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मेरी जिन्दगी का एक सच।

11 नवम्बर 2022

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उजालो मे मुझको अंधेरो ने छुआ हैं,
पानी मे  से आग जलने लगी हैं,
यह कौन  हमसफर हुआ हैं,कही मेरा,
जिंदगी हाथ से अब फिसलने लगी हैं।।

निराश, हताश कभी होता नही था,
यह मौसम  पतझर का मैं बोता नही था,
किस  कदर कोई  जीवन  मे  मेरे हैं आया,
कि खुद  से ही नफरत सी होने लगी हैं।।

लुभाती थी मुझको जो मस्त सी जिन्दगानी ,
क्यूं,अब बोझ मेरा बढाने लगी हैं,
क्यू इक गलत मेरे फैसले से,सभी की
खयालात पे गुरब्बत सी आने लगी हैं।।

वो मां बेबस सी जब मुझे भांपती हैं,
बिन शोर किए  दुख मेरे बांटती हैं,
मै होता हूं खामोश, कुछ  कहता नही हूं,
वो चुपचाप मेरे कांटे आ बीनती हैं।।

चुभ रहे होते हैं जब पांव मेरो के छाले,
मां होती हैं अंग संग, लेती हैं संभाले,
पर ऑचल उसका ठंडक, देता उतना नही हैं,
जितनी गर्मी फफोलो की, जलाती रही हैं।।

वो बेटा जो खोया ममत्व मां का था ,
मां को झांकता, पर मां को न जानता था,
सौतेलेपन का गुनहगार बना वो,देखो कैसे,
जो लाया था चुनकर मेरे संग जा के वैसे।।

ममता होती हैं क्या, वो जान पाएगा कभी न,
बेबस, गम का मारा,मां होकर रहा बिन  मां।।
जो मिलना था स्नेह, वो खा रहा खे,है,
जान पाएगा न ,पन्ना धाय का मोल वह।।

ये कैसी किस्मत  की हुई है रुसवाई,
की ममता शरम,और  बड़ी  हुई बेहयाई,
सब कर किनारे,लगा दिया मुंह पे ताला,
घर मेरा ही नही,पहले की भी नही संभाला।।

बस फोन और बिस्तर  का ही सब संग हैं,
इस घर की मर्यादा, कर दी गई  दफन हैं,
वो कौन  जिम्मेदार हैं ,इस  बुरी हालत का,
मेरा भाग्य, या कानून, या परिवार,
उस बद का।।

किए  जाते है सौदे, खुलेआम सारे,
जो करो बात  कोई  तो बिलबिला जाते सारे,
बस हक हहकूक कानून  और शौक की फिक्र हैं,
है कर्तव्य भी कोई  ,न उसका जिक्र हैं।।

हुई  मौत  बहन की,थी मातम था छाया,
जब शादी पे भाई की उसने मुझे बुलाया,
घर मे था शोक,हर कोई  दुखी था,
पर इस नार का  यह भी तो एक सुख ही था।।

देखता हूं मैं बच्चे को मिलती कैसे रोटी,
वो बेमन,बेईज्जत से ग्रास नफरत की,
जो कह दो जरा कुछ, तो झगडे  संभालो,
यूं ही नही बांझ,बांझपन का रखा बोझ।

ईश्वर भी यह जानता हैं वो सब  गोई,
ममता हीन नार हैं ममत्व नही कोई,
तभी तो वो दो घर की होकर भी हुई न,
किसी घर की ,बस लगाती कीमत कोई  न।।

बस शौक अपने की खातिर,
कर बर्बाद  घर रही हैं,
वर्तमान  दिखता हैं ,
भविष्य  लिख रही हैं।।

जन्म इस सफर भले मिले इसे कोई फल न,
पर कभी साथ जुडे न ये ,ईश्वर किसी संग न,
जिस संग  जुड़ेगी, बर्बाद  ही करेगी,
मै तो हुआ ही,करु किसी और का ,
घर  भी,क्यू ही।।

प्रारब्ध था हमारा बड़ा  बुरा वैसे,
किए  न.थे करम कोई, भले से वैसे,
जो भुगत रहा हूं, सो ही कह भी रहा हूं,
जान ले सारी दुनियां, जो मै सह रहा.हूं।।

यह करमो का फल हैं,किए मेरे पहले,
अब मिल रहा फल है,
जो किए थे जन्म पहले।।
उसी बोई फसल को मैं काट अब रहा हूं,
दिया होगा दुख, जो तुम  संग बांट रहा हूं।।

मैं नफरत की उसकी के घूट पी रहा हूं,
जिंदा हूं दिखता, पर अंदर से मैं मरा हूं।।

(बाकी फिर  कभी।)
क्रमशः।
संदीप  शर्मा।।
{किसी अजीज ने पूछा तुम्हे यह निजता को सबसे कहते शरम नही आएगी, तो मेरा जवाब हैं,
जब उसे करते नही आ रही,तो मुझे कहने मे क्यू आएगी।।}


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रचनाएँ
मेरी अपने जीवन की कविता।।
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यह कविता संग्रह मैंअपने जीवन के कुछ पलो को जो खट्टे अनुभव लिए हैं,को काव्यात्मक अंदाज मे लिखूगा।जो निजता को सार्वजनिकव सामाजिकतो करेगा पर एक चरित्र को उजागर भी करेगा जिससे मैं खिन्न हूं। ईश्वर मुझे माफ करे व मेरा साथ दे व मुझे हर गलती से रोके। लेखक संदीप शर्मा।।
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मेरी जिन्दगी का एक सच।

11 नवम्बर 2022
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उजालो मे मुझको अंधेरो ने छुआ हैं, पानी मे से आग जलने लगी हैं, यह कौन हमसफर हुआ हैं,कही मेरा, जिंदगी हाथ से अब फिसलने लगी हैं।। निराश, हताश कभी होता नही था, यह मौसम पतझर का मैं बोता न

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मेरी जिन्दगी का एक सच।

11 नवम्बर 2022
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उजालो मे मुझको अंधेरो ने छुआ हैं, पानी मे से आग जलने लगी हैं, यह कौन हमसफर हुआ हैं,कही मेरा, जिंदगी हाथ से अब फिसलने लगी हैं।। निराश, हताश कभी होता नही था, यह मौसम पतझर का मैं बोता न

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किताब ए जिंदगी।क्या सिर्फ कहानी को....

12 नवम्बर 2022
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किताब ए जिंदगी, " , क्या तेरी कहानी, क्यू मै तेरा ,पात्र बना, बिन वजह, कहा ,मै आ, उलझा,? 'बद',, 'नाम ', "बदनाम" बना समझ न आता जानी।। इक , इक वर्का,जब ,जब, पलटा, गज़ल ,कविता की ही बात

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रसूखदार।

12 नवम्बर 2022
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एक जहर की मुझे तलाश थी,मुझे दर्द से बड़ी ही आस थी,जानता था ,इतना पर मै ,मगर,जो खुशियां मांग रखूंगा,तो शहर आएगा, मेरे पास मे,मै कहा तक सब समेटूगा,सो दर्द को गले लगा लिया,क्यूंकि सुकून

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साजिश ए इश्क।

14 नवम्बर 2022
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साजिश ए इश्क, की हर किसी ने है झेली, चोटिल सब हैं यहा, तू ही नही अकेली।। रखी जो इश्क की , किसी ने भी ख्वाहिश कोई साजिश से उसकी , घायल हुआ वो ही ।। साजिश ए इश्क की, हद से ज्यादा हैं। बेहद

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विवाह, पुनर्विवाह पर विचार।

17 नवम्बर 2022
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विवाह एक संस्थान हैं,यह पवित्र संबंध मात्र दो परिवार का नही दो कुटुंब का हैं।जिसमे सबसे बड़ी अहमियत नर व नारी की हैं जो इसके आधार हैं। "पति पत्नि "जिन्हे उस दिन दुल

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गुफ्तगू दिल से।

19 नवम्बर 2022
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रफ्ता रफ्ता,हौले हौले, दिल से धीमी आवाज थी आई। क्यूं रे पगले, खुद ही रो ले, क्या लगता, किसी को , न पडा सुनाई।। माना रोती, तेरी ऑखे । कानो को न देता सुनाई, पर मैं तो दिल हूं तेरा।। देख सुन

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प्रेम की परीक्षा।

2 दिसम्बर 2022
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परीक्षा मैने जब जब दी,तब तब हुआ पास हूं। प्रेम की परीक्षा मे,बस न हुआ पास हूं।।देखा मैने इर्दगिर्द,लगा जो मेला था,जाने क्यूं लगा जैसे ,मैं ही वहा अकेला था।।मिलना था, यहा से प्या

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स्पर्श।

11 फरवरी 2024
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