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गणतंत्र और संविधान।

8 जून 2023

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२ वर्ष ११ महीने १८ दिन में  १८६ घंटे काम करके एक ऐसा संविधान का निर्माण किया गया, जिसमें २६ नवम्बर १९४९  ई॰ को अंगिकार करने तथा २६ जनवरी १९५० को लागू  किये जाने का पश्चात १०० से ज्यादा बार संशोधन किया जा चुका है।

जी हाँ मित्रों स्वतन्त्रता के पश्चात जिन महान बलिदानीयो देश के स्वतन्त्रता के लिए अपना सर्वस्य और सर्वोच्च बलिदान दिया उन्हें एक षड्यंत्र के तहत हासिये पर धकेल दिया गया और जिनका कुछ भी योगदान नहीं था वो नायक बना दिए गए।

अब आइये ज़रा गणतंत्र या लोकतंत्र या प्रजातंत्र को तनिक समझ लेते हैं। संविधान के प्राणवायु उद्देशिका के अनुसार "केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य १९७३ में दिये निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने इसे संविधान का भाग बताया है। संविधान का एक भाग होने के कारण ही स्व इंदिरा गाँधी ने एक पक्षीय निर्णय लेते हुए निरंकुशतापुर्वक  इसे ४२वेन संविधान संशोधन से इसे सशोधित किया था तथा समाजवादी और पंथनिरपेक्ष जैसे शब्द जोड़ कर इसकी आत्मा को मार दिया।

इसके अनुसार :-संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी , पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को "सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,

विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,

प्रतिष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त कराने के लिए",तथा उन सब में,व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित कराने वाली, बन्धुता बढ़ाने के लिए,इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित किया गया हैं।

लोकतंत्र को संसदीय लोकतंत्र के माध्यम से क्रियान्वित किया जाता है जहां कार्यपालिका सभी नीतियों और कार्यों के लिए विधायिका के प्रति जिम्मेदार होती है।लोकतंत्र में सर्वोच्च शक्ति देश के लोगों के पास होती है।राजनीतिक लोकतंत्र के अलावा सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र को अनुमति देने के लिए लोकतंत्र का व्यापक अर्थों में उपयोग किया जाता है।

गणतंत्र: गण अर्थात प्रजा या जनता के द्वारा चुने जाने वाला तंत्र या राज। यह सम्पूर्ण प्रजा को राजनीतिक और सामाजिक  संप्रभुता की अनुमति देता है न कि किसी व्यक्ति विशेष को।

यह हर सार्वजनिक स्तर पर भेदभाव को रोकता है। भारतवर्ष के हजारों वर्षो के इतिहास में यदि बाह्य आतंकियों (जैसे मंगोल, तुर्क, अफगानी, ईरानी, मुग़ल, पुर्तगाली, डच, अंग्रेज और कांग्रेस इत्यादि)के राज को छोड़ दे तो भारत में  कभी भी निरंकुश शाशन नहीं रहा हमारे, चोल, चालुक्य,  नन्द, मौर्य, शुंग, आहोम,मराठा और राजपूत इत्यादि वंशवालियो ने समय समय पर राज किया परन्तु निरंकुश शाशन कभी नहीं रहा, सभी ने गणतंत्र को सामर्थ्यशाली बनाया।

आधुनिक युग में भी आज़ाद हिंद सरकार की स्थापना जब नेताजी ने किया था तो उसकी भविष्य कि रूप रेखा भी जनतंत्र  के आधार पर तय किया था। परन्तु एक षड्यंत्र के तहत धूर्त और मक्कार अंग्रेजो की सहायता के लिए स्थापित कि गई कांग्रेस के नकारे लोगों के हाथो में भारत कि सत्ता चली गई। इन्होने भारत का बटवारा किया और पाकिस्तान को पैदा कर दिया। पाकिस्तान को तो इस्लामिक राष्ट्र बनने दिया परन्तु हिंदुस्तान को जन बूझकर हिन्दू राष्ट के रूप में जाना जाने वाला  राष्ट्र ना बनने दिया।

कांग्रेस ने एक षड्यंत्र के तहत भारत से जनतंत्र का अपहरण किया। केवल स्व लाल बहादुर शास्त्री जी के समय में हि लोकतंत्र उभर कर सामने आया। उसके पश्चात स्व अटल बिहारी वाजपेयी जी के समय लोकतंत्र को मजबूत किया गया। और फिर उसके पश्चात करीब १० वर्षो तक अंधकार, भ्रष्टाचार,  आतंकवाद, मुसलिम तुष्टिकरण, ईसाई प्रकटिकरण और देश्द्रोहिता इत्यादि के कारण एक भयावह शाशन रहा जिसने गणतंत्र का गला घोट दिया।

और फिर जनता ने अपना आक्रोश दिखाया और अंधकार से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर, अधर्म से धर्म की ओर, भ्रष्टाचार से सदाचार की ओर कदम बढ़ाते हुए कांग्रेस के अलोकतांत्रिक शाशन को उखाड़ फेंका।

और एक राष्ट्रभक्त सनातनी के हाथो में देश कि बागडोर सौप दी और लोकतंत्र लहलहा उठा। आज लोकतंत्र खुश है और पूरे उमंग, उत्साह और साहस से दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति कर रहा है।

हमारे "गणतंत्र" के आधार पर हि ग्रीक भाषा में "डेमोक्रेसी" शब्द कि रचना हुई। यह "डेमोक्रेसी" दो ग्रीक "डेमोस" और "क्रेटोस" से मिलकर बना है। यहां "डेमोस" का अर्थ है 'लोग' और "क्रेटोस" का अर्थ है 'शासन'।

वर्ष २०१४ के पश्चात का समय आऊ लोकतंत्र।

मित्रों लोकतंत्र अर्थात "जनता का शाशन" की अवधारणा और इसके सिद्धांत की उत्पत्ति वेदो के अंतर्गत पहले हि कर दिया गया था और इन्हीं वेदो में उल्लेखित मंत्रो के माध्यम से सम्पूर्ण जगत ने लोकतंत्र के सिद्धांत को अपने अपने मतानुसार स्वीकार और लागू किया, उदाहरण के लिए:-

ऋग्वेद मंडल १० सूक्त १७३ और मंत्र १ के अनुसार:-

आ त्वा॑हार्षम॒न्तरे॑धि ध्रु॒वस्ति॒ष्ठावि॑चाचलिः ।

विश॑स्त्वा॒ सर्वा॑ वाञ्छन्तु॒ मा त्वद्रा॒ष्ट्रमधि॑ भ्रशत् ॥

अर्थात हे राजन् ! मैं पुरोहित राजसूययज्ञ में तुझे राष्ट्र के स्वामी होने के लिये राजसूयवेदी पर (आहार्षम्) लाया हूँ-लाता हूँ (अन्तः-एधि) हमारे मध्य में स्वामी हो (ध्रुवः) ध्रुव (अविचाचलिः-तिष्ठ) राजपद पर नियत-अविचलित हुआ प्रतिष्ठित हो (सर्वाः-विशः) सारी प्रजाएँ (त्वा वाञ्छन्तु) तुझे चाहें चाहती हैं (त्वत्-राष्ट्रम्) तुझसे-तेरे शासन से राष्ट्र (मा-भ्रशत्) नष्ट न हो। दूसरे शब्दों में यदि हम समझे तो यंहा राजपुरोहित, चुने हुए राजा से कहते हैं "हे राष्ट्र के अधिपति! मैं तुझे चुनकर लाया हूं। तू सभा के अंदर आ, स्थिरता रख, चंचल मत बन, घबरा मत, तुझे सब प्रजा चाहे। तेरे द्वारा राज्य पतित नहीं हो।"

ठीक इसी प्रकार या देश कि जनता ने पुरोहित बनकर अपने राजा को वर्ष २०१४ से चुन लिया है और वो राष्ट्र को प्रथम और प्रजा को सबसे महत्वपूर्ण मानकर राज कर रहा है, लोकतंत्र मुस्करा रहा है।

इसी प्रकार अथर्ववेद » मण्डल:१२» सूक्त:१» मन्त्र:५४  के अनुसार:-

"अहमास्मि सहमान उत्तरोनाम भूम्याम्।

अभिषास्मि विष्वाषाडाशामशां विषासहि॥"

अर्थात मैं अपनी मातृभूमि, उसके दु:ख व कष्टों के विमोचन या दु:ख व कष्ट से मुक्ति के लिए स्वयं सब प्रकार के कष्ट सहने को तत्पर हूं। वे कष्ट कैसे भी, कहीं से आवें और कब आवें मुझे इसकी कोई चिंता या भय नहीं है। आगे कहा है-‘व्यचिष्ठे बहुपारये यते महिस्वराज्घ्ये।’ बहुमत से अर्जित इस सुविस्तीर्ण स्वराज्य के हितार्थ हम अर्थात राजा व प्रजा मिलकर अथक यत्न करते रहेंगे। इस मातृभूमि रूपी पृथ्वी का बीज बोने, खनिज निकालने, कुआं, तालाब आदि खोदने हेतु न्यूनतम उत्पीड़न हो, उसके मर्म को न्यूनतम क्षति हो और इसकी पूरी चिंता करेंगे व प्रयत्न करेंगे कि उसकी शीघ्र प्रतिपूर्ति हो।

और ठीक इसी प्रकार आदरणीय नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी कि सरकार भारत कि प्रजा के साथ मिलकर वो सब कार्य कर रही है, जो वेदो के अनुसार निर्धारित किया गया है।

ऋग्वेद » मण्डल:३» सूक्त:३८» मन्त्र:६  के अनुसार

त्रीणि राजाना विदथे पुरूणि परि विष्वानि भूषथ: सदासि।

अपश्यमत्र मनसा जगन्वान्व्रते गनवां अपि वायुकेशान॥

हे मनुष्यो/प्रजाजनो! मैं आप द्वारा निर्वाचित राजा उत्तम गुण कर्म और स्वभावयुत सत्यनिष्ठ विद्वान पुरुषों की राजसभा, विद्यासभा और धर्मसभा द्वारा नियत सिद्धांतों का अनुपालन करते हुए संपूर्ण राज्य संबंधी कर्मों को यथायोग्य सकल प्रजा के निरंतर सुख के अनुरूप संपन्न करूंगा॥

अब आप या विश्व का कोई भी व्यक्ति वर्ष २०१४ के पूर्व और वर्ष २०१४ के पश्चात कि परिस्थितियों का सूक्ष्म अवलोकन कर आसानी से भारत और उसकी प्रजा के आनंद , समृद्धि और सुख को अनुमान लगा सकता है।

ऋग्वेद मंडल १० सूक्त १७४ और मंत्र २ के अनुसार:-

अ॒भि॒वृत्य॑ स॒पत्ना॑न॒भि या नो॒ अरा॑तयः ।

अ॒भि पृ॑त॒न्यन्तं॑ तिष्ठा॒भि यो न॑ इर॒स्यति॑ ॥

राजा को इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि शत्रु कौन है, परसेना क्या-क्या अपहरण कर रही है और संग्राम करता हुआ शत्रुगण कितना है और कौन-कौन राष्ट्र के अन्दर इर्ष्या करनेवाले हैं, उन सबको अपने अधीन करे ॥

अब आप बताए, क्या वर्ष २०१४ के पश्चात प्रजा के सुख, समृद्धि और उन्नति को ध्यान में रखकर ठीक उसी प्रकार से कार्य किया जा रहा है या नहीं।

ऋग्वेद » मण्डल:१०» सूक्त:१७४» मन्त्र:५  के अनुसार

अ॒स॒प॒त्नः स॑पत्न॒हाभिरा॑ष्ट्रो विषास॒हिः ।

यथा॒हमे॑षां भू॒तानां॑ वि॒राजा॑नि॒ जन॑स्य च ॥

राजा को शत्रुनाशक या स्वयं शत्रुरहित राष्ट्र का संचालन करनेवाला, शत्रुओं का अभिभव करनेवाला तथा अपने राष्ट्र के जनगण में ऊँचे रूप में विराजवान होनेवाला प्रभावशाली होना चाहिये ॥

मनुस्मृति अध्याय ७ श्लोक ४ भी राजधर्म के बारे में स्पष्ट रूप से रखता है:-

इन्द्रानिलयमार्काणां अग्नेश्च वरुणस्य च ।

चन्द्रवित्तेशयोश्चैव मात्रा निर्हृत्य शाश्वतीः ।।

यह राजा (अर्थात जनता का चूना हुआ प्रतिनिधि) इन्द्र, अनिल, यम, अर्क, अग्नि, वरुण, चन्द्र और वित्तेश, इनकी निरन्तर रहने वाली मात्रायों, अर्थात् गुण धर्मों को लेकर बनाया गया है। अतः, राजा को(इंद्र) विद्युत् के समान आशुकारी, वायु (अनिल) के समान सब का प्राणप्रिय, मृत्यु (यम) के समान न्यायकारी, सूर्य के समान न्याय-धर्म-विद्या का प्रकाशक और अविद्या- अन्याय-अन्धकार का निरोधक तथा प्रतापी, अग्नि के समान दुष्टों को भस्म करने वाला, मेघ के समान विद्यामृत-वर्षक, चन्द्र के समान श्रेष्ठपुरुषों को शान्ति-आनन्द देने वाला, और पूर्णिमा (कुबेर) के समान पूर्ण तेजस्वी कोशयुक्त होना चाहिये।

और बस यही गुण धर्म लेकर हमारे प्रधानमंत्री, लोकतंत्र के ध्वज वाहक बने।

मनुस्मृति अध्याय ७ श्लोक ११२ और ११३

शरीरकर्षणात्प्राणाः क्षीयन्ते प्राणिनां यथा ।

तथा राज्ञां अपि प्राणाः क्षीयन्ते राष्ट्रकर्षणात् ।।

राष्ट्रस्य संग्रहे नित्यं विधानं इदं आचरेत् ।

सुसंगृहीतराष्ट्रे हि पार्थिवः सुखं एधते ।।

जिस प्रकार शरीर को दुःख देने से प्राण को दुःख होता है उसी प्रकार राज्य अर्थात् प्रजा के दुःखी होने से राजा का प्राण दुःख पाता है।प्रजा की उन्नति के लिये नित्य नियम तथा नीति का पालन करें। जिस राजा की प्रजा ने भली भांति उन्नति पायी हो उसी प्रकार के कार्य करने वाला राजा उन्नति पाता है।

आज जब रूस और युक्रेन में पिछले एक वर्ष से युद्ध हो रहा है और अमेरिका सहित लगभग सभी यूरोपिय देशों ने युक्रेन का साथ देकर युद्ध को जबरदस्त तरिके से भड़काया, वहीं  भारत हि दुनिया का एक मात्र देश है जिसने शांति स्थापित कर दोनों देशों से लोकतंत्र को मजबूत करने का ना केवल अनुरोध किया अपितु समग्र प्रयास भी किया।

अब दूसरी ओर देखें तो चिन और ताइवान, तुर्की और मिश्र, इजराइल और ईरान, उत्तर कोरिया और अमेरिका, सऊदी अरब और ईरान, सीरिया और अन्य मुसलिम देश , अजर्बैजान और एक अन्य देश इत्यादि सब के सब किसी ना किसी कारण युद्ध के मुहाने पर खड़े हैं और सभी को केवल भारत से हि उम्मीद है, क्योंकि वर्ष २०१४ से भारत ने विश्व में  अपना वो स्थान हासिल कर लिया है, जंहा से विश्व का भूगोल उसकी सहमति के बगैर नहीं बदला जा सकता।

हम भारतीयों का ये सौभाग्य है कि हमारे पास अब सही अर्थो में लोकतंत्र है और इसकी बागडोर विश्व के सबसे लोकप्रिय जन नायक आदरणीय श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी जी के नेतृत्व में है। हम सबको बस उनके हाथों को शसक्त और सामर्थ्यवान बनाये रखना है।

लेखन और संकलन :- नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)

aryan_innag@yahoo.co.in

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