को "इनकी औरतों" को कहीं बाहर जाते या घर आते देखा था...अब राम ही जाने कि आधी रात को घर से बाहर औरतों को क्या काम होता होगा....? राम ही बचाए...।" दूसरी महिला ने पहली वाली को कोहनी मारते हुए कहा।

"क्या कह रही हो बहन....? लेकिन परिवार तो शरीफों का लगता था....ऐसे कैसे कांड किए बैठे है सब....?" पीछे कहीं कान लगाकर खड़ी कोई दूसरी महिला अचरज से बोली।

चुप... एकदम चुप....।" अचानक ही एक तीखी, क्रोधित नारी स्वर सुनकर भीड़ एकदम से चुप हो गई और आवाज़ के स्रोत की ओर सबकी निगाहें उठ गई।

ये घर की बड़ी लड़की थी जो केवल बारह वर्ष की थी। उसकी आंखें जैसे अंगारे बरसा रही थी और बदन क्रोध से कांप रहा था। वह अपने दाएं हाथ को उठाए, सामने की ओर उंगली दिखाते हुए गरजी, "अब एक शब्द किसी ने और कुछ कहा ना तो एक - एक की ज़ुबान खींच लूंगी.....।" भीड़ उसका रौद्र रूप देखकर अवाक, हतप्रभ रह गई थी।
लड़की का गर्जन जारी रहा, "क्या इज्ज़त इज्ज़त लगा रखा है आप सबने... हां? हमनें... हमनें कहा था समाज से कि अपनी इज्ज़त हमारे शरीर में रखे...हां, हमने कहा था ? हमने कहा था कि अपनी इज्ज़त की पगड़ी हमारे दुपट्टे से बांधे... या साड़ी के पल्लू में... या अपनी नाक की ऊंचाई हमारी हंसी में, हमारे कपड़ो में लटका दे..हां? नहीं, नहीं न... फ़िर क्या इज्ज़त इज्ज़त की राग अलाप रहे है सब...क्या लगा रखा है ये सब? अरे ले जाओ....ले जाओ अपनी इज्ज़त का ढकोसला और लेजाकर अपने घर के "चिरागों" के संस्कारों में छुपा दो....हम लड़कियां अब नही उठाएंगी ये बोझ...ना, अब बहुत हुआ...।" लड़की के होंठो के किनारे थूक से गीले होने लगे थे। उसने अपनी हथेली की उल्टी और से अपने होंठ पोंछ और फ़र जैसे फट पड़ी, " और कपड़ो...कपड़ों की बात कर रहे थे आप सब ना...आइए - आइए मेरे साथ।" लड़की ने आगे बढ़कर सामने खड़ी एक महिला की कलाई पकड़ी और उसे खींचते हुए एक कमरे के सामने लेजाकर खड़ी हो गई, " ये... ये है....ये है रेप विक्टिम....। क्या अब भी आपको लगता है कि गलती इसके छोटे कपड़ों की थी?" लड़की ने झटके से महिला की कलाई छोड़ दी और अपना चेहरा अपने हाथों में छुपाए फुट - फुट कर रोने लगी।

वह महिला और उसके पीछे - पीछे कमरे तक आई पड़ोसियों की भीड़ अवाक खड़ी रह गई थी। दीवार पर खिलखलाती हुई एक पांच या छह साल की बच्ची की तस्वीर लगी थी और तस्वीर वाली बच्ची की बेजान, बुरी तरह से चोटिल, सफ़ेद पड़ चुकी लाश बिस्तर पर रखी हुई थी, " ये...ये तो....!"

सबकी आंखों में सन्नाटा सा उतर आया था और ज़ुबान पर जैसे ताला जड़ गया था। शर्म से अपनी - अपनी गर्दन झुकाए, नम आंखों को पोंछते, शव को प्रणाम करते सब एक - एक कर वहां से निकल कर बाहर आ गए।
परिवार के बुज़ुर्ग सदस्य निर्विकार भाव से, शून्य में नज़रे टिकाए पाषाण प्रतिमा की तरह बैठे थे। वहीं लड़की ने भीड़ के वहां से हटते ही घर का दरवाजा बंद कर लिया और दरवाज़े से टिक कर गहरी - गहरी सांसें लेने लगी। उसने कस कर अपनी आंखें मूंद ली और पलकों की सीमा तोड़कर उसके आंसुओं का दरिया बहने लगा।

फ़िर स्वयं को संयमित सी करती, वह आहिस्ते से आगे बढ़ी और शव का सर अपनी गोद में रखकर उसे ऐसे झुलाने लगी जैसे बच्ची को सुला रही हो। पास ही बैठी उसकी मां का बिलखना अब और बढ़ गया था।
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रचनाएँ
साढ़ा चिड़ियां दा चम्बा वे........
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बेटियां क्यों पराई हो जाती है । क्यों वो हक से अपने अपने मायके नही आ पाती ।उसके दो घर होने के बाद भी कोई घर नहीं होता। मां कहती हैं पराई है और सास कहती हैं पराये घर से आई है बड़ी गजब रचना हूं मैं तेरी भगवान। बेटी बन कर भी पराई ,बहू बन कर भी पराई।।
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साढ़ा चिड़ियां दा चम्बा वे........

6 अगस्त 2023
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"साढा चिड़िया दा चम्बा है बाबल अंसा उडड जाना।साढी लम्बी उडारी वे ।के मुड़ असा नहीं आना...."संगीता पड़ोस में किसी लड़की की शादी में हल्दी की रस्म हो रही था वहां बैठी ये गीत सुन कर भाव विभोर हो गयी। क्य

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पराई

7 अगस्त 2023
11
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0

मैं अपने घर से भाग जाना चाहती थी, लेकिन मैं जाती भी तो कहाँ ? ट्रेन के डिब्बे मे मेरे पास वाली सीट पर दो महिलाएं बैठी थी।शायद दोनों सहेलिय

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सिन्दूर की कीमत

7 अगस्त 2023
11
7
0

शोभा आज अपनी बालकनी में खड़ी प्रकृति को निहार रही थी ।उसने और सौरभ ने कल ही मकान शिफ्ट किया था पहले ग्राउंड फ्लोर पर रहते थे इसलिए आस-पड़ोस का कुछ भी पता नहीं चलता था लेकिन अब बड़ी सोसायटी में आ गये थ

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उसका बड़प्पन

8 अगस्त 2023
9
7
0

मेरे चाहे न चाहे वह वैष्णवी रोज ही सारे मोहल्ले से कलेवा बटोर कर मेरे आंगन में आकर रोज सुबह पसर जाती।न अनुमति की आवश्यकता, न हीं आग्रह !बस जैसे उसका ही आंगन हो...भांति भांति की पुड़िया खोल कर अपनी क्षु

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वाह रे ! तेरा न्याय भगवान

9 अगस्त 2023
11
7
0

आज अमित का गुस्सा सातवें आसमान पर था क्योंकि मनु ने मायके जाने के लिए बोला था ।अमित को कभी भी उसका मायके जाना नहीं सुहाता था।हर बार कोई ना कोई अड़ंगा लगा कर मनु को मायके जाने से रोक ही लेता था।आ

6

सर्द हवाएं

13 अगस्त 2023
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0

"रमुआ जा जाके लकड़ी का इंतजाम कर ।देख सारी रात की मरी पड़ी मां कैसे लकड़ी की तरह अकड़ गई है।" कमली ने रमुआ को झिंझोड़ते हुए कहा।सारी रात रमुआ और कमली अपनी मरी हुई मां के पास बैठे रहे ।सोलह साल क

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हर घर तिरंगा

14 अगस्त 2023
8
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"भाईयों और बहनों ।जैसा कि आजादी की 75वीं वर्षगांठ आ रही है तो मै चाहता हूं भारत के हर घर मे तिरंगा लहराना चाहिए।"भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भाषण टीवी पर आ रहा था ।चमेली और उसका पति दिहाड़ी

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बस...अब और नही

20 अगस्त 2023
9
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वह परिवार अभी हाल - फ़िलहाल ही इस नए मोहल्लें में शिफ्ट हुआ था।छः लोगों के इस परिवार में पति - पत्नी और दो बेटियों के अलावा, बुज़ुर्ग माता - पिता ही थे।अभी मोहल्लें के किसी भी परिवार से इस नए परिवार क

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पापा की आवाज

22 अगस्त 2023
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8
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अपने फ़ोन की फ़ोन बुक में एक नंबर ढूंढ रही थी कि पापा जी का कांटेक्ट नंबर आ गया।उंगलियाँ वहीं थम गईं।तीन चार बार प्यार से फ़ोन पर हाथ फिराया।मेरे पापा- मेरे प्यारे पापा ! जितना लाड़ प्यार मैने अपने

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तड़प

30 अगस्त 2023
8
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"सोमेश वो देखो उस महिला को सड़क के किनारे इतनी रात गए बैठी है! चलो ना देखते हैं""पारु रहने दो ना किस झमेले में फंस रही हो! पता नहीं कौन है! और इतने रात गए क्यों सड़क पर बैठी है!"इसलिए तो कह रही हूँ ना

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मां कौन कहेगा?

13 सितम्बर 2023
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पूरे घर में हवन का धुआं फैला हुआ था, अग्नि में जलती हुई हवन सामग्री की सुगंध चारों ओर फैल रही थी। सामने दो तस्वीरों पर हार चढ़ा हुआ था। रतन के लिए यह तस्वीरें प्रश्न की कड़ियों से जुड़ गई थी। एक

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मेरे अपने

20 सितम्बर 2023
4
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" तू मुझे किस आस से मुंह दिखाने चला आया बेशर्म। तूने क्या सोचा था तू अपनी पसंद की ऐरी गेरी किसी भी लड़की से शादी कर लेगा और मैं तुझे माफ कर दूंगी।जा निकल जा घर से और तुम दोनों का चेहरा मैं आज से कभी न

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जाने कौन से देस

25 सितम्बर 2023
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आज निशा का मन बडा उदास था।मन किसी भी काम में नही लग रहा धा।पति और बच्चों को स्कूल और ऑफिस भेज कर वह बरतनों को समेटने लगी।पर मन तो कहीं टिक ही नहीं रहा था।सब कुछ छोड़ कर न

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निर्भया ही नहीं हूं मैं....बस

25 सितम्बर 2023
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आज हर जगह निर्भया ही निर्भया का जिक्र हो रहा है।क्या आप ने कभी सोचा।केवल शारीरिक शोषण ही शोषण नही होता ।मानसिक शोषण भी एक प्रकार का बलत्कार ही है बस कोई घटना प्रकाश मे आ जाती है तो चारों तरफ त्राहि त्

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आ अब लौट चलें

25 सितम्बर 2023
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मां ... मां तुम रो कयो रही हो ,बताओ ना मां.."शिल्पी एकदम से हड़बड़ा कर उठी। कर्ण ने उसको झिंझोड़कर उठाया,"क्या हुआ है शिल्पी तुम नींद मे बडबडाते हुए क्यों रो रही हो?"शिल्पी ने जब अपने आप को सम्ह

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चलों ना अपने घर

25 सितम्बर 2023
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हाय राम ! ये बहू है या आलस की पुड़िया। कोई काम भी पूरा नही करती ।ये देखो कोने मे कचरा पड़ा रह गया और ये महारानी कह रही है कि इसने झाड़ू लगा दी।देखो सूखे कपड़े भी ज्यों के त्यों पड़े है यूं नही कि सब क

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मेरा वजूद

25 सितम्बर 2023
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निशा मेरा टावल कहां है ।ओहो कितनी बार कहा है तुमसे मेरी सारी चीजें निकाल कर सही समय पर मुझे दे दिया करो पर तुम हो के सुनती ही नही।" पचपन साल के सुरेंद्र जी अपनी बावन साल की पत्नी निशा पर बरसने लगे जब

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मैं जीत कर भी हार गयी

25 सितम्बर 2023
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बुआ शब्द सुन,लता की आंँखें फटी की फटी रह गईं।प्रश्न भरी निगाहों से सुनील की तरफ देखा।वो नजरें चुरा रहा था।सुनील से बोली, "क्या जवाब दूंँ !बताइए ना।"दूर से, तरसती आंँखों से माँ भी बेटे के जवाब का इंतजा

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आख़िर तुम चुप क्यों हो

28 सितम्बर 2023
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आखिर तुम चुप क्यों हो?सुगंध के घर में बरसों से बंद पड़े, पीछे के कमरे में (जो घर के बेकार हो चुके सामान से भरा पड़ा था कि ना जाने कब किस सामान की ज़रूरत पढ़ जाये?) बस वहीं छोटी–छोटी अधूरी श्वास लेती हवा म

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म्हारी छोरियां के छोरा से कम है

28 सितम्बर 2023
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गीता के फोन की घँटी लगातार बज रही थी। उसने आंख औ तो देखा रात के दो बजे रहे है। फोन पर उसके मायके की नौकरानी शारदा काकी का नंबर फ़्लैश हो रहा था फोन उठाया देखा तो सत्रह मिस कॉल।उसने घबराहट में तुरंत फोन

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