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छलावा

4 दिसम्बर 2021

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हम जिसे मोहब्बत समझ रहे थे
वो बस एक छलावा था
जिस गोद मे सुकूँ से आंख बंद किया करते थे
लेकर खंज़र उसे मेरे गले का हार बनाया करते थे
बाहों में जब हम दुनिया को छोटा पाते थे
पीठ पर तभी वार से वो हमें दुनिया से जुदा कर जाते थे
कैसे कहूँ की वो मोहब्बत थी हमारी या खुदा था
जिसे हम शिवलिंग के करीब बिठाए थे
जिसे देख परीक्षा में जाया करते थे
या हाथों का उसका खाना खा भूख मिटाया करते थे
वक़्त भी वो कुछ और था
बाहों में प्रेम की बारिश कर हमें
आँसुओ की बारिश में जो नहाना था
हर कोशिश की थी उसे
पलको पर सजा लेने की
आँखों मे बसा लेने की
मान मर्यादा परिवार रीति से ऊपर
जिंदगी का हिस्सा बनाने की
पर क्या पता था वक़्त भी ऐसा खेल जायेगा
हमे इश्क़ का नाम दे
उन्हें किसी और कि बाहों में सुला जायेगा
साहिल भी तब शांत लहरों से
अपना वजूद पानी मे मिटा जायेगा
मोहब्बत के छलावे में एक बार फिर
कोई मासूम अपने एहसास जीने से घबरा जायेगा ।

written by IG @ajain_words
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रचनाएँ
अधूरे अल्फ़ाज़
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यह संकलन सिर्फ़ शब्दों का नहीं बल्कि उन सभी एहसासों का है, जो शब्दो से सजकर भी अनछुए या अनकहे रह जाते है। एहसास बहुत सुनहरे होते है, एक ही एहसास किसी को ख़ुशी तो किसी को ग़म दे जाता है।एहसासों की दुनिया पूरे होने की दहलीज़ पर खड़ी रहती हैं, जो किसी के लिए पूरे तो सामने वाले के लिए अधूरे रह जाते है।
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