देवास में बैंक नोट मुद्रणालय (बीएनपी, देवास) के कर्मचारी दिन भर नोट छापते हैं, लेकिन बाकी देशवासियों की तरह उन्हें भी अपने दफ्तर में लगे एटीएम से खाली हाथ ही लौटना पड़ता है। बीएनपी, देवास देश के सबसे पुराने और सबसे बड़े मुद्रणालयों में शुमार है, जहां दिन-रात तीन पालियों में काम हो रहा है। देवास इस मुद्रणालय पर नाज कर रहा है, लेकिन शहर भर के खाली पड़े एटीएम यहां बाशिंदों को टीस भी दे रहे हैं।
इस मुद्रणालय की शुरुआत 1973 में हुई थी। देवास को 'देव का वास' कहा जाता है, लेकिन यहां के कर्मचारी काम में इतने फंसे हैं कि आजकल उन्हें पूजा करने का वक्त भी नहीं मिल रहा है। नोटों की छपाई के बारे में शहर में हर दिन तरह-तरह की बातें सुनने को मिलती हैं- जैसे दिन में कितने नोट छपे, सिक्योरिटी प्रिंटिंग ऐंड मिंटिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एसपीएमसीआईएल) का कौन सा आला अफसर आया और नोटों के बंडल हवाई जहाज के जरिये कितनी बार भेजे गए। लेकिन सबसे ज्यादा यही सवाल पूछा जाता है कि संकट खत्म कब होगा? लेकिन बीएनपी के इक्का-दुक्का कर्मचारी ही इस बारे में कुछ बोलते हैं। मुद्रणालय के महाप्रबंधक एम सी वेलप्पा ने कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया।
प्रबंधन सेवानिवृत्त कर्मचारियों को दोबारा काम पर लगाना चाहता है ताकि 31 दिसंबर तक काम पूरा हो सके। बीएनपी और एसपीएमआईसीएल के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक नोटों की छपाई के लिए विशेष हुनर की जरूरत होती है और इस हालत में नए लोग भर्ती करने का कोई फायदा नहीं होगा। इसीलिए बीएनपी को पुराने कर्मचारियों की जरूरत पड़ती है।
प्रबंधन ऐसे कर्मचारियों को मनाने में भी लगा है, लेकिन उम्र आड़े आ रही है। भारतीय मजदूर संघ के जिला सचिव एल एन मारू ने बताया, 'देवास और आसपास 400 सेवानिवृत्त कर्मचारी होंगे। हम उन्हें वापस आने के लिए मना सकते हैं, लेकिन 63 साल से कम उम्र के लोगों को ही दोबारा रखा जा सकता है। ऐसे में मुश्किल से 10-15 लोगों ने ही दिलचस्पी दिखाई होगी और हो सकता है कि वे काम पर लग भी गए हों।' सूत्रों का कहना है कि एसपीएमसीआईएल के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक प्रवीण गर्ग और कर्मचारियों के बीच शनिवार को एक बैठक हुई।
इस बैठक के बारे में पूछने पर मारू ने कहा, 'प्रबंधन और कर्मचारी अब एक टीम की तरह हैं। सभी कर्मचारी सहयोग कर रहे हैं और किसी से जबर्दस्ती काम नहीं कराया जा रहा है। वे छुट्टी पर जा सकते हैं या फिर छुट्टी वाले दिन अवकाश ले सकते हैं। लेकिन कोई भी कर्मचारी ऐसा नहीं कर रहा है क्योंकि वे अच्छी तरह जानते हैं कि नकदी का संकट है।' कुछ और कुरेदने पर उन्होंने कहा, 'प्रबंधन ने कर्मचारियों से कहा है कि वे पुराने कर्मचारियों को फिर से काम पर आने के लिए प्रोत्साहित करें ताकि हर दिन 500 रुपये के 1.80 करोड़ नोट छापने का लक्ष्य हासिल किया जा सके।
प्रबंधन कम से कम 260 करोड़ नोट छापना चाहता है। सितंबर में हमने वायदा किया था कि दिसंबर तक 500 रुपये के 100 करोड़ नोट छाप देंगे। लेकिन प्रबंधन इसमें इजाफा चाहता है। हमें उम्मीद है कि हम लक्ष्य हासिल कर लेंगे। हमें जल्दी ही रोजाना 1.5 करोड़ नोट छापने के लिए प्रयास करना चाहिए। इस महीने कम से कम 50 करोड़ नोट छापे जाएंगे।' कर्मचारी, मजदूर संघ के पदाधिकारी और बीएनपी के अधिकारी इसे संभव बनाने में जुटे हैं।
एसपीएमसीआईएल के अधिकारियों, मजदूर संगठनों के पदाधिकारियों और दूसरे सूत्रों के दावा किया कि बीएनपी ने शुक्रवार को 500 रुपये के 1.2 करोड़ नोट छापने का लक्ष्य हासिल कर लिया और अगर यह गति बरकरार रहती है तो स्थिति में और सुधार आएगा। उनका कहना है कि कर्मचारी सहयोग कर रहे हैं और लक्ष्य हासिल करने में एक दूसरे की मदद कर रहे हैं। कोई बाहरी आदमी मुद्रणालय में नहीं घुस सकता। कैमरा, मोबाइल, नोट और पर्स ले जाने की भी अनुमति नहीं है।
नोटों को वायु सेना के विमानों के जरिये देश भर में 4,000 से अधिक करेंसी चेस्ट में पहुंचाया जा रहा है। अधिकारियों ने कहा, 'नोटों को रेल या वैन से भेजने के बजाय इंदौर से विमानों के जरिये देश भर में भेजा जा रहा है।' प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर को 500 और 1,000 रुपये के पुराने नोटों को चलन से बाहर करने का ऐलान किया था। इसके बाद बढिय़ा काम करने वाले कर्मचारियों को इनाम भी मिला। अधिकारियों ने कहा, 'उन्होंने 500 रुपये के 1.2 करोड़ नोट छापे जो एक रिकॉर्ड है। सभी मशीनें दिन-रात काम कर रही हैं।
दिन या रात के खाने के लिए भी समय नहीं मिल रहा है। वे बारी-बारी से भोजन के लिए जा रहे हैं। हर कर्मचारी को रोजाना 250 रुपये भत्ता दिया जा रहा है और अगर रोजाना के लिए निर्धारित लक्ष्य से ज्यादा नोट छपते हैं तो हर 10 लाख पर 50 रुपये का भत्ता मिल रहा है। अगर वे 36 करोड़ के आंकड़े को पार करते हैं तो उन्हें हर 10 लाख पर 150 रुपये भत्ता मिलेगा। अगर पूर्व कर्मचारी काम पर आते हैं तो उन्हें अंतिम वेतन में से पेंशन घटाकर जितनी राशि बनती है, उतनी राशि का भुगतान किया जाएगा।' बीएनपी के सूत्रों का कहना है कि किसी भी कर्मचारी को महीने में 40,000 रुपये से कम वेतन नहीं मिल रहा है।
मारू ने कहा कि काम पर लौटने वाले पुराने कर्मचारियों को हर महीने 50,000 रुपये मिलेंगे। बीएनपी में तकनीशियन और भारतीय बैंक नोट प्रेस मजदूर संघ के एक पदाधिकारी ने कहा, 'यह एक राष्ट्रीय आवश्यकता है और हम प्रेस तथा देश के लिए प्रतिबद्ध हैं। मैं हर महीने 70,000 रुपये वेतन ले रहा हूं। इतना तो मैं 100 बीघा जमीन से भी नहीं कमा पाया हूं।'
एसपीएमसीआईएल के अधिकारियों, सूत्रों और कर्मचारियों का कहना है कि जल्द ही उन्हें उत्पादकता आधारित वेतन पैकेज दिया जाएगा। उन्होंने कहा, 'इससे कर्मचारियों के वेतन में 10,000 से 15,000 हजार रुपये और अधिकारियों के वेतन में 20,000 से 30,000 रुपये तक का इजाफा होगा।'
नोटबंदी के बारे में कर्मचारियों का कहना है कि वे केवल इतना जानते थे कि नई मुद्रा चलन में आएगी, लेकिन उन्हे पता था कि इतने बड़े पैमाने पर नोटबंदी होगी।
मारू ने कहा, 'बीएनपी का निगमीकरण 2006 में हुआ था और दो साल बाद एक विशेष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना लाई गई थी। करीब 400 कर्मचारियों ने इस विकल्प को चुना और इतने ही कर्मचारी दूसरी सरकारी नौकरियों में ले लिए गए। यहां केवल 1175 कर्मचारी ही रह गए। हम कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि हम जैसे मजदूर रातोंरात इतने अहम हो जाएंगे और हमें इतना अच्छा वेतन और प्रोत्साहन मिलेगा।'
दूसरी तरफ देवास के लोगों का कहना है कि नकदी की अदलाबदली और एटीएम के मामले में उनके शहर को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। देवास इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक खंडेलिया पूछते हैं, 'विडंबना है कि यह शहर करोड़ों नोट छापता है, लेकिन हमारे पास अपने दिहाड़ी मजदूरों को देने के लिए पैसा नहीं है।
यह स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। कम से कम बीएनपी देवास के कर्मचारियों को तो प्राथमिकता दी जानी चाहिए क्योंकि संकट की इस घड़ी में वे दिन रात काम कर रहे हैं।'बीएनपी देवास होशंगाबाद स्थिति सिक्योरिटी पेपर मिल से सिक्योरिटी पेपर लेती है और उसने अभी तक इसका आयात नहीं किया है। अधिकारियों ने कहा, 'अभी तक कागज का आयात नहीं किया गया है।' यह करेंसी नोटों के लिए स्याही भी बनाती है और नासिक को इसकी आपूर्ति करती है। सूत्रों के मुताबिक यहां 1,000 टन स्याही बनाई जाती है। स्टोरी साभार : बिजनेस स्टैण्डर्ड