" अश्विना यज्वरीरिषो द्रवत्पाणी शुभस्पती । पुरुभुजा चनस्यतम् । "
" हे विशालबाहो ! शुभ कर्मपालक, द्रुतगति से कार्य सम्पन्न करने वाले अश्विनीकुमारो ! हमारे द्वारा समर्पित हविष्यान्नों से आप भली प्रकार सन्तुष्ट हों । "
मेरे शब्दों में, मेरी कविता में : -
हे सूर्य देव के जुड़वाँ सुकुमारों !
विश्व के सर्वश्रेष्ठ घुड़सवारों
हे औषधि के ज्ञान के विद्वानों
देवों को औषधि देने वालों
ऊषाकाल के रखवालों
संध्या वंदन स्वीकारने वालों
हे संजना पुत्रों बिशालबाहो !
अग्नि माध्यम से तुम्हें समर्पित
हवि को स्वीकारो ओ सुकुमारों ।
(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"