" तू मुझे किस आस से मुंह दिखाने चला आया बेशर्म। तूने क्या सोचा था तू अपनी पसंद की ऐरी गेरी किसी भी लड़की से शादी कर लेगा और मैं तुझे माफ कर दूंगी।जा निकल जा घर से और तुम दोनों का चेहरा मैं आज से कभी नहीं देखूं गी।"
शकुन्तला देवी जोर जोर से खांस रही थी और नवविवाहित जोड़े को खूब खरी खोटी सुना रही थी।
दरअसल नवीन और सुमी ने अपनी पसंद से एक दूसरे से कोर्ट मैरिज कर ली थी ।नवीन नववधू को आशीर्वाद दिलाने के लिए अपनी मां शकुन्तला देवी के पास लेकर आया था।
पतिदेव की छोटी उम्र में ही मृत्यु होने के बाद अकेले शकुन्तला देवी ने एक बेटे और बेटी को बड़ी मुश्किल से पाला था ।सारी सारी रात दूसरों के कपड़े सिलती थी तब जाकर दोनों बच्चों और अपना पेट पाल पाती थी ।
बेटा नवीन बड़ा था और संगीता छोटी थी।
बेटी सुंदर होने के कारण अच्छे घर की बहू बन गयी थी।बेटा भी शकुन्तला देवी ने पढ़ा लिखा कर एक कम्पनी में लगा दिया था।
नवीन को आफिस में साथ काम करने वाली सुमी पहली नजर में भा गयी थी। डेढ़ साल तक दोनों का इश्क परवान चढ़ता रहा आखिर में दोनों ने कोर्ट मैरिज करके एक होने की सोची । क्यों कि दोनों अलग अलग जात बिरादरी से सम्पर्क रखते थे। नवीन कट्टर ब्राह्मण था तो सुमी बंगाली जिसके यहां मांस मच्छी के बगैर खाना नहीं बनता।
नवीन ने मां को समझाने की बहुत कोशिश की पर मां मानने को तैयार ही नहीं थी तो आखिरकार नवीन ने कोर्ट मैरिज करने का फैसला किया।
आज वो सुमी के साथ कोर्ट मैरिज करके आया था।तभी शकुन्तला देवी का गुस्सा सातवें आसमान पर था।
नवीन और सुमी दोनों घर की देहलीज को प्रणाम कर के उल्टे पांव लौट गये।
थोड़े दिन तो शकुन्तला देवी अकेले रही पर बुढ़ापा अब सताने लगा था ।
एक दिन बाथरूम में से नहा कर बाहर आ रही थी कि पैर फिसल गया।सिर पर भयंकर चोट आई । पड़ोसियों ने नवीन को फोन करने के लिए बोला तो शकुन्तला देवी ने तपाक से कहा "मेरा कोई बेटा नहीं है आप लोग मेरी बेटी संगीता को फोन कर दो "
पड़ोसियों ने संगीता को फोन कर दिया ।वो आई और मां को अपने साथ ले गयी।
शकुन्तला देवी को हाथ में भी थोड़ा बहुत फ्रेक्चर हुआ था सोई ढाई महीने का पलस्तर चढ़ा था।
धीरे धीरे सिर की चोट तो ठीक हो गयी पर हाथ पर पलस्तर अभी भी चढ़ा था। शकुन्तला देवी देख रही थी बेटी संगीता तो मां का ख्याल रखती थी पर दामाद का मुंह चढ़ा रहता था।
शकुन्तला देवी धीरे धीरे उठकर संगीता के साथ काम में भी मदद करवाती रहती थी ताकि उन्हें बोझ ना लगे वो।
पर पता नहीं क्यों एक परायापन सा हमेशा लगता था शकुन्तला देवी को उस घर में।
एक दिन शकुन्तला देवी अपने कमरे में बैठी थी तभी बेटी दामाद के कमरे से आवाजें आ रही थी । दामाद बार बार संगीता को गुस्से में डांट रहे थे । शकुन्तला देवी ने जब कान लगाकर सुना तो सन्न रह गयी।
"अब तुम्हारी मां और कितने दिन यहां रहेगी ? अब तो हाथ का पलस्तर भी खुल गया है या जिंदगी भर यही डेरा डालकर बैठना है उनको।"
संगीता उसे चुप कराते हुए बोली,* शशशश थोड़ा धीरे बोलों मां सुन लेंगी।अब भाई भाभी से नाराज़ हैं तो कहां जाएंगी।हमें ही रखना होगा।"
दामाद भड़ाक से दरवाजा पटक कर चला गया।
शकुन्तला देवी को बड़ा ही अजीब लग रहा था ।उसने संगीता को बुलाकर कहा,"बेटा मैं सोच रही हूं तुम्हारे पास बहुत रह ली थोड़ा नवीन के पास भी रहूं। आखिर मां तो मैं उसकी भी हूं वो कैसे अपनी जिम्मेदारी से भाग सकता है।"
संगीता ने हैरानी से अपनी मां की ओर देखकर कहा,"पर मां आप तो भाई से......
शकुन्तला देवी ने मुंह दूसरी तरफ फेरकर आंखें पोछी और बोली,"बस ....अब तू मेरी नवीन के घर की टिकट करवा दे।
शकुन्तला देवी का दिल धड़क धड़क कर रहा था जब वह नवीन के फ्लैट के दरवाजे पर खड़ी थी । क्योंकि उसने अपनी बहू को आशीर्वाद तो देना दूर बहू का चेहरा भी नहीं देखा और धक्के मारकर घर से निकाल दिया।
मन कड़ा करके शकुन्तला देवी ने घंटी बजा ही दी ।अंदर से सुमी ने दरवाजा खोला सामने सास को दरवाजे पर खड़ा देखकर झट मंदिर से पूजा का थाल लाई और सांस की आरती कर बोली,"मां जी स्वागत है आपका आपके घर में।"
शकुन्तला देवी की आंखें भर आईं और उसने सुमी को गले लगाया और बोली,"बहू मुझे माफ़ करदे।और मुन्ना कहां है ?"
शकुन्तला देवी नवीन को प्यार से मुन्ना कहती थी
"मुझे याद तो करता होगा बहुत?"
अब सुमी क्या कहें कि बेटे ने तो एक दिन भी मां को याद नहीं किया प्रत्यक्ष रूप में बोली,"हां मां जी हररोज ही याद करते हैं।"
यह सुनकर शकुन्तला देवी गदगद हो गयी।
शाम को जब नवीन आया तो मां को आया देखकर हैरत में पड़ गया और मां को बोला,"मां कोई तकलीफ़ तो नहीं हुई?"
और ये कहकर वह अपने कमरे में चला गया ।पीछे पीछे सुमी पानी का गिलास लेकर गयी और बोली,*आप हाल में जाकर मां जी के पास क्यों नहीं बैठते ।जब से आयी हैं आपको ही याद कर रही थी।"
"वो तो ठीक है पर ये तो पूछ लो मां से वो हमारे पास रहें गी कितने दिन? मां को तुम बिल्कुल पसंद नहीं हो।"
नवीन तपाक से बोला।
सुमी ने आंखों में पानी भर कर कहा," अब मैं उन्हें जाने नहीं दूंगी कहीं भी, ये उनका घर है मुझे अच्छा नहीं लगता बेटे बहू के होते हुए वो बेटी के यहां रहें। रही बात पसंद ना पसंद की मैं पूरी कोशिश करुंगी मां जी के रंग में रंगने की। उन्हें कोई शिक़ायत का मौका नहीं दूंगी।"
बाहर खड़ी शकुन्तला देवी की आंखों से झराझर आंसू बह रहे थे।आज उन्हें अपने घर की और अपनों की परिभाषा समझ आ चुकी थी और ये भी पता चल गया था कि अपने परिवार से ही प्यार मिलता है।