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सत्य की जीत:- श्री एकनाथ शिंदे।

8 जून 2023

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जी हाँ मित्रों, दिनांक १९जुन १९६६ को जब स्व. बाळासाहेब ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना का गठन हुआ, तो इसके पीछे केवल २ उद्देश्य थे, जिसमें से एक था भूमिपूत्रों का विकास और दूसरा था हिंदुत्व की अवधारणा।

मित्रों स्व. बाळासाहेब ठाकरे जी का त्याग, समर्पण और निस्वार्थ सेवा देकर, महाराष्ट्र के भूमि पुत्र उनसे जुड़ने लगे और देखते हि देखते स्व. बाळासाहेब ठाकरे महाराष्ट्र के युवाओं की आवाज बन गये। स्व. बाला साहेब ठाकरे के सूप्रयासों का हि परिणाम था की:-
१:- महाराष्ट्र के युवाओं की सोच में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ;
२:- उन्होंने स्वयं को प्रत्येक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करना शुरु किया;
३:- उन्होंने उच्च शिक्षा और दीक्षा की ओर ध्यान देना शुरु किया;
४:-  स्वयं का रोजगार स्थापित करने के लिए, उन्हें बैंकों से ऋण मिलना प्रारम्भ हो गया और
५:- हिंदुत्व से उनका जुड़ाव बढ़ने लगा, जिससे जातियों में बाँटा गया समाज अब एक होने लगा।

इस प्रकार स्व. बाळासाहेब ठाकरे ने अपने अद्भुत आंदोलन से महाराष्ट्र में अभूतपूर्व क्रांति ला दी और सोच के साथ संकल्प को भी बदल डाला। इनके इस महान अभियान में उनके स्वयं के पुत्र श्री उद्धव ठाकरे और उनके भतीजे श्री राज श्रीकांत ठाकरे ने सम्पूर्ण सहयोग दिया। उनके भतीजे श्री राज ठाकरे के  अत्यधिक आक्रामक होने के कारण उनकी लोकप्रियता में जबरदस्त वृद्धि हुई।

स्व. श्री बाळासाहेब ठाकरे जी ने अपनी प्रती की बुनियाद हि कांग्रेस के विरोध में रखी थी। स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी जी का कार्यकाल छोड़ दे तो स्व. श्री बाळासाहेब ठाकरे अपने पूर्ण जीवन कांग्रेस का विरोध करते रहे और उन्होंने अकेले रहना स्वीकार किया परन्तु उन्होंने कांग्रेस के सामने झुकना या उससे मिलना कभी गवारा नहीं किया।

स्व. बाळासाहेब ठाकरे दूरदर्शी व्यक्तित्व के स्वामी थे, अत: सत्ता की प्राप्ति कर महाराष्ट्र के सम्पूर्ण विकास हेतु उन्होंने स्वयं की विचारधारा वाली राष्ट्रवादी पार्टी भारतीय जनता पार्टी से एक संधी की और महाराष्ट्र की सत्ता पर काबिज हो गये। स्व. श्री बाळासाहेब ठाकरे एक प्रमुख राष्ट्रवादी नेताओं में  से एक थे। वो आतंकवाद पर किसी भी प्रकार की समझौता करने के विरुद्ध थे, उनका स्पष्ट मत था की आतंकवाद को खत्म करने के लिए आतंकवादी और आतंकी सोच दोनो को खत्म करने की आवश्यकता है। स्व. श्री बाळासाहेब ठाकरे जी वर्ष २०१२ ई. में स्वर्गवासी हो गये।

मित्रों शिवसेना को स्थापित करने में जितना सहयोग श्री राज ठाकरे और श्री उद्धव ठाकरे ने दिया उतना हि सहयोग स्व. श्री आंनद दीधे जैसे महान और समर्पित शिव सैनिको ने भी दिया था।
आइये स्व. श्री आनंद दीधे जी के बारे में तनिक जानकारी प्राप्त कर लेते हैँ।
श्री आनंद दीधे जी का जन्म दिनांक २७ जनवरी १९५१ को महाराष्ट्र के थाने जिल्हे में हुआ था। इनका पूरा नाम श्री आनंद चिंतामनि दीधे था। इन्हें धर्मवीर के नाम से प्रसिद्धि मिली। ये स्व. श्री बाळासाहेब ठाकरे को अपना गुरु मानते थे और प्रत्येक गुरुपूर्णिमा को उनके पैरों को स्वयं अपने हाथों से धोकर उनका सम्मान करते थे। स्व. श्रो बाळासाहेब ठाकरे उनके लिए इस संसार में प्रत्येक विषय वस्तु और व्यक्तित्व से बढ़कर थे।

स्व. श्री आनंद दीधे जी को वर्ष १९८४ ई में थाणे जिले के शिवसेना का इकाई अध्यक्ष बनाया गया था। थाणे जिले में  उनके द्वारा जमीनी स्तर पर समाज के उत्थान के लिए किये गये  कार्यों से उनकी लोकप्रियता अपने चरम पर थी। इस धर्मवीर की रहस्यमय परिस्थितियों में इनकी मृत्यु हो गयी।

अब आइये वर्तमान के तिन शिवसैनिकों की बात कर लेते हैँ।

श्री राज श्रीकांत ठाकरे:- स्व. श्री बाला साहेब ठाकरे के सबसे विश्वाशपात्रों में उनके भतीजे श्री राज ठाकरे जी का नाम सबसे ऊपर है। आक्रामक राजनीति के वाहक और अपने चाचा के पड़चिन्हों का अनुसरण करने वाले श्री राज ठाकरे युवाओं और विद्यार्थियों के चहेते नेताओ में सर्वोपरि थे। शिवसेना की छात्र  की इकाई " विद्यार्थी सेना" की पुरी पकड़ इनके हाथ में थी। परन्तु स्व. श्री बाळासाहेब ठाकरे द्वारा अपने पुत्र श्री उद्धव ठाकरे को शिवसेना की बागडोर सौपने से व्यथित होकर इन्होंने अपने चाचा का साथ छोड़ वर्ष २००६ ई में इन्होंने अपनी एक राजनितिक पार्टी बना ली, जिसका नाम उन्होंने " महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना" रखा।

श्री उद्धव ठाकरे:- स्व. श्री बाळासाहेब ठाकरे के पुत्र होने के नाते इन्हें इनके पिता के स्वर्गवासी होने के पश्चात वर्ष २०१२ ई में "शिवसेना" के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गये और वर्ष २०१४ ई
तथा वर्ष २०१९ ई में भाजपा के साथ गठबंधन कर इन्होने विधानसभा के चुनाव लड़े तथा सफलता प्राप्त की। श्री उद्धव ठाकरे जी ने राजनीति में प्रवेश तब किया जब उन्हें वर्ष २००२ ई. में बृहन मुंबई नगर निगम (बीएमसी) में शिवसेना का अभियान प्रभारी बनाया गया और पार्टी ने जीत हासिल की | उन्हें वर्ष २००३ ई. में शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था और वे वर्ष २००६ ई. में अपनी पार्टी के राजनीतिक मुखपत्र "सामना" के प्रधान संपादक बने |

श्री एकनाथ शिंदे:-

मित्रों इतिहास अपने आपको दोहराता है, जी हाँ, जैसे स्व. श्री बाळासाहेब ठाकरे ने स्व. श्री आनंद दीधे जैसे हिरे के योग्यता को पहचान कर अपना साथी बना लिया था, ठीक उसी प्रकार स्व. श्री आनंद दीधे जी ने श्री एकनाथ शिंदे के अंदर छिपी योग्यता को पहचाना और तराशा।

श्री एकनाथ शिंदे जी का जन्म दिनांक ९ फरवरी १९६४ को क्षत्रिय मराठा परिवार में हुआ था। सतारा उनका गृह जिला है। पढ़ाई के लिए श्री एकनाथ शिंदे जी ठाणे आए। 11वीं तक की पढ़ाई यहीं की। इसके बाद वागले एस्टेट इलाके में रहकर ऑटो रिक्शा चलाने लगे। इसी दौरान उनकी मुलाकात शिवसेना नेता स्व. श्री आनंद दिघे से हुई और बस यही से इनका भाग्य पलट गया।

केवल १८ वर्ष की उम्र में उनका राजनीतिक जीवन शुरू हुआ और श्री एकनाथ शिंदे जी  एक आम शिवसेना कार्यकर्ता के रूप में काम करने लगे,करीब डेढ़ दशक तक शिवसेना कार्यकर्ता के रूप में काम करने के बाद वर्ष १९९७ में श्री एकनाथ शिंदे जी  ने चुनावी राजनीति में कदम रखा।

वर्ष १९९७ ई. के ठाणे नगर निगम चुनाव में स्व. श्री आनंद दिघे ने श्री एकनाथ शिंदे जी  को पार्षद का टिकट दिया। श्री एकनाथ शिंदे जी  अपने पहले ही चुनाव में जीतने में सफल रहे। वर्ष २००१ ई. में नगर निगम सदन में विपक्ष के नेता बने। इसके बाद दोबारा वर्ष २००२ ई. में दूसरी बार निगम पार्षद बने। श्री एकनाथ शिंदे जी  का कद वर्ष २००१ के बाद बढ़ना शुरू हुआ। जब उनके राजनीतिक गुरु स्व. श्री आनंद दिघे का स्वर्गवास हो गया। इसके बाद ठाणे की राजनीति में श्री एकनाथ शिंदे जी  की पकड़ मजबूत होने लगी। वर्ष २००५ ई. में श्री नारायण राणे के पार्टी छोड़ने के बाद श्री एकनाथ शिंदे जी  का कद शिवसेना में बढ़ता ही चला गया। जब श्री राज ठाकरे ने पार्टी छोड़ी तो श्री एकनाथ शिंदे जी  ठाकरे परिवार के करीब आ गए। वर्ष २००४ ई. के विधानसभा चुनाव में शिवसेना ने श्री एकनाथ शिंदे जी  को ठाणे विधानसभा सीट से टिकट दिया। यहां भी श्री एकनाथ शिंदे जी  को जीत मिली। उन्होंने कांग्रेस के मनोज शिंदे को 37 हजार से अधिक वोट से मात दी। इसके पश्चात वर्ष २००९, २०१४ और २०१९ में श्री एकनाथ शिंदे जी  ठाणे जिले की कोपरी पछपाखडी सीट से जीतकर विधानसभा पहुंचे।वर्ष २०१४ ई. में श्री देवेंद्र फडणवीस जी के नेतृत्व वाली सराकर में श्री एकनाथ शिंदे जी  राज्य के लोक निर्माण मंत्री रहे।

श्री संजय राउत की अति महत्वकांछा और गठबंधन में दरार:-
वर्ष २०१९ ई. में भाजपा और शिवसेना गठबंधन ने श्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में विधानसभा का चुनाव लड़ा और विजय हसील की, परन्तु जब सरकार बनाने की बारी आयी तो श्री संजय राउत और श्री उद्धव ठाकरे जी की जोड़ी ने मुख्यमंत्री पद को प्राप्त करने और सत्ता पर नियंत्रण करने की अपनी अति महत्वकांछा के वशिभूत होकर ना केवल गठबंधन को तोड़ दिया अपितु सरकार बनाने के लिए उस कांग्रेस के दरवाज़े पर नतमस्तक हो गये, जिसका स्व. श्री बाळासाहेब ठाकरे ने सदैव विरोध किया।

मुख्यमंत्री पद के लिए और सत्ता के नियंत्रण का सुख भोगने के लिए श्री संजय राउत और श्री उद्धव ठाकरे ने शिवसेना के सभी  सिद्धांतों को तिलांजलि देकर कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों के कदमों में गिर पड़े, जो की श्री एकनाथ शिंदे जी जैसे स्वाभिमानी शिव सैनिकों को बिल्कुल भी पसंद नहीं था।

श्री उद्धव ठाकरे जी मुख्यमंत्री तो बन गये और अपने पुत्र श्री आदित्य ठाकरे को भी मंत्री बनवा दिया, परन्तु इसकी कीमत पूरे महाराष्ट्र को चुकानी पड़ी, कुछ उदाहरण निम्न प्रकार हैँ:-
१:- शिव सैनिकों को अनवरत अपमानित होना पड़ा;
२:- पालघर में साधुओं की हत्या कर दी गयी;
३:- सुशांत सिंह राजपूत नमक अभिनेता की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गयी या उनकी क्रूरता से हत्या कर दी गयी;
४:- नवाब मलिक जैसे लोगों ने महाराष्ट्र का इस्लामिकरण करना शुरु कर दिया;
५:- परमवीर सिंह और अनिल विजे जैसे पुलिस ऑफिसर ने पुलिस और भाड़े के हत्यारों के बिच की लकीर पात दी, अर्थात पुलिस स्वयं सबसे बड़ी भक्षक हो गयी;
६:- अम्बानी जैसे उद्योगपति को धमकाने के लिए उनके घर के पास आतंकियों की तरह जिलेटिन की छड़े रखी गयी;
७:- राज्य के गृहमंत्री हर महीने ₹ एक करोड़ रुपये वसूलने की स्कीम लेकर आये आरोप के अनुसार, उन्हे जेल भी जाना पड़ा;
८:- रिपब्लिक भारत न्यूज चैनल के अर्णव गोस्वामी को AK -47 से सजे धजे ४० से ५० वर्ष पुलिस वाले घर से उठा ले जाते हैँ;
९:- विकास पुरी तरह से ठप्प हो जाता है;
१०:- जो भी सरकार के विरुद्ध बोलता, उसकी आवाज बंद करने की कोशिश की जाने लगी और ऐसे तमाम घटनाये हुई, जिससे वो शिवसैनिक जिनका दम ऐसी घृणित और अपमानित व्यवस्था में घुट रहा था, वो श्री एकनाथ शिंदे जी के नेतृत्व में लामबंद हो गये।

श्री संजय राउत की निरंकुशता और श्री उद्धव ठाकरे जी की महत्वकांछा के भवर में डूब रहे स्व. बाळासाहेब ठाकरे को आदर्श मानने वाले शिवसैनिकों को श्री एकनाथ शिंदे जी  के नेतृत्व में एक युवा और उत्साही नेता मिल गया क्योंकि श्री एकनाथ शिंदे जी  महाविकास अघाड़ी को तोड़ने और भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन को फिर से स्थापित करने के पक्ष में थे उन्होंने वैचारिक मतभेदों और कांग्रेस पार्टी और भारतीय राष्ट्रवादी कांग्रेस द्वारा अनुचित व्यवहार के कारण श्री उद्धव ठाकरे से महा विकास अघाड़ी गठबंधन को तोड़ने का अनुरोध किया। परन्तु श्री संजय राउत के उड़ते घमंड ने उस प्रत्येक शिवसैनिक का अपमान किया जो स्व. बाळासाहेब ठाकरे जी के नीतियों पर चलना चाहता था, अत: जब बर्दास्त करने की सीमा खत्म हो गई तो दिंनाक २१ जून २०२२ को  श्री एकनाथ शिंदे जी  और कई अन्य विधायक महाविकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन से स्वयं को पृथक कर भाजपा शासित गुजरात के सूरत नगर में डेरा डाल दिया। श्री एकनाथ शिंदे जी  के विद्रोह के परिणामस्वरूप, महाराष्ट्र पर बोझ बन चुकी महाविकास आघाडी की सरकार अल्पमत में आ गयी और अत्यधिक उठापाठक के पश्चात अंतत: संजय राउत के घमंड और श्री उद्धव ठाकरे की महत्वकांछा का अंत हो गया और भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से श्री एकनाथ शिंदे जी के नेतृत्व में एक बार फिर असली शिवसैनिकों के हाथों में महाराष्ट्र की सत्ता आ गयी और श्री एकनाथ शिंदे जी महाराष्ट्र राज्य के २० वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लिए।

अब मित्रों यँहा पर अब दो शिवसेना थी जिसमें एक श्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली जिसने कांग्रेस के आगे सर झुका लिया था और दूसरी श्री एकनाथ शिंदे जी के नेतृत्व में जिसने कांग्रेस को उसकी औकात बताना शुरु कर दिया।

मित्रों यंहा मामला ये था की दोनो अपने को असली शिवसैनिक और उसके निशान "तिर धनुष" का हकदार बता रहे थे। अत: अब जब तक फैसला नही हो जाता की कौन असली है और कौन नकली, तब तक चुनाव हेतु दोनो को सबसे पहले  अपने अपने दल का नया नाम पंजीकृत कराना पड़ा, चुनाव लड़ने के लिए।

श्री उद्धव ठाकरे जी ने अपनी पार्टी का नाम ""शिवसेना उद्धव बाला साहब ठाकरे" रखा। अब मित्रों यँहा भी आप आसानी से श्री उद्धव ठाकरे जी के घमंड, दम्भ और महत्वकांछा को देख सकते हैँ, किस प्रकार एक पुत्र ने पहले अपने गलत नीतियों से पिता को शर्मशार किया और कांग्रेस के आगे मुंडी झुकाकर शिव सैनिकों के सम्मान को तार तार कर दिया था, उसी पुत्र ने जब अपनी पार्टी का नाम रखा तो अपने पिता के नाम को अपने नाम से पीछे धकेल दिया। नाई पार्टी के नाम से हि आप पता कर सकते हैँ की अब ये पार्टी किस प्रकार की राजीनीति करने वाली है।

मित्रों ऐसे हि व्यक्तित्व के लिए हमारे शास्त्र कहते हैँ

"मा कुरु दर्पं मा कुरु गर्वं मा भव मानी मानय सर्वम्।।"

अर्थात- ऐ मूर्ख, घमंड मत कर। अपने आप पर गर्व मत कर। अहंकारी मत बन। यह तेरा पतन का कारण बनेगा।
(O fool, don't be with ego. Don't be proud of yourself. Don't be arrogant. One day, This will be the cause of your downfall.)

अशास्त्रविहितं घोरं तप्यन्ते ये तपो जनाः।
दम्भाहङ्कारसंयुक्ताः कामरागबलान्विताः।।
अर्थात:-जो मनुष्य काम, आसक्ति, हठ के वशीभूत होते हैं एवं जिनके अंदर दंभ एवं अहंकार भरा रहता है और शास्त्र विधि को छोड़कर घोर तप करते हैं। ऐसे लोग असुर एवं पापी होते हैं।(People who are under the control of lust, attachment, stubbornness and who are full of arrogance and ego and do severe penance leaving the scriptures. Such people are absolutely demons and sinners.)

"श्री एकनाथ शिंदे जी" ने अपनी पार्टी  का नाम " बाला साहेब की शिव सेना" रखा। अब मित्रों जैसा की नाम से हि पता चल रहा है कि श्री एकनाथ शिंदे जी की यह पार्टी स्व. श्री बाळासाहेब ठाकरे जी के पदचिन्हों पर चलने वाली पार्टी है। यँहा जो सबसे अधिक ध्यान देने वाली बात है, वो ये है कि श्री एकनाथ शिंदे जी अपनी पार्टी का नाम अपने नाम पर या अपने राजनितिक गुरु स्व. श्री आनंद दीधे के नाम पर आसानी से रख सकते थे परन्तु एक सच्चे शिवसैनिक और एक लायक व योग्य शिष्य होने का दायित्व निभाते हुए उन्होंने अपने गुरु के गुरु और शिवसैनिकों को अपने प्राणों से भी प्यारे स्व. बाळासाहेब ठाकरे के नाम से हि अपनी पार्टी बनायीं और संजय राउत तथा श्री उद्धव ठाकरे को दिखा दिया की स्व. श्री बाळासाहेब ठाकरे सभी शिव सैनिकों के हैँ और सभी शिव सैनिक स्व. बाला साहेब के।

ऐसे व्यक्ति शास्त्र द्वारा बताये गये निम्न संकल्प पर चलते हैँ:-

"श्रध्दा ज्ञानं ददाति, नम्रता मानं ददाति, योग्यता स्थानं ददाति ॥" अर्थात:- श्रद्धा ज्ञान देती है, नम्रता मान देती है और योग्यता स्थान देती है ।
संहतिः कार्यसाधिका ॥ अर्थात:-मिलजुल कर कार्य करने से कार्य की सिद्धि होती है ।

मित्रों और स्व. श्री बाळासाहेब  और उनके शिष्य स्व. श्री आनंद दीधे जी के आशीर्वाद से चुनाव आयोग ने सभी तथ्यों और परिस्थितियों का सूक्ष्म अवलोकन करते हुए " तिर्- धनुष" का परम्परिक चुनाव चिन्ह श्री एकनाथ शिंदे जी की पार्टी को आवंटित कर दिया और इस प्रकार सारे विश्व को पता चल गया की असली शिवसैनिक कौन है और कौन है नकली।

यथा ह्येकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत्।
एवं परुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति।।
अर्थात– जैसे एक पहिये से रथ नहीं चल सकता। ठीक उसी प्रकार बिना पुरुषार्थ के भाग्य सिद्ध नहीं हो सकता है।

मित्रों यदी सच्चाई को देखा जाये तो श्रीएकनाथ शिंदे ने सबसे बड़ी गुरु दक्षिणा दे दी है अपने दोनों गुरुओं को और सचमुच यह सत्य कि जीत है।

देवो रुष्टे गुरुस्त्राता गुरो रुष्टे न कश्चन:।
गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता न संशयः।।
अर्थात – भाग्य रूठ जाये तो गुरू रक्षा करता है। गुरू रूठ जाये तो कोई नहीं होता। गुरू ही रक्षक है, गुरू ही शिक्षक है, इसमें कोई संदेह नहीं।

लेखन और संकलन:- नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)
aryan_innag@yahoo.co.in

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