बुआ शब्द सुन,लता की आंँखें फटी की फटी रह गईं।प्रश्न भरी निगाहों से सुनील की तरफ देखा।वो नजरें चुरा रहा था।
सुनील से बोली, "क्या जवाब दूंँ !बताइए ना।"
दूर से, तरसती आंँखों से माँ भी बेटे के जवाब का इंतजार कर रही थी, फिर उसे दुविधा में देख बोली,"बेटा,है ना तुम्हारी बुआ! बहुत दूर रहती है।जो बुआ पास होती है राखी पर वही आती है।"
बाल मन, हठ पर अड़ गया तो कोई नहीं समझा सकता "फोटो तो होगी!जब वह यहांँ रहती थीं तब तो पापा को राखी बांँधती होंगी।"
दादी बोलीं,"जरुर दिखाऊंँगी और भी बहुत सारी बातें बताऊंँगी,चलो पहले अपने भाई को राखी बांँधो। "
बिटिया उठी और तिलक का थाल ले पापा की ओर चल दी। "पापा उर्मि भी अपने पापा को बुआ की भेजी राखी बांँधती है,अबसे मैं आपको हमेशा राखी बाँधुँगी तब-तक, जब-तक बुआ नहीं आती।"
उसकी हठ से आज त्यौहार थोड़ा फीका सा हो गया।ऐसा लग रहा था जैसे कोई विशाल बादल मंडरा रहे हों और लगातार आती बिजली की आवाज किसी आने वाले तूफान के लिए आगाह कर रही हो।
बुआ और पापा के बचपन की फोटो देख,उनके बचपन की खूब सारी शरारतें सुन,बिटिया रानी तो सो गई लेकिन घर में पुरानी यादों की बाढ़ सी लौट आई।लगा जख्म फिर हरे हो गए।
वही हाल बहन पूजा के घर भी था।दोनों बच्चों को राखी बांँधते देख अपने बचपन को याद करने लगी।कई वर्षों से भाई को राखी नहीं बांँधी है।
हर साल,एक राखी,भैया के नाम की निकाल कर रख देती और मन ही मन सोचती,"मिलूँगी तब हर एक राखी का हिसाब चुकता करूंँगी। देखती हूंँ कितने दिन बहन से रूठ कर रहते हो। \\'
कईं बार मन में आता.....बड़ी हो गई हूँ।दो बच्चों की मांँ।अब बीता सब भुला दादा को फोन कर लेती हूंँ।हिम्मत कर फोन तक गई भी पर अपनी बात का स्मरण हो आया,"कभी नहीं आऊंँगी आपकी चौखट पर।"
भाई को भी ताव आ गया,"हांँ जाओ। एक बात याद रखना, एक बार नाराज होकर इस घर के दरवाजे से बाहर निकलीं,तो जीते जी अपना मुंँह नहीं दिखाऊंँगा।"
भाई के शब्द याद आते ही फोन पर पहुँचा हाथ उसने पीछे कर लिया और पल्लू से आंँखें पौंछ अपनी भावनाओं को वही दबा दिया।हर साल की तरह ये साल भी मन की मन में रख बीत गया।
बच्चे बड़े होने लगे।तरह-तरह के प्रश्न पूछते और उन्हें उनकी उम्र के हिसाब से समझा दिया जाता।
मांँ कभी चोरी-छुपे पूजा को फोन कर लेती और पीहर के हाल सुना देती।जानती थी कि स्नेहा मुंँह से कभी नहीं कहेगी लेकिन भाई के लिए भी जानने को उतनी ही आतुर होगी इसलिए मांँ पीहर की सारी कथा बांँच देती, कहती,"तेरी फोटो देख कर बिटिया कहती है पापा,बुआ तो बिल्कुल मेरे जैसी है।आप उन्हें भी उतना ही प्यार करते थे जितना मुझसे?"
यह सुन पूजा रुक ना पाई,"क्या कहा उन्होंने?" पूछ बैठी।
बोला,"तुमसे भी ज्यादा। मेरी प्यारी गुड़िया रानी थी वो। दादा-दादा कह हर समय मेरे आगे-पीछे घूमती रहती।
"....सब सुनने के बाद रुआंँसी हो पूजा आदतन माँ से कहती,"उनका क्यों बताए जा रही हो किसी को याद नहीं करती मैं,मैंने मोह छोड़ दिया है।"
मांँ जानती थी आग दोनों तरफ बराबर है।
बेटी के वाक्य सुन रो पड़ती,"क्यों री बिट्टो पहले तू बोल लेगी तो क्या होगा?बड़ा भाई है तेरा।पता नहीं जीते जी पूरे परिवार को एक होते ये आँखे देख भी पाएँगी या नहीं। "
बच्चे बड़े हो गए स्कूल से कॉलेज में आ गए।उम्र के साथ-साथ उनकी सोच बड़ी हो गई,दायरा बड़ा हो गया।
पूजा अक्सर बच्चों को समझाती,"किसी भी बात को तूल दे आपस में बैर कभी मत करना।बाहर वाले तो फिर भी एक हो जाते हैं,अगर अपना रूठ जाए तो \\'पहले तुम\\' की दीवार खड़ी हो जाती है।"
आज बच्चे दादी के पीछे पड़ गए।बुआ व पापा के न बोलने की वजह जानना चाहते थे।दादी को अपनी कसम दे उन्हें मजबूर कर दिया।दादी असमंजस में थी लेकिन बच्चों की हठ के आगे झुकना पड़ा,"बहुत प्यार करते थे दोनों एक-दूसरे से। एक-दूजे के बिना ना खाना,न जाना,ना पहनना,ना सोना।
एक बार तुम्हारे पापा का तबादला दूर हो गया।वो जगह तुम्हारे ननिहाल से पास पड़ती थी। तो अक्सर छुट्टी में वहांँ निकल जाते थे। एक बार 3....4 दिन की छुट्टी में वो यहाँ आने वाले थे।उन दिनों तुम्हारे दादाजी की तबियत थोड़ा नरम चल रही थी पर अचानक तुम्हारे नाना जी की बीमारी की सूचना मिली।तुम्हारी मांँ अपने पीहर अक्सर तुम्हारे पापा को साथ लेकर ही जाती थी क्योंकि वहांँ भी उन्हें संभालने वाला कोई न था।
पूजा को सुन बड़ा बुरा लगा कि पापा बीमार हैं और भाई वहाँ चला गया है।मांँ अकेली है,वह कुछ नहीं कहती इसका मतलब ये तो नहीं की उनका यहांँ के प्रति कोई फर्ज नहीं।पता चला भाई ने वापस तबादला यहीं करवा लिया है।अब दो-तीन दिन ससुराल रह सास-ससुर को डॉ को दिखा समान लेकर ही आएगा।
स्थिती से अंजान सुनील को कहीं से भी आभास नहीं था कि पिताजी को दिखाना इतना जरूरी है। उसके ससुराल रहने जाने के बाद अचानक यहाँ तुम्हारे दादाजी की तबियत बिगड़ गई ।उन्हें हार्ट-अटैक आ गया।मेरे पास उस समय कोई न था।हॉस्पिटल देर से पहुंँचने के कारण स्थिति पर काबू नहीं पाया जा सका और तुम्हारे दादाजी.....| बस इसी बात पर दोनों में मनमुटाव हो गया और एक खाई सी बन गई| आपसी बहस और खींचातानी ने खाई को और गहरा कर दिया।"
"ओह!ये तो बहुत बुरा हुआ दादी| गलती किसी की भी न थी| पर परिस्थिति ऐसी बनी की....इसे पापा का दुर्भाग्य ही कह सकते हैं।"
"हांँ बेटा दुर्भाग्य ही है। जिस दिन से पूजा गई मैंने कभी इसके चेहरे पर मुस्कान नहीं देखी| "बच्चों ने आश्वासन दिया,"जल्दी ही सब ठीक होगा आप विश्वास रखो दादी।"
पूजा के बच्चे भी नानी से अब चोरी-छुपे बात कर लेते।चारों बच्चे आपस में भी संपर्क रखने लगे।इसकी कानों-कान किसी को खबर नहीं हुई। एक दिन बच्चों ने मिल सारी स्थिति भाँप,पापा और बुआ को मिलाने का प्लान बनाया।
अपने पापा के मोबाइल से बुआ को बड़ा भावुक सा मैसेज लिखा जो कि पापा की डायरी में ही लिखा था,"मैं कभी नहीं कहूंँगा, तो क्या तू कभी नहीं आएगी| तू मुझसे दूर चली गई तो क्या मैं तुझे भूल गया हूंँ।मेरे दिल में तेरी जगह कभी कोई और नहीं ले सकता। मैंने गुस्से में चार शब्द क्या कह दिए। "कभी नहीं आऊंँगी।"\\'कह चली गई| एक बार पलट कर भी नहीं बोली क्यों जाऊंँ मेरा भी तो घर है।क्या इतने सालों में तुझे कभी अपने दादा की याद नहीं आई| मेरी छोटी सी बहन इतनी बड़ी हो गई कि दादा के आगे, उसके अहम का कद बड़ा हो गया।चल मेरे झुकने में ही तेरी खुशी है तो तू जीती मैं हारा।"
और वही पूजा के बच्चों ने भी किया मांँ के मोबाइल से मामा को मैसेज किया बिलकुल वैसा-जैसा कि वह मांँ की भावनाओं को इतने समय से पढ़ते आए थे,"हमेशा से मेरी जिद्द पूरी करते आए थे दादा।इतना लंबा समय बीत गया क्या कभी मन नहीं किया अपनी बहन की जिद्द पूरी करने का!आप तो कभी इतने जिद्दी नहीं थे।क्या इतने सालों में कभी आपको अपनी स्नेहा की याद नहीं आई| "
दोनों ने मैसेज पढ़ा और फफक कर रो पड़े। सुनील ने लता को कहा,"देखो मैं कहता था ना वो मुझे जरूर मैसेज करेगी। जब उसकी बेटी बड़ी होगी,विवाह बंध में बंध जाएगी,तब उसे मेरी स्थिति समझ आएगी।देखो उसका मैसेज आया है।मिलना चाहती है।अब मैं समय नहीं गंवाना चाहता।सामान पैक करो।उसमें उसकी पसंद की हर एक चीज रखो।मैं राखी पर उसके पास पहुंँचना चाहता हूंँ|"
पूजा भी कम उत्साही न थी,"मुझे विश्वास था दादा ,आप जल्दी आओगे।मांँ बता रही थी बिटिया बिल्कुल मुझ पर गई है अगर वह मेरा साया है तो अब आप ज्यादा दिन मुझसे दूर नहीं रह सकते| "आ रहा हूँ" कहने में इतनी देर क्यों कर दी दादा| जल्दी आओ मैं आपका इंतजार करूंँगी| "
मैसेज का सिलसिला शुरू हुआ देख बच्चे बहुत खुश थे। पापा रवाना हो गए देखकर उसमें वो अपनी-अपनी फतह महसूस कर रहे थे|
पूजा ने भी शिकायतों का पुलिंदा निकाल कर रख लिया। मोली निकाल,पूजा-थाल सजाई भाई के पसंद की हर एक एक चीज बनाई।ट्रेन दो बजे तक पहुंँच जाएगी।वो बार-बार घड़ी देखती रही।बच्चे माँ की बेचैनी देख रहे थे।अब उन्हें अपनी शरारत पर बड़ा गर्व महसूस हो रहा था।इतना खुश,उत्साही और आंँखों में नमी इतनी भावनाएं उन्हें माँ में पहली बार दिखाई दी| पूजा के पतिदेव भी बच्चों के साथ उनकी मीठी शरारत में शामिल थे|
जैसे ही डोर बेल बजी वह भाग भाई से लिपट कर रोने को चल दी।देखा तो सामने पुलिस वाला खड़ा था।एक आई- कार्ड आगे दिखाता हुआ बोला,"जौनपुर से आने वाली ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त हो गई है।एक आदमी की पॉकेट से आपका एड्रेस और गले में ये लॉकेट मिला है।हॉस्पिटल ले गए,तब तक सांसे चल रही थी।लाश की शिनाख्त के लिए आपको आना होगा।ये आई कार्ड है क्या ये आपके कोई करीबी रिश्तेदार थे।"
लॉकेट खोल देखा तो पूजा की फोटो थी।यह तो वही लॉकेट था जो दादा हमेशा पहना करते थे।वो स्तब्ध खड़ी रह गई। पाँव में कंपन था ।रोंगटे खड़े हो गए| दांँतो की पंक्तियांँ जकड़ गई।एक शब्द भी मुंँह से नहीं निकल रहा था।बुत बनी रही। बच्चों पर तो जैसे पहाड़ ही टूट गया हो।
पति ने हिम्मत कर पूजा को संभाला| बच्चे माँ को हॉस्पिटल ले जाने में पिता के साथ हो लिए।
शरीर पूरी तरह से कुचला हुआ था।बस चेहरे की मुस्कुराहट आज भी वही थी। दादा कह जोर से बिलख पड़ी,"क्यों दादा अपनी छोटी बहन से इतनी जिद्द!आखिर अपनी बात मनवा कर ही माने "जीते जी मुँह नहीं दिखाऊंँगा।"अब क्या मैं जी पाऊंँगी मैं तो खुद जीते जी मर गई| "
माँ,भाभी, बच्चे सब आ गए थे| आज भरा-पूरा परिवार एक साथ था पर जिसके कारण था बस वह इंसान ही नहीं था| सभी का दुख अपनी जगह था।पर पूजा, वो तो आपे में ही नहीं थी।जब होश आता बस एक ही रट लगाती,"आप जीत गए दादा, मैं जीत कर भी हार गई। "
संबंध मन के होते हैं| रिश्तो मे एक बार गांठ पड़ जाती है तो वो पहले जैसे नही रहते । इसलिए कभी अपनों को रूठने ना दे।