"भाईयों और बहनों ।जैसा कि आजादी की 75वीं वर्षगांठ आ रही है तो मै चाहता हूं भारत के हर घर मे तिरंगा लहराना चाहिए।"
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भाषण टीवी पर आ रहा था ।चमेली और उसका पति दिहाड़ी मजूरी करके अपनी झोपड़ी मे लौट रहे थे। रास्ते मे चाय के खोखे पर टेलीविजन मे भाषण सुन कर रणकू के पैर वही ठिठक गये वह बड़े गौर से सुन रहा था भाषण।जब दो चार मिनट बीत गयी तो चमेली से रहा नही गया वह मचल उठी ,"क्या टुकर टुकर देखत हो मन्नू के बापू ।का मनीसटर बनना है क्या।घर काहे नही चलत बा।"
रणकू सिर हिलाता हुआ बोला,"हां हां चलत हूं।काहे सोर करत है। इ देखब इ देश का बड़ा मंत्री है तीन दिन बाद देश की आजादी का दिन है और इ कहब कि घर घर तिरंगा हुई चाहिब ।कयू ना हम तीन दिनन वास्ते तिरंगा बेचत हाईवे पे।
बहुत से लोग सिर फिरत होत है जो इन चीजन पर पैसा उड़ाना चाहे।"
चमेली बोली,"ठीक बा।जैसा तुम चाहिब।अब घर कू चलब के नाही।"
दोनों अपने घर को चल दिए।अभी शादी को दो साल ही हुए थे ।रणकू और चमेली की। बहुत ही छोटी उम्र मे ब्याह दी थी घर वालों ने इसी साल अठारह साल पूरे किये थे ।गजब की खूबसूरती बख्शी थी भगवान ने । कोई देख ले तो पागल ही हो जाएं। इसलिए रणकू अपने साथ ही रखता था चमेली को।कही गलत हाथों मे पड़ गयी हो बहुत बुरा होगा ।फिर साल भर मे ही मन्नु हो गया।अब तो गृहस्थी के लिए ओर पैसों की जरूरत थी।अब तो मन्नू भी पांव चलने लगा था । इसलिए चमेली को बड़ी दिक्कत होती थी दिहाड़ी मजदूरी करने मे ।कभी कभी तै मन्नू चमेली को काम ही नही करने देता था।
चमेली को भी रणकू की बात भा गयी कि चलों तीन दिन दिहाड़ी मजदूरी से छुट्टी मिलेगी और पांच की चीज पचास मे बिकेगी।दो पैसे घर आयेंगे।
अगले दिन रणकू जहां काम करता था वही पास में हाइवे था वही चमेली को बहुत से झंड़े देकर बैठा गया कि तुम मन्नू को लेकर यही बैठी रहना कोई आये तो इस दाम पर झंड़ा बेचना । रणकू सभी छोटे बड़े झंड़े के दाम बता गया।
पापी पेट ना जाने क्या क्या नही करवाता। बेचारी चमेली झंडों को सड़क के साथ लगी लोहे की गिरिल पर टांग कर बैठ गयी ।बेठे बैठे उसे एक घ़ंटा बीत गया कोई भी ग्राहक नही आया।पर देखते ही देखते झंड़ा बेचने वाले सैकड़ों लोग आ गए। चमेली बेचारी उन मर्दों का कैसे मुकाबला करती । लेकिन फिर भी मन्नू को गोद मे उठा कर झंड़ा हाथ मे लेकर इधर से उधर दौड़ लगा रही थी ।तभी मन्नू भूख से बिलबिलाने लगा।अब वह सरेआम बच्चे को दूध कैसे पिलाएं।पर क्या करे मन्नू टिक ही नही रहा था उसने अपना फटटा हुआ आंचल आगे करके बच्चे को दूध पिलाने लगी तो करामात हो गयी एक दम से दो गाड़ियां दनदनाती हुई उसके पास आकर रूकी जिसमे बैठें आवारा से बदमाश लड़के उससे झंडों का मोलभाव करने लगे। उनकी झंड़े मे कम झंडे बेचने वाली मे ज्यादा दिलचस्पी दिखाई दे रही थी।उसमे से एक बोला ,"क्यों धूप मे रंग काला कर रही है आ जा गाड़ी में बैठकर पसीना सुखा ले।"
चमेली तुनक कर बोली,"बाबू झंड़ा बिकाऊ है मै नही।"
दूसरा आदमी फुसफसाया,"बड़ी करारी है बे ।धर ले।"
ये कहकर एक आदमी गाड़ी से बाहर आया और चमेली को गाड़ी मे धक्का दे कर फुर्र से गाड़ी हाइवे पर चला कर लोप हो गये। मन्नू बेचारा रोता रोता हाइवे के बीचोबीच आ गया।ये तो भला हो दूसरे तिरंगा बेचने वालों ने उसे पकड़ लिया वह बेहताशा रो रहा था।तभी रणकू दिहाड़ी मजदूरी से छूटकर आ गया ।उसने अपने बच्चे को ऐसे रोते देखा तो बेहताशा दौड़ दौड़ कर अपनी पत्नी को ढूंढने लगा।पर चमेली कही नही दिखी।एक झंड़ा बेचने वाले ने बताया कि एक औरत को एक गाडी वाले उठा कर ले गये है।रणकू माथे पर हाथ धर कर रोने लगा
बेचारा भागा भागा पुलिस स्टेशन गया।पर किस को फुर्सत थी गरीब की बात सुनने की।सब पंद्रह अगस्त की तैयारी मे लगे थे ।
रणकू नन्हे मुन्नू को लेकर अपनी झोपड़ी मे आ गया और सारी रात सिसकता रहा तड़के भोर के समय वह क्या देखता है चमेली लड़खड़ाते हुए चली आ रही है जगह जगह से कपड़े फटे हुए थे।।ये देख रणकू को समझते देर नही लगी की उसकी अस्मत लुट चुकी है।वह दौडकर अपनी चमेली से लिपट गया ओर वह उसके पैरों मे गिर पड़ी । रणकू चमेली को झोपड़ी मे ले आया।तभी बाहर शोर सुनाई दिया ।नेता जी आये है लोगों मे झंड़े बांट रहे है बडे मंत्री का आडर है।
रणकू का दिल कर रहा था दरवाजा खोलकर खूब खरी खोटी सुनाए इन नेता लोगों को ।एक तरफ आजादी के जश्न की बाते ,हर घर झंडा होना चाहिए।और एक तरह गरीबों की ये दुर्दशा। रणकू ने नफरत से दांत भींच लिए।और अपनी चमेली को अपने आगोश मे लेकर रोने लगा।