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अरे अदालते तो उस समय भी थी संविधान तो उस समय भी था।

8 जून 2023

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मित्रों जब से अतिक अहमद और उसके भाई अशरफ अहमद की हत्या होने पर  तथा उसके बेटे असद अहमद का पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने पर, इस देश के तथाकथित संविधानवादी (जिनका संविधान से कोई लेना देना नहीं) और अदालतवादी (जो अक्सर हि अदालतों की निम्न स्तर पर आलोचना करते रहते हैँ) छाती पिट पिट कर चिल्ला रहे हैँ कि  " यदी अपराधियों को इसी प्रकार सजा देनी है तो फिर इन अदालतों का क्या काम, संविधान का क्या काम" बंद कर दो इन अदालतों को।

मित्रों हमारे देश में एक अजीब सा चलन चल रहा है, कुछ भी घटना होती है, उस पर एक चिरकुट विद्वान अपना बयान जारी करता है और भी उस चिरकुट विद्वान को अपना नेता मानने वाले लोग और भाजपा को अपना दुश्मन मानने वाले लोग उसी बयान को बार बार दोहराने लगते हैँ।

जब अतिक अहमद और अशरफ अहमद को १७ पुलिस वालो की सुरक्षा को भेदकर, पचासों मीडियकर्मियों के सामने और कई  आम लोगों की उपस्थिति में रात-बहाड़े तिन अति दुस्साहसी नौजवानों ने केवल ४० सेकेण्ड में खत्म कर दिया तो एक तथाकथित चिरकुट विद्वान ने भाग्यनगर से अपनी भड़ास निकालते हुए बोला कि " यदी ऐसे हि इंसाफ करना है तो फिर ये अदालतें किसलिए हैँ, ये संविधान किसलिए है, बंद कर दो इन अदालतों को इनका क्या काम है?"

बस फिर क्या था ये तकिया कलाम बन गया हर उस व्यक्ति का जो अभी कुछ दिन पूर्व हि प्रयागराज में दीनदहाड़े इसी अतिक अहमद के नाम की खौफ को जिंदा रखने के लिए, उसकी बीबी  की बनायी योजना पर उसके बेटे असद और अन्य छ: गुर्गो ने " उमेश पाल और दो पुलिस वालों को दौड़ाकर कत्ल कर दिया था" , पर अपना मुंह छिपा कर बैठा था और उसके जुबान से एक लफ्ज नहीं निकल रहा था।

मित्रों मै आतंक के किसी भी घटना का समर्थन नहीं करता, परन्तु आतंक और अपराध की घटनाओं में से केवल कुछ घटनाओं को केंद्र में रखकर अदालत और संविधान की दुहाई देने वालों को उत्तर देना अपना कर्तव्य समझता हुँ, ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके।

मित्रों शुरु करता हुँ  शुरु से और पूछता हुँ,इन चिरकुट विद्वानों से, बताओ मुझे :-

१:- जब १९७९ ई में इस अतिक अहमद ने प्रयागराज के एक वार्ड के पार्षद "चांद मामा" की हत्या की तो उस समय भी ये अदालतें थी और ये संविधान था, क्यों नहीं ये मिलकर अतिक अहमद को सजा दे पायी या सजा देकर सुधार पायी;

२:- जब वर्ष १९९५ में  अशोक साहू की आतिक के भाई अशरफ ने केवल इसलिए हत्या करवा दी की उसने अशरफ के गाड़ी से आगे अपनी गाड़ी निकाल दी थी, तो उस समय भी ये अदालतें थी और ये संविधान था, क्यों नहीं ये मिलकर अशरफ  अहमद को सजा दे पायी या सजा देकर सुधार पायी;

मित्रों यदि समय रहते अदालतों ने और संविधान ने अपनी ताकत दिखाई होती तो आज की तारीख में :-

१:- अतिक अहमद पर १०१ मुकदमें (जिसमें हत्या, लूटपाट, जबरिया वसूली, जबरिया कब्जा, दंगे फ़साद कराने, बेनामी सम्पत्ति, हवाला कारोबार तथा अपहरण इत्यादि शामिल है) दर्ज नहीं होते;

२:- अशरफ अहमद पर ५६ मुकदमें (जिसमें हत्या, लूटपाट, जबरिया वसूली, जबरिया कब्जा, दंगे फ़साद कराने, बेनामी सम्पत्ति, हवाला कारोबार तथा अपहरण इत्यादि शामिल है) दर्ज नहीं होते;

३:- आज अशरफ अहमद को हराकर विधायक बनने वाला राजू पाल जिंदा होता;

४:- आज अतिक अहमद के नाम का खौफ बनाये रखने के लिए उसकी बीबी शाइस्ता खान  की योजना को अंजाम देते हुए उसका बेटा असद अहमद उमेश पाल की दिन दहाड़े हत्या नहीं करता;

५:- आज अतिक अहमद के बेटा असद अहमद १९ वर्ष की आयु में २ लाख रुपये का इनामी बदमाश नहीं बनता और एक दिन एक शातिर अपराधी की भांति पुलिस मुठभेड़ मे ना मारा जाता;

६:- आज अतिक अहमद की बीबी शाइस्ता खान ५० हजार की इनामी गुंडी नहीं बनती;

७:- आज अतिक अहमद के बेटे अली, उमर और असद इतने खूंखार अपराधी नहीं बनते;

८:- आज अतिक अहमद के रिश्तेदार यूँ गली गली मारे मारे नहीं फिरते;

९:- आज अतिक अहमद और उसके भाई के आतंक को समाप्त करने के लिए तिन नौजवानों को कानून हाथ में लेकर हथियार चलाना और हत्या का जघन्य अपराध करने की प्रेरणा नहीं मिलती;

१०:- और आज इन अदालतों और संविधान के नाम पर इन्हें जोर जोर से छाती पीटने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

मित्रों अदालतों और संविधान ने इन घृणित अपराधियों और समाज के कोढ़ो के प्रति सख्त रवैया अपनाया होता तो आज ये नौबत हि नहीं आती। हमने कई बार देखा है कि अतिक और अशरफ जैसे बाहुबली खुलेआम कत्ल और लूटपाट जैसी वारदातों को अंजाम देकर बड़ी हि आसानी से सीना चौड़ा करते हुए अदालतों की कार्यवाही का मखौल उड़ाते हुए एक नये अपराध को अंजाम देने निकल पड़ते हैँ, क्योंकि अदालतें सबूत और गवाह पर सजा देती हैँ और अतिक तथा अशरफ जैसे दुर्दान्त अपराधी ना तो सबूत छोड़ते हैँ और ना गवाह।

मित्रों यदी कोई साहसी नागरिक अतिक और अशरफ जैसे आतंकियों के विरुद्ध खुलकर सामने भी आते हैँ तो ना तो ये अदालतें उन्हें सुरक्षा दे पाती हैँ और ना संविधान। मित्रों आपको बताते चले की एका बार उच्च न्यायालय के एक नहीं दो नहीं पूरे दस जजों ने अतिक के जमानत याचिका पर सुनवाई करने से मना कर दिया था, इतना डर और खौफ उन अदालतों पर उस समय था अतिक अहमद के आतंक का। और जब अदालतें खुद को नहीं बचा सकती थी, तो फिर वो अतिक को क्या सजा देती।

मित्रों मै इन चिरकुट विद्वानों से पूछना चाहता हुँ,  कि अभी असद अहमद के पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने से पूर्व इसी उत्तर प्रदेश में एक २ लाख रुपये के इनामी बदमाश "राणा" को पुलिस मुठभेड़ में मार गिराया गया तो उस समय इन सभी चिरकुटों के मुंह पर ताला क्यों पड़ गया था, उनकी जुबान से पुलिस के विरुद्ध अंगारे क्यों नहीं बरस रहे थे? इसका एक मात्र उत्तर यह है कि "राणा" एक हिन्दु था और इन चिरकुटों की दृष्टि में हिन्दु मरे या जिये इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता।

अब मै यह भी जानना चाहता हुँ कि अतिक और अशरफ का ना तो कोई कारोबार था और ना हि ये पुस्तैनी अमीरजादे थे, ये तो एक मामूली से फटेहाल तांगेवाले के लड़के थे फिर १९७९ से २०२३ के मध्य इन्होने १२००० करोड़ से भी अधिक की सम्पत्ति कंहा से बना ली? पर मै जानता हुँ, इसका कोई भी उत्तर देने को तैयार नहीं होगा, क्योंकि इसका उत्तर देने से उनका एजेंडा और प्रोपेगेंडा उजागर जो हो जायेगा।

मित्रों इन चिरकुट विद्वानों अर्थात मूर्खो के लिए हमारे शास्त्रों में ठीक हि कहा है,(भर्तृहरि के नीतिशतक)

"लभेत सिकतासुतैलमपि यत्नत: पीडयन् पिबेच्चमृगतृष्णिकासु सलिलं पिपासार्दित:।

कदाचिदपि पर्यटञ्छशविषाणमासादये-न्न तु प्रतिनिविष्टमूर्खजनचित्तमाराधयेत्।।५।।

यत्नपूर्वक निचोड़ने पर बालू से तेल प्राप्त हो सकता है, प्यासा व्यक्ति मृगमरीचिकाओं में भी जल पी सकता है। भ्रमण करते हुए कभी खरगोश के सिर पर सींग पाया जा सकता है, परन्तु दुराग्रही मूर्ख के चित्त को कभी भी प्रसन्न नहीं किया जा सकता।।५।।

इसी प्रकार आगे कहा गया है:-

शक्यो वारयितुं जलेन हुतभुक्छत्रेण सूर्यातपो नागेन्द्रो निशिताङ्कुशेन समदो दण्डेन गोगर्दभौ।

व्याधिर्भेषजसङ्ग्रहैश्च विविधैर्मन्त्रप्रयोगैर्विषं सर्वस्यौषधमस्ति शास्त्रविहितं मूर्खस्य नास्त्यौषधम्।।११।।

जल से आग बुझाई जा सकती है, सूर्य के ताप को छाते से रोका जा सकता है, मतवाले हाथी को तीखे अंकुश से वश में किया जा सकता है, पशुओं को दण्ड से वश में किया जा सकता है, औषधियों से रोग भी शान्त हो सकता है, विष को भी अनेक मन्त्रों के प्रयोगों से शान्त कर सकते हैं - इस तरह सब उपद्रवों की औषधि शास्त्र में है, परन्तु मूर्ख की कोई औषधि नहीं है।।११।।

जब से उत्तर प्रदेश में भगवाधारी योगी आदित्यनाथ जी को मुख्यमंत्री के रूप में जनता ने पदासीन किया है, तबसे वंहा के दंगाइयों, माफियाओं, गुंडों, मवालियों चोर-उचक्कों, छीनैतो तथा बलात्कारियों में जबरदस्त दहशत का माहौल है और ये डर  उनके उत्सर्जन तंत्र से प्रवेश करके तंत्रिका तंत्र को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है। आज मुख़्तार अंसारी, अफजल अंसारी सहित अनेक नामी गिरामी माफिया और गुंडे बिल्कुल या तो शराफत की जिंदगी जी रहे हैँ या फिर जेल में चक्की बड़े शांति से पीस रहे हैँ। योगी जी सदैव जनता के हितार्थ कार्य करने में तत्पर रहते हैँ, जनता के हर सुख दुख में सहभागी रहते हैँ। उनके राज में आम जनता निडर होकर जागति और सोती है।

ऐसे हि मुख्यमंत्री या राजधर्म को निभाने वाले नेता से जनता सदैव प्रसन्न रहती है और उसका पुरजोर समर्थन करती है।

और इन्ही के बारे में हमारे शास्त्र कहते हैँ:-

प्रजासुखे सुखं राज्ञः प्रजानां च हिते हितम् ।

नात्मप्रियं हितं राज्ञः प्रजानां तु प्रियं हितम् ।।

अर्थात प्रजा के सुख में राजा का सुख निहित है; अर्थात् जब प्रजा सुखी अनुभव करे तभी राजा को संतोष करना चाहिए । प्रजा का हित ही राजा का वास्तविक हित है । वैयक्तिक स्तर पर राजा को जो अच्छा लगे उसमें उसे अपना हित न देखना चाहिए, बल्कि प्रजा को जो ठीक लगे, यानी जिसके हितकर होने का प्रजा अनुमोदन करे, उसे ही राजा अपना हित समझे । ऐसे हि प्रजापालक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैँ।

लेखन और संकलन:- नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)

aryan_innag@yahoo.co.in

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