अंदर एक संत उन्हें वहां ले गयीं जहां सबकी गुरु संत माता बैठी थीं और वहां बहुत से छोटे बच्चे बच्चियां सांध्य प्रार्थना कर रहे थे---
"हे ईश्वर हमें ज्ञान दे,
स्वप्न पंखों को उडा़न दे,
हमें मिलें,हम बांटें ,
सभी को खुशियांआआ,
कभी दुखों की न शाम दे।
हे ईश्वर....."।
प्रार्थना खत्म होने के बाद उन्होने प्रवचन दिया प्रसाद बंटा फिर बच्चे वहां से चले गये। पूछने पर पता चला कि ये अनाथ बच्चे हैं जिनको यहां सहारा देकर उनकी पूरी देखभाल कर ,उन्हें बेहतर जीवन दिया जाता है। बहुत सुकून मिला था सभी को यहां आकर।पहुंचते पहुंचते शाम हो गयी थी तो सरोज शेखावत और सुजाता ने रात में वहीं रुकने का निर्णय लिया।
वो सब वहीं बैठे रहे ।रात होने को आई थी।उन्हें भोजन कक्ष में ले जाया गया जहां पंक्तिबद्ध सब बैठे थे।उनके सामने पत्तल थे जिसमें खाना वहां की महिला कर्मचारियों द्वारा परोसा जा रहा था। अचानक अथर्व की नज़र पडी़ तो वह चौंक गया जब उसने वहां रागिनी को देखा। ये यहां?वह सोचने लगा।उसे पता ही न था कि रागिनी इतने सालों बाद उसे मिलेगी तो यहां?
उसे याद आया कि उसने रागिनी के प्रणय प्रस्ताव को यह कह मना कर दिया था कि वह किसी लड़की का जीवन खराब न कर सकता है क्योकि वह लड़की से विवाह कर ही न सकता है,पर रागिनी ने फिर भी उसी के साथ रहने की इच्छा जाहिर की थी जिसे उसने स्वीकार न किया था।तब से सालों बाद आज वह उसे इस रूप मे देख रहा था। तो रागिनी ने अपना जीवन यहां समर्पित कर दिया?
रागिनी उसे खाना परोस रही थी,उसे भी अथर्व को देखकर बहुत प्रसन्नता हुयी थी ,पर अथर्व की जैसे भूख ही मर गयी थी।वह रागिनी से बात करना चाहता था पर कैसे?
जैसे तैसे उसने खाना निगला। फिर ठहरने वालों को उनके सोने के कक्षों मे ले जाया गया।उसे रागिनी से बात करने का मौका न मिला तो सोचा कि जाने से पहले सुबह बात करता हूं।
पूरी रात करवटें बदलते बीत रही थी अथर्व की। सुमीत ने पूछा "क्या बात है ,तुमने खाना भी सही से न खाया,तुम्हें यहां आकर अच्छा न लगा क्या?"। "नहीं ऐसी कोई बात नहीं है"कहकर अथर्व ने बात टाल दी। अभी क्या बताता तो चुप रहा।
भोर हो गयी थी। सब उठ चुके थे और दैनिक क्रिया से निवृत हो अपने अपने कामों मे लग गये थे। अथर्व उठ कर आया ,उसकी नज़रें रागिनी को खोज रही थीं,पर वो शायद अंदर किसी कक्ष में थी और हर कक्ष में जाकर देखना उसे सही न लगा। कितना मनोरम वातावरण था जो मन को अपनी तरफ खींच रहा था।
कुछ देर बाद सभी बच्चे खुले मैदान मे लाये गये जहां प्रार्थना होनी थी।वहीं आश्रम के सभी सदस्य और गुरु माता भी आईं । सभी ,बच्चों के साथ खडे़ होकर प्रार्थना करने लगे--
"मातु शारदे नमन तुम्हें,
नमन तुम्हें हे वीणा वादिनी,
शांत ,शुभ्र,ज्योति से अपनी,
अज्ञान मिटातीं,ज्ञान जगातीं,
मां मानस की तुम शालिनी।
बैठ जिव्हा हंस पर,
देह सितार, श्वास तारों पर,
बजातीं भाव शब्दों की रागिनी।"
रागिनी भी प्रार्थना कर रही थी ।अथर्व का प्रार्थना मे मन न लग रहा था। प्रार्थना समाप्त होने पर सब जाने लगे ।रागिनी भी जा रही थी तो अथर्व उसके पीछे हो लिया। रागिनी एक बरामदे में गयी और वहां चिडि़यों के लिये दाने और पानी रखने लगी। वहां जाने कितनी चिडि़यों के लिये घोंसले बनाये गये थे और चिडि़यों की चहचहाहट से माहौल गुंजायमान हो रहा था।
अथर्व को आया देख वह एक बेंच पर बैठ गयी। "रागिनी तुम यहां?तुमने अपना जीवन यहां समर्पित कर दिया?तुम्हें विवाह कर अपने जीवन में आगे बढ़ जाना चाहिये था"। वह एक सांस में बोल गया। रागिनी ने कहा "मैंने तुमसे प्यार किया था ,तो किसी और से विवाह को कैसे सोच लेती?हम लड़कियां एक बार जिसे दिल में बसा लेते हैं फिर उसकी जगह किसी को न देते हैं। मीराबाई ने कान्हा से प्रेम किया तो पूरा जीवन उनको समर्पित कर दिया।शबरी ने राम जी की लगन लगाई तो पूरा जीवन उन्हीं का मनन करते ,प्रतीक्षा करते बिताई फिर उन्हें प्रभु राम का दर्शन भी मिला।मैं उनके चरणों की धूल भी नहीं पर इतना तो करूंगी ही"।
"ये क्या पागलपन है रागिनी प्यार करती हो पर उस प्यार के सहारे पूरा जीवन होम कर दो ?ये कहां उचित है,मैं तुमसे चाह कर भी विवाह न कर सकता,और अपने साथ भी न रख सकता हूं। आगे बढो़ अपने जीवन में वर्ना मुझे लगेगा कि इसका जिम्मेदार मैं हूं और एक बोझ तले मैं दब कर रह जाउंगा"।
"नहीं ,नहीं तुम अपने मन पर कोई बोझ न रखो,मैं यहां बहुत प्रसन्न हूं।सबकी सेवा कर ,बच्चों को पढा़कर ,उनकी देखभाल कर,इन विलुप्त होती जाती चिडि़यों का संरक्षण कर जो आशीष और असीम आनंद की अनुभूति होती है उसका वर्णन शब्दों मे न किया जा सकता है।और मेरे प्यार की शपथ मैं यहां बहुत प्रसन्न हूं। प्यार का दायरा संकुचित नहीं होता है।ये तो बहुत विशाल क्षेत्र मे फैला है।प्यार में पाने से ज्यादा देने में आनंद होता है ,किसी का जीवन बनाने मे होता है।यहां आकर ही प्यार का अर्थ मैंने सही अर्थों मे समझा है"। पर तुम सच में यहां खुश हो ,मेरी वजह से तो...."।खाई ना ,तुमसे किये प्यार की शपथ ,रागिनी ने बीच में बात काट कर कहा तो वह निश्चिंत हो गया,पर सरोज शेखावत व सुजाता को यहां आकर सुकून तो मिला पर क्या करना ये न साफ हो पाया।शायद उनकी समस्या का समाधान उनकी वहीं प्रतीक्षा कर रहा था ,जहां से वह आये थे........शेष अगले भाग में।