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पापा की आवाज

22 अगस्त 2023

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अपने फ़ोन की फ़ोन बुक में एक नंबर ढूंढ रही थी कि  पापा जी का कांटेक्ट नंबर आ गया।उंगलियाँ वहीं थम गईं।तीन चार बार प्यार से फ़ोन पर हाथ फिराया।मेरे पापा- मेरे प्यारे पापा ! जितना लाड़ प्यार मैने अपने पापा से पाया ,कोई और पिता शायद ही करता हो अपने बच्चे से ! 4 साल हो गए उन्हें गए।कितना कुछ बदल गया।मायके में तो जैसे सब कुछ! बस उनकी एक तस्वीर रह गयी है दीवार पर।धीरे धीरे उनकी सब चीजें ज़रूरतमंदों में बाँट दी गईं थी। लेकिन शरीर और समान चले जाने से चला जाता है क्या कोई घर से? कभी लगता है डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर बैठ पापा जी अखबार पढ़ रहे हैं।कभी पौधों को पानी देते महसूस होते हैं।शाम के पाँच बजते ही लगता है कि अभी आवाज़ आएगी," क्या बात है भाई, आज चाय का कोई प्रोग्राम नहीं।पाँच बज गए। ""
पापा हर काम निश्चित समय पर करते। उनकी कलाई पर हमेशा घड़ी बंधी रहती।यहां तक कि सोते समय भी। मम्मी मज़ाक में कहतीं,"तेरे पापा सोते समय भी घड़ी पहनते हैं।क्या पता सपने में कहीं घूमने जाना हो।ट्रेन मिस हो गयी तो !"
और पापा हँसते हुए कहते," हाँ हाँ ! जाना भी पड़ सकता है।लेकिन जब भी जाऊंगा ,तुम्हें साथ ही घुमाने ले जाऊंगा।तुम भी अच्छे कपड़े पहनकर सोया करो।फिर मत कहना, नाईट सूट में ही घुमाने ले गए"।
कितने खुश थे हम सब ! लेकिन कुछ ही सालों में सब बदल गया।शादी के बाद मैं रामपुर चली गयी।कुछ सालों बाद मम्मी चल बसीं। मम्मी के जाने के बाद पापा जी की पूरी कोशिश रही कि मुझे मायके में माँ की कमी महसूस न हो।
और एक दिन पापा जी भी.....
" ओह! चार बजे गए ! पापा की स्मृतियों में ऐसी खोयी कि समय का पता ही नहीं चला।
"मम्मा, मेरे लिए कोल्ड कॉफ़ी बना दो",संगीत के कमरे से आवाज़ आयी।
"और मेरे लिए ठंडा दूध", बाथरूम से मयंक की भी धीमी सी आवाज़ आई।
मैं किचन में घुस गई।मयंक बिल्कुल नानू पर गया है।उन्हें भी ठंडा रूह आफ़ज़ा वाला दूध बहुत पसंद था।उसकी कई आदतें बिल्कुल नानू जैसी हैं।मुझे हरदम लगता है जैसे पापा जी मेरे घर में घूम रहे हैं।उसे तो डाँटने का भी मन नहीं करता।बिल्कुल पापा जी की तरह भोला सा मुँह बना लेता है।बिल्कुल वैसे ही जैसे मम्मी के नाराज़ होने पर पापा जी बना लेते थे। मम्मी 5 चीजें बाजार से मँगवाती तो पापा जी कोई एक ज़रूर छोड़ आते।मम्मी पापाजी से नाराज़ होती तो बड़े भोलेपन से कहते," पर्ची बना कर दिया करो न! तुम्हें तो पता ही है ,मैं भूल जाता हूँ!"
बच्चों को दूध बना कर दिया और कमरे में जा कर लेट गयी।फ़ोन उठा कर देखा तो अभी तक स्क्रीन पर पापा का नंबर था।चार साल हो गए उन्हें गए लेकिन उनका नंबर डिलीट करने की हिम्मत ही नहीं हुई या यूं कहूँ कि मन ही नहीं हुआ।जब उन्हें टच फ़ोन ले कर दिया तो परेशान ही हो गए।मोबाइल को उन्होंने स्वीकार ही नहीं किया।कहते," भाई मैं लैंडलाइन से खुश हूँ।ये नई तकनीक हम पुराने लोगों के लिए नहीं है।"
मेरे पापा-प्यारे पापा ! पापा की प्रोफाइल फोटो को प्यार से निहारते निहारते जाने क्या मन में आई कि पापा का नंबर मिला दिया। फ़ोन फौरन पिक कर लिया गया।एक अपनेपन से भरी आवाज़ आयी," हेलो कौन
"पापा जी, मैं ", मैंने धड़कते दिल से काँपती आवाज़ में कहा।
आपने पहचान लिया न मुझे?
" अब पापा कह रही हो तो मेरी बेटी ही होगी ?",वृद्ध ने हंसते हुए कहा।
" माफ कीजियेगा अंकल, कुछ साल पहले ये नंबर मेरे पापा जी का था", मैंने संभलते हुए कहा।
" कोई बात नहीं बेटा, आज बहुत दिनों बाद किसी के मुँह से पापा जी सुना ,मन खुश हो गया।
" मतलब ? आपके बच्चे दूर रहते हैं ? आज कल तो फ़ोन हैं !", मैं बुज़ुर्ग के साथ जैसे खुल सी गयी थी।
"दूर तो नहीं, हाँ व्यस्त ज़्यादा रहता है।एक ही बेटा है।बहू और पोता भी हैं ।घर छोटा था सो बेटा यहाँ छोड़ गया और फ़ोन खरीद कर दे गया कि पापा जी जब मन करे फ़ोन कर लेना। न उन लोगों को फ़ोन करने का टाइम मिला न मैं ही कर पाया।मुझसे तो ये फ़ोन खुलता ही नहीं।हम पुराने लोग नई तकनीकों से एडजस्ट कहाँ कर पाते हैं।"बुज़ुर्ग की आवाज़ में मायूसी थी।
"मेरे पापा जी भी बिल्कुल ऐसा ही कहते थे अंकल।सॉरी, आपको डिस्टर्ब किया।पापा जी की बहुत याद आ रही थी।बस ऐसे ही उनका नंबर मिला दिया।मैं फ़ोन रखती हूं।"
सॉरी की कोई बात नहीं बेटा।मुझे तो बहुत अच्छा लगा तुमसे बात करके।तुम्हें बुरा न लगे तो तुम मुझे पापा जी कह सकती हो। यहाँ वृद्धाश्रम में सब मेरे हमउम्र हैं।सबकी आंखें और कान बच्चों के लिए तरसते हैं।तुम अंदाजा भी नहीं लगा सकती कि तुमसे बात करके मुझे कितनी खुशी मिली है।", वृद्ध का गला रुंध सा गया।
"वृद्धाश्रम ? आप वृद्धाश्रम में रहते हैं ", मेरा गला भी रुंधने लगा था।
हाँ बेटा, मैं ' वानप्रस्थ आश्रम' में रहता हूँ।
"मतलब आप भी   यही इस शहर में रहते हैं।मेरा नाम मीनू है पापा जी।मैं हर रोज़ फ़ोन कर के आपका हाल चाल पूछूँगी।किसी रोज़ मिलने भी आऊंगी।मेरे पापा को खीर बहुत पसंद थी।आपके लाऊं क्या खीर बना कर ? मैंने प्यार से पूछा।

दूसरी तरफ सन्नाटा छा गया।

"हेलो अंकल।हेलो.. हेलो.... पापा जी.... आप मेरी आवाज सुन रहे हैं"? मैं बेचैन हो गयी।
दूसरी तरफ से आवाज़ आनी बन्द हो गयी थी ।सिर्फ सुबकने की आवाज़ आ रही थी।मैने फ़ोन काट दिया।मेरे आँसू भी बांध तोड़ कर बह निकले।
"अरे अरे! रो क्यों रही हो?" निखिल ने शायद मेरी सारी बात चीत सुन ली थी।" तुम्हें तो खुश होना चाहिए ,तुम्हें फिर से पापा जी मिल गए। "कल खीर बना लेना।चलेंगे तुम्हारे नये पापा जी से मिलने!तुम चाहो तो उन्हें घर भी ला सकती हो।बड़ों के लिए घर मे नहीं, दिल में जगह चाहिए !"
और मैं निखिल के गले लग कर फिर से रो पड़ी।
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