सदानंद शिवाय की पत्नी घर से बाहर किसी से कुछ कहने अपनी साडी़ संभालते निकली ही थीं कि एक आदमी हांफता,भागता आया और बोला कि" माता जी वो मैं रसगुल्ले के भगौने टैंपों में रख धर्मशाले के लिये ले जा रहा था कि रास्ते मे अचानक टैम्पो के आगे एक भैंस न जाने कहां से आ गयी और टैम्पो पलट गया और सारे रसगुल्ले सड़क पर बिखर गये।वो तो कहो मुझे चोट न लगी पर अब समस्या ये है कि मेहमानों को खाने के बाद मिष्ठान्न में क्या दिया जायेगा? "। "सत्यानाश!सुधीर ये तूने क्या कर दिया?अब यहां खडे़ खडे़ मेरा मुंह क्या देख रहा है जा,मैं देखती हूं क्या हो सकता है अब ",इतना कह वो हलवाई पास गयी और सारी बात बताई ,वे बोले "आप चिंता न करें साहब ने रबडी़ और इमरती भी बनवाई है वो काम आ जायेगी"। ये सुन कर वह आश्वस्थ हो गयी और फिर सब लोग धर्मशाले के लिये निकल लिये।
धर्म शाले में जैसे ही वह पहुंची तो उसे देखते ही सदानंद शिवाय ने सवाल दागा "आ गये सब !और बिटिया किस गाडी़ मे है?"। वह बोली "वह पीछे वाली गाडी़ मे अपनी सहेलियों के साथ है आप परेशान न हों और बारात आ गयी क्या?"। हां अभी पहुंचने ही वाले हैं। जयमाल के स्टेज की सजावट बहुत खूबसूरत थी । देखते ही बनती थी। छोटे छोटे बच्चे सब कुर्सी घेरे बैठे थे कि बाद में भीड़ बढ़ जाय और बैठने को न मिले तो।
बारात आ गयी और उनके स्वागत की तैयारियां प्रारंभ हो गयीं।फिर दूल्हे को गोद में बिठाकर स्टेज तक लाया गया और दूल्हा सुमीत अपनी जगह बैठ गया। कुछ लड़कियां स्टेज पर आईं और स्वागत गीत गाने लगीं--
"स्वागतम,स्वागतम,
आपका स्वागतम।
प्रेम से स्वागत,
स्नेह से स्वागतम।
हमने बुलाया और,
आप सभी आ गये,
मन प्रफुल्लित हुये ,
नयन हर्षा गये।
आपका आभार,
की प्रार्थना स्वीकार।
ह्रदय पुष्प खिल गये,
आनंद छा गये। "
फिर लड़की को स्टेज पर बुलाया गया और जयमाल शुरू हो गया।
बारात को आने में नौ बज गये थे,तो जयमाल और खाने पीने में देर रात हो गयी थी। ये सब निपटने के बाद सब घर को जाने को निकल पडे़ ।शादी वहीं होनी थी।
घर में शादी प्रारंभ हो गयी थी।
शादी देखते सरोज शेखावत सोच रहे थे कि समय कितनी शीघ्रता से बीत जाता है कि पता ही न चलता ।लगता है अभी कल की ही तो बात थी जब सुमीत छोटा सा था। छोटी छोटी चीजों के लिये फरमाइश करता हुआ । बचपन में उनके घर काम वाली बाई आती थी तो उसकी एक बेटी थी। बहुत गंदी रहती । उलझे बाल,बहती नाक ,उफ !। सरोज शेखावत सुमीत को चिढा़ते कि इससे विवाह करा दूंगा जब तू बडा़ हो जायेगा तब यदि तूने मां का कहना मानकर दूध का पूरा ग्लास खाली न किया तो,और वह इतना सुनते ही झट से दूध का ग्लास खाली करके स्कूल के लिये निकल जाता और सब हंसते रह जाते थे। उसे वह लड़की इतनी गंदी लगती कि पूछो मत। खेलते ,खाते ,हंसते,हंसाते वो समय आ गया जब आज इसका विवाह हो रहा है। उसे अपने विवाह की याद हो आई तब ये वीडियोग्राफी ,फोटोग्राफी का चलन न था। बस विवाह हो जाता और संतान को बताया जाता कि ये हुआ था,वो हुआ था,और बच्चे कल्पना कर लेते कि हमारे मां बाप कैसे दिख रहे होंगे दूल्हे,दुल्हन के रूप में। सुजाता तो बहुत सुंदर लग रही थी दुल्हन के जोडे़ में वो याद कर रहे थे तब तक कोई आया और काफी दे गया और वह अतीत से वर्तमान में आकर विवाह का आनंद उठाने लगे।
भोर हो गयी थी और घर में कलेवा की तैयारियां प्रारंभ हो गयी थीं। कलेवा निपटा तो सुमीत उठा तो उसके जूते न दिखे ,उसने सोचा कि कोई चुरा ले गया होगा।वो रास्ता देखे ,सरोज शेखावत बोले "चलना नहीं है ,इन लोगों को विदाई की तैयारी करनी है हम लोग तब तक हाल मे बैठते हैं,"। वह बोला "हां ,चलता हूं "पर चलता चलता कैसे?जूते न थे। उसे असमंजस में देख कर लड़की की मां बोली क्या बात है?बेटा"। वह बोला "जूतेएएए"। लड़की की मां ने कहा "जूते तो किसी ने न चुराये "।अचानक उनकी निगाह गयी तो एक बिल्ली जूते लिये बैठी उसमें से कुछ निकाल कर खा रही थी। पास जाकर देखा तो जूते में कुछ खाने का सामान गिर गया था,शायद वही खाने के लालच में वह जूते इधर ला कर आराम से पेट पूजा कर रही थी। सब हंसने लगे कि साली जी को भाई नेग दो ।
ये सब होकर विदाई हो गयी और सुमीत दुल्हन को लेकर अपने दो दोस्तों के साथ कार में निकल गया और बाकी सब भी अपने अपने साधनों से निकल गये।
बारात घर आ गयी थी और सब थके हारे इधर,उधर पड़ गये । सुमीत भी गाडी़ से निकलने जा रहा था पर सुजाता बोली "अभी तुमको और बहू को मंदिर ले जाना है फिर लौटकर आकर गृहप्रवेश होगा और वो कार मे बैठ कर मंदिर के लिये निकल ली।
कार मंदिर से आ गयी थी। सुजाता बहू के गृहप्रवेश की तैयारी करने लगी और सुमीत सोफे पर निढा़ल हो सो गया।
शाम हो गयी थी और सारे मेहमानों को चाय नाश्ता दिया जा रहा था। सुमीत भी उठ चुका था और उसके दोस्त उसे घेरे उसे सुहागरात के लिये टिप्स दे रहे थे जो शादीशुदा थे वो अपने अनुभव बता रहे थे।
इधर दुल्हन को सब घेरे बैठे थे। छोटे छोटे बच्चे बच्चियां नयी भाभी को देखने के लिये बेहद उत्सुक थे जो घूंघट में थी। पूरे विवाह में उसका घूंघट उसकी सहेली ने यह कहकर न हटाया था कि हमारे यहां रिवाज है कि लड़की का चेहरा सुहागरात पर दूल्हा खोलता है फिर ही किसी को उसका चेहरा देखने को मिलता है। लड़की के मां बाप ये सुन हैरान रह गये थे क्योकि उनके यहां ऐसा कोई रिवाज था ही नही पर वो इसे बेटी की इच्छा जानकर चुप हो गये थे और लड़के पक्ष मे किसी ने एतराज भी न किया था।
औरतों के ढो़लक बजाने गाने का प्रोग्राम प्रारंभ हो गया था और सब जिद कर रहे थे कि दुल्हन कुछ गा कर सुनाये।
फिर सबके कहने पर दुल्हन ने एक कविता की चंद पंक्तियां सुनाईं---
"प्रियवर मेरे जीवन में तुम ,
कुछ इस प्रकार से आये,
जैसे सूर्य के संग रश्मियां,
उसके संग से खिलखिलायें।
जैसे फूलों की खुशबू उसका,
जन्म जन्म साथ निभाये।
जैसे जल बिन मीन ,
तड़प तड़प रह जाय"।
फिर आखिर कार दुल्हन कमरे में पहुंचा दी गयी और सुमीत को भी। सुमीत कमरे में आया। थोडा़ बातचीत करने के बाद जब उसने दुल्हन का घूंघट उठाया तो हक्का बक्का रह गया........शेष अगले भाग में।