एक बार प्रसिद्द वैदिक अन्वेषक पंडित भगवत दत्त रिसर्च स्कॉलर जी ने महान त्यागी महात्मा हंसराज जी से पूछा की क्या कारण है मुग़लों का राज विशेष रूप से आगरा-दिल्ली में केंद्रित होने पर भी सीमांत नार्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रोविन्स, बलूचिस्तान, अफगानिस्तान आदि जो वहां से अत्यंत दूरी पर थे। परन्तु फिर भी सीमांत प्रांत में रहने वाले हिन्दू अधिक संख्या में मुसलमान बन गए जबकि मुग़लों की नाक के नीचे रहने वाले आगरा-मथुरा के हिन्दू न केवल चोटी-जनेऊ और अपने धर्म ग्रंथों की रक्षा करते रहे अपितु समय समय पर मुग़लों का प्रतिरोध भी करते रहे और अंत तक हिन्दू ही बने रहे? महात्मा हंसराज ने गंभीर होते हुआ इस प्रश्न का उत्तर दिया,"इसका मूल कारण उत्तर भारत के हिन्दुओं का पवित्र आचरण था। एक अल्प शिक्षित हिन्दू भी सदाचारी, शाकाहारी, संयमी, धार्मिक, आस्तिक, ज्ञान ी लोगों का मान करने वाला, दानी, ईश्वर विश्वासी,पाप-पुण्य में भेद करने वाला और सद्विचार रखने वाला था। उन्हें अपना सर कटवाना मंजूर था मगर चोटी कटवानी मंजूर नहीं थी। उन्होंने जजिया देना मंजूर किया मगर इस्लाम स्वीकार करना मंजूर नहीं किया। उन्होंने पलायन करना मंजूर किया मगर मस्जिद जाना मंजूर नहीं किया। उन्होंने वेद, दर्शन और गीता का पाठ करने के लिए द्वितीय श्रेणी का नागरिक बनना स्वीकार किया मगर क़ुरान पढ़ना स्वीकार नहीं किया। उन्होंने गोरक्षा के लिए प्राण न्योछावर करना स्वीकार किया मगर गोमांस खाना स्वीकार नहीं किया। उन्होंने अपनी बेटियों को पैदा होते ही न चाहते हुए भी उनका बाल विवाह करना स्वीकार किया मगर मुसलमानों के हरम में भेजना अस्वीकार किया।"
यही सदाचारी श्रेष्ठ आचरण जिसे हम "High Thinking Simple Living" के रूप में जानते हैं उनके जीवन का अभिन्न अंग था। यही सदाचार मुग़लों से धर्म रक्षा करने का उनका प्रमुख साधन था। सीमांत प्रान्त वासियों ने इन उच्च आदर्शों का उतनी तन्मयता से पालन नहीं किया। इसलिए उनका बड़ी संख्या में धर्म परिवर्तन हो गया।
मित्रों! अपने चारों ओर देखिये। पश्चिमी सभ्यता और आधुनिकता ने नाम पर आज हिन्दुओं को वर्तमान पीढ़ी को व्यभिचारी, नास्तिक, मांसाहारी, अधार्मिक, कुतर्की, शराबी, कबाबी, ईश्वर अविश्वासी, पाखंडी आदि बनाया जा रहा हैं। 90% से अधिक हिन्दू युवाओं की धर्म रक्षा के स्थान पर ऐश, लड़कियों, फैशन, शराब, सैर सपाटे में रूचि हैं। इसीलिए चाहे गौ कटे, चाहे लव जिहाद हो, चाहे किसी हिन्दू का धर्म परिवर्तन हो। इन्हें कोई अंतर नहीं पड़ता। ऐसे कमज़ोर कन्धों पर हिन्दू कितने दिन अपने धर्म की रक्षा कर पायेगा? इसलिए धर्मरक्षक बनने के लिए
सदाचारी बनो। संयमी बनो। तभी प्रभावशाली धर्म रक्षक बन सकोगे।
वेदों में सदाचारी जीवन जीने के लिए ऋग्वेद 10/5/6 में ऋषियों ने सात अमर्यादाएं बताई हैं। उनमे से जो एक को भी प्राप्त होता हैं, वह पापी है। ये अमर्यादाएँ हैं चोरी करना, व्यभिचार करना, श्रेष्ठ जनों की हत्या करना, भ्रूण हत्या करना, सुरापान करना, दुष्ट कर्म को बार बार करना और पाप करने के बाद छिपाने के लिए झूठ बोलना।
वेदों की इस महान शिक्षा का पालन कर ही आप धर्म रक्षक बन सकते है।
(यह प्रेरक प्रसंग धर्मरक्षा के लिए जीवन आहूत करने वाले वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप, गुरु गोबिंद सिंह, बंदा बैरागी, वीर हकीकत राय, वीर गोकुला जाट,स्वामी दयानंद, पंडित लेख राम, स्वामी श्रद्धानन्द, भक्त फूल सिंह सरीखे ज्ञात एवं अज्ञात उन हजारों महान आत्माओं को समर्पित हैं जिनका बलिदान आज भी हमें प्रेरणा दे रहा हैं)