शायद उनकी समस्या का समाधान उनकी वहीं प्रतीक्षा कर रहा था जहां से वह आये थे।
सरोज शेखावत अपने परिवार सहित आश्रम से वापसी कर चुके थे। सब कार से वापस आ रहे थे। सुमीत खिड़की से बाहर का नजारा देख रहा था वहीं अथर्व को रागिनी याद आ रही थी ,इस सुकून के साथ कि वह वहां प्रसन्न है।
सब घर आ चुके थे। सरोज शेखावत और सुजाता अपने कमरे मे चले गये थे और सुमीत और अथर्व अपने कमरे में। अथर्व ने अपना फोन उठाया तो उसमें प्रियदर्शना के पांच मिस काल थे। प्रियदर्शना आस्था की सबसे अच्छी मित्र जिसने आस्था के चले जाने की बात अथर्व को बताई थी। फोन साइलेंट पर था तो अथर्व सुन नहीं पाया था रिंग। ये मुझे क्यों फोन कर रही है?अथर्व बुदबुदाया। "क्या कह रहे हो अथर्व?"सुमीत ने पूछा तो अथर्व फोन मिलाते हुये बोला कि आस्था की सहेली प्रियदर्शना का फोन आया था वही सोच रहा हूं कि ये मुझे क्यों काल कर रही है।
फोन उठा तो उधर से आवाज आई ---
हेलो।
हेलो प्रियदर्शना ,तुम्हारे इतने सारे मिस काल ?क्या बात है?मैं बाहर था तो फोन साइलेंट था तो मैं रिसीव न कर पाया।
प्रियदर्शना--अथर्व आस्था बहुत तकलीफ मे है। उसका पति विवान उसे बहुत बेरहमी से पीटता है। कल सुबह दोनों का बहुत झगडा़ हुआ । उसने मुझे फोन किया था।वह बहुत रो रही थी। कह रही थी कि मैंने जो गलती की उसकी सजा मुझे मिल रही है। मैंने...
अथर्व उसकी बात बीच मे काटता हुआ---
मुझे ये सब क्यों बता रही हो?उसने ये जिंदगी अपने लिये स्वयं चुनी है।ये उनके आपस का मामला है।
प्रियदर्शना-- मैं जानती हूं उसकी गलती का खामियाजा तुम्हें भुगतना पडा़ है । मैंने उससे लाख समझाया था कि घर में सबको बता दो ,वो तुम्हारी बात समझेंगे मगर उसके सिर पर प्यार का भूत सवार था। उसके जाते जाते भी मैंने कहा ये तुम सही न कर रही हो मगर मेरी एक न सुन वह चली गयी थी। अब इन सब बातों से क्या फायदा?
अथर्व आस्था ने विवान से चुपके से मंदिर मे विवाह किया था जिसे कोई न जानता। वह घर छोंड़कर मेरे पास आई है क्योंकि विवान ने उसे यह कहकर घर से निकाल दिया कि दोबारा यहां कदम न रखना।अथर्व वह बहुत जख्मी है हो सके तो एक बार मिल लो उससे,बाकी तुम्हारी मर्जी।
और प्रियदर्शना ने फोन काट दिया।
अथर्व से खडे़ न हुआ गया। वह धम्म से सिर पकड़ कर बैठ गया । उसे बचपन की आस्था याद आ रही थी गुडि़या जैसी ,जिसके साथ वह खेलता था।उसे कभी मां ,पापा ने हाथ न लगाया था और आज वह जिस हालत मे थी उसकी जिम्मेदार वह स्वयं थी।
"अथर्व क्या हुआ? अथर्व ,अथर्व कुछ तो बोलो"सुमीत जोर जोर से पूछने लगा तो आवाज सुनकर सरोज शेखावत और सुजाता आ गये। उन्होने उसको आराम से बिठाया ,पानी पिलाया। थोडा़ सामान्य होने पर उसने घर मे सबको प्रियदर्शना के साथ हुई बातचीत बताई।
सरोज शेखावत बोले तुम्हें आस्था से मिलने जाना चाहिये। सुमीत तुम भी जाओ साथ मे, और गाडी लिये जाओ। अथर्व कुछ न बोला। सुजाता ने कहा तुम पहले आस्था से फोन करो ,देखो वो क्या कहती है?
अथर्व ने फोन किया तो आस्था ने फोन उठाया पर सिसकियों के सिवा कुछ कह न पाई ।
अथर्व बोला ,आस्था चुप हो जाओ और बताओ क्या बात है?तुमने तो ये जीवन अपने लिये स्वयं चुना फिर क्या दिक्कत है?
आस्था--उसी गलती का तो फल पा रही हूं। मैं जानती हूं कि तुम मुझसे बहुत नाराज हो ,तुम्हें हक है नाराज होने का ,मैंने काम ही ऐसा किया है। मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है। मां पापा के पास क्या मुंह लेकर जाऊं ?उन पर भरोसा न करके बहुत गलत किया। बस एक बार तुमसे मिलना चाहती हूं ,कहकर उसने फोन रख दिया।
सुजाता ने सब सुना फोन स्पीकर पर था तो वह बोली "अथर्व मैं सोच रही हूं कि आस्था को यहां ले आया जाय ।चूंकि सब जानते हैं कि आस्था का विवाह सुमीत से हुआ है तो उसे यहां लाकर जब वह सही हो जाय तब उसकी सुमीत से किसी मंदिर में शादी करा देंगे।तुम भी अपने मां ,पापा के पास जा सकोगे। उसे अपनी गलती का एहसास है तो उसे एक मौका मिलना चाहिये"।सरोज शेखावत को सुजाता की बात मे दम लगा और अथर्व भी सोचने लगा कि सही है ,जो बात बिगडी़ वो फिर सही हो जायेगी तो मैं भी अपने मां पापा के पास जाकर उनके प्रति अपना फर्ज पूरा कर सकूंगा।
अथर्व और सुमीत जाकर आस्था को घर ले आये। वह इतनी शर्मिंदा थी कि किसी से नज़रें भी न मिला पा रही थी। उसे फिलहाल एक अलग कमरा दे दिया गया था ।
सुजाता ने उसकी चोंटों पर दवाई और अपने स्नेह का मरहम लगा दिया था और वह सो गयी थी।
रात हो चुकी थी तो सब सोने चले गये थे।
अथर्व और सुमीत भी अपने कमरे मे थे। अथर्व ने कहा कि वह कल सुबह अपने घर चला जायेगा
भोर हो गयी थी। सुजाता नहा धोकर पूजा पाठ कर नाश्ता बना रही थी । अथर्व ने आकर कहा "मां मैं अपने घर जाने की अब आज्ञा चाहता हूं"। सुजाता बोली "नाश्ता करके फिर खाना खाकर जाना"। सरोज शेखावत वहां आये और बोले"ऐसे न जाने दूंगा ,तुम्हें मुझसे कुछ उपहार के रूप मे लेना पडे़गा "। "उसकी कोई आवश्यक्ता नहीं है पापा"अथर्व बोला तब तक सुमीत और आस्था अपने अपने कमरे से आ चुके थे। बहुत कहने पर सरोज शेखावत के ,उसने कहा कि "अच्छा आप कुछ देना ही चाहते तो मेरी बुआ की आत्मा के मोक्ष के लिये पूजा करवा दीजिये ताकि उन्हें मुक्ति मिल सके। मेरे पापा को भूत मे विश्वास नहीं और मां पापा की आज्ञा बिना कुछ न कर सकतीं इसलिये बुआ की आत्मा अभी भी भटक रही है ,मैं कुछ जानता न हूं और वैसे भी पापा की अनुमति बिना कैसे कुछ करूं ?"
उन्होने कहा कि हम अवश्य करायेंगे। तुम पहले अभी अपने घर हो आओ फिर जब सुमीत और आस्था से मिलने आना तब सब साथ मे जाकर पूजा करवा देंगे।
सबने पूरा दिन साथ मे बिताया ।रात को अथर्व जाने लगा तो आस्था गले लगकर रोने लगी और बोली कि मां पापा का ख्याल रखना ,मैं क्या मुंह लेकर उनके सामने जाऊं ?कहते हैं कि लड़की दो परिवारों की इज्जत ,मान ,मर्यादा का ख्याल रखती पर मेरा काम तुमने किया।
अथर्व उसे समझा कर पुचकार कर और सुमीत से बाय कर चल दिया।
अथर्व जब घर के लिये जा रहा था तब उसे लगा कि कोई है उसके पीछे पलट कर देखा तो.........शेष अगले भाग में।