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अमेरिका का षड्यंत्र लीबिया और इराक के बाद अब भारत के विरुद्ध |

8 जून 2023

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"We Came , We Saw , He Died" मित्रो जब हिलेरी क्लिंटन  ने बड़े ही वीभत्स तरीके से हँसते हुए  ये शब्द कहे, तब तक लीबिया के कुछ भटके हुए लोगों  ने NATO की सहायता से  अपने सबसे बड़े नेता कर्नल गद्दाफी को बड़े ही निर्मम तरीके से कत्ल कर दिया था | वो लोग नाटो खासकर अमेरिका के बहकावे में आ गए और अपने राष्ट्र लीबिया को स्वर्णिंम भविष्य से खींचकर अंधकार की भयानक दुनिया में ले गए |

जी हाँ, मित्रों अमेरिका और यूरोपीय देशो के स्वार्थ के पूर्ति की राह में जो भी रोड़ा बना उसको इन्होनें छल, कपट, साम, दाम, दण्ड, भेद और काम से खत्म कर दिया | इतिहास के पन्नो पर  दृष्टि डालते ही ऐसे कई उदाहरण मिलेंगे जैसे हमारे ही देश में स्वर्गीय डॉ होमियो जंहागीर भाभा तथा  स्वर्गीय लाल बहादूर शास्त्री जी  इत्यादि इसी प्रकार यदि विश्व पटल पर हम दृष्टि डाले तो स्वर्गीय हिटलर, स्वर्गीय सद्दाम हुसैन और स्वर्गीय कर्नल गद्दाफी इत्यादि जैसे बड़े विश्वस्तरीय नेता भी इसी श्रेणी में आते हैं, जिन्हें अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों ने अपने स्वार्थ की पूर्ति करने हेतु बलिदान कर दिया |

आज हम बात करेंगे लीबिया के राष्ट्रभक्त कर्नल गद्दाफी की, जिन्होंने अपने शाशनकाल में लीबिया को विश्वस्तर पर एक समृद्धशाली और विकास की ओर तेजी से कदम बढ़ाने वाले देश के रूप  में स्थापित कर दिया था | आइये कर्नल गद्दाफी के बारे में कुछ आवश्यक तत्वों को जानने का प्रयास करते हैं |



कर्नल गद्दाफी का पूरा नाम मुअम्मर अल गद्दाफी था। कर्नल गद्दाफी का  जन्म ७  जून १९४२  को लीबिया के सिर्ते शहर में हुआ था। इनके जन्म के समय "लीबिया" इटली नामक  एक यूरोपीय देश का गुलाम हुआ करता था। वर्ष  १९५१  में लीबिया को किंग इदरीस ( जिनका पश्चिमी देशों से मित्रतापूर्ण सम्बन्ध था )   के नेतृत्व में स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी। इटली हो या फ़्रांस सभी ने लीबिया पर उसी प्रकार जुल्म ढाये थे , जैसे चोर, लुटेरे और डकैत अंग्रेजो ने भारत पर जुल्म ढाये थे | युवा काल में गद्दाफी पर अरब देशो के मध्य बहने वाले राष्ट्रवाद और भारतवर्ष तथा मिश्र के राष्ट्रवाद से असीम प्रेरणा मिली और वो इससे बहुत प्रभावित थे । इसके अलावा गद्दाफी  मिस्र के नेता गमाल अब्देल नासिर का भी बड़ा प्रशंसक था । वर्ष  १९६१  में गद्दाफी ने बेनगाजी के सैन्य कॉलेज में प्रवेश लिया तत्पश्चात   कर्नल गद्दाफी ने  यूनाइटेड किंगडम में चार महीने तक सैन्य प्रशिक्षण भी प्राप्त किया था। सैन्य कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त कर लेने के पश्चात गद्दाफी ने  लीबिया की फौज में  कई उच्च पदों पर काम किया लेकिन, इस दौरान उनका प्रशासक किंग इदरीस के साथ मतभेद बढ़ने लगा। इस विरोध ने कर्नल गद्दाफी को सेना छोड़ सरकार के विरुद्ध काम करने वाले सबसे सशक्त गट में शामिल होकर सरकार के विरुद्ध विरोध का विगुल बजाने को मजबूर कर दिया ।

दिनांक १  सितंबर १९६९  को विद्रोहियों का नेतृत्व करते हुए  कर्नल गद्दाफी ने लीबिया से किंग इदरीस की सत्ता को उखाड़ फेंका।  इसके बाद गद्दाफी ने  सशस्त्र बलों के प्रमुख और रिवोल्यूशनरी कमांड काउंसिल के अध्यक्ष के रूप में शपथ लेते ही , लीबिया की छाती पर बैठकर उसका खून चूसने वाली यूरोपीय कंपनियों पर इसने लगाम कसना शुरू करा दिया। कर्नल गद्दाफी मात्र २७ वर्ष की उम्र में लीबिया का शासक बनने वाला एक राष्ट्रभक्त योद्धा था | सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त होने के कारण उसने पूरे देश पर सेना के माध्यम से नियंत्रण बना लिया और  सत्ता संभालते ही गद्दाफी ने लीबिया में अमेरिकी और ब्रिटिश सैन्य ठिकानों को बंद कराकर लीबिया को पूर्ण स्वतंत्र और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने की दशा में महत्वपूर्ण कदम बढ़ा दिया | गद्दाफी द्वारा उठाया गया यह कदम अमेरिका और धूर्त अंग्रेजो को उनकी औकात बताने वाला प्रथम कदम था , इससे वो पूर्णतया अपमानित महसूस करने लगे |

अमेरिकी, इटली और ब्रिटेन के धुरंधरों ने मिलकर कर्नल गद्दाफी की सत्ता को उखड फेकने के लिए हर संभव प्रयास करना शुरू कर दिया और इसके लिए उन्होंने वंहा रह रहे इटली के नागरिको का सहयोग लेना चालू किया | इधर गद्दाफी ने राष्ट्रहित को ध्यान में रखते हुए आदेश  जारी किया कि लीबिया में काम करने वाली सभी विदेशी तेल कंपनियां देश के साथ राजस्व का एक बड़ा हिस्सा साझा करें, जिसके फलस्वरूप लीबिया के तेल को लुटने वाली यूरोपीय कंपनियों पर भी लगाम कसना शुरू हो गया, जो इन विदेशी टट्टुओ को पसंद नहीं आया। कर्नल गद्दाफी ने ग्रेगोरियन कैलेंडर को इस्लामी कैलेंडर के साथ बदल दिया और पूरे देश में शराब की बिक्री पर रोक लगा दी। आमेरिएक, इटली और ब्रिटेन के द्वारा प्रायोजित षड्यंत्र के तहत दिसम्बर १९६९ में लीबिया सेना  के कुछ अतिमहत्वाकांक्षी अधिकारियों ने कर्नल गद्दाफी का तख्तापलट करने का असफल प्रयास किया और इन प्रयासों को देखते हुए कर्नल गद्दाफी ने अपने राजनैतिक विरोधियों जो की यूरोपीय देशो के हाथो की कठपुतली थे, उन्हें चिन्हित कर दंडित करना शुरू कर दिया | और षड्यंत्र में शामिल होने के कारण लीबिया  में रह रहे सभी इटली के नागरिकों को देश से निष्कासित कर दिया।कर्नल  गद्दाफी का यह कदम कुछ और नहीं अपितु  अरब राष्ट्रवाद  के रूप में  पश्चिमी साम्राज्यवाद के मुंह पर मारा गया वो तमाचा था, जिसकी गूंज अगले ४२ वर्षो तक अमेरिका और यूरोप के देशो के कानो में सुनाई देती रही।

आइये देखते हैं, कर्नल गद्दाफी द्वारा किये गए  कुछ महत्वपूर्ण सामाजिक कार्य, जिसे अमेरिका और ब्रिटेन सहित कई  यूरोपीय  देश अपने देश में  में कभी नहीं लागु कर पाए :-

१:- लीबिया में शिक्षा , स्वास्थ्य, बिजली , जल और गैस आम जनता के लिए बिलकुल फ्री कर दिया गया था , इन सभी के लिए लीबियन के घरो में कभी भी बिल नहीं आये |

२:- बाल विवाह प्रतिबंधित था |

३.:- घर का होना मानव अधिकार के रूप में स्वीकार किया जाता था, अत: वंहा कोई भी परिवार बेघर नहीं था |

४:- स्नातक की उपाधि प्राप्त करने वाले क्षात्रों को औसत वेतन दिया जाता था, जब तक उन्हें नौकरी नहीं मिल जाती थी |

५ :- शाक्षरता का प्रतिशत गद्दाफी के राज से पूर्व १० % थी और उनकी हत्या से पूर्व ८८ % थी |

६ :- विवाह होने पर नव दम्पत्ति को ५०,००० US डॉलर और गर्भवती होने पर ५,००० US  डॉलर की सहायता राशि दी जाती थी |

७:- बैंक और तेल का राष्ट्रीयकरण कर  दिया गया था, जिससे बैंक से लोन 0% के ब्याज की दर से मिलता था और तेल पानी की तरह सस्ता था |

८:-  लीबिया पर कोई भी विदेशी कर्जा नहीं था और उसके पास अपने १५० बिलियन US डॉलर का रिजर्व था |

९:- लीबियन को मिलने वाला वेतन बिलकुल कर  मुक्त (टैक्स-फ्री) था |

१० :- ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स पुरे अफ्रीका में सबसे उच्च स्तर पर था और सऊदी अरब से कई गुना बेहतर था |

११:- यदि कोई लीबियन खेती करना चाहता तो , उसे घर, जमीं, औजार , सिंचाई की सुविधा और बीज लीबिया सरकार की ओर से दिए जाते |

१२:- नई  गाड़ी खरीदने पर उसकी ५०% कीमत सरकार देती थी |

१३:- तेल के बेचने से हुए लाभ का कुछ प्रतिशत हर लीबियन के एकाउंट में सीधे भेज दिया जाता था |

१४:- दुनिया का सबसे बड़ा IRRIGATION  PROJECT जिसे "THE MEN MADE RIVER PROJECT" के नाम से जाना जाता है  का निर्माण कराया जिसकी लम्बाई करीब २५००० किमी के आस पास की है इस प्रोजेक्ट में fossil Aquifer तकनीक का उपयोग करके पिने युक्त पानी का कोष बनाया जो मिश्र और लीबिया की धरती के निचे है और विशेषज्ञों के अनुसार अगले १००० वर्षो तक लीबिया को पिने युक्त पानी यंहा से मिलता रहेगा |

अब मित्रो गौर करने वाली बात ये है कि " जो व्यक्ति अपने देश के नागरिको के शिक्षा की व्यवस्था करता है निशुल्क, जो व्यक्ति निशुल्क स्वास्थ्य सुविधाएं अपने देश के नागरिको को प्रदान करता है  और जो व्यक्ति बिजली, गैस , तेल  और जल जैसी मुलभुत आवश्यक्ताओ की निशुल्क पूर्ति करता है , क्या वो एक क्रूर , तानाशाह हो सकता है | जो व्यक्ति अपने देश के क्षात्रों की जिम्मेदारी उठता हो और स्नातक होने के पश्चात एक औसत वेतन देता हो , उनके खुद के व्यवसाय या नौकरी मिलने तक  तथा कृषि कार्य  करने हेतु घर, औजार, जमीन और बीज देता हो , वो भला कैसे तानाशाह  हो सकता है | क्या कर्नल गद्दाफी की केवल इतनी सी गलती थी की वो एक राष्ट्रभक्त थे और अपने देश के आंतरिक मामलो में पश्चिमी देशो की दखलंदाजी बर्दास्त नहीं करते थे | कर्नल गद्दाफी की गलती इतनी थी की उन्होंने फ़्रांस, अमेरिका और इटली के सैन्य अड्डों को अपने देश से उखाड़ फेंका | वो पश्चिमी देशो के हाथो की कठपुतली बनकर नहीं रहना चाहते थे |

इतनी सुविधाओं के देने के पश्चात भी कुछ भटके हुए लीबियन ने NATO खासकर अमेरिका के मायाजाल में फंस कर कर्नल गद्दाफी को एक बहुत जलालत पूर्ण  मौत दी | आइये देखते हैं कि, NATO ने आखिर कर्नल गद्दाफी के विरुद्ध झूठ का प्रोपेगेंडा फैलाकर क्यों मारा ?NATO ने कर्नल गद्दाफी को दो करने से मारा जिसमे प्रथम था IDEA  और दूसरा था लीबिया का तेल (OIL)| आइये देखते हैं, वे कौन से IDEAS थे कर्नल गद्दाफी के जिससे NATO भयभीत हो चूका था |

१:- कर्नल गद्दाफी ने करीब १४३ टन गोल्ड इकट्ठा किया था , ताकि पुरे अफ्रीका में एक ही प्रकार की Unified African Gold Currency  को मन्यता दिलाकर उसी currency में व्यापर को बढ़ावा दिया जाये (जैसा की यूरोपीय संघ में शामिल प्रत्येक देश में एक ही करेंसी EURO चलती है और आपस में इसी करेंसी के माध्यम से व्यापार होता है| ) अब इस IDEA  से सबसे ज्यादा नुकसान फ्रांस को होने वाला था क्योंकि अधिकतर अफ्रीकन देशो में फ़्रांस की करेंसी CFA France  में व्यापार होता था जो इन अफ्रीकन देशो में फ्रांस का नियंत्रण रखती है, अत: इस नए IDEA से सबसे ज्यादा खतरा फ्रांस को होने वाला था |

२:-  कर्नल गद्दाफी US डालर के ऊपर व्यापर की निर्भरता को खत्म करना चाहते थे, अत: उन्होंने लीबियन क्रूड आयल को डॉलर के बजाय रूबल, रूपी तथा यूरो इत्यादि में बेचने का निर्णय लिया, जिसे रसिया, भारत और चीन (जो अमेरिका के राजस्व प्रतिद्वंदी थे ) ने स्वीकार कर लिया | अब यंहा पर गौर करने वाली बात यह है की यदि भारत और रूस जैसे बड़े देश अपनी करेंसी में व्यापार करना शुरू कर देते तो अफ्रीका और अन्य यूरोपीय देश भी इससे प्रेरणा लेकर अपनी अपनी करेंसी में व्यापार करने को प्रोत्साहित होते, जिससे अमेरिकी डॉलर (जिसकी दादागिरी के बल पर अमेरिका अपनी मर्जी से कई देशो पर प्रतिबंध लगाता  फिरता है | ) की दादागिरी और वर्चस्व को खतरा पैदा हो गया था |

३:- कर्नल गद्दाफी सभी अफ़्रीकी देशो के लिए एक अफ्रीकन बैंक की स्थापना करने के लिए प्रयासरत थे, ताकि अफ़्रीकी देशो की WORLD BANK  पर निर्भरता कम हो सके और अफ़्रीकी देश अपने अफ्रीकन बैंक से लोन की सुविधा प्राप्त कर सके, जो अमेरिका , ब्रिटेन और फ़्रांस जैसे देशो के लिए एक चुनौती के सामान था |

४:- वो अफ्रीका महद्वीप के देशो के  करेंसी , व्यापार और प्राकृतिक संसाधनों पर पश्चिमी स्वार्थी लुटेरों के वर्चस्व को सदैव के लिए खत्म करना चाहते थे |

५:- आयल का राष्ट्रीयकरण कर देने से कोई भी विदेशी कंपनी लीबिया के खदानों से मुक्त रूप से  कच्चे तेल का उत्पादन नहीं कर सकती थी अत: अमेरिकी, ब्रिटेन और फ़्रांस तथा इटली कंपनियों का कंट्रोल लीबिया के तेल खदानों से बिलकुल खत्म हो गया, जिसे ये बर्दाश्त नहीं कर पाए | उनका मानना था की लीबिया की तरह अन्य अफ्रीकन देश अपने आयल स्त्रोतों को पूर्णतया अपने नियंत्रण में रखना चाहिए , क्योंकि ये उनका अधिकार है |

६:-  कर्नल गद्दाफी एक अड़ियल ( Tough  Negotiator)  थे, अत: वो पश्चिमी देशो को खासकर इटली, अमेरिका, ब्रिटेन और फ़्रांस को अपने ठोकरों पर रखते थे , यही नहीं अपने देश से इटली के पांच सैन्य अड्डों सहित अमेरिका, फ़्रांस और ब्रिटेन के सैन्य अड्डों को भी खाली  करा लिया और इनके सैनिको को इन देशो में वापस भेज दिया |

अब NATO  खासकर अमेरिका, फ़्रांस, ब्रिटेन और इटली के पास अपने स्वार्थ और लालच की पूर्ति करने हेतु बस एक ही मार्ग दिखलाई पड़ता है और वो था लीबिया में गृहयद्ध भड़ाकर किसी प्रकार दुनिया के सामने कर्नल गद्दाफी को एक क्रूर तानाशाह के रूप में दिखाकर उसके विरुद्ध NATO देशो के साथ आक्रमण करने का धिकार प्राप्त करना और कर्नल गद्दाफी की हत्या करना |

इसके लिए प्रोपेगेंडा फैलाना तो उन्होंने शुरू ही कर दिया था, जब कर्नल गद्दाफी प्रथम बार लीबिया के शाशक बने थे | कर्नल गद्दाफी को क्रूर , सनकी और तानाशाह के रूप में स्थापित करना, कर्नल गद्दाफी को मानवता को दुश्मन बताना और उन्हें समाज के लिए कलंक बताना पश्चिमी मिडिया का एक प्रिय शौक बना गया था | कर्नेल गद्दाफी, विंस्टन चर्चिल, स्टालिन या माओत्से तुंग से ज्यादा खतरनाक नहीं थे | अपितु वो विंस्टन चर्चिल और स्टालिन जैसे मानवता के दुश्मनो के आस पास भी नहीं थे |

खैर इसी दौरान ट्यूनीशिया में हुए एक  राजनीतिक क्रांति ने वंहा की सरकार को उखड फेंका | धीरे धीरे ये क्रांति मिश्र पहुंच गयी और मिश्र में हुस्नी मुबारक को अपनी सत्ता गवानी  पड़ी |  मोरक्को के राजा ने जनता के गुस्से को भांपते हुए जनमत संग्रह कराया| पश्चिमी मिडिया ने इस क्रांति को अरब uprising का नाम दिया और जोर शोर से इस क्रांति को भड़काना शुरू कर दिया | इस क्रांति के लीबिया पहुंचते ही , क़तर और सऊदी अरब अपने मिशन पर लग गए, इन्होने पश्चिमी देशो अर्थात NATO के इशारो पर झूठ का पुलिंदा फैलाना चालू किया | क़तर और सऊदी अरब ने कर्नल गद्दाफी के विरुद्ध मुहीम छेड़ते हुए मिडिया में खबर देना शुरू किया की कर्नल गद्दाफी बड़े पैमाने पर लीबियन को मरवा रहा है | इसी को आधार बनाकर अमेरिका , फ़्रांस और ब्रिटेन ने  यूनाइटेड नेशंस के सुरक्षा परिषद की बैठक में Resolution १९७३ /२०११ को अमल में लेकर नागरिको के रक्षा करने की आड़ में लीबिया के ऊपर आक्रमण करने का अधिकार १७ मार्च वर्ष २०११ को प्रपात कर लिया | विदित हो की इस संकल्प पर भारत, चीन, रूस ब्राजील और जर्मनी ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया | जर्मनी ने ये कहते हुए हिस्सा नहीं लिया की हमें लीबिया के अंदर मानव हत्या और अरब uprising जैसे संकेत नहीं मिल रहे |

खैर क़तर , सऊदी अरब सहित १७ देशो ने मिलकर लीबिया पर आक्रमण कर दिया | चूँकि कर्नल गद्दाफी ने विद्रोह के दर से सेना को संगठित और मजबूत नहीं बनाया था अत: उन्हें बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा | दिन्नक २० अक्टूबर, २०११ को लीबिया के स्थानीय विद्रोहियों ने उन्हें पकड़ कर सबसे पहले उनके पेशाब करने वाले अंग पर बंदूक की बट  से प्रहार कर घायल कर दिया, उसके पश्चात उन्हें कमर और पैर  में गोली मार दी| लहूलुहान कर्नल गद्दाफी उन्हें कहते रहे "खुदा इसकी इजाजत नहीं देता"  " मेरे बच्चों तुम नहीं जानते क्या सही है क्या गलत"  परन्तु अपने राष्ट्र को बर्बाद करने पे तुले उन भटके हुए लीबियन को कुछ नहीं दिखा और उनके सर पर गोली मारकर मौत की नींद सुला दी और फिर एक गुप्त कब्रगाह में उनके बेटे के साथ उन्हें दफना दिया |

कर्नल गद्दाफी ने कहा था की " मैं जावूंगा तो लीबिया की शान और अजमत लेकर जावूंगा" और हुआ भी यही, ४२ वर्षो तक अरब में ताकत बनकर छाने वाले लीबिया को कर्नल गद्दाफी ने तीन हिस्सों में विभक्त कर दिया | और आज लीबिया भुखमरी, बेरोजगारी, गरीबी, आतंकवाद, के दलदल में गले तक दुब चूका है | आज अलकायदा , ISISI, मुस्लिम ब्रदरहुड इत्यादि जैसे अनेक आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं जबकि कर्नल गद्दाफी के रहते ये संभव नहीं था |

क्लिंटन की लिक हुई एक ईमेल ने स्पष्ट कर  दिया था की किस प्रकार फ़्रांस और अमेरिका ने अपनी लालच और स्वार्थ के कारन कर्नल गद्दाफी पर झूठे इल्जाम लगाकर UNSC का दुरुपयोग किया | अरब लीग के विनती पर रूस और चीन ने भी अपने वीटो पावर का उपयोग नहीं किया था |  इस प्रकार एक राष्ट्रवादी नेता जो पश्चिम के स्वार्थी और लालची देशो के विरुद्ध चट्टान बन कर खड़ा था , समाप्त कर दिया गया, परन्तु सोचने वाली बात ये है की जो भूल लीबियन ने की और अपने देश को जहन्नुम बना दिया , क्या वही गलती दुनिया के अन्य देश नागरिक  भी करना चाहेंगे |

नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता )

aryan_innag@yahoo.co.in

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