लहरों जैसे बह जाना
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मुझको भी सिखला दो सरिता, लहरों जैसे बह जाना
बहते - बहते अनुरागरहित, रत्नाकर में रह जाना।
बड़े पराये लगते हैं
स्पर्श अँधेरी रातों में
घुटनयुक्त आभासित हो
लहराती सी बातों में
जब तरंग की बलखाती
शोभित, शील उमंगों को
क्रूर किनारे छूते हैं
कोमल, श्वेत तमंगों को
बंद करो अब और दिखावे, तटबंधों का ढह जाना
मुझको भी सिखला दो सरिता, लहरों जैसे बह जाना।
शून्यकाल में उच्छृंखल
शीशों को ऊँचे ताने
घनघोर गर्जना करते
अंबुधि के गाये गाने
मूक छंद को परिभाषित
अपनी छवि से कर देता
व्यथित हृदय है, अधरहीन
गीतों को स्वर जो देता
तारों के किसलय के खिलते, नवनीत रूप फहराना
मुझको भी सिखला दो चंदा, लहरों जैसे बह जाना
ऊषा - प्रांगण में खिलते
अरुणित सूरज का हँसना
लोपित होता बालकपन
उर में तरुणाई धँसना
चाँदी सी सुंदर काया
उत्तुंग शिखर पर सोना
चंदा की मृदुल मृदुलता
सूरज - अभिनंदित होना
निर्लिप्त जुगनुओं का निशि में, अन्वेषी हो कह जाना
मुझको भी सिखला दो सूरज, लहरों जैसे बह जाना
...“निश्छल”