" इन्द्रवायू इमे सुता उप प्रयोभिरा गतम् । इन्दवो वामुशन्ति हि। "
हे इन्द्रदेव ! हे वायुदेव ! यह सोमरस आपके लिये अभिषुत किया (निचोड़ा) गया है। आप अन्नादि पदार्थों के साथ यहाँ पधारें, क्योंकि यह सोमरस आप दोनों की कामना करता है।
हे इंद्रदेव हे !
हे वायुदेव हे !
यह सोमरस समर्पित
आप दोनों को है ।
किया आसवित
बड़े जतन से
है आपके हित ही
रखा संकलित संरक्षित ।
तुम्हें पुकारे व्यग्र बहुत है
तुम्हारे लिए ही तो संरक्षित है,
अन्न आदि सब लेकर आओ
सोमरस बड़ा ही आनंदित है ।
(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "