(हास्य व्यंग्य)
और सुनाइए, क्या हाल है? यह एक ऐसा सवाल है जो दिन भर में कई दफ़ा पूछा और बताया जाता है I मज़ा ये कि सवाल भी यही रहता है और जवाब भी वही घिसा-पिटा, जाना-माना I बात की शुरूआत ही यहीं से होती है, बस टोन भले ही बदल जाएँ I एक साहब अक्सर मिलते है और मिलते ही अंगड़ाई लेते हुए यही सवाल दाग देते हैं I मैं समझ जाता हूँ कि वास्तव में उन्हें मुझसे पूछना कुछ नहीं है, ये सवाल तो बस मेरे सोफ़े में भसकते हुए उनसे दफ्फ़तन निकल जाता है I सो मैं भी उनकी जानिब देखकर खीसें चमका देता हूँ और वो भी थोड़ी देर बाद मेन मुद्दे पर आ जाते हैं I कई बार तो लोग बस अपनी खस्ता हालत को आपकी अच्छी-भली कट रही ज़िन्दगी से तुलना करने के लिए ही हाल पूछेंगे I मकसद ये नहीं कि आप कैसे हैं, वो जानना ये चाहते हैं कि कहीं आपके हाल उनके हाल से बेहतर तो नहीं I “और बताइए, आपके छोटे वाले साहबज़ादे इन दिनों क्या कर रहे हैं ?” वास्तव में उन्हें आपके सपूत की तरक्क़ी में कोई इन्ट्रेस्ट नहीं है, दरअसल वो जानना चाहते हैं कि कहीं आपके सुपुत्र उनके साहबज़ादे से आगे तो नहीं निकल गए I सरकारी फाइलों की तरह सब चिथड़े उड़े सवाल और उनके वही दम-घोंटू जवाब I मैं भी किसी से अलग थोड़े ही हूँ कि ये सवाल न करूँ I अब अक्टूबर की गुलाबी हवा चल रही है तो सबके साथ मुझे भी लगेगी तो ज़रूर I
पिछले हफ़्ते बिठूर रोड पर सामने से आते हुए एक ट्रैक्टर पर लदे एक परिचित को देखते ही मैंने हाथ उठाकर पूछ लिया, “और ?” उन्होंने भी हाथ उठाकर जवाब दिया, “ठीक है!” मुझे कुछ अंदेशा हुआ I मैं बाइक मोड़कर पास लाया और फिर पूछा, “और, इधर कैसे ?” तब उन्होंने पूरी बात बताई कि उम्र के बहत्तर बसंत पार कर चुके उनके दादाजी गत रात्रि नहीं रहे, सो अंत्येष्टि करके लौट रहे हैं I बात ख़तम हुई और हम अपने-अपने रस्ते हो लिये I गंगाजी जाते हुए मैं पूरे रस्ते सोचता रहा कि उसे रोककर पूछता नहीं तो ये जान ही न पाता कि उसके दादाजी नहीं रहे क्योंकि मेरे प्रथम प्रश्न पर तो वो कह चुका था, “ठीक है !” फिर भी मेरे दिमाग में ये सवाल बना रहा कि इसमें ठीक क्या था !
“और गुरू?”... “और हीरो?”... “और बताओ?”....या फिर, “और बताओ क्या चल रहा है?” कई तरीक़े से घुमा-घुमा कर पूछते हैं लोग I शुरू में मैंने आपको बताया था एक साहब के बारे में जो अक्सर मेरे गुलगुले सोफ़े में भसकते हुए मेरा हाल पूछते हैं और मैं ख़ामोश रह जाता हूँ I पिछले महीने आए तो उस रोज़ कदाचित मैं भी भरा बैठा था I आदत के मुताबिक आते ही उन्होंने सवाल मुझ पर दाग दिया I मैंने सोचा ये हमेशा मेरा हाल पूछते रहते है और मैं चुप रहता हूँ, यह तो मेरी अशिष्टता कही जाएगी I चलिए आज हाल बता ही देता हूँ I मैं शुरू हो गया, “भाई साहब, आज आप बड़े मौक़े से आ गए, यह समझिये कि मेरे दिल ने पुकारा और आप चले आए I” बोले, “ऐसा क्या?” मैंने कहा, “अब क्या बताऊँ आपको, ये टांग खोलो तो अपनी लाज जाती है और वो टांग...” अरे! बोले, “भैया की बात ! मेरे होते ऐसा क्या हो गया कि आप इतने परेशान हुए...I” मैंने कहा, “बात परेशानी की ही है, भाई साहब ! पिछले दो महीने से पेमेन्ट नहीं मिली है; साढ़े तीन हज़ार पुन्नू पंसारी का बाक़ी है; डेढ़ हज़ार दूध वाले का देना है; मकान-मालकिन किराए की ख़ातिर छः मर्तवा देहरी पर पाँव पटक चुकी हैं; बीमे की दो किश्तें लैप्स हो चुकी हैं; डीएल इनवैलिड हो चुका था सो स्कूटर का चालान हो गया है...अभी तो हाल बताने को वार्म-अप भर हो रहा था, इससे पहले कि फुल स्विंग में आता भाई साहब मेरे हांथों से अपना हाथ छुड़ाते हुए बोले, “ओह माय गॉड, अचानक एक ज़रूरी काम याद आ गया!” मैंने कहा, “भाई साहब, बस दो मिनट रुकिए, चाय पिए बिना नहीं जाने दूंगा i” “मैंने बिल्कुल अभी-अभी चाय पी है !” कहते हुए जनाब हाथ छुड़ाकर निकल गए I उस दिन के बाद से भाई साहब मिलते हैं तो मैं उन्हें देखता हूँ और वो मुझे; लेकिन अब वो हाल नहीं पूछते हैं I