नई दिल्लीः चुनावी मौसम में भ्रष्टाचारियों पर अखिलेश सरकार मेहरबान हो गई है। 954.38 करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार मामले में सीबीआई जांच का सामना कर रहे कालाधन के इंजीनियर यादव सिंह को अखिलेश सरकार ने बड़ी राहत दी है। अरबों का वारा -न्यारा करने की जांच के लिए गठित न्यायिक आयोग को खत्म कर दिया है। इससे अब कालाधन के कुबेर के खिलाफ न्यायिक जांच आगे नहीं हो सकेगी। माना जा रहा है कि यह कवायद चाचा रामगोपाल यादव के कहने पर हुई है। वजह कि सीबीआई के छापे में पिछले साल यादव सिंह के ठिकाने से बरामद डायरी में रामगोपाल और उनके बेटे अक्षय के नाम दर्ज रहे। यही नहीं सस्ते दर पर यादव सिंह के जरिए रामगोपाल के बेटे अक्षय पर एक कंपनी के शेयर भी खरीदने के आरोप हैं।
फरवरी में गठित हुई थी जांच
यूपी सरकार ने यादव सिंह मामले का खुलासा होने पर पिछले साल फरवरी में ज न्यायिक जांच आयोग गठित की थी। आयोग को छह महीने में जांच रिपोर्ट देनी थी। मगर जांच काफी सुस्त रही। जिसके तीन बार मुख्यमंत्री ने आयोग के कार्यकाल को बढ़ाया। तीसरी बार का समय सीमा विस्तार बीते दस अगस्त को ही खत्म हो गया था। फिर भी जांच नहीं पूरी हुई तो आयोग ने चौथी बार समय-सीमा बढ़ाने को कहा। जिस पर शासन ने आयोग को भंग करने का फैसला लिया। बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यादव सिंह मामले की सीबीआई जांच के निर्देश दिए थे। जिसके खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट गई तो वहां से फटकार लगी। सुप्रीम कोर्ट ने भी इलाहाबाद हाईकोर्ट के सीबीआई जांच के आदेश को बरकरार रखा।
शासन ने यह दिया तर्क
शासन के एक अफसर ने न्यायिक जांच भंग करने के फैसले का कुछ यूं बचाव किया। नाम न छापने पर अफसर ने कहा कि यादव सिंह, उनकी पत्नी और घोटाले के सभी सहयोगियों के खिलाफ सीबीआई पहले ही आरोप पत्र दाखिल कर चुकी है। इसलिए न्यायिक जांच की अब जरूरत नहीं है। वहीं आयोग लगातार जांच में देरी कर रहा था, जिससे बार-बार आयोग का कार्यकाल बढ़ाना न्यायोचित नहीं था। उधर यादव सिंह मामले की जांच कर रहे रिटायर्ड जस्टिस ज्ञान चंद्र कहते हैं कि अभी उन्हें शासन की ओर से जांच बंद करने की अधिसूचना लिखित रूप में नहीं मिली है। मुझे फोन पर जरूर सूचना मिली है।