नई दिल्लीः धर्म के आधार पर वोट मांगना भ्रष्टाचार माना जाए या नहीं। इस रोचक मसले पर सुप्रीम कोर्ट में सात जजों की पीठ ने सुनवाई करते हुए बहस में शामिल वकीलों से अहम सवाल-जबाब किए। नारायण सिंह बनाम सुंदरलाल पटवा के इस केस पर सुप्रीम कोर्ट में तीन दिनों से लगातार सुनवाई जारी रही।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ का मानना रहा कि देशहित में धर्म और राजनीति का घालमेल उचित नहीं है।
क्या पूछा कोर्ट ने
कोर्ट ने कहा कि अगर उम्मीदवार और वोटर एक धर्म के हों और उस आधार पर वोट मांगा जाए तो क्या वे गलत है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर उम्मीदवार और वोटर अलग-अलग धर्म के हों और कंडीडेट समुदाय की रहनुमाई के नाम पर वोट मांगे तो क्या वह सही है। सुंदरलाल पटवा की ओर से अधिवक्ता श्याम दीवान ने पक्ष रखते हुए जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123(3) के तहत अपनी राय रखी। उन्होंने कहा कि कानून की धारा 123(3) में शब्द है हिज रेलिजन यानी उसका धर्म। इस शब्द का दायरा सीमित बताते हुए अधिवक्ता ने उचित व्याख्या किए जाने की मांग की। अधिवक्ता ने तर्क दिया कि उम्मीदवार के धर्म के आधार पर वोट नहीं मांग सकते लेकिन वोटर के धर्म के आधार पर वोट मांगना मंजूरी है।
मंगलवार को होगी अगली सुनवाई
इस मामले की अगली सुनवाई अब मंगलवार को होगी। याचिका में सुंदरलाल पटवा के अधिवक्ता के तर्क सुनकर कोर्ट ने कहा कि अगर कोई व्याख्या संवैधानिक नियम-कायदों के विपरीत होती है तो उसे हम स्वीकार नहीं करेंगे। कोर्ट ने पूछा कि अगर उम्मीदवार और वोटर एक ही धर्म के हों और उस आधार पर वोट मांगा जाए तो क्या वह गलत है। इस मसले की सुनवाई चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर की अध्यक्षता में जस्टिस मदन बी लोकुर, जस्टिस एबी बोब्डे, जस्टिस आदर्श कुमार गोयल, जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एल नागेश्वर की पीठ ने की।