जैसे ही उसने घूंघट उठाया ,मुंह से चीख निकली हहहाआआ । "हा हा हा हा हा "करते हुये अथर्व बेड के पीछे से निकल कर बाहर आया और कमरे की लाइट जला दी। सुमीत ने देखा कि आस्था के चेहरे पर डरावना मुखौटा लगा हुआ था। अथर्व ने मुखौटा हटाया तो आस्था भी मुस्कुरा दी। "अच्छा तो ये तुम्हारा किया धरा है"सुमीत ने कहा। "थोडा़ मजाक तो बनता है जीजा जी"अथर्व बोला । सुमीत गंभीर होते हुये बोला "हां वो तो है पर आज मैं तुम दोनों को अपने जीवन का एक सच बताना चाहता हूं जो मेरे मां ,पापा भी नहीं जानते। मैं किसी से प्यार करता था और उससे छुप कर शादी कर ली थी। घर मे नहीं बताया। वह मेरी पहली पत्नी है ,जिससे मैं अब भी मिलने जाता हूं। मैं उससे भी रिश्ता रखूंगा ,क्योंकि उससे मेरे दो बच्चे भी हैं"। "क्या!ये आप क्या कह रहे हैं?"आस्था ने दुखी होकर कहा ।"तुम ऐसा कैसे कर सकते हो सुमीत?तुम्हें पहले बताना चाहिये था।मुझे पता होता तो मैं क्यों आस्था का विवाह तुमसे करवाता? ।तुमने मेरी बहन की जिंदगी खराब कर दी। कितना बुरा लग रहा है सोचकर कि मेरी बहन किसी की जूठन खायेगी । मेरी बहन ने जो अपराध किया उसका उसे पछतावा है और वो तुम्हें पहले ही पता था।तुमने मेरी बहन को अंधेरे में रखा। ये तुमने सही न किया सुमीत। अथर्व बिफर पडा़ । "थोडा़ मजाक तो बनता है साले जी ,हा हा हा ,सुमीत ठहाका लगाते हुये बोला। आस्था आश्चर्य से देखने लगी। "मतलब ये मजाक था ",अथर्व बोला । "और क्या ,तुम मजाक कर सकते हो तो मैं नहीं कर सकता?"। अथर्व बोला "क्या जीजा जी ,आप भी"। आस्था मुस्कुरा दी। "वैसे मेरी आस्था से पहले एक दुल्हन तो है वो है अथर्व ",सुमीत ठहाका लगा कर बोला । अथर्व मुस्कुरा कर विदा ले अपने घर चल दिया।
प्रभा मिश्रा 'नूतन'
समाप्त।
आप सबको कहानी कैसी लगी ,समीक्षा दें।आपकी समीक्षा मुझे और अच्छा लिखने को प्रेरित करेगी।धन्यवाद।