अथर्व दरवाजा खोलने गया।दरवाजा खोला तो सामने सरोज शेखावत और सुजाता थे। दोनों अथर्व को देखकर सन्न रह गये । उनके सामने जींस और टीशर्ट पहने मांग में सिंदूर,माथे पर बिंदी लगाये एक युवक खडा़ था उसके सुमीत की उम्र का जिसकी शक्ल उन्हें अपनी बहू जैसी लग रही थी। अथर्व भी हक्का बक्का रह गया ,उसे उम्मीद न थी कि मां,पापा आये होंगे। वो इतने दिन से थे नहीं तो अथर्व अपने कपडो़ं मे रहने लगा था।छत पर या सामने बालकनी में जाना होता तो जींस पर ही साडी़ लपेट लेता जिससे बाहरी व्यक्ति के सामने भेद न खुले। आज वह और सुमीत अपने अपने बचपन की यादें परस्पर साझा कर रहे थे।उसी रौ में आकर घंटी बजने पर वह दरवाजा खोलने उठ पडा़ ये ध्यान दिये बिना कि साडी़ न लपेटी।
"तुम कौन हो?,ये क्या,कैसा भेस लिये हमारे यहां क्या कर रहे हो?और तुम्हारा चेहरा तो.."।आप अंदर आइये मैं आपको सब बताता हूं,अथर्व सरोज शेखावत की बात बीच में ही काटकर बोला।
वह अंदर आ गये ।सुमीत ने उनको आया देखा तो बगलें झांकने लगा।
सरोज शेखावत और सुजाता बैठे थे। माहौल में चुप का सन्नाटा बज रहा था। अथर्व ने चुप्पी तोड़ते हुये उन्हें सारी बात बताई। वह सब सुनकर अवाक रह गये कि ये सब क्या हो गया। उन्हें अपनी आंखों के सामने सुमीत का अंधकारमय जीवन,उसकी उजडी़ खुशियां दिख रही थीं पर कहें क्या ये न समझ आ रहा था। कितने समय बाद तो सुमीत ने विवाह को हां कहा था और विवाह हुआ तो ऐसा?एक मजाक बन गया सुमीत का वैवाहिक जीवन?
अथर्व घुटनों के बल उनके सामने बैठ कर रोता हुआ बोला कि "आप सब के साथ धोखा हुआ है पर उसमें मेरे मां,पापा की कोई गलती नहीं है।उन्हें तो पता भी न था कि वो विदाई आस्था की नहीं मेरी कर रहे हैं। दुल्हन की सब प्रतीक्षा कर रहे थे कि वह ब्यूटीपार्लर से आये और जयमाल के लिये ले जाया जाय।ऐसे में अगर सबको पता चलता कि दुल्हन तो भाग गयी तो क्या इज्जत मेरे मां,पापा की रह जाती? जिसने गलती की ,उसकी गलती का खामियाजा मैं भुगत रहा हूं ,और भुगतूंगा हर वो सजा जो आप लोग मुझे देंगे पर ये सब मैंने अपने परिवार की इज्जत बचाने के लिये किया"।
"पर मेरे सुमीत का क्या?उसकी तो जिंदगी बरबाद गयी ना!सारी उम्र वो एक लड़के के साथ बितायेगा?"सुजाता बिफर पडी़। "आप हम दोनों को किसी दूसरे शहर भेज दें जहां आप लोगों को कोई जानता न हो,वहां सुमीत विवाह कर ले। सबसे ये कह दिया जाय कि वह बाहर नौकरी लगने पर अपनी पत्नी के साथ चला गया। मैं भी अपने घर चला जाऊं ,जब सुमीत यहां आये तो मैं आ जाऊं उसकी दुल्हन के रूप में ,मुझे इसके अतिरिक्त कुछ न समझ आ रहा ,बाकी आप लोग बडे़ हैं जो उचित समझें मैं हर तरह से तैयार हूं ,अपनी सजा भुगतने के लिये"।अथर्व ने अपनी बात रखी। सरोज शेखावत ने सुमीत से पूछा "तुमने कुछ तय किया है कि आगे क्या करना है बेटा ?"। "पापा मुझे वैसे भी विवाह न करना था ,मेरा मन न था पर अब जो है जैसा है उसे स्वीकार करना है। अथर्व तो कुसूरवार नहीं है तो वो सजा का हकदार भी नहीं है।उसने तो अपने परिवार के साथ साथ हमारी भी इज्जत बचाई ।हम लोग बिना दुल्हन के आते और यहां सबको पता चलता कि सुमीत की होने वाली दुल्हन अपने प्रेमी के साथ भाग गयी तो हमारी कितनी हंसी उडा़ई जाती? उस जिल्लत से हमें अथर्व ने ही बचाया है ,और विवाह ही सब कुछ नहीं होता है,उसके अलावा भी दुनिया मे बहुत कुछ होता है। मुझे कोई अफसोस नहीं है।उल्टे मुझे इतना अच्छा मित्र मिल गया। अथर्व बहुत अच्छा है "सुमीत ने कहा तो सरोज शेखावत सुजाता से बोले चलो आराम कर लेते हैं और सब विधाता पर छोड़ देते हैं,वो जो करेगा हमें स्वीकार होगा"।वह अपने कमरे मे चले गये और सुमीत और अथर्व अपने कमरे में।
रात हो चुकी थी पर सुजाता की आंखों में नींद का एक कतरा भी न था।उसने सरोज शेखावत से पूछा "सो गये क्या?"।सरोज शेखावत ने उसकी तरफ करवट बदलते हुये कहा कि नहीं तो,सुमीत के बारे मे सोच कर नींद न आ रही"। सुजाता बोली "हां मुझे भी,सब सोचो तो अथर्व की गलती तो है ही नहीं पर सुमीत के बारे मे भी तो सोचना है।उसने हमें उदास न करने को हालात से समझौता कर लेने जैसी बात की पर हम तो उसके मां बाप हैं,हमे तो आगे क्या करना ये सोचना है",सुजाता बोली ।"चलो सुबह सोचते हैं क्या करना है"सरोज शेखावत आंखें बंद करते बोले।
"नींद नहीं आ रही ना?सुमीत ने अथर्व से पूछा। "हां ,कैसे आयेगी?अब आगे क्या होगा ये सोच रहा हूं। वहां मां पापा भी अकेले हैं।उनके प्रति भी मेरे फर्ज हैं ,यहां की भी मेरी जवाबदेही बनती है । ये आस्था ने सही नहीं किया । उसे सबको सबकुछ पहले ही सच बता देना चाहिये था तो आज ये दिन न देखने होते"। अथर्व ने मायूस होकर कहा पर सुमीत चुप रहा ।
भोर हो गयी थी पर पक्षियों के कलरव से नहीं लात घूसों व गालियों से आस्था की नींद खुली थी। उसका पति विवान उसे बिना बात के मार रहा था और वह रो रही थी कि क्यों मार रहे हो?मैंने तुम्हारा क्या बिगाडा़ है जिसकी सजा दे रहे हो? वह बोला बस हाथ में खुजली हो रही वही मिटा रहा हूं ।
"सुनो!मैं क्या कहती हूं ,वो बनारस वाले आश्रम की महिला संतों को अपने यहां निमंत्रण देते हैं,वो आयेंगी तो उनकी आवभगत में कोई कमी न रखेंगे फिर उनसे ही कुछ सलाह लेंगे ,कैसा रहेगा?"सुजाता ने सरोज शेखावत से पूछा। "अरे वो हमारे यहां आ जायेंगी क्या?हमें उनके पास चलना चाहिये। उनका बहुत नाम सुना है पर लोगों को उनके पास जाकर सुकून मिलता है पर वो ये पारिवारिक मसले थोडे़ न सुलझाती फिरती होंगी। वह संत हैं "। सरोज शेखावत बोले तो उसने सबके साथ वहां जाने का मन बना लिया और सरोज शेखावत भी सहमत हो गये।
सब नाश्ते के लिये बैठे थे ,वहां सरोज शेखर ने बताया कि तुम दोनों नाश्ता करके तैयार हो जाओ ,हम सब को अभी बनारस के लिये निकलना है। "लेकिन अचानक,क्यों?"सुमीत ने पूछा तो सुजाता बोली शायद वहां जाकर सुकून मिले और आगे क्या करना वो भी समझ आये।
सब तैयार होकर बनारस के लिये निकल लिये।
आश्रम पहुंचकर सब बहुत प्रसन्न हुये । वहां का सुरम्य वातावरण मन को मोह जो रहा था। एक ताजगी भरी शांति जैसे उनका स्वागत कर रही थी।
वहां की एक संत उन्हें अंदर ले गयीं और अंदर एक संत उन्हे वहां ले गयी जहां.......शेष अगले भाग में।