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'घूंघट में कौन'-भाग 8

20 अप्रैल 2022

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अथर्व जब घर के लिये  जा रहा था तो उसे लगा कि कोई है पीछे ,पलट कर देखा तो विश्नोई अंकल थे ।कितने सालों बाद आज उसने विश्नोई अंकल को देखा पर इस हालत में!वह जैसे सुन्न गुन्न से मानसिक विक्षिप्त लग रहे थे। उसे पहचान भी न पाये थे । अथर्व को समय ने अतीत मे धकेल दिया जब वह नाइंथ मे था।विश्नोई अंकल उसके घर के सामने रहते थे और उसके पापा से उनकी अच्छी दोस्ती हो गयी थी। वह पढे़ लिखे न थे पर बहुत सीधे साधे सरल थे। पारिवारिक ,आर्थिक जिम्मेदारियों के चलते पढ़ ही न पाये थे। मां पिता बचपन में गुजरने के कारण तीन तीन बहनों को पढा़ लिखा कर उनका विवाह करने मे स्वयं की पढाई  पर ध्यान ही कहां गया था उनका। अपनी पत्नी का बहुत ध्यान रखते और उससे बेइंतेहां प्यार करते थे। उसकी पढाई पूरी न हो पाई थी और विवाह हो गया था तो विश्नोई अंकल ने पढाई पूरी करने व नौकरी करने की छूट दे दी थी। उनकी पत्नी शर्मिष्ठा अंतर्मुखी लगतीं ,वो ज्यादा बात न करतीं। एक दिन वो घर आये तो बोले कि शर्मिष्ठा की नौकरी दूसरे दूर जिले मे लग गयी है ।वह जा रही पर कह रही कि वहां व्यवस्थित होने के बाद वह उन्हें ले जायेगी।वह बहुत उदास थे कि शर्मिष्ठा के बिना कैसे रह पायेंगे?
दो साल हो गये थे। प्रारंभ मे शर्मिष्ठा आंटी के फोन आते थे,जैसा कि विश्नोई अंकल बताते थे,फिर फोन आना बंद हो गये और कुछ दिन बाद पता चला कि शर्मिष्ठा की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गयी। टूट गये थे विश्नोई अंकल। फिर एक दिन घर की चाभी मां को दे कहीं चले गये थे ,बताया भी न था कहां जा रहे। तब से आज वह इस हालत मे दिखे थे कि विश्नोई अंकल से वह कह भी न सकता था कि घर चलिये ,वह पहचान भी न पा रहे थे उसे तो उसके साथ चलने को कैसे तैयार हो जाते?
बुझे मन से अथर्व घर पहुंचा तो उसे अचानक आया देखकर सदानंद शिवाय ने पूछा "अचानक तुम आ गये?सब सही है?"। अथर्व ने प्रियदर्शना से बातचीत से लेकर आस्था को घर लाने और उसकी सुमीत से विवाह करा देने की बात बताते हुये कहा कि "पापा ,आस्था को अपने किये पर बहुत पछतावा है,और वह कह रही थी कि क्या मुंह लेकर घर जाऊं?"। सदानंद शिवाय कुछ न बोले और अपनी पत्नी के साथ अपने कमरे मे आ गये जिससे साफ जाहिर हो रहा था कि आस्था के दिये घाव उनके भरे नहीं हैं अभी,और उनके चले जाने से अथर्व विश्नोई अंकल वाली बात उन्हें बता ही न पाया। कमरे मे आकर सदानंद शिवाय पत्नी से बोले "आस्था हमें पहले ही सब बता देती तो वह जहां चाहती वहां उसका विवाह करा देते,हम तो उसकी खुशी मे ही खुश होते पर उसने हम पर विश्वास ही न किया"। वह सोचते रहे कि दो बच्चे पर दोनो ही कैसे मिले,बेटी ऐसी मिली और बेटा लड़कों मे रुचि रखने वाला कि उसकी लड़की से शादी कर किसी की लड़की के जीवन से खेला न जा सकता ,सब जानते हुये।
दिन बीतते जा  रहे थे।आस्था के शारीरिक घाव तो भर रहे थे पर मानसिक घाव अभी भी हरे थे। वह अपने किये की वजह से सबसे बहुत कम बोलती और घर मे हाथ बंटाने को कहती तो सुजाता मना कर देती कि आराम करो अभी। वह सब भुलाने का बहुत प्रयास करती पर कड़वी यादें थीं कि पीछा ही न छोड़ती थीं,जिनको कभी कभी वह झिटकती हुयी कहती---

"फिर आये तुम ?
कटु स्मृतियों के पंक्षी,
खोजो अपना ठौर ,ठिकाना,
मृत स्वप्नों की ढे़री पर बुनती,
मैं जीवन का ताना बाना।
हर दिवस रोतीं गातीं,
पलकें विषादों का भार उठातीं।
बचता जीवित होने के ,
अहसास से जीवन,
छलकता अब सब्र का पैमाना"।

पर फिर भी वो यादें उसे सतातीं तो वह अकेले मे रोती और अपने मन के आगे गिड़गिडा़ कर कहती ---

"मत घसीटो ऐ मन,
मुझे अतीत के कांटों में।
डरती हूं,इनमें उलझ,
उलझ कर न रह जाऊं।
मार्ग अवरुद्ध न हो जाय बढ़ने का,
फिर तम के गर्त मे न गिर जाऊं,
और मुझे असहाय देख,
हावी न हो जाये वो बदनसीबी,
जिन्हें छोंड़ आई ,उन्हीं गलियों में।
मार्ग छोडो़,बढ़ने दो मुझे जीवन में"।

अथर्व मिलने भी आता था और फोन से भी बात हो जाती थी।इसी बीच उसकी बुआ की आत्मा के मोक्ष के लिये पूजा भी करवा दी गयी थी और उन्हें भूत योनि से मुक्ति मिल गयी थी।
एक दिन जब अथर्व सुमीत के घर आया तो सुजाता ने कहा "अथर्व मैं सोच रही हूं कि तुम और सुमीत आस्था को कहीं दूर ,हिल स्टेशन  घुमा लाओ तो उसका मन बदल जाय "।सरोज शेखर का भी यही मत था । अथर्व ने सुमीत से पूछा तो वह बोला "जहां चलना हो चलो ,मैं तैयार हूं"और फिर अथर्व ने अपने मां पापा से आज्ञा ली और अनुमति मिल जाने पर तीनों गोवा के लिये निकल गये।
रास्ते भर सुमीत और अथर्व आस्था को हंसाने और उसको खुश करने का प्रयास करते रहे पर वो हल्का सा मुस्कुरा देती फिर शांत हो जाती।पर दोनों अपना प्रयास जारी रखे थे और अंततः आस्था को उनकी बातों और हरकतों पर हंसी आने लगी और वह खिलखिला देती। 
गोवा पहुंचकर तीनों घूमते फिरते ,शापिंग करते ,दिन बिताने लगे। होटल में एक कमरा बुक कर लिया था। तीनों दिन भर घूमते ,घामते शाम तक आते फिर देर रात तक बातें करते फिर सो जाते। 
एक दिन तीनों एक रेस्ट्रां में खाना खाना गये। टेबिल बुक कर ली,और  बैठे थे। तभी अथर्व की नज़र वहां खाना खाते एक दंपत्ति पर गयी और उसकी आंखें फटी की फटी रह गयीं .........शेष अगले भाग में।

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'घूंघट में कौन'-भाग 1

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सरोज शेखावत आज बहुत खुश नज़र आ रहे थे ,होते भी क्यों नहीं आज उनके बेटे सुमीत शेखावत का विवाह जो था। मेहमानों से घर खचाखच भरा हुआ था। एक हजार आदमियों को निमंत्रण बांटा गया था जिसमें कई सारे प्रतिष्ठित

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सदानंद शिवाय की पत्नी घर से बाहर किसी से कुछ कहने अपनी साडी़ संभालते निकली ही थीं कि एक आदमी हांफता,भागता आया और बोला कि" माता जी वो मैं रसगुल्ले के भगौने टैंपों में रख धर्मशाले के लिये ले जा रहा था&n

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'घूंघट में कौन'-भाग 3

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थोडा़ बातचीत करने के बाद जब उसने दुल्हन का घूंघट हटाया तो हक्का बक्का रह गया। उसने पूछा "तुम कौन हो?और जिससे मेरा विवाह हुआ वो कहां है?ये सब क्या है?"। उसने आज से पहले मूछों वाली दुल्हन न देखी थी। घूं

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'घूंघट में कौन'-भाग4

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सुमीत जैसे ही हवेली के अंदर पहुंचा ,हाआआआ ,उसकी चीख निकल गयी और वह फौरन बाहर आकर बाहर एक टीले पर बैठ गया और बोला "येएएए अंदर कककककौन ?किसकी किसकी छाआआया थी?"। हाआआ ,वह हांफता भयभीत सा बोला। उसने अंदर

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'घूंघट में कौन'-भाग5

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अथर्व दरवाजा खोलने गया।दरवाजा खोला तो सामने सरोज शेखावत और सुजाता थे। दोनों अथर्व को देखकर सन्न रह गये । उनके सामने जींस और टीशर्ट पहने मांग में सिंदूर,माथे पर बिंदी लगाये एक युवक खडा़ था उसके सुमीत क

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'घूंघट में कौन'-भाग 6

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अंदर एक संत उन्हें वहां ले गयीं जहां सबकी गुरु संत माता बैठी थीं और वहां बहुत से छोटे बच्चे बच्चियां सांध्य प्रार्थना कर रहे थे--- "हे ईश्वर हमें ज्ञान दे, स्वप्न पंखों को उडा़न दे, हमें मिलें,हम बांट

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'घूंघट में कौन'-भाग 7

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शायद उनकी समस्या का समाधान उनकी वहीं प्रतीक्षा कर रहा था जहां से वह आये थे। सरोज शेखावत अपने परिवार सहित आश्रम से वापसी कर चुके थे। सब कार से वापस आ रहे थे। सुमीत खिड़की से बाहर का नजारा देख रहा

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'घूंघट में कौन'-भाग9

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तभी अथर्व की नज़र वहां खाना खाते एक दंपत्ति पर पडी़ और उसकी आंखें फटी की फटी रह गयीं ।वह आस्था से बोला " आस्था ,देखो शर्मिष्ठा आंटी"। आस्था नज़रें नीची करे खाना खाते हुये बोली "पागल हो गये हो क्या?,शर

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'घूंघट में कौन'-भाग 10 अंतिम भाग

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जैसे ही उसने घूंघट उठाया ,मुंह से चीख निकली हहहाआआ । "हा हा हा हा हा "करते हुये अथर्व बेड के पीछे से निकल कर बाहर आया और कमरे की लाइट जला दी। सुमीत ने देखा कि आस्था के चेहरे पर डरावना मुखौटा लगा हुआ थ

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