राजन्तमध्वराणां गोपामृतस्य दीदिविम् । वर्धमानं स्वे दमे॥
" हम गृहस्थ लोग दीप्तिमान्, यज्ञों के रक्षक, सत्यवचनरूप व्रत को आलोकित करने वाले, यज्ञस्थल में वृद्धि को प्राप्त करने वाले अग्निदेव के निकट स्तुतिपूर्वक आते हैं॥ "
ईश्वर का ही रूप सत्य है,
सत्कर्मों में बृद्धि स्वरुप है,
सत्प्रयासों के रक्षक हैं,
उस आलोक में आलोकित हम हैं ।
(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"