आदरणीय गब्बर सिंह जी अपने जमाने के मशहूर डाकू थे। वे अपने गिरोह के सरदार थे। वे अपने डकैति वाले व्यवसाय में पूर्ण रूपेण समर्पित थे। वे अपने गिरोह के "गुडविल" और "ब्रांड" के बाजार मूल्य (Market Value) का पूरा ख्याल रखते थे। और उनके बारे में जितनी बातें कुख्यात थी, उसे वो अपने डकैती व्यवसाय में किये गए पूर्ण समर्पण का पारितोषिक मानते थे। उनके गिरोह में कालिया और साम्भा जैसे अत्यधिक कठिन परिश्रम करने वाले अनुयायी अर्थात उनके पश्चात उस गिरोह कि गद्दी को सम्हालने वाले डकैत शामिल थे।
कालिया के नेतृत्व में गिरोह के कुछ डाकू गांव वालों से Tax वसूलते थे जो की अनाज और मुद्रा दोनों हि रूपों में हुआ करता था। उनके द्वारा फैलाये गए आतंक का हिसाब किताब " साम्बा के पास होता था, वो दिन रात इस प्रयास में रहता था कि सरकार गब्बर सिंह के आतंक की सही कीमत तय करती रहे।
खैर सरकार ने गब्बर सिंह को जिंदा या मुर्दा पकड़वाने के लिए ₹ ५००००/- का पारितोषिक देने की घोषणा कर रखी थी, जो गब्बर सिंह के ब्रांड वैल्यू को दर्शाता था। आदरणीय गब्बर सिंह जी स्वय इस तथ्य से अवगत थे और अपने डकैत साथियों में जोश भरने के लिए वो कहा करते थे कि सरकार ने उन पर ₹ ५००००/- का इनाम इसीलिए रखा है " कि उनके गिरोह के पते से ५०-५० कोस कि दूर पर जब बच्चा रात को रोता है, तब उसकी माँ कहती है, बेटे सो जा, सो जा नहीं तो गब्बर सिंह आ जाएगा।"
जब गांव के ठाकुर के दो आदमियों जो पेशे से चोर थे, कालिया और उसके दो साथियों को गांव से भगा देते हैं, तो गब्बर सिंह को बड़ा आघात लगता है। वो सोचते हैं कि दो चोर उनके तीन डकैतों पर यदि भारी पड़ गए तो उनके ब्रांड वैल्यू का क्या होगा और फिर गब्बर सिंह कालिया सहित दो डकैतों को पहले हँसने का मौका देते हैं और फिर उन्हें गोली मारते हुए कहते हैं " जो डर गया, समझो मर गया"।
माननीय (वर्तमान)मुख्यमंत्री:-
अब आ जाते हैं, बिहार के मुख्यमंत्री पर, बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री स्वय को मुख्यमंत्री बनाये रखने के लिए किसी भी पार्टी की गोद में जाकर बैठ जाने से परहेज नहीं करते। इनका भी अपना ब्रांड वैल्यू है। पिछले १५ वर्षो से लगातार वो बिहार के मुख्यमंत्री है। पिछले चुनाव में " ये उनका आखिरी चुनाव है" ये कहकर बिहार की जनता के बीच गए थे और दुनिया की सबसे बड़ी राजनितिक पार्टी भाजपा के सहयोग से तीसरी बार मुख्यमंत्री बने। अब इन्होने बिहार में पूर्ण रूप से " शराब बंदी" कि घोषणा करके उसे कार्यान्वित कर दिया।
अब मुख्यमंत्री जी अपने ब्रांड वैल्यू को चमकाने में इतने व्यस्त और मौकापरस्त हो गए कि उन्हें इस बात का ध्यान हि नहीं रहा " कि मानव समाज को जिस कार्य को करने के लिए मना किया जाता है, वो उसे चोरी छिपे हि सही पर करने का जरूर प्रयास करता है और इसी का लाभ समाज में वो लोग उठाते हैं, जिन्हें समाज में फैलती बुराई से कोई सरोकार नहीं होता अपितु केवल "दमड़ी" से रिश्ता होता "। मुख्यमंत्री जी के असुरक्षित " शराबबंदी ने बिहार में १:- शराब के तश्करी के मार्ग खोल दिए और २:- जहरीली शराब के तैयार होने और उसे चोरी छिपे बेचने का मार्ग प्रशस्त कर दिया।
इसका परिणाम ये निकला की असावधानी से और घटिया युक्ति से शराब के निर्माण करने की प्रक्रिया ने उसमें नशा का तत्व कम अपितु ज़हर का तत्व अधिक पैदा कर दिया और उसका सबसे तत्कालीन उदाहरण है " बिहार के छपरा जीले में जहरीली शराब पीने से हुई ७५ से ज्यादा लोगों की मौत।
परन्तु आश्चर्य इस तथ्य का नहीं कि " सुशासन बाबू कहलाने वाले मुख्यमंत्री के अयोग्य और अहितकारी सरकारी प्रबंधन ने जहरीली शराब को बनने, बेचने और उसका उपभोग करने से नहीं रोक पायी, अपितु आश्चर्य इस तथ्य का है कि, माननीय मुख्यमंत्री ये कह कर कि "पियोगे तो मरोगे" अपनी छाती बेशर्मी से फुलाये घूम रहे हैं। और यही नहीं उनके राजनितिक पार्टी के ब्रांड वैल्यू को बनाये रखने के उत्तरदाई उनके प्रवक्ता इससे भी दो हाथ आगे निकलकर कह रहे हैं कि " जो लोग जहरीली शराब पीकर मर गए उनके साथ कोई सहानुभूति नहीं है, मुआवजा किस बात के दे"।
अब ज़रा इस तथ्य पर गौर करिये कि यदि बिहार में शराबबंदी नहीं होती तो ना तो शराब कि तस्करी होती और ना जहर से भरी कच्ची शराब चोरी छिपे तैयार की जाती और ना हि शराब के शौक़ीन चोरी छिपे इसे खरीदकर कर पिते और ना ही इतनी बड़ी मात्रा में इंसानों की मौते होती।
शराबबंदी यदि लागू करना हि था तो पहले उसकी पृष्ठभूमि तैयार करनी थी। सर्वप्रथम पूरे राज्य से शराब बनाने वाली वैध और अवैध शराब भट्टीयो को नष्ट करना था। पूरे राज्य में शराब के तस्करो पर लगाम लगानी चाहिए थी। कार्यपालिका, विधायिका और इन शराब तस्करो और शराब बनाने वाले लोगों के मध्य फैले गठजोड़ को तोड़ना और समाप्त करना था। परन्तु दुर्भाग्य ये है कि " शराबबंदी" को बिना किसी तैयारी के लागू कर दिया गया।
पर बात यंहा पर राजधर्म कि यदि बात करें तो राजधर्म का पालन करने वाला व्यक्ति अपनी प्रजा के प्रति सवेन्दनशिल नहीं अपितु अति सवेन्दनशिल होता है। प्रजा पर विपत्ति आए या आपत्ति आए हर परिस्थिति में राजधर्म का पालन करने वाला व्यक्ति अपनी प्रजा के साथ खड़ा होता है।
अनागतविधाता च प्रत्युत्पन्नमतिश्र्च यः ।
द्वावेव सुखमेधेते दीर्घसूत्री विनश्यति ॥
मित्रों हमारे शास्त्रों ने स्पष्ट कहा है कि "न आये हुए संकट की आगे से तैयारी रखने वाला और प्रसंगावधानी ये दो (प्रकार के राजा) ही सुखी होते हैं । विलंब से काम करने वाले का नाश होता है ।" ये श्लोक पूरी तरह से बिहार के मुख्यमंत्री पर खरा उतरता है। ऐसा नहीं है कि यह प्रथम अवसर है, जब जहरीली शराब से लोगों कि मृत्यु हुई है, इसके पूर्व १५ वराह के शाशनकाल में अनेको बार इस प्रकार की मौते हुई हैं, पर उनसे सबक लेने के स्थान पर "पियोगे तो मरोगे" जैसी असंवेदनशीलता का प्रदर्शन किया जा रहा है।
दुष्टस्य दण्डः स्वजनस्य पूजा न्यायेन कोशस्य हि वर्धनं च ।
अपक्षपातः निजराष्ट्ररक्षा पञ्चैव धर्माः कथिताः नृपाणाम् ॥
दुष्ट को दंड देना, स्वजनों की पूजा करना, न्याय से कोश बढाना, पक्षपात न करना, और राष्ट्र की रक्षा करना – ये राजा के पाँच कर्तव्य है । परन्तु आज का बिहार का राजा अर्थात मुख्यमंत्री "पियोगे तो मरोगे" जैसी निर्लज्जता पूर्ण टिप्पणी करता है तो फिर वो उन पाँच कर्तव्यों को पूरा करेगा इसमें केवल संशय और संशय है।
आपको विदित हो कि जितने मनुष्यों कि मृत्यु हुई है, ये सभी समाज के अति पिछ्ड़े समाज से जुड़े हैं जो रोज़ कमाते थे और रोज़ अपने परिवार के लिए रोटी का जुगाड़ करते थे, अपनी गरीबी के दर्द को भुलाने के लिए मदिरा का सहारा लेने की गलती ने उनसे उनकी जिन्दगी छीन ली।
नरेशे जीवलोकोअयं निमीलति निमीलति।
उदेत्युदयमाने च रवाविव सरोरुहम्।।४अक्षयनीतिसुधाकर
यह मनुष्य लोक नीतिपरायण राजाके अभाव से अवनति को प्राप्त होके अस्त हो जाता है। न्यायपरायण प्रजाहितैषी राजा का उदय होने से उन्नति को प्राप्त होता है। जैसे सूर्य उदय होने से कमल प्रकाशित होता है और सूर्य अस्त होने से कमल अस्त हो जाता है।जो शासक धर्मशील सद्गुणों से युक्त हो,तेजस्वी और पराक्रमी हो और प्रजा को प्रसन्नता प्रदान करनेवाला और प्रजा को सन्मार्ग पर अग्रसर करने वाला हो वह 'राजा' कहलाता है।
अब देखने वाली बात ये है कि अपने ब्रांड को चमकाने के पीछे अंधों कि तरह दौड़ लगाने वाले नेता और उनके अनुयायी, कब तक स्वय को जिम्मेदार समझकर प्रजा कि वास्तव में सेवा करेंगे और उसके सुख दुःख में सहभागी होंगे।
लेखन और संकलन :- नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)
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