निशा मेरा टावल कहां है ।ओहो कितनी बार कहा है तुमसे मेरी सारी चीजें निकाल कर सही समय पर मुझे दे दिया करो पर तुम हो के सुनती ही नही।" पचपन साल के सुरेंद्र जी अपनी बावन साल की पत्नी निशा पर बरसने लगे जब वो नहाने के लिए गये पर उन्हें बाथरूम में टावल टंगा हुआ नही दिखा ।बेचारी निशा जी लंगड़ाते हुए टावल लेकर भागी बाथरूम की तरफ ।
"और हां जब मै नहाकर तैयार होकर आऊं मुझे डाइनिंग टेबल पर नाश्ता रेडी मिलना चाहिए ।पता है कितनी बार तुम्हारे कारण मै लेट हो जाता हूं आफिस मे।" सुरेन्द्र जी बडबडाते हुए बाथरूम में घुस गये।
निशा जी ने भी रसोई मे जाते हुए आवाज लगाई ,"सब कुछ तैयार है आप आ जाओ गर्मागर्म परांठे सेंक देती हूं।"
निशा जी का ये हर रोज का रूटीन था जब तक पति आफिस ना चले जाते तब तक चक्करघिन्नी बनी रहती थी उनकी।
उनकी सास ने हमेशा उन पर दबाव बना कर रखा कि पति की सेवा ही स्त्री का धर्म है।जब वो ब्याह कर इस घर मे आई थी तो जैसे एक नौकरानी मिल गयी थी घर को ।हमेशा ही ननदों ,देवरों,सास ससुर और पति की सेवा ही अपना धर्म बना लिया था निशा जी ने । लेकिन पति सुरेंद्र जी को तनिक भी कद्र नही थी अपनी पत्नी की ।सुबह शाम जब भी वो खाना खाने बैठते तो दस चक्कर कटवाते थे निशा जी के । उन्हें अच्छा भला पता था कि निशा जी के पैर की एक नस ब्लाक है।वो सही से चल भी नही पाती थी लेकिन फिर भी अपने पति की भाग भाग कर सभी जरूरतें पूरी करती थी।
"नलिनी जरा मेरा कार्नफ्लेक्स बना देना ।" बेटा रुपेश जब जिम करके तैयार हुआ तो कमरे से ही चिल्लाया।
निशा जी ने बहू ऩदिनी की तरफ देखा जो सब के लंच पैक कर रही थी । लेकिन उसके का पर जूं तक ना रेंगी।जब बहू ने अनसुना कर दिया तो निशा जी बोली ,"नंदिनी बेटा । रुपेश तुम्हें बुला रहा है । मैंने और काम का बोझ तुम पे नही डाला कम से कम रूपेश तुम्हारा पति है उसका तो छोटा मोटा काम कर दिया करो।"
"मम्मी जी मैने दूध और कार्नफ्लेक्स टेबल पर रख दिए है वो छोटे बच्चे नहीं है जो मै उन्हें बाउल मे डालकर भी दूं।और हां मम्मी जी अगर मै ऐसे छोटी छोटी जरूरतों के लिए रुपेश की , भागती रही तो आफिस के लिए मुझे देरी हो जाएगी।"
निशा जी बोली,"बेटा वैसे तो हम ने तुम्हें पूरी आजादी दे रखी है पर पति की सेवा तो तुम्हारा धर्म....
"माफ करना मम्मी जी ।पति की सेवा क्या है । क्या सारा धर्म पत्नी ही करेगी कभी पति भी तो ऐसा धर्म करे।कभी वो भी पत्नी को "फील एट होम" करवाये। क्या सारा जीवन आप की तरह पति की सेवा मे भाग दौड़ करते बीत जाएगा।और माफ करना मम्मी जी ।जितना आप करती है पापा जी के लिए उसका एक पर्सेंट भी पापा जी आप के लिए करते है .....नही ना बल्कि आप की मन से बनाई चीजों मे सौ नुक्स निकाल देगे वो अलग से।"नंदिनी ने निशा जी की बात बीच मे काटते हुए कहा।
तभी शायद सुरेंद्र जी आ गये थे डाइनिंग टेबल पर।निशा जी डेली रूटीन की तरह फिर से उनके आगे पीछे दौड़ने लगी ।आज उन्होंने आलू के परांठे बनाएं थे सुरेंद्र जी की पसंद के । दोनों परांठे खाने के बाद अचानक से सुरेन्द्र जी चिल्लाए,"क्या तुम भी इतना तेल लगा देती हो परांठों पर के खाये नही जाते।" यह कहकर एक टुकड़ा थाली मे छोड़कर सुरेंद्र जी खड़े हो हो गये।
निशा जी आफिस जाती हुई बहू नंदिनी से आंखे नही मिला पा रही थी।तभी पीछे से आफिस जाते रुपेश ने नंदिनी को कहा,"सुनो रात को डिनर पर चलेंगे। बहुत दिनों से एक जैसा रूटीन चल रहा है । दोनों बेटा बहू और पति तीनों जब आफिस चले गये तब निशा जी आइने के सामने खड़ी हो कर अपने आप को निहारने लगी ।सच मे इन सब की तिमारदारी करते करते वो तो अपने लिए जीना भूल ही गयी थी । उन्होंने ससुराल सेवा को जैसे ओढ़ ही लिया था। बदले मे क्या मिला अपमान , तिरस्कार।सास जब तक जिंदा रही हमेशा सौ नुक्स निकालती थी हर काम मे ।अब पति ने वो जिम्मा ले लिया था।निशा जी को नंदिनी बहू की बात सो टका सही लगी ।"मम्मी जी अपने लिए जीना सीखिए।सारा दिन पति बच्चों ,देवर ननदों के चक्कर मे आप अपनी उम्र से ज्यादा बुढ़ी लगने लगी हैं।"
वास्तव मे जब निशा जी ने अपने आप को आइने मे देखा तो वो सुरेंद्र जी से तीन साल छोटी होने कू बाद भी उनसे उम्र मे बड़ी लगती थी।
निशा जी ने पर्स उठाया और चल दी पार्लर ।जब पार्लर से बाहर आई तै वो अपने आप को चालीस साल जैसा महसूस कर रही थी पहले कभी ध्यान ही नही दिया।
घर आकर अपनी सभी पुरानी सहेलियों को फोन कर फिल्म देखने का प्रोग्राम बनाया। फिल्म देखने का समय छह से नो बजे का था। पांच बज कर पैंतालीस मिनट पर जब सुरेंद्र जी घर पहुंचे तो चाय की प्याली मेज पर ना पा कर आग बबूला हो गये लगे चिल्लाने,"कहां मर गयी हो तुम , तुम्हें जरा भी शर्म नही आती मै थका हारा घर आया हूं एक गर्मागर्म चाय की प्याली ही बना दूं।"
उनकी आवाज़ सुनकर निशा जी नीली जरी के बाडर वाली साड़ी पहन कर पर्स हाथ मे लेकर बाहर निकली ।उनका ये रुप देखकर सुरेंद्र जी हक्के बक्के रह गये।आज तो बड़ी ही सुंदर लग रही थी निशा जी। लेकिन फिर भी एक मर्द का अहम आगे आ गया ,"तुम ये सज संवर कर कहां चली । तुम्हें पता नही मै आफिस से आने वाला हूं।और मैडम तुम तो बाहर खाकर आओगी मेरा क्या?"
"आप के लिए खाना केसरोल मे रख दिया है जब मन करे खा लेना और बहू बेटा बाहर जा ही रहे है डिनर पर।"
निशा जी बाल संवारते हुए बोली।
सुरेन्द्र जी तमतमा उठे,"तुम्हें पता होना चाहिए मै पैसे कमाकर लाता हूं तब तुम खर्च कर पाती हो।"
आज तो निशा जी भी कमर कसकर बैठी थी बोली,"क्या हुआ तुम कमा कर लाते हो तो मै अपनी सूझबूझ से इस ईंट गारा के मकान को घर बनाती हूं।"
आज सुरेंद्र जी के कोई ताने कोई तर्क निशा जी पर काम नही कर रहे थे।वो उठे और बोले,"मै क्या पागल हूं जो घर रहूंगा चलो मै दिखाकर लाता हूं तुम्हें फिल्म और डिनर भी हम दोनों बाहर करेंगे।"
निशा जी आज पहली बार पति के साथ डिनर डेट पर जा रही थी।और बहू नंदिनी की तरफ कृतज्ञता से देख रही थी। उनकी बहू ने उन्हें आत्म सम्मान से जीना सीखा दिया था।