हाय राम ! ये बहू है या आलस की पुड़िया। कोई काम भी पूरा नही करती ।ये देखो कोने मे कचरा पड़ा रह गया और ये महारानी कह रही है कि इसने झाड़ू लगा दी।देखो सूखे कपड़े भी ज्यों के त्यों पड़े है यूं नही कि सब की अलमारी मे तह लगा कर रख दे।"
सरला जी बहू नंदिनी पर भड़क रही थी।मदन लाल जी अखबार में मुंह देकर मंद म़द मुस्कुरा रहे थे।वो जानते थे कि सरला जी का ये हर रोज का काम था बहू के काम मे गलतियां निकालने का ।उनको बस मौका चाहिए होता था कि नंदिनी गलती से भी कोई काम अधूरा छोड़े और वो बडबडाए।
उस दिन तो अति ही हो गयी ।सुबह सुबह ही सरला जी ने रसोई घर मे देखा बिल्ली दूध के पतीले को झूठा कर गयी थी हाय राम!अब वो सारा दूध नाली मे जाएगा।सरला जी का पारा हाई हो गया वो चीख कर बोली ,"नंदिनी ,ओ नंदिनी कहां हो तुम ।ये देखो बिल्ली सारा दूध पी गयी ।पता नही कहां ध्यान रहता है ऊपर के जीनने का दरवाज़ा तुमसे बंद नही किया गया।ये देखो सत्यानाश हो गया ।"
नवीन ने देखा मां आज हद से ज्यादा गुस्सा हो रही थी।वह चुपचाप बिना कुछ खाये आफिस चला गया।उधर नंदिनी भी मुंह फुला कर अपने कमरे मे जा बैठी।
सरला जी का बड़बड़ाना निरंतर चालू रहा।आज तो मदन लाल जी भी खीज उठे थे बीवी पर जोर से बोले,"अब बस करो भागवान! बच्ची है गलती हो गयी कोई पहाड़ नही टूट कर गिर गया तुम्हारे सिर पर ।"
लेकिन सरला जी चुप ना हुई।
उधर नंदिनी को अच्छे से याद था वो छत से सूखे कपड़े उतार कर जीनने का दरवाज़ा अच्छे से बंद करके आई थी ।बाद मे कलोनी के शरारती बच्चे पतंग लेनें गये थे वो ही छोड़ आये थे खुला दरवाजा शायद।
जब नंदिनी ने देखा सास चुप होने का नाम नही ले रही है तो उसने नवीन को आफिस फोन लगा दिया ।सारी बात बताने पर नवीन ने घर आकर बात करने को बोलकर फोन रख दिया ।शाम को जब नवीन घर आया तो मां का फिर से वही नंदिनी पुराण सुनकर नवीन खीज गया और बोला,"मां तुम दोनों की नही बनती तो मैं ऐसा करता हूं मै अलग हो जाता हूं ।कल ही हम दोनों धये मकान मे शिफ्ट हो जाएंगे।
यह कहकर नवीन पैर पटकता हुआ अपने कमरे मे चला गया।अगले दिन सुबह दोनों अपना सामान बांध नये मकान मे चले गये
नंदिनी के कुछ दिन तो आराम से बीते क्यों कि नयी नयी आजादी मिली थी ।मन मे आया काम करती मन आया काम ऐसे ही पड़ा रहता ।एक दिन जब नवीन घर आया तो सारा घर बेतरतीब से बिखरा पड़ा था । नंदिनी को बड़ी शर्म लगी ।ना खाना बना था ना बरतन धुले थे।ना साफ सफाई हुई थी। नवीन बोला,"नंदिनी ये क्या हाल बना रखा है घर का मां सही टोकती थी तुम्हें मां के डर से तो तुम काम भी सही करती थी और सफाई से करती थी ।"
नंदिनी भी भरी बैठी थी क्योंकि नवीन उसके काम मे हाथ नही बंटाता था बेचारा आफिस से ही सात बजे आता था ।सारा काम नंदिनी पर आकर पड़ गया था।घर का ,बाहर का ।जब सास ससुर के पास रहती थी तो ना राशन खत्म होने की चिंता थी ना साग सब्जी की ।सरला जी और मदन लाल जी सब कुछ अपडेट करके रखते थे।बाहर के काम जैसे सब्जी फल लाना,बिजली बिल भरना सब मदन लाल जी देखते ।राशन मे क्या कमी है वो सरला जी देखती थी । बस नंदिनी को तो समय पर भोजन बनाना होता था । बहुत से छोटे छोटे काम सरला जी कर देती थी जिससे नंदिनी को बहुत सहायता मिल जाती थी। नंदिनी का सारा गुस्सा पति पर ही निकला,"अब मै अकेले क्या क्या करूं ।आज राशन लाने मे ही इतना समय लग गया।"
उधर सरला जी को भी बहू की कमी खलने लगी ।माना नंदिनी थोडी लापरवाह थी लेकिन समय पर स्वादिष्ट भोजन तैयार करके सब को खिलाती थी।एक दिन सरला जी का मन खुल ही गया मदन जी के आगे,"एक बात कहूं।बहू कैसी भी थी पर खाना बड़ा सवाद बनाकर खिलाती थी।मेरे से अब चौंका चुलहा होता नही है। घर मे भी रौनक लगी रहती थी ।कभी कहती "मम्मी जी ढोकला बना दूं तो कभी कचोरी" सच मे अन्नपूर्णा थी नंदिनी "
मदन लाल जी खिलखिला कर हंस पड़े और बोले,"भागवान ,अपना समय भी देखो जब तुम इस घर मे ब्याह कर आयी थी तुम्हें ढ़ंग से रैटी बेलनी भी नही आती थी।सारा काम तुमने मेरी मां ओर बहनों से सीखा ।मै मानता हूं ये गृहस्थी तुमने अपने हाथों से संवारी है । लेकिन अगर हम ही युवा पीढ़ी के रास्ते का रोडा बन कर उसके विकास को रोक देंगे तो हमारे बच्चे अपने पैरों पर कैसे खड़े होंगे ।हमारा फर्ज है कि हम अपने बच्चों के मार्गदर्शक बने ना कि उनके रास्ते की अड़चन। अच्छा एक बात बताओ कल को ये दूध वाली घटना अपनी बेटी के हाथों हो जाती तो क्या तुम ऐसे ही करती?"
सरला जी को अपनी गलती का अहसास हो गया था ।वो तुरंत बोली ,"चलों बच्चों को मना लाते है।"
वे दोनों जैसे ही नवीन के घर पहुंचे तो देखा वे सामान बांध रहे थे सरला जी हक्की बककी रह गयी और बोली,"अब क्या शहर छोड़ने का भी इरादा है क्या ?"
नवीन और नंदिनी ने दौड़ कर सरला जी ओर मदन जी के पैर छूए और बोले,"नही मां ।हम तो घर जा रहे है।"
"कहां बहू के मायके।" सरला जी हतप्रभ थी।
नवीन हंसते हुए बोला,"नही मां कल नंदिनी को अपनी गलती का अहसास हो गया ।रात से ही कह रही है मम्मी जी और मैं , हम दोनों एक दूसरे के पूरक थे चलों ना अपने घर चलते है। इसलिए नंदिनी अपनी ससुराल जा रही है।"
सरला जी ने पैरों मे बैठी नंदिनी को उठाकर सीने से लगा लिया और बोली ,"चलों बहू अपने घर।"
नवीन और मदन लाल जी सास बहू के मिलाप को अश्रुपूरित नेत्रों से देख रहे थे।