प्रात समय उठि सोवत हरि कौ बदन उघारौ नंद।
रहि न सकत देखन कों आतुर नैन निसा के द्वंद॥
स्वच्छ सैज में तें मुख निकसत गयौ तिमिर मिटि मंद।
मानों मथि पय सिंधु फेन फटि दरस दिखायौ चंद॥
धायौ चतुर चकोर सूर मुनि सब सखि सखा सुछंद।
रही न सुधिहुं सरीर धीर मति पिवत किरन मकरंद॥