हे मित्रों आखिर एक बार फिर भारत में छुपे भारत के विरोधी देशद्रोहियों ने अल्पज्ञानी पर धूर्तता और मक्कारी में परांगत अंग्रेजो से मिलकर हमारे एक विश्वशनीय और ईमानदार उद्योगपति को निशाना बनाया, जिसने इन गोरो और वामपन्थियों को उन्हीं कि भाषा में उत्तर देना शुरू कर दिया था। वामपन्थियों के अब्बा चिन को उसकी औकात बताना शुरू कर दिया था।मित्रों अडानी ग्रुप के बारे में तो आप जानते हैं ही होंगे, आइये इनकी थोड़ी सी पृष्ठभूमि जान लेते हैं।
नाम :- श्री गौतम शांतिलाल अडानी, पिता का नाम :- श्री शांतिलाल अडानी और माता का नाम :- श्रीमती शांता जैन अडानी। ये पूरे सात भाई बहन का परिवार है। श्री गौतम शांतिलाल अडानी का जन्म दिनांक २४ जून १९६२ को अहमदाबाद के रतनपोल में स्थित सेठ नी पोल क्षेत्र के गुजराती जैन परिवार में हुआ।
श्री गौतम शांतिलाल अडानी ने वाणिज्य संकाय के दूसरे वर्ष में पढ़ाई छोड़ दी और व्यवसाय में रूचि होने के कारण महाराष्ट्र मुंबई आ गए उस समय उनकी उम्र १६ वर्ष थी। वर्ष १९७८ ई में मुंबई में उन्होंने हिरे का व्यापार शुरू किया परन्तु अपने बड़े भाई के बुलावे पर वो गुजरात में उनके प्लास्टिक फैक्ट्री को सम्हालने के लिए गुजरात पहुंच गए।
वो वर्ष १९८८ का था जब उन्होंने कमॉडिटी का एक्सपोर्ट और इम्पोर्ट करने वाली व्यवसायिक कम्पनी के रूप में "अडानी इंटरप्राइजेज" कि आधारशिला रखी। यंहा याद रखने वाली बात ये है कि इस समय कांग्रेस सत्ता में थी और आदरणीय नरेंद्र दामोदरदास मोदी आरएसएस के स्वय सेवक बन भारत के किसी गांव में सेवा का कार्य कर रहे थे।
वर्ष १९९१ में स्व श्री नरसिंहराव जी कि सरकार में तत्कालीन वित्त मंत्री अहरी मनमोहन सिंह के द्वारा किये गए आर्थिक सुधारों के कारण श्री गौतम अडानी का व्यवसाय अत्यंत शिघ्रता और मजबूती से डायवर्सिफाई हुआ और वो एक बहुराष्ट्रीय व्यवसाई बन गए|
फिर आया वर्ष १९९५ जिसने गौतम अडानी के लिए सफलता के सारे द्वार खोल दिए जब उनकी कंपनी को मुंद्रा पोर्ट (Mundra Port) के संचालन का कॉन्ट्रैक्ट मिला | यह अधिकार श्री गौतम शांतिलाल अडानी को किसी और के राज में नहीं अपितु कांग्रेस के राज में हि प्राप्त हुआ। अब मुंद्रा बंदरगाह पर कांग्रेस कि सहायता से श्री गौतम अडानी का राज हो गया।
वर्ष १९९६ में अडानी ग्रुप ने अपनी नई कम्पनी "अडानी पावर लिमिटेड" कि आधारशिला रखी। याद रखिये अभी तक आदरणीय श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी जी कंही भी परिदृश्य में नहीं है।
वर्ष २००६ तक तो गौतम शांतिलाल अडानी जी ने देश के सबसे बड़ा लार्जेस्ट कोल इम्पोर्टर कि ख्याति अर्जित कर ली और उन्हें इम्पोर्ट का लाइसेंस भी यूपीए सरकार अर्थात केंद्र में बैठी मनमोहन सिंह और सोनिया गाँधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार ने दिया था।
वर्ष २००९ में श्री गौतम शांतिलाल अडानी जी देश के लार्जेस्ट पावर जेनरेटर बन गए और इस वक्त भी केंद्र में बैठी मनमोहन सिंह और सोनिया गाँधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार थी। अब आदरणीय श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी जी दूसरी बार गुजरात के मुख्यमंत्री बन चुके थे।
वर्ष २०१० में श्री गौतम शांतिलाल अडानी जी ने इंडोनेशिया में माइनिंग कारोबार शुरू किया। इसी प्रकार वर्ष २०११ में अडानी ग्रुप ने ऑस्ट्रेलिया के अबॉट पॉइंट कोल टर्मिनल को २.७२ अरब डॉलर में खरीद लिया। (याद रखिये इसी दौरान और यंही से अडानी ग्रुप के विरुद्ध षड्यंत्र की बुनियाद रख दी गई थी।)
वर्तमान परिदृश्य देखें तो अडानी ग्रुप का कारोबार एनर्जी, पोर्ट, लॉजिस्टिक्स, माइनिंग, गैस, डिफेंस एवं एयरोस्पेस और एयरपोर्ट जैसे विविध क्षेत्रों तक फैला है। अडानी समूह की शेयर बाजार में लिस्टेड कंपनियों में शामिल हैं-अडानी एंटरप्राइजेज, अडानी ग्रीन एनर्जी, अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन, अडानी पावर, अडानी ट्रांसमिशन, अडानी टोटल गैस लिमिटेड और अडानी विल्मर |
और फिर वो दिन भी आया जब दिनांक २७ अप्रैल २०२२ को श्री गौतम शांतिलाल अडानी दुनिया के चौथे सबसे अमीर शख्स बन गए थे | उनकी संपत्ति Microsoft के Bill Gates के बराबर हो गई थी।
अब ज़रा हिडनबर्ग नामक कम्पनी कि पृष्ठभूमि भी देख लेते हैं, कि आखिर ये कम्पनी है क्या?
हिंडनबर्ग रिसर्च एक वित्तीय शोध करने वाली कंपनी है, जो इक्विटी, क्रेडिट और डेरिवेटिव मार्केट के आंकड़ों का विश्लेषण करती है। इसकी स्थापना वर्ष २०१७ में नाथन एंडरसन नामक व्यक्ति ने कि थी। हिंडनबर्ग रिसर्च हेज फंड का कारोबार भी करती है। इसे कॉरपोरेट जगत की गतिविधियों के बारे में खुलासा करने के लिए जाना जाता है।
कंपनी का नामकरण कैसे हुआ?
इस कंपनी का नाम हिंडनबर्ग आपदा पर आधारित है जो वर्ष १९३७ में हुई थी, जब एक जर्मन यात्री हवाई पोत में आग लग गई थी, जिसमें ३५ लोग मारे गए थे। वास्तव में हिंडनबर्ग २४५-मीटर- (८०४-फुट-) लंबी पारंपरिक ज़ेपेलिन डिज़ाइन की हवाई पोत थी जिसे मार्च १९३६ में फ्रेडरिकशफेन, जर्मनी में लॉन्च किया गया था। दिनांक ६ मई, १९३७ को लेकहर्स्ट, न्यू जर्सी (अमेरिका) में उतरते समय, इसकी निर्धारित १९३७ ट्रान्साटलांटिक क्रॉसिंग, हिंडनबर्ग आग की लपटों में फट गई और पूरी तरह से नष्ट हो गई। इसमें सवार ९७ व्यक्तियों में से ३५ मारे गए। ग्राउंड क्रू का एक सदस्य भी मारा गया। आग को आधिकारिक तौर पर एयरशिप से हाइड्रोजन गैस के रिसाव के आसपास वायुमंडलीय बिजली के निर्वहन के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था, हालांकि यह अनुमान लगाया गया था कि विमान पोत, नाजीयो के विरोध में कि गई तोडफोड का शिकार बन गया था।
अब अडानी ग्रुप के पीछे का षड्यंत्र कब और कैसे अस्तित्व में आया और फिर निष्पादित कैसे किया गया। आइये देखते हैं पूरी कहानी परत दर परत:-
प्रथम चरण:-
मित्रों Organiser नामक एक website पर दिनांक ४ फरवरी २०२३ को एक लेख प्रकाशित किया गया था, आइये इस लेख के कुछ मुख्य बिन्दुओ पर एक दृष्टि डालते हैं। इसके अनुसार
अदानी समूह पर यह हमला वास्तव में हिंडनबर्ग शोध रिपोर्ट के पश्चात दिनांक २५ जनवरी, २०२३ को शुरू नहीं हुआ,अपितु इसकी शुरुआत ऑस्ट्रेलिया से वर्ष २०१६-१७ में शुरू किया गया था।
क्या आप कल्पना कर सकते हैं, कि अडानी ग्रुप कि व्यापक सफलता से गोरो का समूह तो ईर्ष्या करता हि है, अपने देश के कुछ सफेदपोश उद्योगपति भी ईर्ष्या में डूब कर देशद्रोहिता कि सीमा तक का कार्य अडानी ग्रुप के विरुद्ध कर चुके हैं और कर रहे हैं। और केवल अडानी ग्रुप को बदनाम करने के लिए एक website का भी निर्माण कर चुके हैं, जो वाक् अभिव्यक्ति कि स्वतन्त्रता के नाम पर केवल और केवल मिथ्या प्रवन्चना और अनर्गल प्रलाप करते हैं।
बॉब ब्राउन फाउंडेशन (बीबीएफ), माना जाता है कि एक पर्यावरणविद् एनजीओ, अदानीवॉच (.)ओआरजी (Adaniwatch.org) नामक website चलाता है। ( आपको हम पहले हि बता चुके हैं कि अडानी ने ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया के कोयला खादानो पर अधिकार प्राप्त कर लिया था, अत: एक भारतीय उद्योगपति के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए और ऑस्ट्रेलिया में अडानी अडानी की कोयला खदानों की परियोजनाओं के विरोध के साथ इस Website की शुरुआत कि गई।
इस बॉब ब्राउन फाउंडेशन (बीबीएफ) एनजीओ का एकमात्र मकसद अडानी ब्रांड इमेज को टारगेट करना है। उनके प्रचार लेख भारतीय राजनीति में घुसपैठ करते हैं; अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आदि, किसी भी एजेंडे से संचालित वामपंथी संगठन की तरह,। मित्रो तनिक् विचार करें " अगर रवीश कुमार एनडीटीवी छोड़ देते हैं तो एक ऑस्ट्रेलियाई एनजीओ को इससे भला क्या लेना देना और एक पर्यावरण के लिए कार्य करने वाला एनजीओ गुजरात दंगो पर एकतरफा और झूठे तथ्यों पर तैयार किये गए बीबीसी वृत्तचित्र पर किये गए एक ट्वीट का समर्थन क्यों करेगा? आखिर इस संस्था का असली मकसद क्या है?
किसी कारणवश, बीबीएफ भारत में विपक्ष कि पार्टियों द्वारा शाषित राज्यों में अडानी कि उपस्थिति के प्रति नरम हो जाता है। वे कांग्रेस या टीएमसी के नेतृत्व वाले राज्यों में चलने वाली अडानी ग्रुप कि परियोजनाओं को लक्षित नहीं करते हैं।
अडानी समूह को वर्ष २०१० में ऑस्ट्रेलिया में कारमाइकल कोयला खदान के लिए एक परियोजना मिली। वर्ष २०१७ में अचानक एक 350.org नामक एनजीओ के नेतृत्व में कुछ अन्य एनजीओ मिलकर अडानी के का विरोध शुरू कर देते हैं और् इस प्रोजेक्ट को रोकने के लिए ग्रुप #StopAdani का गठन करके विरोध प्रदर्शन शुरू कर देते हैं।
बॉब ब्राउन ने वर्ष २०१७ में सिडनी में #StopAdani शिखर सम्मेलन और होबार्ट में #StopAdani रैली सहित पारंपरिक मालिकों के साथ बैठक और कई रैलियों और कार्यक्रमों में बोलते हुए #StopAdani अभियान में नेतृत्व की भूमिका निभाना जारी रखा है। फाउंडेशन ने देश भर में ५००० #StopAdani बम्पर स्टिकर का उत्पादन और वितरण करके अभियान का समर्थन प्रदान किया, जो पूर्णतया निःशुल्क था।
अब प्रश्न ये आता है कि इस 350.org नामक NGO को ये सभी गतिविधि करने के लिए पैसा कंहा से मिलता है। इसका उत्तर है मित्रों "Tides Foundation"जो सैन फ्रांसिस्को स्थित एक डोनर-एडवाइज्ड फंड है, जिसने गुमनाम रहने की इच्छा रखने वाले दानदाताओं और फाउंडेशनों से उदार समूहों को करोड़ों डॉलर दिए हैं। जॉर्ज सोरोस और टॉम स्टेयर से जुड़े समूहों ने भी 350.org में व्यापक योगदान दिया है। यंहा ध्यान रखिये ये वहीं जॉर्ज सोरोस जो सदैव भारत के विरोध में कैरी करता रहता है, और भारत के हर निति का विरोध करता है, तथा भारत विरोधी ऐजेण्डा चलाने वाले सभी वामपंथी और उदारवाद कि खाल ओढ़े देशद्रोहियों के NGO को जबरदस्त पैसे देता है।
अब मित्रों टाइड्स फाउंडेशन को फंड कौन देता है? इसमें सोरोस, फोर्ड फाउंडेशन, रॉकफेलर, ओमिडयार और बिल गेट्स के नाम हैं।
एक भारतीय एनजीओ नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया (NFI) को भी सोरोस, फोर्ड फाउंडेशन, रॉकफेलर, ओमिडयार, बिल गेट्स और अजीम प्रेमजी से फंड मिला। ये वहीं WIPRO वाला अजीम प्रेमजी है।
अजीम प्रेमजी के नेतृत्व में एक एनजीओ IPSMF शुरू किया गया था, IPSMF:-
इंडिपेंडेंट एंड पब्लिक-स्पिरिटेड मीडिया फाउंडेशन (IPSMF) दिनांक १ जुलाई २०१५ को बेंगलुरु में एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट के रूप में पंजीकृत है। फाउंडेशन वित्तीय सहायता प्रदान करता है और डिजिटल-मीडिया संस्थाओं को सार्वजनिक हित की जानकारी बनाने और प्रसारित करने के लिए सलाह देता है। फाउंडेशन को IT अधिनियम, १९६१ की धारा १२AA (a) के तहत पंजीकृत किया गया है और IT अधिनियम, १९६१ की धारा ८०G (५) (vi) के तहत स्वीकृति प्रदान की गई है।
अब् यहि NGO जो Altnews, The Wire, The Caravan, The News Minute, आदि प्रचार समाचार वेबसाइटों को फंड करता है। आपको बताते चलें कि ये सभी NGO भारत विरोधी और खासकर सनातन धर्म विरोधी प्रोपेगेंडा पूरी दुनिया में चलाते हैं। इनको पैसे अजीम प्रेमजी देता है।
सीपीआई (एम) नेता सीताराम येचुरी की पत्नी सीमा चिश्ती एनएफआई में मीडिया फेलोशिप सलाहकार हैं। वह द वायर की संपादक हैं। वह द कारवां के लिए भी लिखती हैं। और इन सबको पैसे WIPRO वाला अजीम प्रेमजी देता है।
प्रचार समाचार वेबसाइट, "द वायर" का सोरोस, फोर्ड, बिल गेट्स, अजीम प्रेमजी, ओमिडयार और रॉकफेलर द्वारा वित्त पोषित एनएफआई के साथ एक विशेष गठजोड़ है। दिलचस्प बात यह है कि "द वायर" ने २०१७ में अडानी के ऑस्ट्रेलिया प्रोजेक्ट के संबंध में उसके खिलाफ पांच प्रचार लेखों की एक श्रृंखला लिखी है। तो आप स्वय इसका अनुमान लगा सकते हैं कि WIPRO वाले अजीम प्रेमजी का कितना बड़ा हाथ है, इस सम्पूर्ण घटनाक्रम में।
"द न्यूज मिनट" की सह-संस्थापक "धन्या राजेंद्रन" एनएफआई में मीडिया फेलोशिप सलाहकार भी हैं। "द न्यूज मिनट" को भी पैसे अजीम प्रेमजी के संगठन IPSMF द्वारा प्राप्त होता है और MDIF के माध्यम से सोरोस से समर्थन प्राप्त होता है। धान्य राजेंद्रन ने "डिजिपब (Digipub)" नाम से लोगों और प्रचार वेबसाइटों का एक कार्टेल बनाया है!
adaniwatch.org नामक website द्वारा फैलाये जाने वाले दुष्प्रचार में रवि नायर का योगदान अत्यधिक है। बीबीएफ के ट्विटर हैंडल से उनके ज्यादातर पोस्ट का समर्थन किया जाता है।हिट-जॉब पीस/पोस्ट लिखने के लिए नायर कथित तौर पर अडानी समूह द्वारा मानहानि के मुकदमे का सामना कर रहा है।
स्टीवन चाफर, जो बीबीएफ के सीईओ हैं, अतीत में ग्रीनपीस एंड एमनेस्टी (ऑस्ट्रेलिया शाखा) से जुड़े रहे हैं। संयोग से, भारत में इन दोनों एनजीओ को कई कानूनों के उल्लंघन के लिए बाहर कर दिया गया है।
"द न्यूज मिनट" में धन्या राजेंद्रन की पार्टनर और फाइनेंसर और "डिजिटल शार्पशूटर कार्टेल डिजिपब" की सह-संस्थापक "रितु कपूर" की भी यूके (UK) में एक शेल कंपनी थी। उन्होंने सालाना रिटर्न दाखिल किए बिना कुछ महीनों के भीतर इसे बंद कर दिया।
इतने वीभत्स हमले से क्यों और किसे फायदा हुआ! जब ग्रेटा के 'टूलकिट' में अडानी और अंबानी भी शामिल हों तो पेड प्रचार के और क्या सबूत चाहिए?
अब प्रश्न ये भी है, मित्रों की केवल अडानी और अम्बानी ये दोनों ही क्यों? टाटा, प्रेमीजी, मूर्ति, वाधरा, या किसी और को क्यों नहीं टारगेट किया जा रहा है, कुछ तो गड़बड़ है।
तो मित्रों यंहा पर आपने देखा कि WIPRO वाला अजीम प्रेमजी किस प्रकार इस षड्यंत्र में अंदर तक घुसा हुआ है और अनवरत भारत विरोधी आंदोलन चलाने वालो को जबरदस्त तरिके से वित्त (पैसा) प्रदान कर रहा है।
अडानी और अम्बानी तो एक बहाना है, आदरणीय श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी जी, अजीम प्रेमजी का असली निशाना है और इसीलिए वो "द न्यूज़ मिनट", "द वायर", " द कारवां" और "द अल्ट न्यूज़" जैसे भारत विरोधी प्रोपेगेंडाधारियों को जबरदस्त वित्त प्रदान करता है।
दूसरा चरण:-
मित्रों आपको ज्ञात होगा कि भारत में भी Stock Market कि रचना करने वाले लोगों में इंग्लैंड और अमेरिका के विशेषज्ञ भी शामिल थे, अत: Stock Market कि कमजोरियो का इन्हें अच्छी प्रकार से ज्ञान है, जिसका लाभ ये पहले बहुत उठाते थे परन्तु अब धीरे धीरे ये कम होता जा रहा है।
याद करिये जब युक्रेन्- रसिया युद्ध के शुरुआत में "अडानी गैस" के शेयरों कि कीमत सामान्य थी, परन्तु जैसे जैसे युद्ध बढ़ता गया, अडानी गैस के शेयर भी बढ़ते गए, जबकि यूरोपिय कम्पनीओ के शेयर लगातार गिर रहे थे। इसी बात से ईर्ष्या करके विदेशी निवेशकों ने प्रत्येक दिन हजारों करोड़ रुपये निकालकर अडानी गैस के शेयर को तोड़ना और बाजार को ध्वस्त करना शुरू किया और २०२३ तक उन्होंने अपने षड्यंत्र में सफलता प्राप्त कर ली और अडानी गैस के शेयर वापस उसी स्थिति मे आ गए, जंहा वो युक्रेन और रूस का युद्ध शुरू होने से पूर्व थे। आइये इसे समझते हैं कैसे?
मित्रों शेयर बाजार में निवेश करने वाले चार खिलाडी होते हैं।
१:- एक तो घरेलू निवेशक (Domestic Investors)
२:- विदेशी निवेशक ( F. Investors)
ये जो विदेशी निवेशक हैं, ये जब लाभ कमाना होता है या किसी देश कि अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाना हो, तो अम्बानी और अडानी जैसे समूह के कम्पनीओ के शेयर खरीदना शुरू कर देते हैं और जब इन कम्पनीओ के शेयर बुलंदियों पर पहुंचने लगते हैं, तो धीरे धीरे प्रतिदिन ये अपना हजारों करोड़ रुपए निकालना शुरू कर देते हैं, जिसका परिणाम होता है कि बाजार टूटने लगता है और अस्थिर हो जाता है, जिससे अर्थव्यवस्था पर गंभीर चोट लगती है।
मित्रों ये विदेशी निवेशक अडानी समूह के व्यापक और बढ़ते स्वरूप से डर गए और इन्होने इस कम्पनी से धीरे धीरे प्रत्येक दिन हजारों करोड़ रुपए निकालना शुरू कर दिया। जब अडानी समूह को जानकारी हुई तो उन्होंने इसकी शिकायत RBI से की, RBI ने जांच के दौरान आरोप सही पाया और चेतावनी जारी करते हुए विदेशी निवेशकों से कहा कि यदि वे फिर से ऐसा करेंगे तो RBI उन्हें प्रतिबंधित कर देगा।
अब इन विदेशी निवेशकों का षड्यंत्र तो असफल हो गया, क्योंकि प्रतिबंधित होने के डर से उन्होंने अपना निवेश वापस लेना बंद कर दिया, परन्तु इसके पश्चात उन्होंने हिंडनबर्ग रिसर्च के कंधे पर बंदूक रखी और गोली दाग दी। जी हाँ मित्रों इस हिंडनबर्ग रिसर्च में केवल १० कर्मचारी हैं और इन्होने TMC कि नेता और अखंड वामपन्थन महुआ मित्रा जैसे अल्प ज्ञानी और भारत विरोधी लोगों के द्वारा लिखें गए लेखो को आधार बनाकर अपनी रिपोर्ट तैयार कर दी। मित्रों इस रिपोर्ट में कुछ भी ऐसा नहीं है, जो नया है, जो मुद्दे इस रिपोर्ट में उठाए गए हैं, वे सभी के सभी पहले से हि चर्चा में हैं, परन्तु इस रिपोर्ट की आड़ में विदेशी निवेशकों ने एक बार फिर एक साथ बड़ी मात्रा में अपना निवेश वापस ले लिया, क्योंकि अब यदि RBI इन्हें रोकता या प्रतिबंधित करता, तो ये पूरी दुनिया में छाती पीट पीट कर कहते कि भारत में निरंकुशता है, स्वतन्त्रता नहीं है।
अब सोचेंगे कि आखिर विदेशी निवेशक कम्पनियां ऐसा क्यों करेंगी, तो मित्रों इसका सीधा और स्पष्ट उत्तर है:-
१:- भारत का युक्रेन और रूस के युद्ध में यूरोपिय देशों कि बात ना मानना और रूस से व्यापार करना;
२:- भारत का खाड़ी देशों से जबरदस्त जुड़ाव;
३:- भारत की स्वतन्त्र विदेश निति;
४:- भारत चिन को लगातार दी जा रही पटकनी;
५:- भारत कि वेक्सिन कूटनीति इत्यादि।
तीसरा चरण
मित्रों तीसरे चरण में भारत कि उस अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाना था, जिसने हाल हि में गोरो को पीछे छोड़कर विश्व कि पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है। मित्रों एक ओर, अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, रूस, फ्रांस, इटली, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया और अन्य यूरोपिय देशों कि स्थिति और अर्थव्यवस्था हासिये पर है, जंहा पाकिस्तान, अफगानिस्तान और श्रीलंका जैसे देश आर्थिक दीवालिआपन का शिकार हो चुके हैं और जंहा वामपंथी देश चिन कि अर्थव्यवस्था भी डांवांडोल है, वही पर भारत कि अर्थव्यवस्था इतनी मजबूत है कि वो रक्षा क्षेत्र पर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बजट देने वाला देश बन गया है, वो अफगानिस्तान के विकास के लिए ₹२ हजार करोड़ का आवंटन करता है, भूटान के विकास के लिए इसका १०गुना बजट का आवंटन करता है, बंगलादेश और श्रीलंका सहित दक्षिण अफ्रीका के देशों के लिए भी बजट का आवंटन करता है।
यही नहीं विश्व बैंक और IMF कि दृष्टि में भारत विश्व कि सबसे तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था है। मित्रों हाल हि में भारत, रूस और सऊदी अरेबिया ने जिस प्रकार डॉलर के स्थान पर अपने अपने देश कि मुद्रा में व्यापार करने की शुरुआत कि है, इससे भी अमेरिका और यूरोपिय देशों के हाथ पाव फुले हुए हैं, क्योंकि इससे डॉलर कि खटिया खड़ी होने लगी है।
चौथा चरण
चिन के पिछ्वाड़े बम्बू:-
मित्रों आपको तो ज्ञात हि होगा कि भारत ने अडानी समूह के सहयोग से चिन के कर्ज के जाल से श्रीलंका को बचाते हुए एक अत्यंत महत्वपूर्ण समझौता किया था:-भारत ने चीनी ड्रैगन को बड़ा झटका देते हुए श्रीलंका में ७० करोड़ डॉलर का टर्मिनल समझौता किया है। स्पष्ट है कि भारत ने श्रीलंका में चीन के बढ़ते प्रभाव को जवाब देने के लिए यह समझौता किया है।
यह नया पोर्ट श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में चीन के बनाए ५० करोड़ डॉलर के चीनी जेटी के पास है। "द श्रीलंका पोर्ट्स" ने एक बयान जारी करके कहा, 'यह समझौता करीब ७० करोड़ डॉलर का है जो श्रीलंका के बंदरगाह सेक्टर में अब तक का सबसे बड़ा विदेशी निवेश है।' इसमें कहा गया है कि अडाणी इस बंदरगाह को स्थानीय कंपनी जॉन कील्स के साथ मिलकर बनाएगी। इस टर्मिनल में जॉन कील्स का हिस्सा करीब ३४ फीसदी होगा जबकि अडाणी के पास ५१ फीसदी की हिस्सेदारी होगी।
मित्रों बताने कि अवश्यक्ता नहीं कि ये समझौता चिन को परास्त करके हि हासिल किया गया था। अभी इस दर्द को अपने पिछ्वाड़े लेकर चिन अच्छे तरिके से कराह भी नहीं पाया था और उसके पालतू भारतीय स्वान ठीक से छाती भी ना पीट पाये थे कि अडानी ने दूसरा मुक्का सीधा चिन कि नाक पर मारा, जी हाँ मित्रों अदानी ने ९ हजार ४२२ करोड़ रुपए की बोली लगाकर इजराइल का १७०० वर्ष पुराना "हाइफा" बंदरगाह खरीद लिया । इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इस मौके पर अदानी के साथ फोटो खिंचवाई!
मित्रों अब तक गोरे आपने जहाजो ले आकर हिंदुस्तान में माल बेचते थे पर अदानी समूह ने हाइफा पर बंदरगाह खरीद कर अपना माल यानी हिंदुस्तान का माल रूस और एशिया में बेचने का मार्ग प्रशस्त कर दिया। और एक बार फिर चिन और उसके पालतू स्वान समूहो पर वज्रपात सा हो गया।
मित्रों मनमोहन सिंह हो या पी चिदम्बरम जैसे महा भ्रष्टाचारी गोरी चमड़ी की गुलामी की मानसिकता रखने वाले हिंदुस्तान के ऐसे बहुत से लोग बगैर सोचे समझे हिडनबर्ग कि रिपोर्ट को सच मान बैठे और फलस्वरुप लगभग 8 लाख करोड़ का भारी नुकसान हो गया ।
विपक्ष का आरोप:-
मित्रों, कुछ मोदी के विरोध में अंधे हो चुके और कुछ चिन के टुकड़ो पर पूँछ हिलाने वाले विपक्षी और NGO, भारत के LIC और SBI के निवेश के डूब जाने का आरोप लगा रहे हैं और इसे घोटाला बता रहे हैं, जबकि सच्चाई ये है कि:-
LIC: - का निवेश .८८% के आस पास है और LIC के शेयर अभी भी लाभ कि स्थिति में बने हुए हैं। या स्वय LIC का कथन है।जी हाँ मित्रों दिनांक जनवरी २०२३ को LIC ने बयान दिया कि उसने अदानी ग्रुप के शेयर में ३० हजार करोड़ का निवेश किया, हिडनबर्ग की रिपोर्ट के पहले LIC के इस निवेश की वैल्यू ७०००० करोड़ हो गई थी लेकिन रिपोर्ट आने के बाद LIC के इस निवेश की वैल्यू ५६ हजार करोड़ ही रह गई । यानी अब भी अदानी के शेयर से ही LIC २६ हजार करोड़ के लाभ कि स्थिति में है लेकिन वो लोग केवल झूठ बोलने में लगे हैं।
SBI:- ने secure निवेश किया है अर्थात निवेश के बदले में अडानी समूह के असेट्स गिरवी रखे हैं। SBI और PNB किसी के निवेश को कोई खतरा नहीं है।
अडानी समूह के शेयर के भाव कम ज़रूर हुए हैं पर अडानी समूह अभी भी ६५ बिलियन डालर के नेट worth के साथ टीका हुआ है।
मित्रों याद रखिये।
फोर्ब्स मैगजीन के मुताबिक, अमेरिकी न्याय विभाग दर्जनों बड़े शॉर्ट-सेलिंग निवेश और शोध फर्मों की जांच कर रहा है। इनमें मेल्विन कैपिटल और संस्थापक गेबे प्लॉटकिन, रिसर्चर नैट एंडरसन और #हिंडनबर्ग रिसर्च सोफोस कैपिटल मैनेजमेंट और जिम कारुथर्स भी शामिल हैं।
अमेरिकी न्याय विभाग ने वर्ष २०२१ के अंत में लगभग ३० शॉर्ट-सेलिंग फर्मों के साथ-साथ उनसे जुड़े तीन दर्जन व्यक्तियों के बारे में जानकारी जुटाई थी। वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक, संघीय अभियोजक इस बात की जांच कर रहे हैं कि क्या शॉर्ट-सेलर्स ने समय से पहले हानिकारक शोध रिपोर्ट साझा करके और अवैध व्यापार रणनीति में शामिल होकर शेयर की कीमतों को कम करने की साजिश रची थी।
ये रिपोर्ट जानबूझकर उस समय प्रकाशित कि गई जब अडानी अपना FPO बाजार में लाकर भारतीय जनमानस को बड़ा मुनाफा देकर ज्यादा से ज्यादा संख्या में Stock market से जोड़ने वाले थे, ताकि भारतीय Stock Market को शक्तिशाली बनाया जा सके, परन्तु एक षड्यंत्र ने इसे सफल ना होने दिया।
मित्रों कुछ भी हो जाए हम राष्ट्रवादी तो अपने अडानी और अम्बानी के साथ थे, साथ हैं और साथ रहेंगे। और इन देश के गद्दारो से यही कहेंगे:-
"सुनो गौर से दुनिया वालों
चाहे जितना जोर लगा लो
सबसे आगे होंगे हिंदुस्तानी"
लेखन और संकलन:- नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)
aryan_innag@yahoo.co.in