"रमुआ जा जाके लकड़ी का इंतजाम कर ।देख सारी रात की मरी पड़ी मां कैसे लकड़ी की तरह अकड़ गई है।" कमली ने रमुआ को झिंझोड़ते हुए कहा।
सारी रात रमुआ और कमली अपनी मरी हुई मां के पास बैठे रहे ।सोलह साल की कमली गुलाबी आभा लिए हुए सुंदरता की मूरत थी ।मां ने कभी उसे काम करने के लिए नहीं भेजा क्योंकि वो जानती थी कि अगर कमली बाहर काम पर चली गई तो रात को भूखें भेड़ियों का शिकार होकर ही लौटेगी।
पता नहीं कमली की मां को अचानक से क्या हुआ ।सुबह अच्छी भली काम पर गयी थी दोपहर बाद लौटी तो बिटिया को ये कह कर रजाई ओढ़कर लेटी थी कि सिर दुख रहा है ।देर शाम तक जब रमुआ काम पर से लौटा तो कमली बोली,"रमुआ देख ना कितनी सर्द हवाएं चल रही है । मां दोपहर बाद से सोई है ।जरा उठा तो रोटी पानी लेगी तो शायद सिरदर्द कम हो जाए।"
पर जैसे ही रमुआ ने रजाई में पड़ी मां को हिलाया तो हाथ एकदम से बेजान सा बाहर आकर चारपाई के कौने पर गिरा।जब पूरी रजाई खींची तो ये क्या मां की सांसें तो कभी की बंद हो चुकी थी। रमुआ की जैसे चीख ही निकल गई। झोपड़ी के कोने में कमली के हाथ से छन्न से कलछी गिर गयी लपक कर रमुआ की ओर दौड़ी तो मां का बेजान चेहरा उसे एक क्षण में जैसे सोलह साल की लड़की से एक जिम्मेदार औरत में बदल गया।उसने कसकर रमुआ को छाती से जकड़ लिया और भूभा कर रो पड़ी।
सारी रात अपने तेरह साल के भाई को दुबका कर एक कोने में बैठी रही। सर्द हवाओं का कहर जारी था जिसके कारण उसकी मां का शरीर लकड़ी की तरह अकड़ गया था।
हैरानी इस बात की थी कि जो मां ममता की मूरत थी उन दोनों के लिए वो मरकर अब उनको डरा रही थी।
कमली ने एक बार फिर से रमुआ को झिंझोड़ दिया।
"कमली तुम्हें तो पता है ठाकुर का चमचा कितना निर्दयी है।सारा सारा दिन उन लोगों के हुक्म बजाता हूं तब जाकर एक दो रूपये भीख समझकर देते हैं । मां के किर्या कर्म में तो बहुत लग जाएंगे इस सब का इंतजाम कैसे करूं।"
कमली कुछ सोचते हुए बोली ,"तू यहीं ठहर मैं देखती हूं कहीं आसपास से ही कोई इंतजाम हो जाए।"
ये कहकर मरी मां के पास अपने भाई को बैठा कर कमली झोपड़ी के बाहर निकल गई।सुबह का धुंधलका होने वाला था ।कमली ने आसपड़ोस के सभी दरवाजे से मदद की उम्मीद की पर सहायता का कोई हाथ आगे नहीं आया। तकरीबन दो घंटे हो चुके थे कमली को घर से निकले।
पौष का महीना सर्द हवाओं ने कहर ढा रखा था।धुंध के मारे हाथ को हाथ ना दिखाई दे रहा था।कमली मन ही मन हिसाब लगा रही थी कि अगर अभी किर्या कर्म का इंतजाम ना हुआ तो शाम तक मां की लाश सड़ जाएंगी।
यही सोचते सोचते वो खेतों की तरफ निकल गयी और एक खेत की मंडेर पर बैठकर सोचने लगी कि अब क्या करूं?
इतने में ठाकुर के गुर्गे वहां से निकले। अस्त व्यस्त सी कमली को देखकर मुंह में पानी आ गया और उसके पास जाकर बोले,"क्यूं री। हम देख रहे हैं तू खेतों से गाजर मूली चुराकर ले जाती है इसका हर्जाना तेरा बाप भरेगा क्या?*
कमली ने हकलाते हुए कहा,"मै... मैं तो मैं तो... "
वह बस इतना ही कह पायी कि इतनी देर में दोनों ने उसे खेतों में उग आई लम्बी ज्वार में खींच लिया।
कमली की जोर से चीख निकल गयी।
उधर रमुआ को डर लग रहा था एक तो मरी हुई मां डरा रही थी दूसरा कमली को गये भी तीन चार घंटे हो गये थे।
उसे ये तो पता था कि मेरे हुए को अकेला नहीं छोड़ते। लेकिन कमली कहां है ये देखना भी जरूरी था।वह झोपड़ी को बाहर से कुंडी लगाकर कमली को ढूंढने निकल गया।
जैसे ही खेतों की तरफ गया उसे कमली की चीख सुनाई दी वो बेहताशा दौड़ पड़ा और जब वहां पहुंचा तो पाया कमली ने दोनों को पत्थरों से सिर फोड़ कर मार डाला था । रमुआ को कुछ सुझाई नहीं दे रहा था उसने देखा लोग खेतों की ओर आ रहे थे उसने कमली को धकेल कर पत्थर अपने हाथ में लिया और कमली के कान में कुछ फुसफुसाया और उसे जोर से कहा,"भाग जा ।भाग जा यहां से.....
कमली बेहताशा झोपड़ी की ओर भागी जा रही थी और झोपड़ी को माचिस की तीली दिखाई और चल पड़ी अपनी मौसी के यहां...
झोपड़ी धू धू करके जल रही थी सांये सांये करके सर्द हवाएं चल रही थी।