चलो अब चाँद से मिलने
छत पर चाँदनी शरमा रही है
ख़्वाबों के सुंदर नगर में
रात पूनम की बारात यादों की ला रही है।
चाँद की ज़ेबाई सुकूं-ए-दिल लाई
रंग-रूप बदलकर आ गयी बैरन तन्हाई
रूठने-मनाने पलकों की गली से
एक शोख़ नज़र धीर-धीरे आ रही है।
मुद्दतें हो गयीं
नयी तो नहीं अपनी शनासाई
शाम-ओ-सहर भरम साथ चलें अपने
कैसे समझूँ आ गयी वक़्त की रुसवाई
आ गया बर्फ़ीला-सा आह का झौंका
हिज्र में पलकों पे नमी आ रही है।
फूलों के भीतर
क़ैद हो गए हरजाई भँवरे
चाँद से मिलने गुनगुनाकर
जज़्बात फिर सजे-संवरे
उदासियों की महफ़िल में मशरिक़ से
मतवाली महक पुरवाई ला रही है।
चाँद आया तो भटके राही की
राहें रौशन हुईं
नींद उड़ने से न जाने कितनी
बेकल बिरहन हुईं
बिरहा के गीत सुनने
आते रहना ओ चाँद प्यारे
नये ज़ख़्म देने को
फिर सुबह आ रही है।
#रवीन्द्र सिंह यादव