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होतारं रत्नधातमम् - ऋग्वेद का प्रथम मंत्र

19 सितम्बर 2023

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ऋग्वेद को प्रथम वेद माना जाता है। ऋग्वेद में विभिन्न देवी–देवताओं के स्तुति संबंधित मंत्रों का संकलन है।  ऋग्वेद के मंत्रों का प्रादुर्भाव भिन्न-भिन्न समय पर हुआ। कुछ मंत्र प्राचीन हैं और कुछ आधुनिक।  अतः इनका वर्णन विषय भी भिन्न है। मंत्रों के वर्ण्य विषय को ध्यान में रखते हुए इन्हें विभिन्न मण्डलों में व्यवस्थित कर दिया गया।  ऋग्वेद की पाँच शाखाओं का उल्लेख शौनक द्वारा चरणव्यूह नामक परिशिष्ट में किया गया है । ऋग्वेद की पाँच शाखाए शाकल, वाष्कल, आश्वलायन, सांख्यायन, माण्डूकायन हैं। इन 5 शाखाओं में से आजकल की प्रचलित शाखा शाकल ही है। शाकल शाखा के अनुसार ऋग्वेद का विभाजन मण्डल, अनुवाक, सूक्त और मंत्र में किया गया है। ऋग्वेद में 10,600 मंत्र है जोकि 1028 सूक्तों में बांटे गए हैं, 1028 सूक्त 85 अनुवाकों में और 85 अनुवाक 10 मण्डलों में विभाजित हैं। ऋग्वेद को प्रथम वेद माना जाता है और प्रथम वेद के प्रथम मंत्र को होतारं रत्नधातमम् कहा जाता है।    

ॐ अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम् . होतारं रत्नधातमम्  (ऋग्वेद मंडल १, सूक्त १, मंत्र १)

इस मंत्र का भावार्थ है कि,  मैं अग्नि की स्तुति करता हूँ।   वे यज्ञ के पुरोहित , दानादि गुणों से युक्त , यज्ञ में देवों को बुलाने वाले एवं यज्ञ के फल रूपी रत्नों को धारण करने वाले हैं। 


हे अग्नि देव तुम्हें नमन हो   

हो यज्ञ के पुरोहित तुम हो 

हवि साधन दान के धन हो 

देवों के आवाहन तुम हो 

यज्ञ फल रत्न धारक भी हो 

हे अग्नि देव तुम्हें नमन हो                           


ऋग्वेद के पहले ही मंत्र में अग्नि की स्तुति है क्योंकि अग्नि के साधन से ही यज्ञ संभव है,  यज्ञ के द्वारा ही देवों को दान पहुँचाने का मार्ग बनता है और उसी मार्ग से देवों का अपने साधक के कल्याण हेतु यज्ञ के पारितोषिक प्रदान करने के लिए आगमन संभव है। 


(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"                                                    

            

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ऋग्वेद के प्रथम मंडल के प्रथम सूक्त का द्वितीय मंत्र

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हे अग्नि तुम प्रथम पग हो ( ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- प्रथम सूक्त - तृतीय श्लोक )

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हे अग्नि तुम सत्य वाहक हो ( ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- प्रथम सूक्त अर्थात अग्नि सूक्त - चतुर्थ श्लोक )

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सत्कर्मों के उत्प्रेरक ( ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- प्रथम सूक्त अर्थात अग्नि सूक्त - पंचम श्लोक )

30 सितम्बर 2023
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विराट अन्तर्यामी ईश्वर (ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- प्रथम सूक्त अर्थात अग्नि सूक्त-षष्टम श्लोक)

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यदङ्ग दाशुषे त्वमग्ने भद्रं करिष्यसि । तवेत्तत्सत्यमङ्गिरः॥ हे अग्निदेव ! आप यज्ञ करने वाले यजमान का धन, आवास, संतान एवं पशुओं की समृद्धि करके जो भी कल्याण करते हैं, वह भविष्य में किये जाने व

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ईश्वर साक्षी है - अग्नि साक्षी है (ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- प्रथम सूक्त अर्थात अग्नि सूक्त-सप्तम श्लोक)

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वायुदेव का यज्ञ पर आमंत्रण ( ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- द्वितीय सूक्त - प्रथम श्लोक )

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वायवा याहि दर्शतेमे सोमा अरंकृताः । तेषां पाहि श्रुधी हवम् ।  हे प्रियदर्शी वायुदेव ! हमारी प्रार्थना को सुनकर आप यज्ञस्थल पर आयें। आपके निमित्त सोमरस प्रस्तुत है, इसका पान करें।  हे वायुद

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वायु देव की स्तुति ( ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- द्वितीय सूक्त - द्वितीय श्लोक )

4 नवम्बर 2023
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वायु देव की वाणी की प्रशंसा ( ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- द्वितीय सूक्त - तृतीय श्लोक )

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इंद्र देव और वायु देव का यज्ञ पर आमंत्रण (ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- द्वितीय सूक्त - पञ्चम श्लोक)

4 नवम्बर 2023
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"  वायविन्द्रश्च चेतथः सुतानां वाजिनीवसू । तावा यातमुप द्रवत् । " हे वायुदेव ! हे इन्द्रदेव ! आप दोनों अन्नादि पदार्थों और धन से परिपूर्ण हैं एवं अभिषुत सोमरस की विशेषता को जानते हैं। अत: आप दो

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आओ पधारो देव (ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- द्वितीय सूक्त - षष्ठम श्लोक)

7 नवम्बर 2023
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मित्रावरुण (ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- द्वितीय सूक्त - नवम श्लोक)

7 नवम्बर 2023
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मेरी काव्य पंक्तियों में ऋग्वेद के प्रथम मण्डल का द्वितीय सूक्त

7 नवम्बर 2023
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हे वायुदेव तुम सुन्दर मन तुम सुन्दर मन, तुम सुन्दर तन सुनो प्रार्थना, हम करें हवन इस यज्ञ हेतु है अभिनन्दन । भाव भरे घट रखे  सोमरस तुम लाते बसंत, तुम लाते पावस प्रेम भरा ये  निमंत्रण

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देवों के चिकित्सक अश्वनी कुमार द्वय ( ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- तृतीय सूक्त - प्रथम श्लोक )

24 दिसम्बर 2023
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