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मैं एक धर्म गुरु हूंमुझ से बढ़ा धर्म गुरु न हुआ न होगामैं एक भक्त हूंमुझ से बढ़ा भक्त न कोई हुआ न होगामैं एक स्वतंत्रता सेनानी हूंमुझ से बढ़ा स्वतंत्रता सेनानी न हुआ न होगामैं एक क्रांतिकारी हूंमुझ से बढ़ा क्रांतिकारी न हुआ न होगामैं एक इतिहासकार हूंमुझ से बढ़ा इतिहासकार न हुआ न होगामैं एक साहित्यका

जब भी कोई नई चीज बाजार में आती है तो सभी का मन ललचाता है कि वह उसे मिल जाए। रेडियो भी जब बाजार में आया तो नए-नए कार्यक्रम सुनकर लोग उसे अपने घर लेकर आना चाहते थे। एक व्यकित ने एक डिब्बेनुमा वस्तु से गाने बजते देखे, पैसे जेब में थे ही और झट से उसे खरीद लिया। जगह-जगह उसे अपने साथ लेकर जा रहा था। जब खे

जिंदगी जियो ऐसे की आखरी दिन हो,और कुछ करो तो ऐसे जैसे बरसों जिन है   ||

अपने इस लेख को उक्त शीर्षक देते समंय मैं स्वयं हैरान हुं कि आखिर मेरे सामने यह नौबत क्यों आई और मैं इस शीर्षक से यह लेख क्यों लिख रहा हुं । वास्तव में मैं पूर्व में आयोजित 9 विश्व हिंदी सम्मेलनो के संकल्पों के अनुसार 10 जनवरी, 2015 को मनाए गए विश्व हिंदी दिवस से लेकर आज तक कुछ टीवी चैनलों और समाचार

धुन में अपनी हो मगनझुककर पार्क में तोड़ रही थी बथुआ  वोगरीब थी इसलिए जरुरत भी थी उसकोपढ़ाकू विद्यार्थियों का अड्डा था पार्क वोअल्हड़ उमर ऐसी कि चुड़ैल संग भी हो लें वोऐसा ही एक विद्यार्थी पीछे-पीछे उसके लिया होपार्क से निकलते वक्त कर दिया बॉय-बॉय उसकोनतीजा बन ग्रहण अगले दिन लगा उसकी शरारत कोबनठन कर

ओड़िशा के पुरी में समुद्रतट पर स्थित जगन्नाथ मंदिर एक हिंदु मंदिर है जो श्रीकृष्ण (जगन्नाथ)को समर्पित है । जगन्नाथ का अर्थ जगत के स्वामी से होता है । इस मंदिर को हिंदुओं के चार धामों में से एक माना जाता है । यह मंदिर वैष्णव परंपराओं और संत रामानंद से जुड़ा हुआ है । सन 1198 में ओड़िया शासक अनंग भीमदे

नन्हां और प्यारा जीव हैं चींटीयांरानी, फौजी और श्रमिक श्रेणी की होती चींटीयांप्रजनन क्षमता रखती केवल रानी चींटीयांलंबा जीवन भोगती हैं मादा चींटीयांहाथी जैसे जीव के लिए भी खतरनाक हैं चींटीयांमानव की खलनायक बनतीं जब काटती चींटीयांभोजन में घुसकर उसे करतीं खराब चींटीयांजानवरों और मानवों को चट कर जातीं म

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दर्पण को दोष लगाने से सूरत नहीं बदल जाती है !तुम मत पूजो घर की तुलसी !तुम मत मानों ,कोई देवता ! बहती नदिया को छलकर तुम ,भ्रम पाले ना ,कोई देखता !छुप-छुपकर ,चोरी करने सेसीरत नहीं बदल जाती है !चुगली करतीं हैं ख़ुद आँखें !कितना पाप लिए जागे हो !सीढ़ी पर हो झुकते लेकिन ,विश्वासों के तोड़े धागे !अर्चन को

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