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मेरी काव्य पंक्तियों में ऋग्वेद के प्रथम मण्डल का प्रथम सूक्त

15 अक्टूबर 2023

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हे अग्नि देव तुम्हें नमन हो

हो यज्ञ के पुरोहित तुम हो

हवि साधन दान के धन हो

देवों के आवाहन तुम हो

यज्ञ फल रत्न धारक भी हो

हे अग्नि देव तुम्हें नमन हो

ज्ञानार्जन करते वो ऋषि हैं

ज्ञान दान करते वो ऋषि हैं

बने उदाहरण आगे चलते

प्रेरणास्पद पथ सत्य का धरते

दीपक ज्ञान जलाएं वो ऋषि हैं

वो विद्युत जगती जिस ह्रदय

अन्वेषण को जो  तत्पर है

पूर्व ज्ञान को कर प्रयोग जो

कुछ खोजे नवीन वो ऋषि है

अग्नि उपासक ईश् उपासक

अर्हक दोनों,  दोनों ही ऋषि हैं

अग्नि उपासक हैं वो ऋषि हैं

सद्कर्मों में सहायक हो

हे अग्नि ! ,  हे पावक हो ! ,

निश्चय करें तो अटल हो

जो अभीष्ट का साधक हो ।

हे निश्चय दृढ!  तुम्ही अनल हो

तुमसे ही अचल सचल हो,

तभी पूजते आदि आधुनिक

तुम देवों का आवाहन हो ।

प्रथम ऊर्जा वैश्वानर हो,

चलने पर पहला पग हो,

मार्ग कठिन या रहे असंभव

तुमसे हो तब ही तो संभव हो ।

पहले तो दृढ निश्चय हो,

फिर कामना प्रबल हो,

लक्ष्य रखो सत्कार्य यदि तो

निश्चित ही जय हो, जय हो ।

हे अग्नि तुम ईश्वर सम हो,

बल्कि तुम्हीं तो वो ईश्वर हो,

करो प्रकाशित वो गुण तुमसे

तुम्हीं दिव्यता का सुख हो ।

सत्कार्य करें तो  तुम प्रेरक हो,

सभी कर्मों के उत्प्रेरक भी हो,

सत्कर्मों से ज्ञान की युति जब हो,

असंभव भी तब तो संभव हो ।

हे अग्नि रूप ईश्वर  ये सुन लो,

न्याय,  दया,  कल्याण, मित्र हो,

यज्ञ प्रयोजन भी तो तुम हो,

और यज्ञ के फल भी तुम हो ।

जो कल्याण करो इस जग का,

धारित ये जग कर अन्तर्यामी हो,

इसीलिए जो भी सत्कृत फल हो,

हे अग्नि तुम ही लाभान्वित हो ।

एक नहीं, सत-सहस्त्र नेत्र हैं,

कोटि-कोटि कर्मों के साक्ष्य हैं,

अग्नि साक्षी है तभी तो  पवित्रतम,

सत्कार्यों से भटके न लक्ष्य हैं ।

ईश्वर का ही रूप सत्य है,

सत्कर्मों में बृद्धि स्वरुप है,

सत्प्रयासों के रक्षक हैं,

उस आलोक में आलोकित हम हैं ।

हे जगतपिता, रहो साथ हमारे

जैसे हो तुम पिता हमारे,

पितृ-सदृश्य ही कल्याण करो तुम,

हर पल, हर दिन साथ रहो तुम,

सद्गुणों से हों ओत-प्रोत हम,

सत्कर्मों की राह चलें हम,

उँगली पकड़ो पिता के जैसे,

कहो भला फिर भटकें कैसे,

मैं प्यासा यदि तुम पनघट हो,

तुम हरपल यदि मेरे निकट हो।

(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"

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रचनाएँ
अस्तित्व (स्व:अन्वेषण)
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होतारं रत्नधातमम् - ऋग्वेद का प्रथम मंत्र

19 सितम्बर 2023
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ऋग्वेद को प्रथम वेद माना जाता है। ऋग्वेद में विभिन्न देवी–देवताओं के स्तुति संबंधित मंत्रों का संकलन है।  ऋग्वेद के मंत्रों का प्रादुर्भाव भिन्न-भिन्न समय पर हुआ। कुछ मंत्र प्राचीन हैं और कुछ आध

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ऋग्वेद के प्रथम मंडल के प्रथम सूक्त का द्वितीय मंत्र

19 सितम्बर 2023
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अ॒ग्निः पूर्वे॑भि॒र्ऋषि॑भि॒रीड्यो॒ नूत॑नैरु॒त। स दे॒वाँ एह व॑क्षति॥  ( ऋग्वेद मंडल १, सूक्त १, मंत्र २ ) प्रथम मंत्र में अग्नि की स्तुति क्यों करनी चाहिए, यह बताया गया था। द्वितीय मंत्र में उक्

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हे अग्नि तुम प्रथम पग हो ( ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- प्रथम सूक्त - तृतीय श्लोक )

30 सितम्बर 2023
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अग्निना  रयिम्श्र्न्वत्पोष्मेव दिवेदिवे ।  यशसं  वीरवत्तमम्  ॥  " अर्थात् जो अग्निदेव  प्राचीन ऋषियों द्वारा प्रशंसित हैं और जो आधुनिक काल में भी ऋषिकल्प वेदज्ञ विद्वानों द्वारा स्तुत्य हैं,

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हे अग्नि तुम सत्य वाहक हो ( ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- प्रथम सूक्त अर्थात अग्नि सूक्त - चतुर्थ श्लोक )

30 सितम्बर 2023
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अग्ने यं यज्ञमध्वरं विश्वतः परिभूरसि । स इद्देवेषु गच्छति॥ " हे अग्निदेव ! आप सबका रक्षण करने में समर्थ हैं । आप जिस अध्वर (हिंसारहित यज्ञ) को सभी ओर से आवृत किये रहते हैं, वही यज्ञ देवताओं तक

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सत्कर्मों के उत्प्रेरक ( ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- प्रथम सूक्त अर्थात अग्नि सूक्त - पंचम श्लोक )

30 सितम्बर 2023
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अग्निर्होता कविक्रतुः सत्यश्चित्रश्रवस्तमः । देवो देवेभिरा गमत्॥ " हे अग्निदेव ! आप हवि -प्रदाता, ज्ञान और कर्म की संयुक्त शक्ति के प्रेरक, सत्यरूप एवं विलक्षण रूप युक्त हैं । आप देवों के साथ

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विराट अन्तर्यामी ईश्वर (ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- प्रथम सूक्त अर्थात अग्नि सूक्त-षष्टम श्लोक)

1 अक्टूबर 2023
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यदङ्ग दाशुषे त्वमग्ने भद्रं करिष्यसि । तवेत्तत्सत्यमङ्गिरः॥ हे अग्निदेव ! आप यज्ञ करने वाले यजमान का धन, आवास, संतान एवं पशुओं की समृद्धि करके जो भी कल्याण करते हैं, वह भविष्य में किये जाने व

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ईश्वर साक्षी है - अग्नि साक्षी है (ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- प्रथम सूक्त अर्थात अग्नि सूक्त-सप्तम श्लोक)

3 अक्टूबर 2023
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" उप त्वाग्ने दिवेदिवे दोषावस्तर्धिया वयम् । नमो भरन्त एमसि "  " हे जाज्वल्यमान अग्निदेव ! हम आपके सच्चे उपासक हैं । श्रेष्ठ बुद्धि द्वारा आपकी स्तुति करते हैं और दिन-रात, आपका सतत गुणगान करत

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सत्य स्वरुप (ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- प्रथम सूक्त अर्थात अग्नि सूक्त-अष्टम श्लोक)

4 अक्टूबर 2023
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राजन्तमध्वराणां गोपामृतस्य दीदिविम् । वर्धमानं स्वे दमे॥ "  हम गृहस्थ लोग दीप्तिमान्, यज्ञों के रक्षक, सत्यवचनरूप व्रत को आलोकित करने वाले, यज्ञस्थल में वृद्धि को प्राप्त करने वाले अग्निदेव के नि

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पिता स्वरुप (ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- प्रथम सूक्त अर्थात अग्नि सूक्त-नवम् श्लोक)

5 अक्टूबर 2023
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स नः पितेव सूनवेऽग्ने सूपायनो भव । सचस्वा नः स्वस्तये॥ हे गार्हपत्य अग्ने ! जिस प्रकार पुत्र को पिता (बिना बाधा के) सहज ही प्राप्त होता है, उसी प्रकार आप भी (हम यजमानों के लिये) बाधारहित होकर

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मेरी काव्य पंक्तियों में ऋग्वेद के प्रथम मण्डल का प्रथम सूक्त

15 अक्टूबर 2023
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हे अग्नि देव तुम्हें नमन हो हो यज्ञ के पुरोहित तुम हो हवि साधन दान के धन हो देवों के आवाहन तुम हो यज्ञ फल रत्न धारक भी हो हे अग्नि देव तुम्हें नमन हो ज्ञानार्जन करते वो ऋषि हैं ज्ञान दान

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वायुदेव का यज्ञ पर आमंत्रण ( ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- द्वितीय सूक्त - प्रथम श्लोक )

4 नवम्बर 2023
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वायवा याहि दर्शतेमे सोमा अरंकृताः । तेषां पाहि श्रुधी हवम् ।  हे प्रियदर्शी वायुदेव ! हमारी प्रार्थना को सुनकर आप यज्ञस्थल पर आयें। आपके निमित्त सोमरस प्रस्तुत है, इसका पान करें।  हे वायुद

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वायु देव की स्तुति ( ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- द्वितीय सूक्त - द्वितीय श्लोक )

4 नवम्बर 2023
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वाय उक्थेभिर्जरन्ते त्वामच्छा जरितारः । सुतसोमा अहर्विदः ।  हे वायुदेव ! सोमरस तैयार करके रखने वाले, उसके गुणों को जानने वाले स्तोतागण स्तोत्रों से आपकी उत्तम प्रकार से स्तुति करते हैं। 

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वायु देव की वाणी की प्रशंसा ( ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- द्वितीय सूक्त - तृतीय श्लोक )

4 नवम्बर 2023
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"  वायो तव प्रपृञ्चती धेना जिगाति दाशुषे । उरूची सोमपीतये । "   हे वायुदेव ! आपकी प्रभावोत्पादक वाणी, सोमयाग करने वाले सभी यजमानों की प्रशंसा करती हुई एवं सोमरस का विशेष गुणगान करती हुई, सो

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इन्द्रदेव और वायुदेव का आवाहन ( ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- द्वितीय सूक्त - चतुर्थ श्लोक )

4 नवम्बर 2023
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"  इन्द्रवायू इमे सुता उप प्रयोभिरा गतम् । इन्दवो वामुशन्ति हि। "   हे इन्द्रदेव ! हे वायुदेव ! यह सोमरस आपके लिये अभिषुत किया (निचोड़ा) गया है। आप अन्नादि पदार्थों के साथ यहाँ पधारें, क्यो

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इंद्र देव और वायु देव का यज्ञ पर आमंत्रण (ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- द्वितीय सूक्त - पञ्चम श्लोक)

4 नवम्बर 2023
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"  वायविन्द्रश्च चेतथः सुतानां वाजिनीवसू । तावा यातमुप द्रवत् । " हे वायुदेव ! हे इन्द्रदेव ! आप दोनों अन्नादि पदार्थों और धन से परिपूर्ण हैं एवं अभिषुत सोमरस की विशेषता को जानते हैं। अत: आप दो

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आओ पधारो देव (ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- द्वितीय सूक्त - षष्ठम श्लोक)

7 नवम्बर 2023
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"  वायविन्द्रश्च सुन्वत आ यातमुप निष्कृतम् । मक्ष्वित्था धिया नरा ।  "  हे वायुदेव ! हे इन्द्रदेव ! आप दोनों बड़े सामर्थ्यशाली हैं। आप यजमान द्वारा बुद्धिपूर्वक निष्पादित सोम के पास अति श

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प्रकृति नियंता शत्रु हन्ता (ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- द्वितीय सूक्त - सप्तम श्लोक)

7 नवम्बर 2023
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"  मित्रं हुवे पूतदक्षं वरुणं च रिशादसम् । धियं घृताचीं साधन्ता ।  " घृत के समान प्राणप्रद वृष्टि-सम्पन्न कराने वाले मित्र और वरुण देवों का हम आवाहन करते हैं। मित्र हमें बलशाली बनायें तथा वरुणदेव

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सत्य यज्ञ (ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- द्वितीय सूक्त - अष्टम श्लोक)

7 नवम्बर 2023
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"  ऋतेन मित्रावरुणावृतावृधावृतस्पृशा । क्रतुं बृहन्तमाशाथे ।  "   सत्य को फलितार्थ करने वाले सत्ययज्ञ के पुष्टिकारक देव मित्रावरुणो ! आप दोनों हमारे पुण्यदायी कार्यों (प्रवर्त्तमान सोमयाग

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मित्रावरुण (ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- द्वितीय सूक्त - नवम श्लोक)

7 नवम्बर 2023
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"  कवीनोमित्रावरुणा तुविजाता उरुक्षया । दक्षं दधाते अपसम् । "   अनेक कर्मों को सम्पन्न कराने वाले विवेकशील तथा अनेक स्थलों में निवास करने वाले मित्रावरुण हमारी क्षमताओं और कार्यों को पुष्

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मेरी काव्य पंक्तियों में ऋग्वेद के प्रथम मण्डल का द्वितीय सूक्त

7 नवम्बर 2023
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हे वायुदेव तुम सुन्दर मन तुम सुन्दर मन, तुम सुन्दर तन सुनो प्रार्थना, हम करें हवन इस यज्ञ हेतु है अभिनन्दन । भाव भरे घट रखे  सोमरस तुम लाते बसंत, तुम लाते पावस प्रेम भरा ये  निमंत्रण

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देवों के चिकित्सक अश्वनी कुमार द्वय ( ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- तृतीय सूक्त - प्रथम श्लोक )

24 दिसम्बर 2023
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" अश्विना यज्वरीरिषो द्रवत्पाणी शुभस्पती ।  पुरुभुजा चनस्यतम् । "   "  हे विशालबाहो ! शुभ कर्मपालक, द्रुतगति से कार्य सम्पन्न करने वाले अश्विनीकुमारो ! हमारे द्वारा समर्पित हविष्यान्नों से आप

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