यह सुनिकैं हलधर तहं धाये।
देखि स्याम ऊखल सों बांधे तबहीं दो लोचन भरि आये॥
मैं बरज्यौ कै बार कन्हैया भली करी दो हाथ बंधाये।
अजहूं छांड़ोगे लंगरा दो कर जोरि जननि पै आये।
स्यामहिं छोरि मोहिं बरु बांधौ निकसतसगुन भले नहिं पाये।
मेरो प्रान जीवन धन भैया ताके भुज मोहिं बंधे दिखाये॥
माता सों कहि करौं ढिठा शेषरूप कहि नाम सुनाये।
सूरदास तब कहति जसोदादो भैया एकहिं मत भाये॥