21 अप्रैल 2016
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आकाशवाणी के कानपुर केंद्र पर वर्ष १९९३ से उद्घोषक के रूप में सेवाएं प्रदान कर रहा हूँ. रेडियो के दैनिक कार्यक्रमों के अतिरिक्त अब तक कई रेडियो नाटक एवं कार्यक्रम श्रृंखला लिखने का अवसर प्राप्त हो चुका है. D
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एक बूढ़े आदमी ने सोचा कि उसकी बीवी को शायद कम सुनाई देने लगा है . यह चेक करने के लिए एक दिन वो उसके पीछे गया और बोला, "जानू, क्या तुम मुझे सुन रही हो?" . कोई जवाब नहीं आया। . वो थोडा सा और आगे गया और फिर बोला, "जानू, क्या तुम मुझे सुन रही हो?" . इस बार भी कोई जवाब नहीं आया। . वो बिलकुल उसके करीब चल
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(हास्य व्यंग्य)आँख मुलमुल...गाल...गुलगुल...बदन थुलथुल, मगर आवाज बुलबुल ! वे मात्र वन पीस तहमद में लिपटे, स्टूल पर उकडूं बैठे, बीड़ी का टोटा सार्थक कर रहे थे ! रह-रह कर अंगुलियों पर कुछ गिन लेते और बीड़ी का सूंटा फेफड़ों तक खींच डालते थे! जहां वे बैठे थे वहाँ कच्ची पीली ईंट का टीन से ढका भैंसों का एक
अखरोट देता है कि बाँधू मुट्ठी...?