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'घूंघट में कौन'-भाग 1

20 अप्रैल 2022

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सरोज शेखावत आज बहुत खुश नज़र आ रहे थे ,होते भी क्यों नहीं आज उनके बेटे सुमीत शेखावत का विवाह जो था। मेहमानों से घर खचाखच भरा हुआ था। एक हजार आदमियों को निमंत्रण बांटा गया था जिसमें कई सारे प्रतिष्ठित व्यक्ति भी शामिल थे। आखिर सरोज शेखावत कोई मामूली आदमी तो थे नहीं,अपने इलाके के सबसे प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। उनका व्यापार क्षेत्र बहुत विस्तृत था। अनेकों दुकानें किराये पर उठी थीं ,स्वयं बहुत बडे़ कपडा़ व्यापारी थे ,जहां थान के कपडे़ छोटे छोटे दुकानदार थोक के रूप में ले जाते थे। गन्ना मिल उनकी चलती थी। ईश्वर का दिया सब कुछ था। सुंदर सुघढ़ पत्नी सुजाता ,जो सरकारी स्कूल में अध्यापिका थी ।सरोज शेखावत याद कर रहे थे कि उसके घर से रिश्ता आया था ,उसके घर वाले बहुत संपन्न न थे पर उसकी फोटो देखकर ही सरोज शेखावत ने विवाह के लिये हां कर दी थी।घर वालों ने कहा था कि लड़की देख तो लेते हैं पर उन्होने इसकी कोई आवश्यक्ता न समझी थी। विवाह तय हो गया था तब थोडा़ उनका मन सोचने को विवश हुआ था कि कोई गलती तो न कर दी पर विवाह के बाद वह सुजाता को जानने व समझने के बाद अपने निर्णय पर उनको फक्र हो रहा था क्योकि सुजाता बहुत ही सुशील और संस्कारी पत्नी साबित हुयी थी उनके लिये और भाग्यवान भी क्योकि उसके कदम पड़ने के बाद से ही उनके व्यापार क्षेत्र मे तेजी से प्रगति हुयी थी। अब बेटे की शादी के बहुत रिश्ते आये थे पर ये रिश्ता उन्हें पसंद आया था ।लड़की के पिता संपन्न घर के थे और लड़की भी फोटो से अच्छी ही लगी थी। उन्होने अपने बेटे से भी पूछा था परंपरानुसार कि लड़की देखनी हो देख लो पर उनका बेटा सुमीत ,वह तो शादी को कब से ऐसे टाल रहा था कि जैसे वह शादी करना ही न चाहता ।वह और उसकी मां जब शादी के लिये बात छेड़ते तो वह कोई न कोई बहाना बनाकर टाल देता था। एक दिन सुजाता ने पूछा था कि कोई लड़की पसंद हो तो बता दो तो वह बोला था कि ऐसी कोई बात नहीं है मां,आप जहां कहोगे वहां कर लूंगा पर अभी जल्दी क्या है?और फिर एक दिन उसने इस रिश्ते के लिये हां कह दी थी ।विवाह की तारीख आने में आठ महीने ही थे ।बहुत सी तैयारियां करते करते विवाह का दिन नज़दीक आ पहुंचा था आज ।सुबह से भागा दौडी़ मे लगे और सबको उनका काम सही से करने के लिये कहते उनका गला बैठ गया था।काम देखने वाले बहुत थे पर वो सब अपने निर्देशन में कराना चाहते थे तो एक पल को भी चैन से न बैठते थे। सुजाता अंदर औरतों को संभालती और अंदर की जिम्मेदारियां देखने में जुटी थी। घर बिलकुल दुल्हन की तरह सजा आने वाली दुल्हन के स्वागत में जैसे पलकें बिछाये बैठा था। इतनी ज्यादा लाइटें थीं कि लगता था कि सूर्य को रात में भी प्रकाश फैलाने का जिम्मा दिया गया हो और वो अपनी जिम्मेदारी पूरी शिद्दत से निभा रहा हो। ठंडी ठंडी हवा चल रही थी। सुंदर फूलों से पांडाल की सजावट थी जो माहौल में अपनी सुगंध फैला कर सभी को रोमांचित कर रही थी। हलवाइयों के द्वारा बन रहे भोजन की खुशबू सबके नथुनों में प्रवेश कर भूख जगा रही थी। छोटे छोटे बच्चे सुंदर सुंदर कपडे़ पहने इधर से उधर टहल टहल जैसे जायजा ले रहे थे कि सब सही हो रहा कहीं कुछ कमी तो न रह गयी है।
सरोज शेखावत आते मेहमानों का स्वागत करते जा रहे थे। बहुत बडा़ पांडाल था जो पूरा भरता जा रहा था।औरतें सजने संवरने में घर मे लगी थीं । दूल्हे राजा सुमीत की दोस्त आज जम के टांग खींचने मे लगे थे जो विवाह के लिये तैयार हो रहा था। रोहित उसका दोस्त बोला "यार सहबोला कौन है?तेरे कोई छोटा भाई तो है नहीं"।वह बोला "नहीं रिश्तेदारी मे जो छोटे भाई है न वही सब सहबोला बन कर तैयार रहेंगे"। "अच्छा !मैंने तो सुना है कि लड़की की बहन भी नहीं ,तू तो मजे मे है ,कोई जूते चुराने वाला भी नहीं है ,हाहा हा "। "क्या हा हा हा, तुम सब इसे तैयार होने दो बारात भी तो समय से पहुंचनी है कि नहीं?तुम्हारे सबके अंकल जी चार बार पूछ चुके और कितना समय है ?सुमीत तैयार हुआ कि नहीं?बारात निकलने का समय हो गया"। सुजाता आकर के बोली।
"हां मैं तैयार हो गया मां " सुमीत बोला। "अच्छा मैं देखकर आती हूं बारात में जाने वाली लड़कियां तैयार हुयीं कि नहीं"। "क्या?बारात में लड़कियां भी जायेंगी मां"। "हां तो!लड़कियों के जाने में कौन बुराई है?आजकल तो सभी जाती हैं"। "हां लेकिन किसी ने वहां उनसे मजाक मे कुछ कह दिया तो बात बिगड़ न जाय "। सुमीत ने चिंता जाहिर की। "कुछ न होगा ,तू निकल जल्दी ,गाडी़ तैयार खडी़ है, और बेटा रोहित तू जरा बगल वाले कमरे मे जाकर इसकी आंटी बैठी हैं उनसे पूछ ले कि सब तैयार हो गये हों तो बाहर आ जायं ,निकलने मे देर हो रही"। "जी आंटी "कहकर वो चला गया। 
सब तैयार हो गये थे और बारात तय समय पर घर से नारियल फोड़ कर निकल चुकी थी। 
लड़की वालों के तरफ भी सब तैयारियों में जुटे थे। सदानंद शिवाय ,(लड़की के पिता जो इंटर काॅलेज के अध्यापक थे और जमीन जाकडा़ भी था )भी सबको कह रहे थे जल्दी तैयार हो सब लोग भाई किसी भी वक्त बारात आती ही होगी और बार बार पत्नी से पूछते कि बेटी ब्यूटीपार्लर से आई कि नहीं ,वो कहतीं आ जायेगी आप बाहर की व्यवस्था देखिये जाकर । सदानंद शिवाय के दो बच्चे थे ,एक लड़की और एक लड़का और दोनों जुड़वां ही हुये थे। उन्हें बेटी चाहिये थी क्योंकि बेटियां घर की शोभा बढा़ती हैं पर बेटी के साथ बेटा भी मिल गया था ।वो कहते हैं न एक पर एक मुफ्त,मुफ्त,मुफ्त। 
उन्होने बारात ठहरने के लिये धर्मशाला बुक कराया था जो उनके घर से अधिक दूर न था और उसी में जयमाल और खाने की व्यवस्था थी।खाने घर के पीछे पडे़ प्लाट मे बन रहा था और वहां से धर्मशाला पहुंचाया जा रहा था।
सदानंद शिवाय की पत्नी घर से बाहर किसी से कुछ कहने अपनी साडी़ संभालते हुये निकली ही थीं कि एक आदमी हांफता भागता आया और बोला कि..........शेष अगले भाग में।
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'घूंघट में कौन'-भाग 1

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सरोज शेखावत आज बहुत खुश नज़र आ रहे थे ,होते भी क्यों नहीं आज उनके बेटे सुमीत शेखावत का विवाह जो था। मेहमानों से घर खचाखच भरा हुआ था। एक हजार आदमियों को निमंत्रण बांटा गया था जिसमें कई सारे प्रतिष्ठित

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सदानंद शिवाय की पत्नी घर से बाहर किसी से कुछ कहने अपनी साडी़ संभालते निकली ही थीं कि एक आदमी हांफता,भागता आया और बोला कि" माता जी वो मैं रसगुल्ले के भगौने टैंपों में रख धर्मशाले के लिये ले जा रहा था&n

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'घूंघट में कौन'-भाग 3

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थोडा़ बातचीत करने के बाद जब उसने दुल्हन का घूंघट हटाया तो हक्का बक्का रह गया। उसने पूछा "तुम कौन हो?और जिससे मेरा विवाह हुआ वो कहां है?ये सब क्या है?"। उसने आज से पहले मूछों वाली दुल्हन न देखी थी। घूं

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सुमीत जैसे ही हवेली के अंदर पहुंचा ,हाआआआ ,उसकी चीख निकल गयी और वह फौरन बाहर आकर बाहर एक टीले पर बैठ गया और बोला "येएएए अंदर कककककौन ?किसकी किसकी छाआआया थी?"। हाआआ ,वह हांफता भयभीत सा बोला। उसने अंदर

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अथर्व दरवाजा खोलने गया।दरवाजा खोला तो सामने सरोज शेखावत और सुजाता थे। दोनों अथर्व को देखकर सन्न रह गये । उनके सामने जींस और टीशर्ट पहने मांग में सिंदूर,माथे पर बिंदी लगाये एक युवक खडा़ था उसके सुमीत क

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'घूंघट में कौन'-भाग 6

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अंदर एक संत उन्हें वहां ले गयीं जहां सबकी गुरु संत माता बैठी थीं और वहां बहुत से छोटे बच्चे बच्चियां सांध्य प्रार्थना कर रहे थे--- "हे ईश्वर हमें ज्ञान दे, स्वप्न पंखों को उडा़न दे, हमें मिलें,हम बांट

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'घूंघट में कौन'-भाग 7

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शायद उनकी समस्या का समाधान उनकी वहीं प्रतीक्षा कर रहा था जहां से वह आये थे। सरोज शेखावत अपने परिवार सहित आश्रम से वापसी कर चुके थे। सब कार से वापस आ रहे थे। सुमीत खिड़की से बाहर का नजारा देख रहा

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'घूंघट में कौन'-भाग 8

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अथर्व जब घर के लिये जा रहा था तो उसे लगा कि कोई है पीछे ,पलट कर देखा तो विश्नोई अंकल थे ।कितने सालों बाद आज उसने विश्नोई अंकल को देखा पर इस हालत में!वह जैसे सुन्न गुन्न से मानसिक विक्षिप्त लग रह

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'घूंघट में कौन'-भाग9

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तभी अथर्व की नज़र वहां खाना खाते एक दंपत्ति पर पडी़ और उसकी आंखें फटी की फटी रह गयीं ।वह आस्था से बोला " आस्था ,देखो शर्मिष्ठा आंटी"। आस्था नज़रें नीची करे खाना खाते हुये बोली "पागल हो गये हो क्या?,शर

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'घूंघट में कौन'-भाग 10 अंतिम भाग

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जैसे ही उसने घूंघट उठाया ,मुंह से चीख निकली हहहाआआ । "हा हा हा हा हा "करते हुये अथर्व बेड के पीछे से निकल कर बाहर आया और कमरे की लाइट जला दी। सुमीत ने देखा कि आस्था के चेहरे पर डरावना मुखौटा लगा हुआ थ

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