नई दिल्ली : भारत और अमेरिका के बीच एक दिन पहले हस्ताक्षर किये गए 'मिलिट्री लॉजिस्टक अग्रीमेंट' से चीन बुरी तरह चिढ़ गया है। भारत और अमेरिका के बीच हुए लॉजिस्टक एक्सचेंज मेमोरंडम ऑफ़ अंडरस्टैंडिंग (Lemoa) पर एक दशक से ज्यादा समय के विमर्श के बाद सहमति बनी। मनमोहन सरकार के दौर में यह समझौता कुछ पार्टियों के विरोध के बाद पास नहीं हो पाया था हालाँकि इस समझौते का विरोध अब भी विपक्षी पार्टियों द्वारा किया जा रहा है और रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर का कहना है कि इस समझौते में अमेरिका के भारत में बेस बनाने जैसी कोई बात नहीं है। भारत और अमेरिका में हुए इस समझौते का वर्तमान समय में क्या महत्व है इससे दोनों देशों को किस तरह के फायदे होंगे यह समझना बेहद महत्वपूर्ण है।
चीन को घेरने की मोदी की रणनीति
भारत और चीन के बीच चल रहे गर्मागर्मी के माहौल के बीच यह समझौता अब चीन को भी परेशान कर रहा है, क्योंकि चीन इस बात को भली भांति समझ रहा है कि भारत और अमेरिका के बीच हुए इस समझौते के मायने क्या हैं। भारत के अमेरिका में युद्ध बेस बनाने कै मौके शायद ना आएं लेकिन अमेरिका, भारत में अपने बेस बनाएगा तो खतरा चीन को ही है। अमेरिका को जहाँ चीन की बढ़ती ताकत को आंकने के लिए भारत की जमीन मददगार होगी और वह एशिया में भी अपना प्रभुत्व जमायेगा वहीँ भारत के लिए यह समझौता इस लिए मददगार होगा क्योंकि भारत-चीन में युद्ध हुआ और अमेरिका से फिर मदद मांगने की स्थिति में 1962 जैसी परेशानी भारत को दुबारा नहीं झेलनी पड़ेगी।
नेहरू ने भी मांगी थी 1962 के युद्ध में अमेरिका से सहायता
कई गुप्त दस्तावेजों से पता चला है कि 1662 में भारत उर चीन युद्ध के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन केनेडी से मदद मांगी थी। तब भारत और अमेरिका के बीच इस तरह का कोई समझौता नहीं था लिहाजा अमेरिका को भारत में बेस बनाने के लिए दिक्कतों का सामना करना पड़ा। हालांकि नेहरू और जॉन केनेडी के बीच हुए पत्राचार से पता चलता है कि 60 के दशक में अमेरिका ने भारत के ओडिशा और चरबाटिया में अपने बेस बनाये थे। यह 1962 से 1968 तक यहाँ मौजूद रहे। अमेरिका ने अपने 12 एयरक्राफ्ट चीन बॉर्डर तक सैनिकों को ले जाने के लिए भेजे थे।
एक पर्वतरोही ने अपने खुलासे में बताया कि अमेरिका ने चीन में उसके परमाणु परीक्षणों पर नजर रखने के लिए नंद देवी पर्वत पर अपने डिवाइस लगाए थे। अमेरिका ने अपना यू 2 प्लेन्स चीन की गुप्त जानकारियां इकट्ठा करने के लिए इस्तेमाल किया था। इस बात का खुलासा साल 2015 में हुआ कि जब चीन से युद्ध के दौरान नेहरू ने अमेरिकी राष्ट्रपति केनेडी से मदद मांगी तो अमेरिका ने हरक्यूलिस, सी-130 एयरक्राफ्ट भारत को भेजे। इन अमेरिकी विमानों ने 5000 सैनिकों को असम और लद्दाख तक पहुंचाया।
मोदी की वियतनाम यात्रा एक कूटनीति
साऊथ चाइना सी पर चीन और वियतनाम के बीच जहाँ युद्ध की संभावना बढ़ती जा रही है वहीँ अगले महीने होने वाले जी-20 सम्मलेन से ठीक पीएम मोदी वियतनाम की यात्रा करेंगे। इस यात्रा के दौरान मोदी वियतनाम को चार पेट्रोल वोट्स की मदद दे सकता है। रक्षा मामलों से जुड़े सूत्रों की माने तो भारत और वियतनाम के सैनिकों के बीच संयुक्त अभ्यास पर भी बातचीत हो सकती है। यानी भारत वियतनाम से टकराने के लिए वियतनाम को भी तैयार कर रहा है।
गौरतलब है कि चीन ने 1988 में वियतनाम नेवी को हराकर स्प्रैटलिस आइलैंड्स पर कब्जा किया था। जिसमे उसके 64 सैनिक मारे गए। लेकिन बीते कुछ सालों में वियतनाम ने अपनी सैनिक क्षमता को मजबूत किया है। पहले उसने उसने रूस से 6 एडवांस्ड सबमरीन भी खरीदी थीं।