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मेहरबानी

12 अक्टूबर 2021

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जज्बातो से परे जज्बातो को लेकर
में निकल चला अपने ही घर से
उम्मीद का दामन साथ लिए सफलता का
मै  निकल पड़ा बाहर रोज़ के तानो से...
     रुख्सत होने लगी थी अब अपनई गलियाँ
   सफर जो अलग चुन लिया था मैंने ख्वाहिशों से
    वक़्त भी देने लगा था साथ जब लड़ रहा था
     अपने ही रिश्तों और वायदों से
पर अंगार लिए हाथो में चला था
सफलता के दिये जलाने को
बीता जो सफर तन्हाई भरे रातो से
आखिर लौट आया घर जिम्मेदारी के बोझ उठाने को
   एक बार फिर सहम गया लम्हा बेकरारी से
जब जीतकर हार गया मैं उनकी मेहरबानी से ।

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रचनाएँ
अधूरे अल्फ़ाज़
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यह संकलन सिर्फ़ शब्दों का नहीं बल्कि उन सभी एहसासों का है, जो शब्दो से सजकर भी अनछुए या अनकहे रह जाते है। एहसास बहुत सुनहरे होते है, एक ही एहसास किसी को ख़ुशी तो किसी को ग़म दे जाता है।एहसासों की दुनिया पूरे होने की दहलीज़ पर खड़ी रहती हैं, जो किसी के लिए पूरे तो सामने वाले के लिए अधूरे रह जाते है।
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20 जनवरी 2023
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नैनो की वो मझधार  जो रुक भी ना सकी और रो भी ना सकी इजहार तेरे इश्क का  तुझसे जुदा होते वक्त कर भी न सकी सिसक कर रह गई तब मेरी हर एक सांस जब तेरी झुकती पलकें भी  उन जाते लम्हे को थाम ना स

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