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चरन कमल बंदौ हरि राई

17 मई 2022

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चरन कमल बंदौ हरि राई।

जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै, आंधर कों सब कछु दरसाई॥

बहिरो सुनै, मूक पुनि बोलै, रंक चले सिर छत्र धराई।

सूरदास स्वामी करुनामय, बार-बार बंदौं तेहि पाई॥

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रचनाएँ
सूरदास की रचनाएं
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सूरदास जी हिन्दी साहित्य में भक्तिकाल के प्रसिद्ध और महान कवि थे। सूरदास जी भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य उपासक और ब्रजभाषा के श्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। उनकी रचनाएं दिल को छू जाती हैं। ऐसे में उन्हें हिंदी साहित्य का सूर्य भी माना जाता है। सूरदास जी ने वात्सल्य, श्रृंगार और शांत रसों को मुख्य रूप से अपनाया है। सूरदास जी कृष्ण प्रेम और माधुर्य की प्रतिमूर्ति है। जिसकी अभिव्यक्ति बड़ी ही स्वाभाविक और सजीव रूप में हुई है।
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अब हों नाच्यौ बहुत गोपाल

17 मई 2022
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अब हों नाच्यौ बहुत गोपाल। काम क्रोध कौ पहिरि चोलना, कंठ विषय की माल॥ महामोह के नूपुर बाजत, निन्दा सब्द रसाल। भरम भरयौ मन भयौ पखावज, चलत कुसंगति चाल॥ तृसना नाद करति घट अन्तर, नानाविध दै ताल। म

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प्रभु, हौं सब पतितन कौ राजा

17 मई 2022
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प्रभु, हौं सब पतितन कौ राजा। परनिंदा मुख पूरि रह्यौ जग, यह निसान नित बाजा॥ तृस्ना देसरु सुभट मनोरथ, इंद्रिय खड्ग हमारे। मंत्री काम कुमत दैबे कों, क्रोध रहत प्रतिहारे॥ गज अहंकार चढ्यौ दिगविजयी,

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अब कै माधव, मोहिं उधारि

17 मई 2022
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अब कै माधव, मोहिं उधारि। मगन हौं भव अम्बुनिधि में, कृपासिन्धु मुरारि॥ नीर अति गंभीर माया, लोभ लहरि तरंग। लियें जात अगाध जल में गहे ग्राह अनंग॥ मीन इन्द्रिय अतिहि काटति, मोट अघ सिर भार। पग न इ

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कब तुम मोसो पतित उधारो

17 मई 2022
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कब तुम मोसो पतित उधारो। पतितनि में विख्यात पतित हौं पावन नाम तिहारो॥ बड़े पतित पासंगहु नाहीं, अजमिल कौन बिचारो। भाजै नरक नाम सुनि मेरो, जमनि दियो हठि तारो॥ छुद्र पतित तुम तारि रमापति, जिय जु क

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है हरि नाम कौ आधार

17 मई 2022
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है हरि नाम कौ आधार। और इहिं कलिकाल नाहिंन रह्यौ बिधि-ब्यौहार॥ नारदादि सुकादि संकर कियौ यहै विचार। सकल स्रुति दधि मथत पायौ इतौई घृत-सार॥ दसहुं दिसि गुन कर्म रोक्यौ मीन कों ज्यों जार। सूर, हरि

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कृष्ण-जन्म

17 मई 2022
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आनंदै आनंद बढ्यौ अति । देवनि दिवि दुंदुभी बजाई,सुनि मथुरा प्रगटे जादवपति । विद्याधर-किन्नर कलोल मन उपजावत मिलि कंठ अमित गति । गावत गुन गंधर्व पुलकि तन, नाचतिं सब सुर-नारि रसिक अति । बरषत सुमन सुदे

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मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे

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मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै। जैसे उड़ि जहाज की पंछी, फिरि जहाज पै आवै॥ कमल-नैन को छाँड़ि महातम, और देव को ध्यावै। परम गंग को छाँड़ि पियासो, दुरमति कूप खनावै॥ जिहिं मधुकर अंबुज-रस चाख्यो, क्यों करील-

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प्रीति करि काहु सुख न लह्यो

17 मई 2022
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प्रीति करि काहु सुख न लह्यो। प्रीति पतंग करी दीपक सों, आपै प्रान दह्यो॥ अलिसुत प्रीति करी जलसुत सों, संपति हाथ गह्यो। सारँग प्रीति करी जो नाद सों, सन्मुख बान सह्यो॥ हम जो प्रीति करि माधव सों, चलत

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भाव भगति है जाकें

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राग विहाग भाव भगति है जाकें रास रस लीला गाइ सुनाऊं। यह जस कहै सुनै मुख स्त्रवननि तिहि चरनन सिर नाऊं॥ कहा कहौं बक्ता स्त्रोता फल इक रसना क्यों गाऊं। अष्टसिद्धि नवनिधि सुख संपति लघुता करि दरसाऊं॥

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भोरहि सहचरि कातर दिठि

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भोरहि सहचरि कातर दिठि हेरि छल छल लोचन पानि । अनुखन राधा राधा रटइत आधा आधा बानि ।। राधा सयँ जब पनितहि माधव, माधव सयँ जब राधा । दारुन प्रेम तबहि नहिं टूटत बाढ़त बिरह क बाधा ।। दुहुँ दिसि दारु दहन जइ

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ऊधौ, कर्मन की गति न्यारी

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ऊधौ, कर्मन की गति न्यारी। सब नदियाँ जल भरि-भरि रहियाँ सागर केहि बिध खारी॥ उज्ज्वल पंख दिये बगुला को कोयल केहि गुन कारी॥ सुन्दर नयन मृगा को दीन्हे बन-बन फिरत उजारी॥ मूरख-मूरख राजे कीन्हे पंडित फिरत

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निसिदिन बरसत नैन हमारे

17 मई 2022
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निसिदिन बरसत नैन हमारे। सदा रहत पावस ऋतु हम पर, जबते स्याम सिधारे।। अंजन थिर न रहत अँखियन में, कर कपोल भये कारे। कंचुकि-पट सूखत नहिं कबहुँ, उर बिच बहत पनारे॥ आँसू सलिल भये पग थाके, बहे जात सित तार

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चरन कमल बंदौ हरिराई

17 मई 2022
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चरन कमल बंदौ हरिराई । जाकी कृपा पंगु गिरि लंघे,अंधे को सब कछु दरसाई ॥१॥ बहरो सुने मूक पुनि बोले,रंक चले सिर छत्र धराई । ‘सूरदास’ स्वामी करुणामय, बारबार बंदौ तिहिं पाई ॥२॥

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तिहारो दरस मोहे भावे

17 मई 2022
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तिहारो दरस मोहे भावे श्री यमुना जी । श्री गोकुल के निकट बहत हो, लहरन की छवि आवे ॥१॥ सुख देनी दुख हरणी श्री यमुना जी, जो जन प्रात उठ न्हावे । मदन मोहन जू की खरी प्यारी, पटरानी जू कहावें ॥२॥ वृन्दाव

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तिहारो दरस मोहे भावे

17 मई 2022
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तिहारो दरस मोहे भावे श्री यमुना जी । श्री गोकुल के निकट बहत हो, लहरन की छवि आवे ॥१॥ सुख देनी दुख हरणी श्री यमुना जी, जो जन प्रात उठ न्हावे । मदन मोहन जू की खरी प्यारी, पटरानी जू कहावें ॥२॥ वृन्दाव

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दृढ इन चरण कैरो भरोसो

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दृढ इन चरण कैरो भरोसो, दृढ इन चरणन कैरो । श्री वल्लभ नख चंद्र छ्टा बिन, सब जग माही अंधेरो ॥ साधन और नही या कलि में, जासों होत निवेरो ॥ सूर कहा कहे, विविध आंधरो, बिना मोल को चेरो ॥ 

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मधुकर! स्याम हमारे चोर

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मधुकर! स्याम हमारे चोर। मन हरि लियो सांवरी सूरत¸ चितै नयन की कोर।। पकरयो तेहि हिरदय उर–अंतर प्रेम–प्रीत के जोर। गए छुड़ाय छोरि सब बंधन दे गए हंसनि अंकोर।। सोबत तें हम उचकी परी हैं दूत मिल्यो मोहिं

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मधुकर! स्याम हमारे चोर

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मधुकर! स्याम हमारे चोर। मन हरि लियो सांवरी सूरत¸ चितै नयन की कोर।। पकरयो तेहि हिरदय उर–अंतर प्रेम–प्रीत के जोर। गए छुड़ाय छोरि सब बंधन दे गए हंसनि अंकोर।। सोबत तें हम उचकी परी हैं दूत मिल्यो मोहिं

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अंखियां हरि–दरसन की प्यासी

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अंखियां हरि–दरसन की प्यासी। देख्यौ चाहति कमलनैन कौ¸ निसि–दिन रहति उदासी।। आए ऊधै फिरि गए आंगन¸ डारि गए गर फांसी। केसरि तिलक मोतिन की माला¸ वृन्दावन के बासी।। काहू के मन को कोउ न जानत¸ लोगन के मन ह

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बिनु गोपाल बैरिन भई कुंजैं

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बिनु गोपाल बैरिन भई कुंजैं। तब ये लता लगति अति सीतल¸ अब भई विषम ज्वाल की पुंजैं। बृथा बहति जमुना¸ खग बोलत¸ बृथा कमल फूलैं अलि गुंजैं। पवन¸ पानी¸ धनसार¸ संजीवनि दधिसुत किरनभानु भई भुंजैं। ये ऊधो कह

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प्रीति करि काहू सुख न लह्यो

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प्रीति करि काहू सुख न लह्यो। प्रीति पतंग करी दीपक सों आपै प्रान दह्यो।। अलिसुत प्रीति करी जलसुत सों¸ संपति हाथ गह्यो। सारंग प्रीति करी जो नाद सों¸ सन्मुख बान सह्यो।। हम जो प्रीति करी माधव सों¸ चलत

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चरन कमल बंदौ हरि राई

17 मई 2022
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चरन कमल बंदौ हरि राई। जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै, आंधर कों सब कछु दरसाई॥ बहिरो सुनै, मूक पुनि बोलै, रंक चले सिर छत्र धराई। सूरदास स्वामी करुनामय, बार-बार बंदौं तेहि पाई॥

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अबिगत गति कछु कहति न आवै

17 मई 2022
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अबिगत गति कछु कहति न आवै। ज्यों गूंगो मीठे फल की रस अन्तर्गत ही भावै॥ परम स्वादु सबहीं जु निरन्तर अमित तोष उपजावै। मन बानी कों अगम अगोचर सो जाने जो पावै॥ रूप रैख गुन जाति जुगति बिनु निरालंब मन चकृ

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अबिगत गति कछु कहति न आवै

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अबिगत गति कछु कहति न आवै। ज्यों गूंगो मीठे फल की रस अन्तर्गत ही भावै॥ परम स्वादु सबहीं जु निरन्तर अमित तोष उपजावै। मन बानी कों अगम अगोचर सो जाने जो पावै॥ रूप रैख गुन जाति जुगति बिनु निरालंब मन चकृ

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प्रभु, मेरे औगुन न विचारौ

17 मई 2022
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प्रभु, मेरे औगुन न विचारौ। धरि जिय लाज सरन आये की रबि-सुत-त्रास निबारौ॥ जो गिरिपति मसि धोरि उदधि में लै सुरतरू निज हाथ। ममकृत दोष लिखे बसुधा भरि तऊ नहीं मिति नाथ॥ कपटी कुटिल कुचालि कुदरसन, अपराधी,

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प्रभु, हौं सब पतितन कौ राजा

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प्रभु, हौं सब पतितन कौ राजा। परनिंदा मुख पूरि रह्यौ जग, यह निसान नित बाजा॥ तृस्ना देसरु सुभट मनोरथ, इंद्रिय खड्ग हमारे। मंत्री काम कुमत दैबे कों, क्रोध रहत प्रतिहारे॥ गज अहंकार चढ्यौ दिगविजयी, लोभ

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अब कै माधव, मोहिं उधारि

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अब कै माधव, मोहिं उधारि। मगन हौं भव अम्बुनिधि में, कृपासिन्धु मुरारि॥ नीर अति गंभीर माया, लोभ लहरि तरंग। लियें जात अगाध जल में गहे ग्राह अनंग॥ मीन इन्द्रिय अतिहि काटति, मोट अघ सिर भार। पग न इत उत

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मोहिं प्रभु, तुमसों होड़ परी

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मोहिं प्रभु, तुमसों होड़ परी। ना जानौं करिहौ जु कहा तुम, नागर नवल हरी॥ पतित समूहनि उद्धरिबै कों तुम अब जक पकरी। मैं तो राजिवनैननि दुरि गयो पाप पहार दरी॥ एक अधार साधु संगति कौ, रचि पचि के संचरी। भ

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अब हों नाच्यौ बहुत गोपाल

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अब हों नाच्यौ बहुत गोपाल। काम क्रोध कौ पहिरि चोलना, कंठ विषय की माल॥ महामोह के नूपुर बाजत, निन्दा सब्द रसाल। भरम भर्‌यौ मन भयौ पखावज, चलत कुसंगति चाल॥ तृसना नाद करति घट अन्तर, नानाविध दै ताल। माय

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कब तुम मोसो पतित उधारो

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कब तुम मोसो पतित उधारो। पतितनि में विख्यात पतित हौं पावन नाम तिहारो॥ बड़े पतित पासंगहु नाहीं, अजमिल कौन बिचारो। भाजै नरक नाम सुनि मेरो, जमनि दियो हठि तारो॥ छुद्र पतित तुम तारि रमापति, जिय जु करौ ज

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अपन जान मैं बहुत करी

18 मई 2022
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आछो गात अकारथ गार्‌यो। करी न प्रीति कमललोचन सों, जनम जनम ज्यों हार्‌यो॥ निसदिन विषय बिलासिन बिलसत फूटि गईं तुअ चार्‌यो। अब लाग्यो पछितान पाय दुख दीन दई कौ मार्‌यो॥ कामी कृपन कुचील कुदरसन, को न कृप

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आछो गात अकारथ गार्‌यो

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आछो गात अकारथ गार्‌यो। करी न प्रीति कमललोचन सों, जनम जनम ज्यों हार्‌यो॥ निसदिन विषय बिलासिन बिलसत फूटि गईं तुअ चार्‌यो। अब लाग्यो पछितान पाय दुख दीन दई कौ मार्‌यो॥ कामी कृपन कुचील कुदरसन, को न कृप

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सोइ रसना जो हरिगुन गावै

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सोइ रसना जो हरिगुन गावै। नैननि की छवि यहै चतुरता जो मुकुंद मकरंदहिं धावै॥ निर्मल चित तौ सोई सांचो कृष्ण बिना जिहिं और न भावै। स्रवननि की जु यहै अधिकाई, सुनि हरि कथा सुधारस प्यावै॥ कर तैई जै स्यामह

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माधवजू, जो जन तैं बिगरै

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माधवजू, जो जन तैं बिगरै। तउ कृपाल करुनामय केसव, प्रभु नहिं जीय धर॥ जैसें जननि जठर अन्तरगत, सुत अपराध करै। तोऊ जतन करै अरु पोषे, निकसैं अंक भरै॥ जद्यपि मलय बृच्छ जड़ काटै, कर कुठार पकरै। तऊ सुभाव

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कीजै प्रभु अपने बिरद की लाज

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कीजै प्रभु अपने बिरद की लाज। महापतित कबहूं नहिं आयौ, नैकु तिहारे काज॥ माया सबल धाम धन बनिता, बांध्यौ हौं इहिं साज। देखत सुनत सबै जानत हौं, तऊ न आयौं बाज॥ कहियत पतित बहुत तुम तारे स्रवननि सुनी आवाज

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सरन गये को को न उबार्‌यो

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सरन गये को को न उबार्‌यो। जब जब भीर परीं संतति पै, चक्र सुदरसन तहां संभार्‌यौ। महाप्रसाद भयौ अंबरीष कों, दुरवासा को क्रोध निवार्‌यो॥ ग्वालिन हैत धर्‌यौ गोवर्धन, प्रगट इन्द्र कौ गर्व प्रहार्‌यौ॥ कृ

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जौलौ सत्य स्वरूप न सूझत

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जौलौ सत्य स्वरूप न सूझत। तौलौ मनु मनि कंठ बिसारैं, फिरतु सकल बन बूझत॥ अपनो ही मुख मलिन मंदमति, देखत दरपन माहीं। ता कालिमा मेटिबै कारन, पचतु पखारतु छाहिं॥ तेल तूल पावक पुट भरि धरि, बनै न दिया प्रका

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तुम्हारी भक्ति हमारे प्रान

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तुम्हारी भक्ति हमारे प्रान। छूटि गये कैसे जन जीवै, ज्यौं प्रानी बिनु प्रान॥ जैसे नाद-मगन बन सारंग, बधै बधिक तनु बान। ज्यौं चितवै ससि ओर चकोरी, देखत हीं सुख मान॥ जैसे कमल होत परिफुल्लत, देखत प्रियत

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धोखैं ही धोखैं डहकायौ

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धोखैं ही धोखैं डहकायौ। समुझी न परी विषय रस गीध्यौ, हरि हीरा घर मांझ गंवायौं॥ क्यौं कुरंग जल देखि अवनि कौ, प्यास न गई, दसौं दिसि धायौ। जनम-जनम बहु करम किये हैं, तिन में आपुन आपु बंधायौ॥ ज्यौं सुक स

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कहावत ऐसे दानी दानि

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कहावत ऐसे दानी दानि। चारि पदारथ दिये सुदामहिं, अरु गुरु को सुत आनि॥ रावन के दस मस्तक छेद, सर हति सारंगपानि। लंका राज बिभीषन दीनों पूरबली पहिचानि। मित्र सुदामा कियो अचानक प्रीति पुरातन जानि। सूरदा

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मेरो मन अनत कहां सचु पावै

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मेरो मन अनत कहां सुख पावै। जैसे उड़ि जहाज कौ पंछी पुनि जहाज पै आवै॥ कमलनैन कौ छांड़ि महातम और देव को ध्यावै। परमगंग कों छांड़ि पियासो दुर्मति कूप खनावै॥ जिन मधुकर अंबुज-रस चाख्यौ, क्यों करील-फल खा

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प्रभु, मेरे औगुन चित न धरौ

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है हरि नाम कौ आधार। और इहिं कलिकाल नाहिंन रह्यौ बिधि-ब्यौहार॥ नारदादि सुकादि संकर कियौ यहै विचार। सकल स्रुति दधि मथत पायौ इतौई घृत-सार॥ दसहुं दिसि गुन कर्म रोक्यौ मीन कों ज्यों जार। सूर, हरि कौ भ

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है हरि नाम कौ आधार

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है हरि नाम कौ आधार। और इहिं कलिकाल नाहिंन रह्यौ बिधि-ब्यौहार॥ नारदादि सुकादि संकर कियौ यहै विचार। सकल स्रुति दधि मथत पायौ इतौई घृत-सार॥ दसहुं दिसि गुन कर्म रोक्यौ मीन कों ज्यों जार। सूर, हरि कौ भ

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रे मन, राम सों करि हेत

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रे मन, राम सों करि हेत। हरिभजन की बारि करिलै, उबरै तेरो खेत॥ मन सुवा, तन पींजरा, तिहि मांझ राखौ चेत। काल फिरत बिलार तनु धरि, अब धरी तिहिं लेत॥ सकल विषय-विकार तजि तू उतरि सागर-सेत। सूर, भजु गोविन्

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मो सम कौन कुटिल खल कामी

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मो सम कौन कुटिल खल कामी। जेहिं तनु दियौ ताहिं बिसरायौ, ऐसौ नोनहरामी॥ भरि भरि उदर विषय कों धावौं, जैसे सूकर ग्रामी। हरिजन छांड़ि हरी-विमुखन की निसदिन करत गुलामी॥ पापी कौन बड़ो है मोतें, सब पतितन मे

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जापर दीनानाथ ढरै

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जापर दीनानाथ ढरै। सोई कुलीन, बड़ो सुन्दर सिइ, जिहिं पर कृपा करै॥ राजा कौन बड़ो रावन तें, गर्वहिं गर्व गरै। कौन विभीषन रंक निसाचर, हरि हंसि छत्र धरै॥ रंकव कौन सुदामाहू तें, आपु समान करै। अधम कौन ह

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मन तोसों कोटिक बार कहीं

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मन तोसों कोटिक बार कहीं। समुझि न चरन गहे गोविन्द के, उर अघ-सूल सही॥ सुमिरन ध्यान कथा हरिजू की, यह एकौ न रही। लोभी लंपट विषयनि सों हित, यौं तेरी निबही॥ छांड़ि कनक मनि रत्न अमोलक, कांच की किरच गही।

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भजु मन चरन संकट-हरन

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भजु मन चरन संकट-हरन। सनक, संकर ध्यान लावत, सहज असरन-सरन॥ सेस, सारद, कहैं नारद संत-चिन्तन चरन। पद-पराग-प्रताप दुर्लभ, रमा के हित-करन॥ परसि गंगा भई पावन, तिहूं पुर-उद्धरन। चित्त चेतन करत, अन्तसकरन-

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खेलत नंद-आंगन गोविन्द

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खेलत नंद-आंगन गोविन्द। निरखि निरखि जसुमति सुख पावति बदन मनोहर चंद॥ कटि किंकिनी, कंठमनि की द्युति, लट मुकुता भरि माल। परम सुदेस कंठ के हरि नख,बिच बिच बज्र प्रवाल॥ करनि पहुंचियां, पग पैजनिया, रज-रंज

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मेरी माई, हठी बालगोबिन्दा

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मेरी माई, हठी बालगोबिन्दा। अपने कर गहि गगन बतावत, खेलन कों मांगै चंदा॥ बासन के जल धर्‌यौ, जसोदा हरि कों आनि दिखावै। रुदन करत ढ़ूढ़ै नहिं पावत,धरनि चंद क्यों आवै॥ दूध दही पकवान मिठाई, जो कछु मांगु

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जसोदा, तेरो भलो हियो है माई

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जसोदा, तेरो भलो हियो है माई। कमलनयन माखन के कारन बांधे ऊखल लाई॥ जो संपदा दैव मुनि दुर्लभ सपनेहुं दई न दिखाई। याही तें तू गरब भुलानी घर बैठें निधि पाई॥ सुत काहू कौ रोवत देखति दौरि लेति हिय लाई। अब

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आई छाक बुलाये स्याम

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आई छाक बुलाये स्याम। यह सुनि सखा सभै जुरि आये, सुबल सुदामा अरु श्रीदाम॥ कमलपत्र दौना पलास के सब आगे धरि परसत जात। ग्वालमंडली मध्यस्यामधन सब मिलि भोजन रुचिकर खात॥ ऐसौ भूखमांझ इह भौजन पठै दियौ करि ज

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जसुमति दौरि लिये हरि कनियां

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जसुमति दौरि लिये हरि कनियां। "आजु गयौ मेरौ गाय चरावन, हौं बलि जाउं निछनियां॥ मो कारन कचू आन्यौ नाहीं बन फल तोरि नन्हैया। तुमहिं मिलैं मैं अति सुख पायौ,मेरे कुंवर कन्हैया॥ कछुक खाहु जो भावै मोहन.'

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जौ बिधिना अपबस करि पाऊं

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जौ बिधिना अपबस करि पाऊं। तौ सखि कह्यौ हौइ कछु तेरो, अपनी साध पुराऊं॥ लोचन रोम-रोम प्रति मांगों पुनि-पुनि त्रास दिखाऊं। इकटक रहैं पलक नहिं लागैं, पद्धति नई चलाऊं॥ कहा करौं छवि-रासि स्यामघन, लोचन द्

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नैन भये बोहित के काग

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नैन भये बोहित के काग। उड़ि उड़ि जात पार नहिं पावैं, फिरि आवत इहिं लाग॥ ऐसी दसा भई री इनकी, अब लागे पछितान। मो बरजत बरजत उठि धाये, नहीं पायौ अनुमान॥ वह समुद्र ओछे बासन ये, धरैं कहां सुखरासि। सुनहु

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नटवर वेष काछे स्याम

18 मई 2022
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नटवर वेष काछे स्याम। पदकमल नख-इन्दु सोभा, ध्यान पूरनकाम॥ जानु जंघ सुघट निकाई, नाहिं रंभा तूल। पीतपट काछनी मानहुं जलज-केसरि झूल॥ कनक-छुद्वावली पंगति नाभि कटि के मीर। मनहूं हंस रसाल पंगति रही है हृ

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वृच्छन से मत ले

18 मई 2022
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वृच्छन से मत ले, मन तू वृच्छन से मत ले। काटे वाको क्रोध न करहीं, सिंचत न करहीं नेह॥ धूप सहत अपने सिर ऊपर, और को छाँह करेत॥ जो वाही को पथर चलावे, ताही को फल देत॥ धन्य-धन्य ये पर-उपकारी, वृथा मनुज क

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मुरली गति बिपरीत कराई

18 मई 2022
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मुरली गति बिपरीत कराई। तिहुं भुवन भरि नाद समान्यौ राधारमन बजाई॥ बछरा थन नाहीं मुख परसत, चरत नहीं तृन धेनु। जमुना उलटी धार चली बहि, पवन थकित सुनि बेनु॥ बिह्वल भये नाहिं सुधि काहू, सूर गंध्रब नर-नार

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संदेसो दैवकी सों कहियौ

18 मई 2022
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संदेसो दैवकी सों कहियौ। `हौं तौ धाय तिहारे सुत की, मया करति नित रहियौ॥ जदपि टेव जानति तुम उनकी, तऊ मोहिं कहि आवे। प्रातहिं उठत तुम्हारे कान्हहिं माखन-रोटी भावै॥ तेल उबटनों अरु तातो जल देखत हीं भजि

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मेरो कान्ह कमलदललोचन

18 मई 2022
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मेरो कान्ह कमलदललोचन। अब की बेर बहुरि फिरि आवहु, कहा लगे जिय सोचन॥ यह लालसा होति हिय मेरे, बैठी देखति रैहौं॥ गाइ चरावन कान्ह कुंवर सों भूलि न कबहूं कैहौं॥ करत अन्याय न कबहुं बरजिहौं, अरु माखन की च

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कहियौ, नंद कठोर भये

18 मई 2022
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कहियौ, नंद कठोर भये। हम दोउ बीरैं डारि परघरै, मानो थाती सौंपि गये॥ तनक-तनक तैं पालि बड़े किये, बहुतै सुख दिखराये। गो चारन कों चालत हमारे पीछे कोसक धाये॥ ये बसुदेव देवकी हमसों कहत आपने जाये। बहुरि

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नीके रहियौ जसुमति मैया

18 मई 2022
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नीके रहियौ जसुमति मैया। आवहिंगे दिन चारि पांच में हम हलधर दोउ भैया॥ जा दिन तें हम तुम तें बिछुरै, कह्यौ न कोउ `कन्हैया'। कबहुं प्रात न कियौ कलेवा, सांझ न पीन्हीं पैया॥ वंशी बैत विषान दैखियौ द्वार

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जोग ठगौरी ब्रज न बिकहै

18 मई 2022
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जोग ठगौरी ब्रज न बिकैहै। यह ब्योपार तिहारो ऊधौ, ऐसोई फिरि जैहै॥ यह जापे लै आये हौ मधुकर, ताके उर न समैहै। दाख छांडि कैं कटुक निबौरी को अपने मुख खैहै॥ मूरी के पातन के कैना को मुकताहल दैहै। सूरदास,

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ऊधो, होहु इहां तैं न्यारे

18 मई 2022
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ऊधो, होहु इहां तैं न्यारे। तुमहिं देखि तन अधिक तपत है, अरु नयननि के तारे॥ अपनो जोग सैंति किन राखत, इहां देत कत डारे। तुम्हरे हित अपने मुख करिहैं, मीठे तें नहिं खारे॥ हम गिरिधर के नाम गुननि बस, और

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फिर फिर कहा सिखावत बात

18 मई 2022
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फिर फिर कहा सिखावत बात। प्रात काल उठि देखत ऊधो, घर घर माखन खात॥ जाकी बात कहत हौ हम सों, सो है हम तैं दूरि। इहं हैं निकट जसोदानन्दन प्रान-सजीवनि भूरि॥ बालक संग लियें दधि चोरत, खात खवावत डोलत। सूर,

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उधो, मन न भए दस बीस

18 मई 2022
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उधो, मन न भए दस बीस। एक हुतो सो गयौ स्याम संग, को अवराधै ईस॥ सिथिल भईं सबहीं माधौ बिनु जथा देह बिनु सीस। स्वासा अटकिरही आसा लगि, जीवहिं कोटि बरीस॥ तुम तौ सखा स्यामसुन्दर के, सकल जोग के ईस। सूरदास

67

अंखियां हरि-दरसन की भूखी

18 मई 2022
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अंखियां हरि-दरसन की भूखी। कैसे रहैं रूप-रस रांची ये बतियां सुनि रूखी॥ अवधि गनत इकटक मग जोवत तब ये तौ नहिं झूखी। अब इन जोग संदेसनि ऊधो, अति अकुलानी दूखी॥ बारक वह मुख फेरि दिखावहुदुहि पय पिवत पतूखी।

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ऊधो, हम लायक सिख दीजै

18 मई 2022
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ऊधो, हम लायक सिख दीजै। यह उपदेस अगिनि तै तातो, कहो कौन बिधि कीजै॥ तुमहीं कहौ, इहां इतननि में सीखनहारी को है। जोगी जती रहित माया तैं तिनहीं यह मत सोहै॥ कहा सुनत बिपरीत लोक में यह सब कोई कैहै। देखौ

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ऊधो, मन माने की बात

18 मई 2022
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ऊधो, मन माने की बात। दाख छुहारो छांड़ि अमृतफल, बिषकीरा बिष खात॥ जो चकोर कों देइ कपूर कोउ, तजि अंगार अघात। मधुप करत घर कोरि काठ में, बंधत कमल के पात॥ ज्यों पतंग हित जानि आपुनो दीपक सो लपटात। सूरदा

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निरगुन कौन देश कौ बासी

18 मई 2022
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निरगुन कौन देश कौ बासी। मधुकर, कहि समुझाइ, सौंह दै बूझति सांच न हांसी॥ को है जनक, जननि को कहियत, कौन नारि को दासी। कैसो बरन, भेष है कैसो, केहि रस में अभिलाषी॥ पावैगो पुनि कियो आपुनो जो रे कहैगो गा

71

कहियौ जसुमति की आसीस

18 मई 2022
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कहियौ जसुमति की आसीस। जहां रहौ तहं नंदलाडिले, जीवौ कोटि बरीस॥ मुरली दई, दौहिनी घृत भरि, ऊधो धरि लई सीस। इह घृत तौ उनहीं सुरभिन कौ जो प्रिय गोप-अधीस॥ ऊधो, चलत सखा जुरि आये ग्वाल बाल दस बीस। अबकैं

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कहां लौं कहिए ब्रज की बात

18 मई 2022
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कहां लौं कहिए ब्रज की बात। सुनहु स्याम, तुम बिनु उन लोगनि जैसें दिवस बिहात॥ गोपी गाइ ग्वाल गोसुत वै मलिन बदन कृसगात। परमदीन जनु सिसिर हिमी हत अंबुज गन बिनु पात॥ जो कहुं आवत देखि दूरि तें पूंछत सब

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ऊधो, मोहिं ब्रज बिसरत नाहीं

18 मई 2022
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ऊधो, मोहिं ब्रज बिसरत नाहीं। बृंदावन गोकुल तन आवत सघन तृनन की छाहीं॥ प्रात समय माता जसुमति अरु नंद देखि सुख पावत। माखन रोटी दह्यो सजायौ अति हित साथ खवावत॥ गोपी ग्वाल बाल संग खेलत सब दिन हंसत सिरात

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तबतें बहुरि न कोऊ आयौ

18 मई 2022
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तबतें बहुरि न कोऊ आयौ। वहै जु एक बेर ऊधो सों कछुक संदेसों पायौ॥ छिन-छिन सुरति करत जदुपति की परत न मन समुझायौ। गोकुलनाथ हमारे हित लगि द्वै आखर न पठायौ॥ यहै बिचार करहु धौं सजनी इतौ गहरू क्यों लायौ।

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अब या तनुहिं राखि कहा कीजै

18 मई 2022
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अब या तनुहिं राखि कहा कीजै। सुनि री सखी, स्यामसुंदर बिनु बांटि विषम विष पीजै॥ के गिरिए गिरि चढ़ि सुनि सजनी, सीस संकरहिं दीजै। के दहिए दारुन दावानल जाई जमुन धंसि लीजै॥ दुसह बियोग अरी, माधव को तनु द

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नाथ, अनाथन की सुधि लीजै

18 मई 2022
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नाथ, अनाथन की सुधि लीजै। गोपी गाइ ग्वाल गौ-सुत सब दीन मलीन दिंनहिं दिन छीज॥ नैन नीर-धारा बाढ़ी अति ब्रज किन कर गहि लीजै। इतनी बिनती सुनहु हमारी, बारक तो पतियां लिखि दीजै॥ चरन कमल-दरसन नवनौका करुना

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ऐसैं मोहिं और कौन पहिंचानै

18 मई 2022
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ऐसैं मोहिं और कौन पहिंचानै। सुनि री सुंदरि, दीनबंधु बिनु कौन मिताई मानै॥ कहं हौं कृपन कुचील कुदरसन, कहं जदुनाथ गुसाईं। भैंट्यौ हृदय लगाइ प्रेम सों उठि अग्रज की नाईं॥ निज आसन बैठारि परम रुचि, निजकर

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हरि, तुम क्यों न हमारैं आये

18 मई 2022
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हरि, तुम क्यों न हमारैं आये। षटरस व्यंजन छाड़ि रसौई साग बिदुर घर खाये॥ ताकी कुटिया में तुम बैठे, कौन बड़प्पन पायौ। जाति पांति कुलहू तैं न्यारो, है दासी कौ जायौ॥ मैं तोहि कहौं अरे दुरजोधन, सुनि तू

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जो पै हरिहिंन शस्त्र गहाऊं

18 मई 2022
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जो पै हरिहिं न शस्त्र गहाऊं। तौ लाजौं गंगा जननी कौं सांतनु-सुतन कहाऊं॥ स्यंदन खंडि महारथ खंडौं, कपिध्वज सहित डुलाऊं। इती न करौं सपथ मोहिं हरि की, छत्रिय गतिहिं न पाऊं॥ पांडव-दल सन्मुख ह्वै धाऊं सर

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मो परतिग्या रहै कि जाउ

18 मई 2022
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मो परतिग्या रहै कि जाउ। इत पारथ कोप्यौ है हम पै, उत भीषम भटराउ॥ रथ तै उतरि चक्र धरि कर प्रभु सुभटहिं सन्मुख आयौ। ज्यों कंदर तें निकसि सिंह झुकि गजजुथनि पै धायौ॥ आय निकट श्रीनाथ बिचारी, परी तिलक पर

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वा पटपीत की फहरानि

18 मई 2022
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वा पटपीत की फहरानि। कर धरि चक्र चरन की धावनि, नहिं बिसरति वह बानि॥ रथ तें उतरि अवनि आतुर ह्वै, कचरज की लपटानि। मानौं सिंह सैल तें निकस्यौ महामत्त गज जानि॥ जिन गुपाल मेरा प्रन राख्यौ मेटि वेद की का

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हरि हरि हरि सुमिरन करौ

18 मई 2022
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हरि हरि हरि सुमिरन करौ। हरि चरनारबिंद उर धरौं॥ हरि की कथा होइ जब जहां। गंगाहू चलि आवै तहां॥ जमुना सिन्धु सरस्वति आवै। गोदावरी विलंब न लाबै॥ सर्व तीर्थ को बासा तहां। सूर, हरि-कथा होवे जहां

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रानी तेरो चिरजीयो गोपाल

18 मई 2022
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रानी तेरो चिरजीयो गोपाल । बेगिबडो बढि होय विरध लट, महरि मनोहर बाल॥ उपजि पर्यो यह कूंखि भाग्य बल, समुद्र सीप जैसे लाल। सब गोकुल के प्राण जीवन धन, बैरिन के उरसाल॥ सूर कितो जिय सुख पावत हैं, निरखत श्

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मोहन केसे हो तुम दानी

18 मई 2022
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मोहन केसे हो तुम दानी। सूधे रहो गहो अपनी पति तुमारे जिय की जानी॥ हम गूजरि गमारि नारि हे तुम हो सारंगपानी। मटुकी लई उतारि सीसते सुंदर अधिक लजानी ॥ कर गहि चीर कहा खेंचत हो बोलत चतुर सयानि। सूरदास प

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व्रजमंडल आनंद भयो

18 मई 2022
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व्रजमंडल आनंद भयो प्रगटे श्री मोहन लाल। ब्रज सुंदरि चलि भेंट लें हाथन कंचन थार॥ जाय जुरि नंदराय के बंदनवार बंधाय। कुंकुम के दिये साथीये सो हरि मंगल गाय॥ कान्ह कुंवर देखन चले हरखित होत अपार। देख द

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राखी बांधत जसोदा मैया

18 मई 2022
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राखी बांधत जसोदा मैया । विविध सिंगार किये पटभूषण, पुनि पुनि लेत बलैया ॥ हाथन लीये थार मुदित मन, कुमकुम अक्षत मांझ धरैया। तिलक करत आरती उतारत अति हरख हरख मन भैया ॥ बदन चूमि चुचकारत अतिहि भरि भरि धर

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सकल सुख के कारन

18 मई 2022
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सकल सुख के कारन भजि मन नंद नंदन चरन। परम पंकज अति मनोहर सकल सुख के करन॥ सनक संकर ध्यान धारत निगम आगम बरन। सेस सारद रिषय नारद संत चिंतन सरन॥ पद-पराग प्रताप दुर्लभ रमा कौ हित करन। परसि गंगा भई पाव

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बृथा सु जन्म गंवैहैं

18 मई 2022
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बृथा सु जन्म गंवैहैं जा दिन मन पंछी उडि़ जैहैं। ता दिन तेरे तनु तरवर के सबै पात झरि जैहैं॥ या देही को गरब न करिये स्यार काग गिध खैहैं। तीन नाम तन विष्ठा कृमि ह्वै नातर खाक उड़ैहैं॥ कहं वह नीर कहं

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मेटि सकै नहिं कोइ

18 मई 2022
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मेटि सकै नहिं कोइ करें गोपाल के सब होइ। जो अपनौ पुरषारथ मानै अति झूठौ है सोइ॥ साधन मंत्र जंत्र उद्यम बल ये सब डारौं धोइ। जो कछु लिखि राख्यौ नंद नंदन मेटि सकै नहिं कोइ॥ दुख सुख लाभ अलाभ समुझि तुम

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हम भगतनि के भगत हमारे

18 मई 2022
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हम भगतनि के भगत हमारे। सुनि अर्जुन परतिग्या मेरी यह ब्रत टरत न टारे॥ भगतनि काज लाज हिय धरि कै पाइ पियादे धाऊं। जहां जहां पीर परै भगतनि कौं तहां तहां जाइ छुड़ाऊं॥ जो भगतनि सौं बैर करत है सो निज बैर

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जागिए ब्रजराज कुंवर

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जागिए ब्रजराज कुंवर कमल-कुसुम फूले। कुमुद -बृंद संकुचित भए भृंग लता भूले॥ तमचुर खग करत रोर बोलत बनराई। रांभति गो खरिकनि मैं बछरा हित धाई॥ विधु मलीन रवि प्रकास गावत नर नारी। सूर श्रीगोपाल उठौ परम

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उपमा हरि तनु देखि लजानी

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उपमा हरि तनु देखि लजानी। कोउ जल मैं कोउ बननि रहीं दुरि कोउ कोउ गगन समानी॥ मुख निरखत ससि गयौ अंबर कौं तडि़त दसन-छबि हेरि। मीन कमल कर चरन नयन डर जल मैं कियौ बसेरि॥ भुजा देखि अहिराज लजाने बिबरनि पैठे

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सबसे ऊँची प्रेम सगाई

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सबसे ऊँची प्रेम सगाई। दुर्योधन की मेवा त्यागी, साग विदुर घर पाई॥ जूठे फल सबरी के खाये बहुबिधि प्रेम लगाई॥ प्रेम के बस नृप सेवा कीनी आप बने हरि नाई॥ राजसुयज्ञ युधिष्ठिर कीनो तामैं जूठ उठाई॥ प्रेम

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माधव कत तोर करब बड़ाई

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माधव कत तोर करब बड़ाई। उपमा करब तोहर ककरा सों कहितहुँ अधिक लजाई॥ अर्थात् भगवान् की तुलना किसी से संभव नहीं है। पायो परम पदु गात सबै दिन एक से नहिं जात। सुमिरन भजन लेहु करि हरि को जों लगि तन कुस

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कहां लौं बरनौं सुंदरताई

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कहां लौं बरनौं सुंदरताई। खेलत कुंवर कनक-आंगन मैं नैन निरखि छबि पाई॥ कुलही लसति सिर स्याम सुंदर कैं बहु बिधि सुरंग बनाई। मानौ नव धन ऊपर राजत मघवा धनुष चढ़ाई॥ अति सुदेस मन हरत कुटिल कच मोहन मुख बगरा

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बदन मनोहर गात

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बदन मनोहर गात सखी री कौन तुम्हारे जात। राजिव नैन धनुष कर लीन्हे बदन मनोहर गात॥ लज्जित होहिं पुरबधू पूछैं अंग अंग मुसकात। अति मृदु चरन पंथ बन बिहरत सुनियत अद्भुत बात॥ सुंदर तन सुकुमार दोउ जन सूर क

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बदन मनोहर गात

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बदन मनोहर गात सखी री कौन तुम्हारे जात। राजिव नैन धनुष कर लीन्हे बदन मनोहर गात॥ लज्जित होहिं पुरबधू पूछैं अंग अंग मुसकात। अति मृदु चरन पंथ बन बिहरत सुनियत अद्भुत बात॥ सुंदर तन सुकुमार दोउ जन सूर क

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हमारे प्रभु, औगुन चित न धरौ

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हमारे प्रभु, औगुन चित न धरौ। समदरसी है नाम तुहारौ, सोई पार करौ॥ इक लोहा पूजा में राखत, इक घर बधिक परौ। सो दुबिधा पारस नहिं जानत, कंचन करत खरौ॥ इक नदिया इक नार कहावत, मैलौ नीर भरौ। जब मिलि गए तब ए

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राखौ लाज मुरारी

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अब मेरी राखौ लाज, मुरारी। संकट में इक संकट उपजौ, कहै मिरग सौं नारी॥ और कछू हम जानति नाहीं, आई सरन तिहारी। उलटि पवन जब बावर जरियौ, स्वान चल्यौ सिर झारी॥ नाचन-कूदन मृगिनी लागी, चरन-कमल पर वारी। सूर

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राखौ लाज मुरारी

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अब मेरी राखौ लाज, मुरारी। संकट में इक संकट उपजौ, कहै मिरग सौं नारी॥ और कछू हम जानति नाहीं, आई सरन तिहारी। उलटि पवन जब बावर जरियौ, स्वान चल्यौ सिर झारी॥ नाचन-कूदन मृगिनी लागी, चरन-कमल पर वारी। सूर

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रतन-सौं जनम गँवायौ

18 मई 2022
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रतन-सौं जनम गँवायौ हरि बिनु कोऊ काम न आयौ। इहि माया झूठी प्रपंच लगि, रतन-सौं जनम गँवायौ॥ कंचन कलस, बिचित्र चित्र करि, रचि-पचि भवन बनायौ। तामैं तैं ततछन ही काढ़यौ, पल भर रहन न पायौ॥ हौं तब संग जरौ

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अब मैं नाच्यौ बहुत गुपाल

18 मई 2022
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अब मैं नाच्यौ बहुत गुपाल। काम-क्रोध कौ पहिरि चोलना, कंठ बिषय की माल॥ महामोह के नूपुर बाजत, निंदा सबद रसाल। भ्रम-भोयौ मन भयौ, पखावज, चलत असंगत चाल॥ तृष्ना नाद करति घट भीतर, नाना विधि दै ताल। माया

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जनम अकारथ खोइसि

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जनम अकारथ खोइसि रे मन, जनम अकारथ खोइसि। हरि की भक्ति न कबहूँ कीन्हीं, उदर भरे परि सोइसि॥ निसि-दिन फिरत रहत मुँह बाए, अहमिति जनम बिगोइसि। गोड़ पसारि परयो दोउ नीकैं, अब कैसी कहा होइसि॥ काल जमनि सौं

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जनम अकारथ खोइसि

18 मई 2022
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जनम अकारथ खोइसि रे मन, जनम अकारथ खोइसि। हरि की भक्ति न कबहूँ कीन्हीं, उदर भरे परि सोइसि॥ निसि-दिन फिरत रहत मुँह बाए, अहमिति जनम बिगोइसि। गोड़ पसारि परयो दोउ नीकैं, अब कैसी कहा होइसि॥ काल जमनि सौं

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रे मन मूरख, जनम गँवायौ

18 मई 2022
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रे मन मूरख, जनम गँवायौ। करि अभिमान विषय-रस गीध्यौ, स्याम सरन नहिं आयौ॥ यह संसार सुवा-सेमर ज्यौं, सुन्दर देखि लुभायौ। चाखन लाग्यौ रुई गई उडि़, हाथ कछू नहिं आयौ॥ कहा होत अब के पछिताऐं, पहिलैं पाप कम

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अजहूँ चेति अचेत

18 मई 2022
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अजहूँ चेति अचेत सबै दिन गए विषय के हेत। तीनौं पन ऐसैं हीं खोए, केश भए सिर सेत॥ आँखिनि अंध, स्त्रवन नहिं सुनियत, थाके चरन समेत। गंगा-जल तजि पियत कूप-जल, हरि-तजि पूजत प्रेत॥ मन-बच-क्रम जौ भजै स्याम

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आनि सँजोग परै

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आनि सँजोग परै भावी काहू सौं न टरै। कहँ वह राहु, कहाँ वे रबि-ससि, आनि सँजोग परै॥ मुनि वसिष्ट पंडित अति ज्ञानी, रचि-पचि लगन धरै। तात-मरन, सिय हरन, राम बन बपु धरि बिपति भरै॥ रावन जीति कोटि तैंतीसा,

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दियौ अभय पद ठाऊँ

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दियौ अभय पद ठाऊँ तुम तजि और कौन पै जाउँ। काकैं द्वार जाइ सिर नाऊँ, पर हथ कहाँ बिकाउँ॥ ऐसौ को दाता है समरथ, जाके दियें अघाउँ। अन्त काल तुम्हरैं सुमिरन गति, अनत कहूँ नहिं दाउँ॥ रंक सुदामा कियौ अजाच

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आजु हौं एक एक करि टरिहौं

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आजु हौं एक-एक करि टरिहौं। के तुमहीं के हमहीं, माधौ, अपुन भरोसे लरिहौं। हौं तौ पतित सात पीढिन कौ, पतिते ह्वै निस्तरिहौं। अब हौं उघरि नच्यो चाहत हौं, तुम्हे बिरद बिन करिहौं। कत अपनी परतीति नसावत, मै

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तजौ मन, हरि-बिमुखनि को संग

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तजौ मन, हरि बिमुखनि कौ संग। जिनकै संग कुमति उपजति है, परत भजन में भंग। कहा होत पय पान कराएं, बिष नही तजत भुजंग। कागहिं कहा कपूर चुगाएं, स्वान न्हवाएं गंग। खर कौ कहा अरगजा-लेपन, मरकट भूषण अंग। गज

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मन धन-धाम धरे

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मन धन-धाम धरे मोसौं पतित न और हरे। जानत हौ प्रभु अंतरजामी, जे मैं कर्म करे॥ ऐसौं अंध, अधम, अबिबेकी, खोटनि करत खरे। बिषई भजे, बिरक्त न सेए, मन धन-धाम धरे॥ ज्यौं माखी मृगमद-मंडित-तन परिहरि, पूय परे

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ऎसी प्रीति की बलि जाऊं

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ऐसी प्रीति की बलि जाऊं। सिंहासन तजि चले मिलन कौं, सुनत सुदामा नाउं। कर जोरे हरि विप्र जानि कै, हित करि चरन पखारे। अंकमाल दै मिले सुदामा, अर्धासन बैठारे। अर्धांगी पूछति मोहन सौं, कैसे हितू तुम्हारे

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जसोदा हरि पालनैं झुलावै

18 मई 2022
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राग धनाश्री जसोदा हरि पालनैं झुलावै। हलरावै, दुलराइ मल्हावै, जोइ-जोइ कछु गावै॥ मेरे लाल कौं आउ निंदरिया, काहैं न आनि सुवावै। तू काहैं नहिं बेगहिं आवै, तोकौं कान्ह बुलावै॥ कबहुँ पलक हरि मूँदि लेत

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सोभित कर नवनीत लिए

18 मई 2022
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सोभित कर नवनीत लिए। घुटुरुनि चलत रेनु तन मंडित मुख दधि लेप किए॥ चारु कपोल लोल लोचन गोरोचन तिलक दिए। लट लटकनि मनु मत्त मधुप गन मादक मधुहिं पिए॥ कठुला कंठ वज्र केहरि नख राजत रुचिर हिए। धन्य सूर एकौ

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आजु मैं गाई चरावन जैहों

18 मई 2022
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आजु मैं गाई चरावन जैहों बृंदाबन के भाँति भाँति फल, अपने कर मैं खैहौं। ऎसी बात कहौ जनि बारे, देखौ अपनी भांति। तनक तनक पग चलिहौ कैसें, आवत ह्वै है राति। प्रात जात गैया लै चारन, घर आवत है साँझ। तुम्

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गिरि जनि गिरै स्याम के कर तैं

18 मई 2022
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गिरि जनि गिरै स्याम के कर तैं। करत बिचार सबै ब्रजवासी, भय उपजत अति उर तैं। लै लै लकुट ग्वाल सब धाए, करत सहाय जु तुरतैं। यह अति प्रबल, स्याम अति कोमल, रबकि-रबकि हरबर तैं। सप्त दिवस कर पर गिरि धारयो

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ऊधौ,तुम हो अति बड़भागी

18 मई 2022
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    ऊधौ,तुम हो अति बड़भागी. अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी. पुरइनि पात रहत जल भीतर,ता रस देह न दागी. ज्यों जल मांह तेल की गागरि,बूँद न ताकौं लागी. प्रीति-नदी में पाँव न बोरयौ,दृष्टि न रूप

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हमारे हरि हारिल की लकरी

18 मई 2022
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हमारे हरि हारिल की लकरी. मन क्रम वचन नंद-नंदन उर, यह दृढ करि पकरी. जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि,कान्ह-कान्ह जकरी. सुनत जोग लागत है ऐसो, ज्यौं करूई ककरी. सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए,देखी सुनी न करी. यह

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हरि हैं राजनीति पढि आए

18 मई 2022
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हरि हैं राजनीति पढि आए. समुझी बात कहत मधुकर के,समाचार सब पाए. इक अति चतुर हुतै पहिलें हीं,अब गुरुग्रंथ पढाए. बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी , जोग सँदेस पठाए. ऊधौ लोग भले आगे के, पर हित डोलत धाए. अब अपन

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मन की मन ही माँझ रही

18 मई 2022
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मन की मन ही माँझ रही. कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही. अवधि असार आस आवन की,तन मन विथा सही. अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि,विरहिनि विरह दही. चाहति हुती गुहारि जितहिं तैं, उर तैं धार बही. 'सूरदास'अ

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अब मैं जानी देह बुढ़ानी

18 मई 2022
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अब मैं जानी देह बुढ़ानी । सीस, पाउँ, कर कह्यौ न मानत, तन की दसा सिरानी। आन कहत, आनै कहि आवत, नैन-नाक बहै पानी। मिटि गई चमक-दमक अँग-अँग की, मति अरु दृष्टि हिरानी। नाहिं रही कछु सुधि तन-मन की, भई जु

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जौं आजु हरिहिं न अस्त्र गहाऊँ

18 मई 2022
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जौं आजु हरिहिं न अस्त्र गहाऊँ तौं लाजौं गंगा जननी को, शांतनु सुत न कहाऊँ. स्यंदन खंडी महारथि खंड्यो, कपिध्वज सहित गिराऊँ पांडव दल सन्मुख होय धाऊँ, सरिता रुधिर बहाऊँ जौं न करौं शपथ प्रभु पद की, क्ष

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रे मन कृष्ण नाम कहि लीजै

18 मई 2022
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रे मन कृष्ण नाम कहि लीजै गुरु के बचन अटल करि मानहिं, साधु समागम कीजै पढिए गुनिए भगति भागवत, और कथा कहि लीजै कृष्ण नाम बिनु जनम बादिही, बिरथा काहे जीजै कृष्ण नाम रस बह्यो जात है, तृषावंत है पीजै स

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ऐसो पूत देवकी जायो

18 मई 2022
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ऐसो पूत देवकी जायो। चारों भुजा चार आयुध धरि, कंस निकंदन आयो ॥१॥ भरि भादों अधरात अष्टमी, देवकी कंत जगायो। देख्यो मुख वसुदेव कुंवर को, फूल्यो अंग न समायो॥२॥ अब ले जाहु बेगि याहि गोकुलबहोत भाँति समझा

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राधे जू आज बन्यो है वसंत

18 मई 2022
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शयन भोग के समय राधे जू आज बन्यो है वसंत। मानो मदन विनोद विहरत नागरी नव कंत॥१॥ मिलत सन्मुख पाटली पट मत्त मान जुही। बेली प्रथम समागम कारन मेदिनी कच गुही॥२॥ केतकी कुच कमल कंचन गरे कंचुकी कसी। मालती

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देखो री हरि भोजन खात

18 मई 2022
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देखो री हरि भोजन खात। सहस्त्र भुजा धर इत जेमत हे दूत गोपन से करत हे बात॥१॥ ललिता कहत देख हो राधा जो तेरे मन बात समात। धन्य सबे गोकुल के वासी संग रहत गोकुल के तात॥२॥ जेंमत देख मंद सुख दीनो अति आनंद

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अरी तुम कोन हो री बन में फूलवा बीनन हारी

18 मई 2022
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अरी तुम कोन हो री बन में फूलवा बीनन हारी। रतन जटित हो बन्यो बगीचा फूल रही फुलवारी॥१॥ कृष्णचंद बनवारी आये मुख क्यों न बोलत सुकुमारी। तुम तो नंद महर के ढोटा हम वृषभान दुलारी॥२॥ या बन में हम सदा बसत

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व्रजमंडल आनंद भयो प्रगटे श्री मोहन लाल

18 मई 2022
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व्रजमंडल आनंद भयो प्रगटे श्री मोहन लाल। ब्रज सुंदरि चलि भेंट लें हाथन कंचन थार॥१॥ जाय जुरि नंदराय के बंदनवार बंधाय। कुंकुम के दिये साथीये सो हरि मंगल गाय॥२॥ कान्ह कुंवर देखन चले हरखित होत अपार। द

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पवित्रा पहरत हे अनगिनती

18 मई 2022
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पवित्रा पहरत हे अनगिनती। श्री वल्लभ के सन्मुख बैठे बेटा नाती पंती॥१॥ बीरा दे मुसिक्यात जात प्रभु बात बनावत बनती। वृंदावन सुख पाय व्रजवधु चिरजीयो जियो भनती॥२॥

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पवित्रा श्री विट्ठलेश पहरावे

18 मई 2022
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पवित्रा श्री विट्ठलेश पहरावे। व्रज नरेश गिरिधरन चंद्र को निरख निरख सचु पावे॥१॥ आसपास युवतिजन ठाडी हरखित मंगल गावे। गोविंद प्रभु पर सकल देवता कुसुमांजलि बरखावे ॥२॥

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देखो माई ये बडभागी मोर

18 मई 2022
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देखो माई ये बडभागी मोर। जिनकी पंख को मुकुट बनत है, शिर धरें नंदकिशोर॥१॥ ये बडभागी नंद यशोदा, पुन्य कीये भरझोर। वृंदावन हम क्यों न भई हैं लागत पग की ओर॥२॥ ब्रह्मदिक सनकादिक नारद, ठाडे हैं कर जोर।

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छगन मगन प्यारे लाल कीजिये कलेवा

18 मई 2022
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छगन मगन प्यारे लाल कीजिये कलेवा । छींके ते सघरी दधीऊखल चढ काढ धरी, पहरि लेहु झगुलि फेंट बांध लेहु मेवा ॥१॥ यमुना तट खेलन जाओ, खेलत में भूख न लागे कोन परी प्यारे लाल निश दिन की टेवा। सूरदास मदन मोहन

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श्री वल्लभ भले बुरे दोउ तेरे

18 मई 2022
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श्री वल्लभ भले बुरे दोउ तेरे। तुमही हमरी लाज बढाई, विनती सुनो प्रभु मेरे ॥१॥ अन्य देव सब रंक भिखारी, देखे बहुत घनेरे । हरि प्रताप बल गिनत न काहु, निडर भये सब चेरे ॥२॥ सब त्यज तुम शरणागत आयो, दृढ क

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वृंदावन एक पलक जो रहिये

18 मई 2022
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वृंदावन एक पलक जो रहिये। जन्म जन्म के पाप कटत हे कृष्ण कृष्ण मुख कहिये ॥१॥ महाप्रसाद और जल यमुना को तनक तनक भर लइये। सूरदास वैकुंठ मधुपुरी भाग्य बिना कहां पइये ॥२॥

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व्रज में हरि होरी मचाई

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व्रज में हरि होरी मचाई । इततें आई सुघर राधिका उततें कुंवर कन्हाई । खेलत फाग परसपर हिलमिल शोभा बरनी न जाई ॥१॥  नंद घर बजत बधाई….ब्रज में हरि होरी मचाई । बाजत ताल मृदंग बांसुरी वीणा ढफ शहनाई । उडत

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साची कहो मनमोहन मोसों तो खेलों तुम संग होरी

18 मई 2022
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साची कहो मनमोहन मोसों तो खेलों तुम संग होरी । आज की रेन कहा रहे मोहन कहां करी बरजोरी ॥१॥ मुख पर पीक पीठिपर कंकन हिये हार बिन डोरि । जिय में ओर उपर कछु औरे चाल चलत अछु औरि ॥२॥ मोहि बतावति मोहन नागर

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श्री यमुने पति दास के चिन्ह न्यारे

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श्री यमुने पति दास के चिन्ह न्यारे । भगवदी को भगवत संग मिलि रहत हैं, जाके हिय बसत प्राण प्यारे ॥१॥ गूढ यमुने बात सोई अब जानही, जाके मनमोहन नैनतारे । सूर सुख सार निरधार वे पावहीं, जापर होय श्री वल्ल

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नाम महिमा ऐसी जु जानो

18 मई 2022
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नाम महिमा ऐसी जु जानो । मर्यादादिक कहें लौकिक सुख लहे पुष्टि कों पुष्टिपथ निश्चे मानो ॥१॥ स्वाति जलबुन्द जब परत हें जाहि में, ताहि में होत तेसो जु बानो । श्री यमुने कृपा सिंधु जानि स्वाति जल बहु मा

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कन्हैया हालरू रे

18 मई 2022
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कन्हैया हालरू रे । गुढि गुढि ल्यायो बढई धरनी पर डोलाई बलि हालरू रे ॥१॥ इक लख मांगे बढै दुई नंद जु देहिं बलि हालरू रे । रत पटित बर पालनौ रेसम लागी डोर बलि हालरू रे ॥२॥ कबहुँक झूलै पालना कबहुँ नन्द

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हालरौ हलरावै माता

18 मई 2022
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हालरौ हलरावै माता । बलि बलि जाऊँ घोष सुख दाता ॥१॥ जसुमति अपनो पुन्य बिचारै । बार बार सिसु बदन निहारै ॥२॥ अँग फरकाइ अलप मुसकाने । या छबि की उपना को जानै ॥३॥ हलरावति गावति कहि प्यारे । बाल दसा के

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पालनैं गोपाल झुलावैं

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पालनैं गोपाल झुलावैं । सुर मुनि देव कोटि तैंतीसौ कौतुक अंबर छावैं ॥१॥ जाकौ अन्त न ब्रह्मा जाने, सिव सनकादि न पावैं । सो अब देखो नन्द जसोदा, हरषि हरषि हलरावैं ॥२॥ हुलसत हँसत करत किलकारी मन अभिलाष ब

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कनक रति मनि पालनौ, गढ्यो काम सुतहार

18 मई 2022
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कनक रति मनि पालनौ, गढ्यो काम सुतहार । बिबिध खिलौना भाँति के, गजमुक्ता चहुँधार ॥ जननी उबटि न्हवाइ के, क्रम सों लीन्हे गोद । पौढाए पट पालने, निरखि जननि मन मोद ॥ अति कोमल दिन सात के, अधर चरन कर लाल ।

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तिहारो दरस मोहे भावे श्री यमुना जी

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तिहारो दरस मोहे भावे श्री यमुना जी । श्री गोकुल के निकट बहत हो, लहरन की छवि आवे ॥१॥ सुख देनी दुख हरणी श्री यमुना जी, जो जन प्रात उठ न्हावे । मदन मोहन जू की खरी प्यारी, पटरानी जू कहावें ॥२॥ वृन्दाव

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मैया कबहुं बढ़ैगी चोटी

18 मई 2022
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मैया कबहुं बढ़ैगी चोटी। किती बेर मोहि दूध पियत भइ यह अजहूं है छोटी॥ तू जो कहति बल की बेनी ज्यों ह्वै है लांबी मोटी। काढ़त गुहत न्हवावत जैहै नागिन-सी भुई लोटी॥ काचो दूध पियावति पचि पचि देति न माखन

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मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायो

18 मई 2022
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मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायो। मो सों कहत मोल को लीन्हों तू जसुमति कब जायो॥ कहा करौं इहि रिस के मारें खेलन हौं नहिं जात। पुनि पुनि कहत कौन है माता को है तेरो तात॥ गोरे नंद जसोदा गोरी तू कत स्यामल गात

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मैया! मैं नहिं माखन खायो

18 मई 2022
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मैया! मैं नहिं माखन खायो। जानि परै ये सखा सबै मिलि मेरो मुख लपटायो॥ देखि तुही छींके पर भाजन ऊँचे धरि लटकायो। हौं जु कहत नान्हें कर अपने मैं कैसे करि पायो॥ मुख दधि पोंछि बुद्धि इक कीन्हीं दोना पीठि

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हरि अपनैं आंगन कछु गावत

18 मई 2022
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हरि अपनैं आंगन कछु गावत। तनक तनक चरनन सों नाच मन हीं मनहिं रिझावत॥ बांह उठाइ कारी धौरी गैयनि टेरि बुलावत। कबहुंक बाबा नंद पुकारत कबहुंक घर में आवत॥ माखन तनक आपनैं कर लै तनक बदन में नावत। कबहुं चि

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जो तुम सुनहु जसोदा गोरी

18 मई 2022
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जो तुम सुनहु जसोदा गोरी। नंदनंदन मेरे मंदिर में आजु करन गए चोरी॥ हौं भइ जाइ अचानक ठाढ़ी कह्यो भवन में कोरी। रहे छपाइ सकुचि रंचक ह्वै भई सहज मति भोरी॥ मोहि भयो माखन पछितावो रीती देखि कमोरी। जब गहि

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कहन लागे मोहन मैया मैया

18 मई 2022
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कहन लागे मोहन मैया मैया। नंद महर सों बाबा बाबा अरु हलधर सों भैया॥ ऊंच चढि़ चढि़ कहति जशोदा लै लै नाम कन्हैया। दूरि खेलन जनि जाहु लाला रे! मारैगी काहू की गैया॥ गोपी ग्वाल करत कौतूहल घर घर बजति बधैय

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खीझत जात माखन खात

18 मई 2022
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खीझत जात माखन खात। अरुन लोचन भौंह टेढ़ी बार बार जंभात॥ कबहुं रुनझुन चलत घुटुरुनि धूरि धूसर गात। कबहुं झुकि कै अलक खैंच नैन जल भरि जात॥ कबहुं तोतर बोल बोलत कबहुं बोलत तात। सूर हरि की निरखि सोभा नि

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चली ब्रज घर घरनि यह बात

18 मई 2022
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चली ब्रज घर घरनि यह बात। नंद सुत संग सखा लीन्हें चोरि माखन खात॥ कोउ कहति मेरे भवन भीतर अबहिं पैठे धाइ। कोउ कहति मोहिं देखि द्वारें उतहिं गए पराइ॥ कोउ कहति किहि भांति हरि कों देखौं अपने धाम। हेरि

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आजु मैं गाइ चरावन जैहौं

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आजु मैं गाइ चरावन जैहौं। बृन्दावन के भांति भांति फल अपने कर मैं खेहौं॥ ऐसी बात कहौ जनि बारे देखौ अपनी भांति। तनक तनक पग चलिहौ कैसें आवत ह्वै है राति॥ प्रात जात गैया लै चारन घर आवत हैं सांझ। तुम्ह

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माधवजू जो जन तैं बिगरै

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माधवजू जो जन तैं बिगरै। तौ कृपाल करुनामय केसव प्रभु नहिं जीय धर॥ जैसें जननि जठर अन्तरगत सुत अपराध करै। तो जतन करै अरु पोषे निकसैं अंक भरै॥ जद्यपि मलय बृच्छ जड़ काटै कर कुठार पकरै। त सुभाव सुगंध स

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प्रात समय उठि सोवत हरि कौ बदन उघारौ नंद

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प्रात समय उठि सोवत हरि कौ बदन उघारौ नंद। रहि न सकत देखन कों आतुर नैन निसा के द्वंद॥ स्वच्छ सैज में तें मुख निकसत गयौ तिमिर मिटि मंद। मानों मथि पय सिंधु फेन फटि दरस दिखायौ चंद॥ धायौ चतुर चकोर सूर म

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सांझ भई घर आवहु प्यारे

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सांझ भई घर आवहु प्यारे। दौरत तहां चोट लगि जैहै खेलियौ होत सकारे॥ आपुहिं जा बांह गहि ल्या खेह रही लपटा। सपट झारि तातो जल ला तेल परसि अन्हवा॥ सरस बसन तन पोंछि स्याम कौ भीतर ग लिवा। सूर श्याम कछु कर

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सखा सहित गये माखन-चोरी

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सखा सहित गये माखन-चोरी। देख्यौ स्याम गवाच्छ-पंथ है गोपी एक मथति दधि भोरी॥ हेरि मथानी धरी माट पै माखन हो उतरात। आपुन ग कमोरी मांगन हरि हूं पा घात॥ पैठे सखन सहित घर सूने माखन दधि सब खा। छूंछी छांड़

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मैया री मोहिं माखन भावै

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मैया री मोहिं माखन भावै। मधु मेवा पकवान मिठा मोंहि नाहिं रुचि आवे॥ ब्रज जुवती इक पाछें ठाड़ी सुनति स्याम की बातें। मन-मन कहति कबहुं अपने घर देखौ माखन खातें॥ बैठें जाय मथनियां के ढिंग मैं तब रहौं छ

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गोपालहिं माखन खान दै

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गोपालहिं माखन खान दै। सुनु री सखी को जिनि बोले बदन दही लपटान दै॥ गहि बहिया हौं लै कै जैहों नयननि तपनि बुझान दै। वा पे जाय चौगुनो लैहौं मोहिं जसुमति लौं जान दै॥ तुम जानति हरि कछू न जानत सुनत ध्यान

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जसोदा कहाँ लौं कीजै कानि

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जसोदा कहाँ लौं कीजै कानि। दिन प्रति कैसे सही जाति है दूध-दही की हानि॥ अपने या बालक की करनी जो तुम देखौ आनि। गोरस खा ढूंढ़ि सब बासन भली परी यह बानि॥ मैं अपने मण-दिर के कोनैं माखन राख्यौ जानि। सो ज

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कुंवर जल लोचन भरि भरि लैत

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कुंवर जल लोचन भरि भरि लैत। बालक बदन बिलोकि जसोदा कत रिस करति अचेत॥ छोरि कमर तें दुसह दांवरी डारि कठिन कर बैत। कहि तोकों कैसे आवतु है सिसु पर तामस एत॥ मुख आंसू माखन के कनिका निरखि नैन सुख देत। मनु

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जसोदा तेरो भलो हियो है माई

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जसोदा तेरो भलो हियो है माई। कमलनयन माखन के कारन बांधे ऊखल लाई॥ जो संपदा दैव मुनि दुर्लभ सपनेहुं द न दिखाई। याही तें तू गरब भुलानी घर बैठें निधि पाई॥ सुत काहू कौ रोवत देखति दौरि लेति हिय लाई। अब अ

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यह सुनिकैं हलधर तहं धाये

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यह सुनिकैं हलधर तहं धाये। देखि स्याम ऊखल सों बांधे तबहीं दो लोचन भरि आये॥ मैं बरज्यौ कै बार कन्हैया भली करी दो हाथ बंधाये। अजहूं छांड़ोगे लंगरा दो कर जोरि जननि पै आये। स्यामहिं छोरि मोहिं बरु बांध

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निरखि स्याम हलधर मुसुकानैं

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निरखि स्याम हलधर मुसुकानैं। को बाँधे, को छोरे इनकौं, यह महिमा येई पै जानैं|| उपतपति-प्रलय करत हैं येई, सेष सहस मुख सुजस बखानैं।| जमलार्जुन-तरु तोरि उधारन पारन करन आपु मन मानैं|| असुर सँहारन, भक्तन

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मैया हौं न चरैहों गाय

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मैया हौं न चरैहों गाय। सिगरे ग्वाल घिरावत मोसों मेरे पां पिरांय॥ जौ न पत्याहि पूछि बलदाहिं अपनी सौंह दिवाय। यह सुनि मा जसोदा ग्वालनि गारी देति रिसाय॥ मैं पठवति अपने लरिका कों आवै मन बहरा।य सूर श्

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धनि यह वृन्दावन की रैनु

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धनि यह वृन्दावन की रैनु। नंदकिसोर चरावे गैयां बिहरि बजावे बैनु॥ मनमोहन कौ ध्यान धरै जो अति सुख पावत चैनु। चलत कहां मन बसहिं सनातन जहां लैनु नहीं दैनु॥ यहां रहौ जहं जूठन पावैं ब्रजवासी के ऐनु। सूर

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