लखनऊ: तीर्थराज प्रयाग का संगम तट। इसी पूर्णिमा को गंगा यमुना और अदृश्य सरस्वती के इस क्षेत्र में देश का प्रख्यात धार्मिक माघ मेला संपन्न हो गया। इन्हीं पवित्र नदियों की रेती पर एक महीने से भी कुछ अधिक समय तक कल्पवास कर कठोर धार्मिक अनुष्ठान करने वाले देश भर से आये हजारों कल्पवासी और साधु-संत भी वापस लौट गये है।ं लेकिन, इस बार बहुत भारी मन से। अत्यंत प्रदूषित गंगा मइया में नित्य डुबकी लगाते रहने वे बहुत व्यथित रहे है। उनकी सबसे बडी चिंता इसी संगमत ट पर दो साल बाद होने जा रहे विश्वप्रसिद्ध अर्धकुंभ मेला में भी गंगा के निर्मल और अविरल प्रवाहिनी होने की तनिक भी संभावना नहीं।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की अत्यंत महत्वाकांक्षी योजना ‘नमामि गंगे‘ का यही सबसे दुखद और कडुवा सच है। यही वजह है कि यहां आये संत समुदाय ने सीधे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोेदी से यह सवाल उठाया था कि गंगा को अविरल और निर्मल प्रवाहिनी बनाने की भीष्मप्रतिज्ञा का क्या यही सच है। इसी बात को लेकर राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने भी अपनी गंभीर चिता और दुख जताया है। मोदी सरकार के लगभग तीन साल के कार्यकाल में गंगा की एक बूंद भी नहीं साफ हो सकी है। वह तिल तिल कर मर रही हैं। गंगा को निर्मल बनाने का बीडा उठाने केंद्रीय मंत्री उमा भारती पूरी तरह फुस्स साबित हो गयी हैं।
यही वजह है कि इस स्थिति में अमेठी और प्रयाग के प्रख्यात संत स्वामी हरिचैतन्य ब्रह्मचारी ने दो टूक शब्दों में ‘इंडिया संवाद‘ से से यह कहना पडा है कि उन्हें लगता है कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की ‘नमामि गंगे‘ योजना का भी हश्र पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कालखंड जैसा ही होकर रहेगा। उन्होंनं याद दिलाया कि 1985 में राजीव गांधी ने भी गंगा को निर्मल और अविरल बनाने के लिये बडी कोशिश की थी। इसके लिये हजारों करोड रु का ‘गंगा एक्शन प्लान‘ बनाया गया था। लेकिन, उनकी लाख कोशिशों के बावजूद, गंगा जस की तस रह गयीं। भ्रष्टाचार ने उनकी इस पूरी योजना को ही लील लिया। क्या अब मोदी सरकार में भी गंगा का यही हश्र होकर रहेगा?
मेला क्षेत्र में आये दूसरे धर्माचार्य भी कमोवेश इसी मत के रहे हैं। संत आचार्य स्वामी राधेश्याम सहित दूसरे अनेक धर्माचार्यों और संतों ने भी गंगा मइया के अच्छे दिन आने को लेकर सवाल उठाया है। इनका कहना है कि इसे लेकर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की नीति और नीयत में तो कोई खोट नहीं हो सकती है। उन्हीं के निर्देश पर केंद्र सरकार के सात मंत्रालयों को भी केंद्रीय मंत्री उमा भारती को हर संभव सहयोग देने के काम में लगा दिया गया है। हजारों करोड रु की धनराशि भी अवमुक्त कर दी गयी है। लेकिन, इतना सब होने के बावजूद, यह बेहिचक कहा जा सकता है कि गंगा को निर्मल बनाने के लिये प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का संकल्प दिवास्वप्न होता जान पड रहा है। इसके लिये मिली धनराशि का अभी तक सार्थक उपयोग ही नहीं किया जा सका है। हां, दुरुपयोग जरूर हुआ है।
इस संबंध में त्रासद तथ्य यह है कि गंगा में आज भी रोजाना 12051 मिलियन लीटर सीवेज बिना शोधन के गिर रहा है। उत्तर प्रदेश के 444 बूचडखानों में से 442 सिर्फ कानपुर शहर में ही हैं। यहां की टेनरियों का सारा कचडा आज भी गंगा में लगातार गिर रहा है। इस पर रोक लगाने के लिये सुप्रीमकोर्ट का भी सख्त आदेश जारी हो चुका है। लेकिन, प्रदेश की अखिलेश सरकार ने राजनीति क कारणों से अपने दोनों हाथ खडे कर दिये हैं। उनमें एक समुदाय विशेष के लोगों की नाराजगी मोल लेने का साहस नहीं।
लिहाजा, औद्योगिक रसायनयुक्त अवशेष, शहरी सीवेज, ठोस विषैला कचरा, रेत व पत्थर की चुनाई और बांधों जैसे अनेक कारणेंा से गंगा हर दिन और हर पल तिल तिल कर मरती जा रही है। ऋषीकेश में तो गंगा के पानी में नहाया जा सकता है। लेकिन, हरिद्वार के बाद इसका जल आचमन करने के लायक भी नहीं रह गया है। इस पीने के बाद उल्टी-दस्त के साथ जानलेवा बीमारियों की गिरफ्त में आने से बचना मुश्किल है। ऐसे में उमा भारती के दावे के मुताबिक ‘नमामि गंगे योजना‘ वर्ष 2018 तक किसी भी सूरत में मूर्तरूप नहीं ले सकेगी। मंत्री उमाभारती नमामि गंगे मिशन के लिये आवंटित 20 हजार करोड रु की राशि को कम मानती हैं। इस तरह आज भी वही सब हो रहा है, जो पिछले तीस सालों से होता चला आ रहा है। इति।